Sunday, August 20, 2017

मेरी बेटी का जन्मदिन यादों सिलसिला लेकर आता है



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शेष नारायण सिंह

आज से चालीस साल पहले इक्कीस अगस्त के दिन मेरी गुड्डी पैदा हुयी थी , इमरजेंसी हट चुकी थी, जनता पार्टी  की सरकार बन  चुकी थी. मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनाकर यथास्थितिवादियों ने यह सुनिश्चित कर लिया था कि इमरजेंसी  जैसे राजनीतिक काले अध्याय के बाद भी केवल इंदिरा गांधी की सरकार बदले ,बाकी कुछ न बदले . जो लोग इमरजेंसी के खिलाफ हुए जन आन्दोलन को राजनीतिक परिवर्तन की शुरुआत मान रहे थे , उनका मोहभंग हो चुका था . मैं दिल्ली में रहता था. आया तो  रोज़गार की तलाश में था लेकिन इमरजेंसी में कहीं कोई नौकरी नहीं मिल रही थी. मजबूरी में कुछ पढाई लिखाई भी कर रहा था , इसी दौर में कोई मामूली नौकरी मिली थी . जिन दिन नौकरी की खबर  मिली उसी दिन गाँव से कोई आया था ,उसने बताया कि घर पर बेटी का जन्म हुआ है. मैं दो साल से ठोकर खा रहा था , नौकरी की खबर के साथ ही बेटी के जन्म की खबर भी आई तो लगा कि बिटिया भाग्यशाली है, बाप को कहीं पाँव जमाने की जगह लेकर आयी है .  उससे  दो साल बड़ा उनक एक भाई है और उनसे छः साल छोटी एक बहन भी है . गुड्डी मंझली औलाद हैं.
इमरजेंसी के दौरान  इंदिरा-संजय की टोली ने देश में तरह तरह के अत्याचार किये थे .इमरजेंसी लगने के पहले मैं अच्छा भला लेक्चरर था, मान्यताप्राप्त ,सहायता प्राप्त डिग्री कालेज का लेकिन अगस्त १९७५ में नौकरी छोड़नी पड़ी थी. उत्तर प्रदेश में कालेजों के प्रबंधन अब तो माफियातंत्र में बदल चुके हैं लेकिन उन  दिनों भी किसी से कम नहीं होते थे . बहरहाल इमरजेंसी लगने के बाद मेरी जो नौकरी छूटी तो उसके हटने के बाद ही लगी.  इमरजेंसी के दौर में मैंने बहुत सी बुरी ख़बरें सुनीं और देखीं लेकिन गुड्डी के जन्म के बाद लगता   था कि शायद चीज़े बदल रही थीं. लेकिन ऐसा नहीं था. मेरे जिले का ग्रामीण समाज अभी पुरानी सोच के दायरे में ही था . दहेज़ अपने विकराल रूप में नज़र आना शुरू हो गया था. हमारे इलाके के बिकुल अनपढ़ या दसवीं फेल लड़कों की शादियाँ ऐसी लड़कियों से हो रही थीं जो बी ए  या एम ए तक पढ़ कर आती थीं . ज़ाहिर है मेरी बेटी के जन्म के बाद भी इसी तरह की सोच  समाज में थी . लेकिन मैंने ठान लिया था कि अपनी बेटी को बदलते समाज के आईने के रूप में ही देखूँगा.  गुड्डी सांवली थी, बेटी थी, और एक गोरे रंग के अपने दो साल बड़े भाई की छोटी बहन थी. मेरे परिवार के शुभचिंतक अक्सर चिंता जताया करते थे . लेकिन गुड्डी की मां और दादी का फैसला था कि बच्ची को दिल्ली में उच्च शिक्षा दी जायेगी और समाज की रूढ़ियों को चुनौती दी जायेगी . गुड्डी दिल्ली आयीं , यहाँ के बहुत अच्छे स्कूल से दसवीं पास किया लेकिन इतने नम्बर नहीं आये कि उस स्कूल में उनको अगली क्लास में साइंस मिल सके .  आर्ट्स मिला और गुड्डी की समझ में आ  गया कि मेहनत से पढ़ाई किए बिना बात बनेगी नहीं.  बस फिर क्या था .गुड्डी ने कठिन परिश्रम किया और  दिल्ली विश्वविद्यालय के बहुत अच्छे कालेज, वेंकटेश्वर कालेज में दाखिला पहली लिस्ट में ही ले लिया .

गुड्डी जो भी तय कर लेती हैं उसको हासिल करती हैं . आज वे चालीस साल की हो गयी हैं , जीवन में अच्छी तरह से व्यवस्थित हैं, खुद भी बहुत अच्छे स्कूल में टीचर हैं और उनका बेटा दिल्ली के सबसे अच्छे स्कूल में छात्र है .अपनी पसंद के लड़के से अन्तर्जातीय शादी की और सामंती शादी ब्याह के बंधन को तोड़कर मुझे गौरवान्वित किया .  दिल्ली के एक पुराने परिवार में ब्याही गयी हैं . परिवार के सबसे आदरणीय व्यक्ति उनके अजिया ससुर समाज और क्षेत्र के बहुत ही मानिंद व्यक्ति हैं , रेलवे से अवकाश प्राप्त अधिकारी हैं , गुड्डी को बहुत स्नेह  करते हैं . नई दिल्ली स्टेशन के पास घर है , व्यापारिक परिवार है.
दिल्ली में गुड्डी हमारी गार्जियन भी हैं .अपनी अम्मा की हर ज़रूरत का ख्याल रखती  हैं . थोड़ी जिद्दी हैं. उसी जिद को अन्य माँ बाप अपने बच्चों की दृढ़ निश्चय की प्रवृत्ति बताते हैं .अपनी शर्तों पर ज़िंदगी जीने वाली मेरी बेटी को आज उसका जन्मदिन बहुत बहुत मुबारक होगा , ऐसा मेरा विश्वास है. 

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