Monday, July 5, 2010

छत्रपति साहूजी और ज्योतिबा फुले से बड़ा कोई कांग्रेसी नहीं है.

शेष नारायण सिंह

अमेठी संसदीय क्षेत्र के इलाके को एक जिले में तब्दील कर दिया गया है. वास्तव में रायबरेली और सुलतानपुर जिले के कुछ इलाकों को मिला कर इस चुनावक्षेत्र का गठन किया गया था. आजादी के बाद यह इलाका बहुत ही उपेक्षित रहा. जब कि वी आई पी लोगों के चुनाव क्षेत्रों से घिरा हुआ था . इस इलाके में विकास नाम की कोई चीज़ नहीं थी इसलिए लोग इसे कोई मह्त्व नहीं देते थे. पड़ोसी संसदीय क्षेत्रों सुलतान पुर से डॉ केसकर और गोविन्द मालवीय चुने जाते थे, जबकि रायबरेली, फ़िरोज़ गाँधी और इंदिरा गाँधी का क्षेत्र था प्रतापगढ़ से दिनेश सिंह जीतते थे . लेकिन अमेठी से कोई मामूली नेता ही लड़ता रहा. लेकिन १९७५ में इमरजेंसी लगने के बाद जब संजय गाँधी ने रायबरेली के पड़ोसी इस उपेक्षित इलाके को अपना क्षेत्र बनाने का फैसला किया तो इस इलाके के दिन बदल गए. १९७७ के चुनाव में तो संजय गाँधी हार गए लेकिन १९८० से आज तक यह इंदिरा जी के बच्चों का ही क्षेत्र बना हुआ है . बीच में बड़े बड़े सूरमा यहाँ से चुनाव लड़ने गए लेकिन हारकर लौटे . राजमोहन गाँधी और शरद यादव भी यहाँ चुनाव हार चुके हैं . आमतौर पर माना जाता है कि अमेठी में कांग्रेस को हरा पाना मुश्किल ही नहीं ,नामुमकिन है .. ऐसी स्थिति पैदा करने के लिए कांग्रेस ने अमेठी में बहुत पैसा लगाया है . १९८० से लेकर अब तक अमेठी में सरकारी खजाने से हज़ारों करोड़ रूपया लग चुका है . पिछले ३० वर्षों में यहाँ कारोबार करने आये उद्योगपति , हज़ारों करोड़ का गबन कर चुके हैं . सम्राट साइकिल और मालविका स्टील वालों ने बड़ी रक़म सरकारी बैंकों और सरकारी वित्तीय संस्थाओं से ली और लेकर चम्पत हो गए. केंद्र सरकार में बैठे लोगों को खिलाते पिलाते रहे और सब डकार गए. राजीव गाँधी , सोनिया गाँधी ,सतीश शर्मा और राहुल गाँधी के कार्यकर्ताओं में ऐसे हज़ारों लोग मिल जायेगें जिन्होंने अपने नेताओं के आशीर्वाद से करोड़ों की संपत्ति जमा कर ली है .अमेठी संसदीय क्षेत्र में राजनीतिक लोगों की एक फौज तैयार हो गयी है जो लखनऊ, मुंबई और दिल्ली में घूमते रहते हैं और लोगों का काम करवा कर पैसा झटकते रहते हैं . एक और अजीब बात हुई है . राय बरेली और अमेठी को तो सरकारी अमला महत्व देता रहा है लेकिन पड़ोस के सुलतानपुर जिले को सौत के बच्चे की तरह ट्रीट करता है . सुलतान पुर जिले में आठ विधान सभा क्षेत्र हैं . इनमें से तीन अमेठी में पड़ते हैं और बाकी पांच सुलतानपुर संसदीय क्षेत्र में . लेकिन जब सुलतानपुर जिले के लिए केंद्र या राज्य सरकारों से कोई मदद मिलती है तो वह सारी की सारी अमेठी का हक मानी जातीहै . इस तरह सुलतान पुर का दो तिहाई हिस्सा विकास की गति में बहुत पिछड़ गया है .अमेठी को सुलतानपुर से अलग करके मायावती ने सुलतानपुर संसदीय क्षेत्र के लोगों का सम्मान अर्जित किया है . अब उनके जिले के लिए मिलने वाली मदद पर उनका ही हक होगा. जहां तक अमेठी को जिला बनाने की बात है इसका प्रस्ताव एक बार राजीव गाँधी के जीवन काल में भी गंभीरता से उठा था लेकिन उस वक़्त के मुख्य मंत्री वीर बहादुर सिंह ने समझा दिया था कि उस से राजनीतिक नुकसान होगा. बात आई गयी हो गयी थी . अपने पिछले कार्यकाल में मायवती ने जिले के गठन की घोषणा कर दी थी लेकिन मुलायम सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद उस फैसले को बदल दिया गया. अब हाई कोर्ट के आदेश पर फिर से जिला बना है और उस पर विवाद खड़ा करने की कोशिश की जा रही है .सच्ची बात यह है कि नए जिले के गठन से सबको खुशी है . लेकिन कांग्रेस में सोनिया गाँधी और राहुल गांधी के प्रति अपनी वफादारी का स्वांग करने वाले लोग जुट गए हैं कि जिले के नामकरण को मुद्दा बनाकर विरोध किया जाए. हालांकि उस विषय पर सोनिया गाँधी या राहुल गाँधी से बात करने का मौक़ा नहीं मिला है लेकिन साधारण तरीके से सोचने वाला कोई भी व्यक्ति इस मामले को मुद्दा नहीं बनाना चाहेगा. भक्त कांग्रेसियों की इच्छा है कि इस जिले का नाम राजीव गाँधी के नाम पर रखा जाना चाहिए क्योंकि यह उनकी कर्मस्थली रही है. जहां जिला बना है उसकी हर सड़क पर राजीव गाँधी जा चुके हैं , यहाँ के हज़ारों परिवारों की मदद कर चुके हैं जब कि छत्रपति साहूजी महराज के बारे में इस इलाके में बड़ी संख्या में लोग जानते ही नहीं होंगें. लेकिन इस मामले में कांग्रेस के गंभीर नेताओं ने चुप रहना ही ठीक समझा . वैसे भी अगर एक जिले का नाम राजीव गाँधी के नाम पर नहीं पड़ा तो क्या फर्क पड़ने वाला है .जिस देश में लगभग हर इलाके में राजीव गाँधी के नाम पर कुछ न कुछ बन चुका हो , वहां एक जिले के नामकरण को मुद्दा बनाना ठीक नहीं है . वैसे भी जो पार्टी सरकार में रहती है वह अपने महान लोगों के नाम पर संस्थाएं तो बनाती है . कांग्रेस इस खेलमें सबसे आगे है. जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गाँधी , राजीव गाँधी यहाँ तक कि संजय गाँधी के नाम पर भी संस्थाओं के नाम रखे गए हैं . इसलिए कांग्रेस को शिकायत नहीं होनी चाहिए .जहां भी बी जे पी की सरकार है वे लोग भी अपने नेताओं के नाम पर संस्थाओं के नाम रखते हैं . यह अलग बात है कि उनके पास ऐसे बहुत कम हीरो हैं जिन्होंने जीवन में या राष्ट्र निर्माण में बुलंदियां हासिल की हों लेकिन जो भी हैं , उनके नाम पर संस्थाएं बन रही हैं . बी जे पी वाले तो महापुरुषों को अपनाने के मामले में थोडा ज़्यादा ही उत्साही हैं . उनके यहाँ कांग्रेस पार्टी के सदस्य महात्मा गाँधी और सरदार पटेल को अपनाने की कोशिश हो चुकी है . एक बार तो वे सरदार भगत सिंह को भी अपना बताने लगे थे . जब मालूम पड़ा कि सरदार भगत सिंह तो कम्युनिस्ट थे , तब जाकर उनको बख्शा गया .बी जे पी ने तो खैर वी डी सावरकर को भारत रत्न देने की कोशिश की थी . सही बात यह है कि कांग्रेस के अलावा बाकी पार्टियों में महान नेताओं और आज़ादी की लड़ाई के सेनानियों की किल्लत है . यह संकट मायावती का भी है . वे डॉ अंबेडकर के अलावा किसी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को नेता ही नहीं मानतीं . इसलिए ऐतिहासिक महापुरुषों के नाम पर संस्थाओं का नामकरण करती हैं . हालांकि यह भी सच है कि जिन लोगों के नाम पर वे संस्थाएं बना रही हैं वे सही अर्थों में आज के भारत के संस्थापक थे. मायावती ने ज्योति राव फुले के नाम पर कई संस्थाओं का नामकरण किया है , वे बहुत क्रांतिकारी समाज सुधारक थे. आज़ादी की लड़ाई में जिन मूल्यों की स्थापना करने की कोशिश की जा रही थी , महात्मा फुले उसके आदि पुरुष हैं . उन्होंने सवर्ण सत्ता के खिलाफ १८४८ में पूना में दलित लड़कियों के लिए स्कूल शुरू कर दिया था और सज़ा भोगी थी. उनके अपने पिता ने उन्हें इस जुर्म में घर से निकाल दिया था . ज़ाहिर है कांग्रेस में इतना बड़ा त्याग करने वाला कोई नहीं है . छत्रपति साहूजी भी अपने समय के क्रांतिकारी महापुरुष हैं . उनके नाम से किसी भी भारतवासी को कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए

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