Saturday, September 26, 2009

इस्लाम का आतंकवाद से कोई मतलब नहीं

दक्षिण अफ्रीका के तीन शहरों में शबाना आजमी की फिल्मों का रिट्रोस्पेक्टिव चल रहा है। इस मौके पर वहां तरह तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। कुछ कार्यक्रमों में शबाना आजमी शामिल भी हो रही हैं। ऐसे ही एक सेमिनार में उन्होंने कहा कि इस्लाम को आतंकवाद से जोडऩे की कोशिश अनुचित और अन्यायपूर्ण तो है ही, यह बिल्कुल गलत भी है। उनका कहना है कि इस्लाम ऐसा धर्म नहीं है जिसे किसी तरह के सांचे में फिट किया जा सके। शबाना आजमी ने बताया कि 53 देशों में इस्लाम पर विश्वास करने वाले लोग रहते हैं और जिस देश में भी मुसलमान रहते हैं वहां की संस्कृति पर इस्लाम का प्रभाव साफ देखा जा सकता है।

दरअसल अमरीका के कई शहरों में 9 सितंबर 2001 को हुए आतंकवादी हमलों के बाद के मुख्य अभियुक्त के रूप में ओसामा बिन लादेन का नाम आया जिसने अपने संगठन अल-कायदा के माध्यम से आतंक के बहुत से काम अंजाम दिए है। अमरीका ने योजनाबद्घ तरीके से ओसामा बिन लादेन और उसके साथियों को अपने अभियान का निशाना बनाना शुरू किया। यह दुनिया और सभ्य समाज की बद किस्मती है कि उन दिनों अमरीका का राष्ट्रपति एक ऐसा व्यक्ति जिसके बौद्घिक विकास के स्तर को लेकर जानकारों में मतभेद है।

आम तौर पर माना जाता है कि तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लू बुश अव्वल दर्जे के मंद बुद्घि इंसान हैं लेकिन अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकारों का एक वर्ग ऐसा भी है जिसे शक है कि बुश जूनियर कभी कभी समझदारी की बात भी करने की क्षमता रखते हैं। बहर-हाल अपने आठ साल के राज में उन्होंने अमरीका का बहुत नुकसान किया। अमरीकी अर्थ व्यवस्था को भयानक तबाही के मुकाम पर पहुंचा दिया, इराक और अफगानिस्तान पर मूर्खता पूर्ण हमले किए।

पाकिस्तान के एक फौजी तानाशाह की ज़ेबें भरीं जिसने आतंक का इतना जबरदस्त ढांचा तैयार कर दिया कि अब पाकिस्तान का अस्तित्व ही खतरे में है। अपने गैर जिम्मेदार बयानों से बुश ने जितने दुश्मन बनाए शायद इतिहास में किसी ने न बनाया हो। बहरहाल बुश ने ही शायद जानबूझकर यह कोशिश की कि मुसलमानों से आतंकवाद को जोड़कर वह उन्हें अलग थलग कर लेंगे। यह उनकी मूर्खतापूर्ण गलती थी। उनको जानना चाहिए था कि इस्लाम मुहब्बत, भाईचारे और जीवन के उच्चतम आदर्श मूल्यों का धर्म है।

अगर कोई मुसलमान इस्लाम की मान्यताओं से हटकर आचरण करता है तो वह मुसलमान नहीं है। इसलाम में आतंक को कहीं भी सही नहीं ठहराया गया है। अगर यही बुनियादी बात बुश जूनियर की समझ में आ गई होती तो शायद वे उतनी गलतियां न करते जितनी उन्होंने कीं। उन्होंने योजनाबद्घ तरीके से इस्लाम को आतंक से जोडऩे का अभियान चलाया। उसी का नतीजा है कि अमरीकी हवाई अड्डों पर उन लोगों को अपमानित किया जाता है जिनका नाम फारसी या अरबी शब्दों से मिलता जुलता है। अपने बयान में शबाना आजमी इसी अमरीकी अभियान को फटकार रही थीं।

अमरीकी विदेश नीति की इस योजना को सफल होने से रोकना बहुत जरूरी है। संतोष की बात यह है कि वर्तमान अमरीकी राष्टï्रपति बराक ओबामा भी इस दिशा में काम कर रहे हैं। भारत में भी एक खास तरह की सोच के लोग यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि सभी मुसलमान एक जैसे होते हैं। और अगर यह साबित करने में सफलता मिल गई तो संघी सोच वाले लोगों को मुसलमान को आतंकवादी घोषित करने में कोई वक्त नहीं लगेगा। यहां यह स्पष्ट कर देना जरूरी है कि संघी सोच के लोग आर.एस.एस. के बाहर भी होते हैं। सरकारी पदों पर बैठे मिल जाते हैं, पत्रकारिता में होते हैं और न्याय व्यवस्था में भी पाए जाते हैं।

एक उदाहरण से बात को स्पष्ट करने की कोशिश की जायेगी। सरकार की तरफ से सांप्रदायिक सदभाव के पोस्टर जारी किये जाते हैं जिसमें कुछ शक्लें बनाई जाती है। चंदन लगाए व्यक्ति को हिंदू, पगड़ी पहने व्यक्ति को सिख और एक खास किस्म की पोशाक वाले को पारसी बताया जाता है। मुसलमान का व्यक्तित्व दिखाने के लिए जालीदार बनियान, चारखाने का तहमद और एक स्कल कैप पहनाया जाता है। कोशिश की जाती है कि मुसलमान को इसी सांचे में पेश करके दिखाया जाय। सारे मुसलमान इसी पोशाक को नहीं पहनते लेकिन इस तरह से पेश करना एक साजिश है और इस पर फौरन रोक लगाई जानी चाहिए।

क्योंकि अगर ऐसा न हुआ और दुबारा बीजेपी का कोई आदमी प्रधानमंत्री बना तो भारत में भी वही हो सकता है जो बुश जूनियर ने पूरी दुनिया में कर दिखाया है। वैसे संघ बिरादरी ने यह कोशिश शुरू कर दी थी कि आतंकवाद की सारी घटनाओं को मुसलमानों से जोड़कर पेश किया जाय लेकिन जब मालेगांव के धमाकों में संघ के अपने खास लोग पकड़ लिए गए तो मुश्किल हो गई। वरना उसके पहले तो बीजेपी के सदस्य और शुभचिंतक पत्रकार मुसलमान और आतंकवादी को समानार्थक शब्द बताने की योजना पर काम करने लगे थे। शबाना आजमी जैसे और भी लोगों को सामने आना चाहिए और यह साफ करना चाहिए कि मुसलमान और इसलाम को आतंकवाद से जोडऩे की कोशिश को सफल नहीं होने दिया जाएगा। धर्मनिरपेक्ष पत्रकारों को भी इस दिशा में होने वाली हर पहल का उल्लेख करना चाहिए क्योंकि एक वर्ग विशेष को आतंकवादी साबित करने की कोशिशों के नतीजे किसी के हित में नहीं होंगे।

8 comments:

  1. आप ठीक कहते है परन्‍तु आपसे कोई यह कहने नहीं आयेगा कि आप ठीक कह रहे हो, आपका पिछले दिनों भारतीय भाषा उर्दू पर लेख पर भी आपको जितनी बधाई दी जाये कम है, उसे ब्लाग पर लाइये, ब्लागस में उसकी बडी आवश्‍यकता है,
    यहां तो उर्दू को पाकिस्‍तानी भाषा कहा जाता जबकि खुद पाकिस्‍तान को अपना बताते हैं दो विपरीत बातें,
    मुझे आप पर हमेशा गर्व रहा है, इसी लिये में 'अवामे हिन्‍द' www.awamehind.com अपने घर पर मंगाता हूं, इस अखबार के बारे में ब्लागजगत मैं बिसियों जगह लिख चुका कि भारत का एकमात्र सेकुलर अखाबर या हिन्‍दू मुस्लिम की खबरें देने वाला अखबार आपकी जेरे निगरानी सम्‍भव हो सका, किसी ने आके अब तक मुझे यह ना कहा कि तुम गलत कह रहे हो,
    अंत में इतना कह सकता हूं कि आप व्‍यसतता के कारण किसी सेकुलर मुददे पर किसी से बहस ना कर पाये तो अपने इस भक्‍त को याद करलें,

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  2. बिलकुल ठीक जनाब, और आप मानते हैं कि अमरीकी जनता जिसने बुश को चुना वह भी निहायत मंदबुद्धि है जो यह जान ही नहीं पाई कि बुश मूर्ख है और उसे दुबारा भी चुन लिया?

    इस्लाम का आतंकवाद से कोई लेना देना नहीं और जो आतंक फैला रहें हैं वे मुसलमान नहीं हो सकते.
    तो भाई जो सच्चे मुसलमान है वे एकजुट होकर उनका विरोध क्यों नहीं करते? क्यों नहीं वे स्वयं उनकी पहचान कर उन्हें बेनकाब करते. आतंकवादी उनकी अलग-थलग और तंग बस्तियों और इबादतगाहों में पनाह पाते हैं और जब सुरक्षा एजेंसियां उन पर हाथ डालने जाती हैं तो उन पर पथराव होता है, गोलियां चलाई जाती हैं, देश विरोधी नारे लगाये जाते हैं. क्या उन बस्तियों में सच्चे मुसलमान नहीं बसते? वे कहाँ चले जाते हैं उस वक़्त?

    हिंदूवादी संगठनों को कोस कर अपना जनम सार्थक करने वाले RSS द्वारा किये जाने वाले सामाजिक कार्यों को भूल जाते हैं. जिस "संघी" सोच की बात कर आपकी "लाल मानसिकता" तुष्ट होती है उसी संघी सोच ने स्वयंसेवकों को देश के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, आदिवासी कल्याण, भूकंप राहत,बाढ़ राहत , महिला शिक्षा, अनाथाश्रम, मजदूर कल्याण............ अनेकों सेवाएँ प्रदान करने का जज्बा दिया है, जिनमे स्वयंसेवकों ने अपना जीवन खपा दिया है. आप RSS की तुलना तालिबानियों से करते हुए यह भूल जाते हैं कि यदि इन स्वयंसेवकों की विशाल फौज हथियार उठा लेती और तालिबानियों की तरह जातीय सफाए पर जुट जाती तो क्या इस देश में एक भी मुसलमान रह जाता? परन्तु RSS "सांस्कृतिक राष्ट्रवाद" की पोषक है. वह मानवाधिकार और धर्मनिरपेक्षता की आड़ में तुष्टिकरण का खेल नहीं खेलती.

    शबाना आजमी, महेश भट्ट, खुशवंत सिंह और अरुंधती राय जैसे लोग नारे तो खूब लगाते है, कलम भी लगातार घिसते हैं लेकिन कभी यह नहीं बताते कि "अच्छे मुसलमानों" को एक मंच पर लाने और "गुमराह" हो सकने वाले रूढीवादियों को प्रगतिशील बनाने के लिए उन्होंने कितने पहाड़ खोद डाले हैं?

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  3. इस्लाम का आतंकवाद से कोई लेना देना नहीं और जो आतंक फैला रहें हैं वे मुसलमान नहीं हो सकते.
    तो भाई जो सच्चे मुसलमान है वे एकजुट होकर उनका विरोध क्यों नहीं करते? क्यों नहीं वे स्वयं उनकी पहचान कर उन्हें बेनकाब करते. आतंकवादी उनकी अलग-थलग और तंग बस्तियों और इबादतगाहों में पनाह पाते हैं और जब सुरक्षा एजेंसियां उन पर हाथ डालने जाती हैं तो उन पर पथराव होता है, गोलियां चलाई जाती हैं, देश विरोधी नारे लगाये जाते हैं. क्या उन बस्तियों में सच्चे मुसलमान नहीं बसते? वे कहाँ चले जाते हैं उस वक़्त?

    मुसलमानो को धोखेबाज़ क्यों न समझा जाए ? जब विमान अपहरण कर कन्धार ले जाया गया तो यह काम करने वाले कौन लोग थे? क्या तब शबाना आज़मी ने उन्हे कंडम करने का कोई भाषण दिया था? पूरी दुनिया में कहीं भी मुसलमान पर आँच आए आप लोग निन्दा करने और मारने मरने को खडे हो जाते हैं पर यदि किसी अन्य जाति का कोई भारतीय मारा जाए तो आपको कोई फ़र्क नही पड़्ता क्यों? वास्तव में आपको इस्लाम छोड़ और किसी चीज़ से वास्ता ही कहाँ है? देश का विभाजन मुसलमानो की वजह से हुआ. करोड़ों हिन्दु (भारतीय ) मुसलमानों के कारण मारे गए पर आप लोगों ने उफ़ तक न की क्यों? बात 2 पर हंगामा करने वाले ओसामा के नाम पर हंगामा क्यों नही करते? हमेशा देश द्रोह की हरकतों में आपके धर्म के ही लोग क्यों पाए जाते है? साध्वी के ऊपर एक भी आरोप सिद्ध नही हो पाया और आपने हिन्दू आतँकवाद के नारे ज़ोर शोर से लगाने शुरू कर दिये. अमेरिका आपका दुश्मन क्यों है? उसने हमारे देश के साथ तो कोई बुराई नही की. पर चूँकि वो ईराक मे और अफ़्ग़ानिस्तान में जमा हुआ है तो भारतीय मुसलमान उसे दुश्मन मानता है. मेरे हिसाब से बुश कभी ग़लत नही थे और इसराएल एक अच्छा देश है क्यों कि वो भारत से दोस्ती चाहता है उसने किसी भारतीय को नही मारा. अभी ही उसने इस्लामी हमले की चेतावनी भारत को दी है.आप लोग चीज़ों को देश के नज़रिए से न देख कर केवल इस्लाम के नज़रिए से देखते हैं समस्या यही है.

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  4. सारे मुसलमान इसी पोशाक को नहीं पहनते लेकिन इस तरह से पेश करना एक साजिश है और इस पर फौरन रोक लगाई जानी चाहिए।

    भाई साहब सारे तो हिन्दू भी चन्दन तिलक नहीं लगाते। फिर आपको साजिश की बू सिर्फ मुसलमानों की वेशभूषा के ही चित्रण में क्यूं दिखाई दे रही है। हिन्दुओं का ऎसा चित्रण आपको साजिश क्यूं नहीं दिखाई दिया....

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  5. इस्लाम का आतंकवाद से कोई मतलब नहीं. बहुत अच्छा लेख है अफगानिस्तान और इराक के बारे में बहुत साफगोई से लिखा गया है. ....लेकिन बीच में किसी निशाचर महोदय ने कमेंट किया है. जो इस्लाम पर सर्वमान्य कम व्यतिगत ज्यादा मालूम पडता है शायद यह जनाब लेख को संघी चश्मे से पढ रहें है इसी लिए आप को "लाल मानसिकता" वाला बता रहें है निशाचर जी की तरह लोग हैं जो अशफा कुल्ला खान, वीर अव्दुल हमीद, एपीजे अवदुल कलाम, बेगम हजरत महल और जाकिर हुसैन जैसे तमाम मुसलमान महापुरुषो की बात आने पर नजरअंदाज कर देते हैं या फिर उनके बारे में जिक्र करना मुनासिब नहीं समझते.... लेकिन बजरंग दल आरएसएस और स्वयंसेवकों के हाथों में त्रिशूल और तलवार का खुलेआम लेकर घूमना उन्हें "सांस्कृतिक राष्ट्रवाद" नजर आता है

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