Tuesday, September 18, 2012

हंगामा कर रहे विपक्ष ने संसदीय समितियां भी नहीं बनाने दीं

शेष नारायण सिंह 

नई दिल्ली,१७ सितम्बर . संसद में मानसून सत्र के हंगामे  के कारण लोक सभा और राज्य सभा में  कोई बहस नहीं हो सकी है लेकिन वे काम भी नहीं  हुए जिनपर कोई विवाद नहीं था. पता चला है कि मंत्रालयों से सम्बंधित संसद की कमेटियों का गठन भी नहीं हो सका है .संसद में काम बहुत होता है और ज़ाहिर है कि सारा काम सदनों में बहस के ज़रिये ही नहीं निपटाया जा सकता .संसद के पास इस कार्य को नि‍पटाने के लि‍ए सीमित समय होता है। इसलिए संसद उन सभी विधायी तथा अन्‍य मामलों पर, जो उसके समक्ष आते हैं, गहराई के साथ विचार नहीं कर सकती। अत: संसद का बहुत सा काम सभा की समितियों द्वारा निपटाया जाता है, जिन्‍हें संसदीय समितियां कहते हैं। संसदीय समिति से तात्‍पर्य उस समिति से है, जो सभा द्वारा नियुक्‍त या निर्वाचित की जाती है अथवा अध्‍यक्ष द्वारा नाम-निर्देशित की जाती है और अध्‍यक्ष के निदेशानुसार कार्य करती है तथा अपना प्रतिवेदन सभा को या अध्‍यक्ष को प्रस्‍तुत करती है और समिति का सचिवालय लोक सभा सचिवालय द्वारा उपलब्‍घ कराया जाता है।    अपनी प्रकृति के अनुसार संसदीय समितियां दो प्रकार की होती हैं: स्‍थायी समितियां और तदर्थ समितियां। स्‍थायी समितियां स्‍थायी एवं नियमित समितियां हैं जिनका गठन समय-समय पर संसद के अधिनियम के उपबंधों अथवा लोक सभा के प्रक्रिया तथा कार्य-संचालन नियम के अनुसरण में किया जाता है। 

 मंत्रालयों की सलाहकार समितियों का कार्य काल  २१ अगस्त को पूरा हो गया है . हालांकि पीठासीन अधिकारी ही समितियों  का गठन करती हैं लेकिन सभी पार्टियों को अपने सदस्यों का नाम भेजना ज़रूरी होता है . इस बार कोयले की हलचल में सबंधित  कमेटियों का गठन इसलिए नहीं हो सका क्योंकि राजनीतिक पार्टियों ने नाम ही नहीं भेजा. परम्परा यह है कि मानसून सत्र के दौरान ही नई कमेटियों का गठन हो जाता है  लेकिन अभी तक इन कमेटियों का गठन नहीं हो सका है . कमेटियों का कार्यकाल २१ अगस्त को पूरा हो चुका है . आम तौर पर १ सितम्बर तक कमेटियों का गठन हो जाता है लेकिन इस  बार अभी तक यह काम नहीं हो सका है.

No comments:

Post a Comment