Sunday, June 2, 2013

म्यांमार में मुसलमानों पर जारी है बौद्ध और सरकारी आतंक का कहर




शेष नारायण सिंह

नई दिल्ली, ३१ मई .म्यांमार में मुसलमानों के ऊपर कहर जारी है . देश में पांच फीसदी आबादी मुसलमानों की है .दुनिया भर के अखबारों में म्यांमार में मुसलमानों के ऊपर हो रहा अत्याचार बड़ी खबर बन रहा है . न्यूयार्क टाइम्स ने तो सम्पादकीय लिखकर इस समस्या पर अमरीका सहित पश्चिमी देशों का ध्यान खींचने की कोशिश की है .मुसलमानों के ऊपर हो रहे इस अत्याचार का नतीजा यह है कि पिछले कई वर्षों से तानाशाही और फौजी हुकूमत झेल रहे म्यांमार के ऊपर मुसीबतों का एक पहाड टूट  पड़ा है . देश की राजनीति को समझने वाले जानते हैं कि अब वहाँ स्थिरता ला पाना बहुत मुश्किल होगा ,देश में लोकतंत्र को स्थिर बनाने की उम्मीदें और दूर चली जायेगीं.
म्यांमार में जातीय और धार्मिक हिंसा का सबसे खतरनाक पहलू यह है कि वहाँ मुसलमानों को मारने वाले बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं और हिंसा को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं जबकि बौद्ध धर्म की बुनियाद में अहिंसा सबसे अहम शर्त है .जानकार बताते हैं कि अगर देश के पांच फीसदी मुसलमानों के ऊपर अत्याचार जारी रहा तो वहाँ लोकतंत्र की स्थापना असंभव हो जायेगी ,पहले की तरह तानाशाही निजाम ही चलता रहेगा. म्यांमार में बौद्ध धर्म के अनुयायी बहुमत में हैं.
उत्तरी शहर लाशियो से ख़बरें आ रही हैं कि वहाँ मुसलमानों की दुकानें ,घर और स्कूल जला दिए गए हैं .एक बौद्ध महिला डीज़ल बेच रही थी और उसकी किसी मुस्लिम खरीदार से कहा सूनी हो गयी . बहुमत वाली बौद्ध आबादी के कुछ गुंडे आये और एक मसजिद में आग लगा दी . मुसलमानों ने भी अपनी जान बचाने की कोशिश की . झगड़े में एक मुसलमान की मौत हो गयी जबकि चार बौद्धों को चोटें आयीं . मामूली सी बात पर आगजनी की नौबत आने का मतलब यह है कि म्यांमार में बहुमत वाले बौद्धों में जो लोग धर्म को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करना चाहते है उनकी संख्या बढ़ रही है . ऐसा लगता है कि लोकतंत्र विरोधियों का एक खेमा भी पूरी तरह से सक्रिय है क्योंकि अगर धार्मिक हिंसा का यह सिलसिला जारी रहा तो पिछले पचास साल से जारी तानाशाही की सत्ता को हटाकर कर लोकतंत्र की स्थापना असंभव है .तानाशाही फौजी सरकार ने मुसलमानों के रोहिंग्या जाति को म्यांमार की नागरिकता ही नहीं दी है .उनकी आबादी पश्चिमी राज्य राखिने में हैं और वहाँ उनको हर तरह का भेदभाव झेलना पड़ता है , अपमानित होना पड़ता है .वहाँ की सरकार ने रोहिंग्या आबादी पर यह पाबंदी लगा रखी है कि एक परिवार में दो बच्चों से ज्यादा नहीं  पैदा किये जायेगें .अगर ज्यादा बच्चे हो गए तो सरकारी प्रताडना का शिकार होना पड़ता है .और देश छोडना पड़ता है . म्यांमार में इस चक्कर में  लाखों मुसलमानों को सज़ा दी जा चुकी है .अल्पसंख्यकों पर होने वाले हमलों को रोकने में पुलिस और अन्य सुरक्षाबल पूरी तरह से नाकाम हैं . आरोप हैं कि वे बौद्ध सम्प्रदाय वाले हैं इसलिए मुसलमानों की रक्षा करना ही नहीं चाहते .इस बीच खबर है कि लाशियो के एक बौद्ध मठ में सैकड़ों मुस्लिम परिवारों ने पनाह ली है क्योंकि उनके घरों में बौद्ध गुंडों ने उन्हें घेर लिया था और कुछ घरों में आग भी लगा दी थी .मामला जब बहुत बिगड गया तो सुरक्षा बलों ने हस्तक्षेप किया और  उन लोगों को मठ में पंहुचाया . मयांमार में सुरक्षा बल पिछले पचास साल से लोगों धमकाने के काम में ही ज्यादातर इस्तेमाल होते रहे हैं इसलिए उनसे शान्ति स्थापित करने के काम सफलता की उम्मीद  नहीं की जानी चाहिए .उनको सही ट्रेनिंग देने की ज़रूरत है .

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