Saturday, September 17, 2011

महात्मा बनने की कोशिश के तार नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय राजनीति के सपनों से जुड़े हैं

शेष नारायण सिंह

गुजरात के मुख्य मंत्री,नरेंद्र मोदी ने दुनिया भर के गुजरातियों को संबोधित एक पत्र में अपने को महात्मा साबित करने की कोशिश की है . उस चिट्ठी में उन्होंने २००२ के गुजरात के नरसंहार को एक साम्प्रदायिक दंगा बताया है और कहा है कि २००२ के बाद गुजरात के विरोधियों ने उनके खिलाफ प्रचार अभियान शुरू कर दिया था. उन्होंने गुजरातियों को सूचित किया है कि अब वे ' सद्भावना मिशन ' शुरू करने वाले हैं . गुजरात नरसंहार २००२ से नाराज़ लोगों ने इस पर कड़ा एतराज़ जताया है .उनका कहना है कि मोदी जैसे आदमी को ' सद्भावना मिशन ' पर जाने का कोई हक नहीं है. क्योंकि २००२ में गुजरात के नर संहार की निगरानी मोदी ने ही की थी. और हज़ारों मुसलमानों की हत्या करवाई थी. उनके नाम के साथ सद्भावना शब्द ठीक नहीं लगता . मोदी ने अब तक २००२ के सामूहिक हत्याकांड के लिए कभी दुःख नहीं प्रकट किया है . उस क़त्ले आम के बाद उन्होंने गौरव यात्रा निकाली थी और पूरे गुजरात के मुसलमानों की छाती पर मूंग दलने का काम किया था. उनसे २००२ के लिए शर्मिंदा होने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए . उनकी यह चिट्ठी भी उन लोगों को संबोधित की गयी है जो उनके २००२ के काम को बहादुरी का काम मानते हैं .उनका जो मौजूदा सद्भावना मिशन है उसका २००२ से कुछ भी लेना देना नहीं है . सुप्रीम कोर्ट से एक मामूली राहत मिलने के बाद बीजेपी में उनके साथियों ने हल्ला मचा दिया कि मोदी को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया है . सही बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने केवल यह कहा है कि अभी मुक़दमा निचली अदालत में चलेगा . अगर ज़रूरी हुआ तो अपील के ज़रिये शिकायतकर्ता सुप्रीम कोर्ट में भी आ सकते हैं . इसमें बरी होने जैसी कोई बात नहीं थी लेकिन राजनीतिक कारणों से इस बात को तूल दिया जा रहा है . असली लड़ाई बीजेपी की आतंरिक राजनीति के हवाले से समझी जा सकती है . मामला यह है कि २०१४ के चुनाव में बीजेपी को अपने प्रधान मंत्री पद के उम्मीद वार को प्रोजेक्ट करना है . हालांकि उनके सत्ता में वापस आने की संभावना बिलकुल नहीं है.मोदी के सद्भावना मिशन या आडवाणी की रथ यात्रा को उसी राजनीतिक मुहिम के सन्दर्भ में ही समझना पडेगा . आम तौर पर माना जाता रहा है कि २००९ में किरकिरी होने के बाद लाल कृष्ण आडवाणी २०१४ में प्रधान मंत्री पद वाली दावेदारी से अपने आपको अलग कर लेगें. लेकिन लोकसभा के मानसून सत्र के अंतिम दिन उन्होंने एक रथ यात्रा का ऐलान कर दिया . बाकी देश के राजनीति के जानकारों सहित उनकी पार्टी के नेता भी अवाक रह गए.जिस यात्रा की आडवाणी जी ने घोषणा की थी उसकी तारीख , रूट या विषय वस्तु अभी तक किसी को नहीं मालूम है , शायद खुद आडवाणी को भी नहीं . लेकिन यात्रा की घोषणा में दिखाई गयी जल्दबाजी से एक बात साफ़ हो गयी थी कि लाल कृष्ण आडवाणी किसी आसन्न खतरे को टालने की गरज से आनन फानन में यात्रा की घोषणा कर रहे हैं. उनकी घोषणा के बाद से ही बीजेपी के अंदर चल रही सुप्रीमेसी की लड़ाई खुल कर सामने आ गयी. सारी दुनिया जानती है कि अटल बिहारी वाजपेयी के बाद बीजेपी में आडवाणी सबसे मह्त्वपूर्ण नेता हैं . यह भी मालूम है कि अगर आडवाणी जी मैदान में हैं तो कोई दूसरा भाजपाई नेता उनको चुनौती नहीं दे सकता . एक कारण तो शिष्टाचार का है लेकिन उस से भी मज़बूत कारण पार्टी के अंदर राजनीतिक हैसियत का भी है . आडवाणी के रहते किसी को भी उनके ऊपर के मुकाम पर नहीं बैठाया जा सकता . हाँ उनकी मर्ज़ी से कोई भी किसी भी पद पर बैठाया जा सकता है . हमने बंगारू लक्षमण और वेंकैया नायडू को आडवाणी जी की कृपा से पार्टी के अध्यक्ष पद पर विराजते देखा है . और उन दोनों को पार्टी के अंदर से कोई चुनौती नहीं मिली थी. आडवाणी जी की मर्जी के खिलाफ डॉ मुरली मनोहर जोशी और राजनाथ सिंह को अध्यक्ष बनाया गया था . दुनिया जानती है कि आडवाणी गुट के दमदार नेताओं ने मीडिया में मज़बूत पकड़ का इस्तेमाल करके उन दोनों ही नेताओं का क्या हाल किया था . अपनी नई रथयात्रा का ऐलान कर के आडवाणी जी ने अपना नाम सर्वोच्च पद की दावेदारी की लिस्ट में डाल दिया है . ऐसा करके उन्होंने उन सभी नेताओं की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है जो अब लगभग साठ साल के हैं .उनके लिए प्रधानमंत्री पद पर विराजने का यही सही समय है.लेकिन अगर आडवाणी जी को किसी तरह से रेस से बाहर किया जा सके, तो मैदान फिर साफ़ हो जाएगा और बीजेपी की टाप लीडरशिप के लिए अपनी किस्मत आजमाने का मौक़ा मिल जाएगा. ऐसा लगता है कि इन लोगों ने ही नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में आने की प्रेरणा दी है . नरेंद्र मोदी के मैदान में कूद जाने के बाद लाल कृष्ण आडवाणी के लिए मुश्किल पैदा हो सकती है . बीजेपी का जो हार्ड कोर वोट बैंक है वह आम तौर पर आक्रामक हिंदुत्व को बहुत ही सही मानता है . १९९० में सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा करके आडवाणी जी ने इस आक्रामक हिंदुत्व के पुजारी का दिल जीत लिया था . उस दौर में जो दंगे हुए थे उसमें बड़ी संख्या में मुसलमान मारे गए थे. इस देश में ऐसे लोगों की एक बहुत बड़ी संख्या है जो आर एस एस के भक्त हैं और उनको भरोसा है क अगर मुसलमानों को मार डाला आये या इस देश से भगा दिया जाए तो भारत बहुत महान देश बन जाएगा. २००२ तक इस वर्ग के हीरो लाल कृष्ण आडवाणी थे लेकिन २००२ के बाद आक्रामक हिंदुत्व की विचार धारा के इन भक्तों के नेता गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. ज़ाहिर है कि मोदी और आडवाणी की लड़ाई में मोदी ही जीतेगें. इसके कई कारण हैं . आक्रामक हिंदुत्व के अलावा जो दूसरा प्रमुख कारण है वह यह कि आडवाणी जी को लोकसभा चुनाव में गाँधीनगर सीट से नरेंद्र मोदी के सहयोग से ही जीत हासिल होती है . राजनीति के कुशल पारखी, लाल कृष्ण आडवाणी ऐसी कोई गलती कभी नहीं करेगें जिसके चलते उनको नरेंद्र मोदी को नाराज़ करना पड़े. ऐसा लगता है कि इस रणनीति की कारगर मारक क्षमता के मद्दे नज़र बीजेपी के नए आलाकमान ने मोदी को आगे कर दिया है और अब वे आडवाणी को रास्ते से हटाने में कामयाब हो जायेगें.
इस बड़े सफलता के बाद मोदी को रास्ते से हटाने की बात आयेगी..आडवाणी जी के अलावा इस वक़्त बीजेपी के जो नेता प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं उनमें सुषमा स्वराज ,अरुण जेटली , राजनाथ सिंह , वेंकैया नायडू, बंगारू लक्षमण आदि का नाम लिया जा सकता है . नेताओं की इस मज़बूत पंक्ति में सबकी ताक़त ऐसी है कि वे नरेंद्र मोदी के खिलाफ माहौल बना देगें . सबको मामूल है कि यूरोप और अमरीका के कई बड़े देशों में मोदी के घुसने की इज़ाज़त नहीं है . यह देश उनके वीजा की दरखास्त को खारिज कर देते हैं और वीजा नहीं देते .बीजेपी अपने एताक़त क एबल पर तो प्रधानमंत्री की गद्दी हासिल नहीं कर सकती. एन डी ए के एक बड़े घटक जे डी ( यू ) के बड़े नेता और बिहार के मुख्यमंत्री , नीतीश कुमार कभी भी नरेंद्र मोदी को नेता नहीं मानेगें. यहाँ तक कि उन्होंने अपने राज्य में मोदी के चुनाव प्रचार करने की बात का भी बहुत बुरा माना था . इसलिए नरेंद्र मोदी को रास्ते से हटाना बीजेपी आलाकमान के लिए बहुत आसान होगा . इस लेख का उद्देश्य बीजेपी की ओर से संभावित प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार की तलाश करना नहीं है .क्योंकि यह लगभग पक्का है कि २०१४ के चुनावों के बाद बीजेपी सत्ता से और दूर हो जायेगी लेकिन उनकी आतंरिक राजनीति में नरेंद्र मोदी और आडवाणी की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं एक मनोरंजक अवसर तो देती ही हैं .

1 comment:

  1. मोदी -आडवाणी उठा-पटक केवल पार्टी के भीतर होती तो अच्छा होता। वे दोनों तो राष्ट्र का अहित कर रहे है।

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