Friday, September 29, 2017

भूखे बेघर दुधमुंहे बच्चे आतंकवादी नहीं होते , सरकार


शेष नारायण सिंह

म्यांमार में अपना घरबार छोड़कर भाग रहे रोहिंग्या मुसलमानों की दर्दभरी कहानी पूरी  दुनिया में चर्चा  का विषय है .  अरकान में बसे इन लोगों की नागरिकता छीन ली गयी है . यह देशविहीन लोग हैं . अमनेस्टी इंटरनैशनल की रिपोर्ट है कि भागते हुए   रोहिंग्या मुसलमानों के  घरों में  अभी भी ( २४ सितम्बर,१७  )आग लगी  हुई है . जो बुझ गयी है उनमें से धुंआ निकल रहा है . आसमान से ली गई तस्वीरों में यह तबाही का मंज़र साफ़   देखा जा सकता  है . अमनेस्टी इंटरनैशनल की निदेशक तिराना हसन का कहना है कि जो सबूत मिले हैं वे म्यांमार  की शासक आंग सां सू ची की झूठ को बेनकाब कर  देते हैं . ऐसा लगता है कि म्यांमार के अधिकारी  यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि जो लोग भाग कर देश छोड़कर जाने को मजबूर किये जा रहे  हैं अगर वे कभी अंतर्राष्ट्रीय दबाव  के चलते वापस भी आयें तो उनको अपने घर की जगह पर  कुछ न मिले .. उनको उनके घरों की राख हे  नज़र आये .
म्यांमार में तबाह हो रहे लोग पड़ोस के देशों में शरण लेने को मजबूर हैं . दिनरात चल कर बंगलादेश , भारत , मलयेशिया आदि देशों में पंहुच रहे लोगों को पता ही नहीं है कि कहाँ जा रहे हैं . उनके साथ बीमार लोग हैं , भूख से तड़प रहे बच्चे हैं , चल फिर सकने  से  मजबूर बूढ़े हैं , गर्भवती महिलायें हैं और दुधमुंहे   नवजात शिशु हैं . बड़ी संख्या में  भारत में भी म्यांमार के रोहिंग्या शरणार्थी पंहुच रहे  हैं. मौत से भाग कर नदी, नाले, पहाड़ , जंगल के  रास्ते अनिश्चय की दिशा में  भाग रहे लोगों को कहीं जाने का ठिकाना  नहीं है .
बड़ी संख्या में लोग भारत भी आ रहे  हैं.  हमारी सरकार ने साफ़ कर दिया है कि इन लोगों को अपने देश में ठिकाना  नहीं दिया जाएगा.  भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने आधिकारिक बयान दे दिया है और कहा  है कि म्यांमार के अराकान  प्रांत से आ रहे लोग शरणार्थी  नहीं  हैं , वे गैरकानूनी तरीके से आ रहे लोग हैं .  उनको देश की सीमा के  अन्दर नहीं आने दिया जाएगा . म्यांमार से लगे राज्यों की सीमा चौकसी बढ़ा दी गयी  है .भारत सरकार के रुख से एकदम साफ़  है कि रोहिंग्या शरणार्थी भारत में नहीं आ सकते  और जो पहले से आ चुके हैं ,उनको देश से निकाल दिया जाएगा . जो  हालात अराकान में है उसमें वे अपने घर तो नहीं जा सकते , समझ में नहीं आता कि उनको भेजा कहाँ जाएगा .
अपनी जान की हिफाज़त की मांग करते हुए कुछ  रोहिंग्या शरणार्थियों ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई  है.  अपने हलफनामे में  दो रोहिंग्या लोगों ने कहा है कि अगर  उनके बीच से कोई बदमाशी कर रहा हो तो उसको तो देश से निकाल  दिया जाए या सज़ा दी जाए लेकिन  जो लोग मौत से भाग कर यहाँ शरण लेकर अपनी जान बचा रहे हैं उनको वापस न भेजा  जाए क्योंकि  वहां तो निश्चित मौत उन लोगों का इंतज़ार कर रही है.  जिन दो लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी है वे करीब पांच-छः साल से भारत में शरण लिए हुए  हैं.  उन्होंने  बाहलफ बयान दिया है कि उन दोनों के खिलाफ कोई भी मामला कहीं भी दर्ज नहीं है , यहाँ तक  उनकी जानकारी में किसी भी  रोहिंग्या के खिलाफ कोई मामला नहीं है. उनकी वजह से  राष्ट्रीय सुरक्षा को कोई ख़तरा नहीं है . फरियादियों ने कहा है कि पता लगा है कि सरकार ऐसे चालीस हज़ार रोहिंग्या शरणार्थियों का पता लगाएगी और उनको  देश से निकाल देगी . उन्होंने प्रार्थना की है कि हालांकि भारत ने शरणार्थियों के अंतर राष्ट्रीय कन्वेंशन पर दस्तखत नहीं किया है लेकिन मुसीबतज़दा लोगों की  हमेशा  ही मदद करता रहा है . प्रार्थना की गयी है कि वे भारत में रहने या स्वतंत्र रूप से कहीं  भी आने जाने के अधिकार की मांग नहीं कर रहे हैं .  उनको अपनी हिफाज़त में केवल  तब तक रहने दिया जाय जब तक कि उनके देश में  उनकी जान  पर मौत का साया मंडरा रहा है . उन्होंने कहा कि भारत में  उनको किसी तरह का  अधिकार नहीं चाहिए .  रोहिंग्या फरियादियों ने अपील की है कि जिस तरह  से भारत में तिब्बत और श्रीलंका से आये शरणार्थियों की जान की हिफाज़त की व्यवस्था है , वही उनको भी उपलब्ध करा दी जाए.  दया की अपील को संविधान की सीमा में रखने की बात भी की गयी है .    याचिका में कहा गया है कि रोहिंग्या अपना वतन  छोड़कर भाग रहे हैं क्योंकि म्यांमार में उनको सिलसिलेवार तरीके से परेशान किया जा रहा है . उनकी मुसीबत का कारण उनका धर्म और उनकी  जातीय पहचान है . इसलिए अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत वे शरणार्थी हैं और  वे अपने देश वापस नहीं जा सकते क्योंकि वहां उनको फिर वही यातना सहनी पडेगी.  सुप्रीम कोर्ट ने मामले को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है और अब अगली सुनवाई ३ अक्टूबर   को होगी.
 केंद्र सरकार के सख्त   रुख के कारण रोहिंग्या लोगों का अब भारत में रह पाना मुश्किल है, सुप्रीम कोर्ट से उनको कुछ उम्मीद है. लेकिन देश में उनको लेकर  बड़े पैमाने पर सियासत शुरू हो गयी है . किसी कोने में  पड़े हुए कुछ मौलाना मैदान में आ गए हैं जो अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने में लग गए हैं . एक मौलाना ने कोलकता की एक मीटिंग में कह  दिया  कर्बला में हम बहत्तर थे लेकिन हमने लाखों का जनाज़ा निकाल दिया . अब कोई इस मौलाना से कहे कि भाई जिस अराकान में इन मुसलमानों   के ऊपर हर तरह की मुसीबत टूट पडी है आप  वहां क्यों नहीं जाते , वहां जाइए और वहां का जो भी यजीद हो उसको खत्म कर के इन गरीब लोगों की जान  बचाइये ., तो बगलें झाँकने लगेंगे . लेकिन यहाँ भारत में जहां हर  तरह से  तबाह रोहिंग्या ने शरण ले  रखी है उनके खिलाफ माहौल बनाकर आपको क्या  मिलेगा . लेकिन वे अपनी हरकत से  बाज़ नहीं  आयेंगें . इन्हीं गैरजिम्मेदार मौलाना साहिबान के मेहरबानी से  देश में चारों तरह सक्रिय हिंदुत्व  के अलमबरदारों को हर मुसलमान के खिलाफ लाठी भांजने का  बहाना मिल जाता  है.   रोहिंग्या के भारत में  रहने के मुद्दे पर टेलिविज़न पर हो रही एक बहस में मैने मन बनाया था कि रोहिंग्या मुसलमानों की मुसीबतों को सही संदर्भ में देश के सामने रखने की कोशिश की जायेगी लेकिन गैरजिम्मेदार के किस्म के लोगों के बयानात शुरू हो गए और सारी बहस रास्ते से भटक गयी . भारत की मौजूदा  सत्ताधारी  पार्टी की तो हमेशा   ही  कोशिश रहती है कि जहाँ भी संभव हो और जहां तक बस चले माले को हिन्दू-मुस्लिम कर देना उनके वोटों के लिहाज़ से सही रहेगा ,इसलिए उनके प्रवक्ता इस तरह की बात हर हाल में करना चाहते  हैं. जाने अनजाने पढ़े लिखे  मुसलमान भी उसी पिच पर बात करने लगते हैं . समझ में नहीं आता  कि एक मुसीबतज़दा समुदाय के प्रति समाज का एक बड़ा हिस्सा इतना निर्दयी क्यों  हो रहा है . रोहिंग्या दुनिया के सबसे ज्यादा खस्ताहाल  लोग हैं .
म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमान   सदियों से बर्मा के अरकान प्रदेश में रह रहे हैं लेकिन १९८२ में बर्मा की फौजी हुकूमत ने उनकी नागरिकता छीन ली और ऐलान कर दिया कि वे  बर्मा के नागरिक नहीं हैं .  बर्मा में करीब १३५ जातीय समूहों को सरकारी मान्यता मिली हुयी  है लेकिन रोहिंग्या को उस  श्रेणी में नहीं रखा गया है . इसके पहले जब बर्मा में  लोकतंत्र शासन था तो उनकी इतनी दुर्दशा नहीं थी . बर्मा में करीब सवा सौ साल  ( १८२४ - १९४८ ) अंग्रेज़ी राज रहा था , उस दौर में  वहां बड़ी संख्या में भारत से मजदूर गए थे .  अंग्रेजों ने बर्मा को भारत के  एक राज्य के रूप में रखा था इसलिए इन लोगों को उस समय विदेशी नहीं माना गया  था, उनका आना  जाना  अपने  ही देश में  आने जाने जैसा था .  लेकिन इन लोगों के वहां जाकर काम करने और बसने को वहां के स्थानीय लोगों ने स्वीकार नहीं किया था .आज म्यांमार के शासक उसी  मुकामी सोच के तहत  इन लोगों को अपने देश का नागरिक नहीं मानते .म्यांमार की हुकूमत  इन लोगों  को अभी भी  रोहिंग्या नहीं मानती , वे इनको बंगाली घुसपैठिया  ही बताते हैं .
१९४८ में म्यांमार ( बर्मा ) की आज़ादी के बाद रोहिंग्या को कुछ दिन सम्मान मिला .  इस समुदाय के कुछ लोग संसद  के सदस्य  भी हुए , सरकार में भी शामिल हुए लेकिन १९६२ में  फौजी हुकूमत की स्थापना के बाद सब कुछ बदल गया .  कई पीढ़ियों से यहाँ रह रहे लोगों को भी विदेशी घोषित कर दिया गया . नतीजा यह हुआ कि उनको नौकरी आदि मिलना बंद हो गया . रोहिंग्या म्यांमार के चुनावों में वोट नहीं दे सकते .
मौजूदा मुसीबत की शुरुआत अक्टूबर २०१६ में शुरू  हुयी जब रोहिंग्या मुसलमानों की  नुमाइंदगी  का दावा करने वाले  और अपने को अरकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी का सदस्य बताने वाले कुछ लोगों ने अगस्त के महीने में म्यांमार की बार्डर पुलिस के ९ कर्माचारियों को मार डाला . उसके बाद म्यांमार की सेना की टुकड़ियां अरकान के गाँवों में घुसने लगीं और लोगों को प्रताड़ित करने लगीं . सैनिकों ने लोगों को क़त्ल किया, रेप किया और घर जलाए . हालांकि यह सब काम म्यांमार की सेना २०१३ से ही शुरू कर चुकी थी लेकिन अक्टूबर २०१६ में उनको  बड़ा बहाना मिल गया . यह भी सच है कि रोहिंग्या समुदाय में कुछ लोगों ने हथियार उठा लिया है लेकिन सेना उनको तो पकड़ नहीं पाई  , अलबत्ता गांवों में रह रहे निहत्थे मुसलमान मर्दों को  मार डालने का सिलसिला लगातार चलता  रहा.रोहिंग्या की मुसीबत में जो इंसान  सबसे घटिया नज़र आ रहा है उसका नाम  है म्यांमार की स्टेट चांसलर आंग  सां सू ची. वे  रोहिंग्या की समस्याओं पर कोई बात करने को तैयार नहीं हैं . वे इन लोगों को आतंकवादी कहती  हैं .यह  बेशर्मी की हद है  कि दुनिया भर में  पनाह मांग रहे गरीब, भूखे ,  बूढ़े बच्चे , औरतें उनकी नज़र में आतंकवादी हैं . उनको याद रखना चाहिए कि एक समय था जब जब आंग सां सू ची भी अपने वतन के  बाहर ठोकर खा रही थीं और भारत समेत पूरी दुनिया उनकी और उनके लोगों की भलाई की बात करती थी . तब म्यांमार की फौजी हुकूमत उनको आतंकवादियों का नेता कहती थी .  अगर उस वक़्त  दुनिया ने  उनको भी वैसे ही ठुकराया होता जैसे वे अनाथ रोहिंग्या  म्यांमार के निवासियों को ठुकरा रही हैं तो वे आज कहाँ होतीं.  इस सारी  मुसीबत में बंगलादेश की  प्रधानमंत्री शेख  हसीना एक  महान नेता के रूप में पहचानी जा रही हैं और शरणार्थियों को  संभाल रही हैं. भारत के प्रधानमंत्री के पास भी  मौक़ा है कि वे दुनिया के बड़े  नेता के रूप में अपने को स्थापित कर लें लेकिन अभी तक भारत सरकार का रुख मानवता के बहुत बड़े पक्षधर के रूप में नहीं आया है .आगे शायद हालात कुछ  बदलें.

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