शेष नारायण सिंह
बिहार विधानसभा चुनाव एक ऐसा चुनाव है जिसने बहुत कुछ बदलकर रख दिया . विश्वविख्यात अमरीकी अखबार वाल स्ट्रीट जर्नल ने लिखा है कि कोरोना की बीमारी का आतंक पूरी दुनिया की तरह अमरीका में भी है . कोरोना का कुप्रबंध अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को ले डूबा लेकिन भारत के बिहार राज्य के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के चलते उनकी पार्टी को सफलता मिली है . ‘ तेलंगाना जैसे राज्य में जहां बीजेपी का कोई मज़बूत जनाधार नहीं है ,वहां भी पार्टी को उपचुनावों में सफलता मिली है . कोरोना की परेशानी भी नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के सामने कमज़ोर पड़ गयी और उनकी पार्टी को उन राज्यों में भी सफलता मिली जहां उनकी पार्टी मज़बूत नहीं थी . मध्य प्रदेश में 28 सीटों के लिए हुए उपचुनाव भी राजनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण थे . जिसन सीटों पर चुनाव हुए वे सभी सीटें परम्परागत रूप से कांग्रेस के प्रभाव वाली सीटें थीं . पिछले विधानसभा चुनावों में उन सीटों से जीते कांग्रेस उम्मीदवारों ने पार्टी और विधानसभा से इस्तीफा दे दिया था. उनमें से आठ सीटों को छोड़ कर बाकी सभी पर बीजेपी के उमीदवार चुनाव जीत गए. विधानसभा के आमचुनाव में मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में चल रही बीजेपी की सरकार को कांग्रेस ने बेदखल कर दिया था . लेकिन दो साल से भी कम समय के अन्दर वहां फिर से बीजेपी की सरकार को स्थिरता मिल गयी . तो अब नरेंद्र मोदी की शख्सियत में बहुत सारे काग्रेस नेताओं को भी अपना भविष्य दिखने लगा है . शायद इसीलिये कांग्रेस के कद्दावर नेता और कांग्रेस के प्रथम परिवार के बेहद करीबी ,राहुल गांधी के बचपन के दोस्त ,ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कांग्रेस से इस्तीफा देकर बीजेपी में प्राथमिक सदस्य के रूप में शामिल हो गए हैं .उनके साथ कांग्रेस छोड़ने वालों को भी बीजेपी ने स्वीकार कर लिया है .गुजरात में हुए विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी के सभी उम्मीदवार जीत गए हैं . जिन सीटों पर बीजेपी ने चुनाव जीता है ,वे सभी कांग्रेस के गढ़ हुआ करते थे . उत्तर प्रदेश में हुए चुनावों में भी एक को छोड़कर बीजेपी ने सभी चुनावों में जीत दर्ज की है .
नरेंद्र मोदी ने 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद गरीबों के लिए ऐसी बहुत सारी योजनाओं को लागू किया था जिनका स्थाई भाव अन्त्योदय था. महात्मा गांधी ने बहुत पहले कह दिया था कि सरकार को कोई भी निर्णय समाज के सबसे कमज़ोर आदमी को राहत देने के लेना चाहिए . पूंजीवादी तरीके से देश के औद्योगिक विकास में यह एक बाधा मानी जाती थी . जवाहरलाल नेहरू से लेकर डॉ मनमोहन सिंह तक की सरकारों ने यह माना के देश में बड़े उद्योगों को विकास हो जाएगा और औद्योगीकरण हो जाएगा तो समाज का सबसे गरीब आदमी भी लाभान्वित होगा . उद्योगपतियों और उनके शुभचिंतकों का दबाव भी यही संकेत देता था . उद्योगपतियों के लाभ के लिए लॉबी करने वाले संगठन भी ऐसा ही दबाव बनाते थे . राजनीति और नौकरशाही में उनके प्रभाव के चलते उनके हित की नीतियाँ बन जाती थीं . इस तरह के लोग 2014 के बाद भी सक्रिय थे . नरेंद्र मोदी ने उनकी बातें सुनीं और उनकी बात पर भरोसा भी किया कि उद्योग व्यापार की सफलता के बाद समाज के सबसे गरीब आदमी को लाभ मिलेगा . उस दिशा में निर्णय भी लिए गए लेकिन उन्होंने अपनी नज़र गांधी जी के अन्त्योदय वाले सिद्धांत पर रखी. उन्होंने देश में आर्थिक खुशहाली के लिए बहुत सारे फैसले किये जिसका नतीजा है कि आज दुनिया भर की बड़ी कंपनियों ने चीन से हटाकर अपने कारखाने भारत में लगाने का काम शुरू कर दिया है . देश में नए तरीके से औद्योगिक विकास की इबारत लिखी जा रही है .
इसके साथ ही पचास साल की उम्र तक भयानक गरीबी और अभाव की ज़िंदगी जीने वाले नरेंद्र मोदी ने बहुत सारी ऐसी योजनायें चलाईं जिससे समाज के सबसे गरीब इंसान को तुरंत राहत मिले . देश के औद्योगिक विकास से जो सम्पन्नता आयेगी वह तो बाद में आयेगी लेकिन गरीब को रहने खाने के लिए बुनियादी चीज़ों की ज़रूरत का इंतज़ाम तुरंत करना उनकी प्राथमिकता थी . उसी सोच का नतीजा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में समाज के सबसे गरीब लोगों के लिए ऐसी योजनायें लागू करना शुरू कर दिया . उसी सोच का नतीजा है कि उज्ज्वला, घर घर बिजली ,गरीबों के लिए घर , ग्रामीण परिवारों के लिए शौचालय , किसानों के बैंक खातों में डीबीटी के माध्यम से नक़द रूपये , छोटे कारोबारियों के लिए आसान ऋण, मुफ्त इलाज जैसे बहुत सारे सरकारी कार्यक्रम लागू किये गए . उत्तर भारत के गाँवों में जब इस रिपोर्टर ने यह सारी सुविधाओं से संतुष्ट जनता को देखा तो 2019 के लोकसभा चुनावों के पहले ही लिख दिया था इन योजनाओं का लाभ प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी को चुनावी अभियान में मिलेगा .
गरीबों के लिए चलाई गयी इन योजनाओं के कारण प्रधानमंत्री की छवि एक ऐसे राजनेता की बन गयी है कि वे गरीब के हित में हमेशा खड़े रहते हैं . इसके अलावा देश की सुरक्षा के लिए उनकी चिंताएं और चीन को उसकी औकात में लाने के लिए उनकी कोशिशें आज भारत समेत पूरी दुनिया में चर्चा का विषय है . बिहार चुनाव में उसका भी उनके गठबंधन को फायदा हुआ. बिहार चुनाव में एक दिलचस्प बात देखने को मिली . एन डी ए गठबंधन में शामिल चारों पार्टियों के नेता , अपने मुख्यमंत्री के काम की तारीफ़ करते कहीं नहीं दिखे . वे भी नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांगते नज़र आये . दूर दराज़ के गावों में गैस के चूल्हे. किसानों के बैंक खातों में पंहुच रहे रूपये, गावों में शौचालय आदि ऐसी बातें होती थी जो विपक्ष के ज़बानी वायदों पर भारी पडीं .आतंकवाद से मुकाबला और पाकिस्तान को औकात दिखाना भी प्रधानमंत्री की छवि को अजेय बनाते हैं . दस लाख नौकरियाँ देने की बात करके राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष तेजस्वी यादव ने नौजवानों को लुभाने की कोशिश की लेकिन ज़मीन पर पंहुच चुके गरीबों और महिलाओं के लिए किये नरेंद्र मोदी के काम ने उनको बेअसर कर दिया .बहुत बड़ी संख्या में महिलाओं ने बीजेपी उम्मीदवारों को वोट दिया .बारह सभाएं करके बिहार चुनाव का नरेंद्र मोदी ने एजेंडा सेट कर दिया . चुनाव प्रधामंत्री के नाम पर केन्द्रित हो गया . सबको मालूम है कि जब चुनाव प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व पर केन्द्रित हो जाता है तो उनको मात देना किसी के लिए असंभव हो जाता है . 2001 में हुए गुजरात में हुए विधानसभा की एक सीट के लिए उनके अपने उपचुनाव से आजतक यह देखा गया है . वही बिहार में हुआ . नतीजा सामने है . जो नीतीश कुमार 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में उनको अपने राज्य में प्रचार नहीं करने देना चाहते थे हालांकि वे नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बनवाने के लिए अपनी पार्टी , बीजेपी का चुनाव प्रचार करने जाना चाहते थे. जिन नीतीश कुमार ने उनको खाने की दावत देकर कैंसिल कर दिया था , आज वही नीतीश कुमार उनके नाम पर चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बन रहे हैं . यह अलग बात है कि बीजेपी को नीतीश कुमार के पार्टी बीजेपी से बहुत ज़्यादा सीटें मिली हैं लेकिन नरेंद्र मोदी ने उनको वचन दिया है और वह वचन उनकी पार्टी पूरी तरह से निभाएगी .
2016 में प्रकाशित , पत्रकार धर्मेन्द्र कुमार सिंह की किताब, “ ब्रांड मोदी का तिलिस्म “ के प्राक्कथन में राजनीति शास्त्र के विद्वान ब्राउन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आशुतोष वार्ष्णेय लिखते हैं कि ,” आखिर मोदी के पक्ष में पिछड़ी जातियों दलित और आदिवासियों में इस क़दर आकर्षण क्यों पैदा हुआ ? “ 2014 में नरेंद्र मोदी की भारी सफलता के बाद इस तरह के सवाल हवा में थे लेकिन अब तय हो गया है कि नरेंद्र मोदी आज इन जातियों सहित अन्य गरीबों में भी यह विश्वास जता चुके हैं कि वे ही इनके सबसे बड़े शुभचिंतक हैं .उसी किताब में राजनीति विज्ञानी क्रिस्टाफ जैफरले लिखते हैं कि.” इतिहास रचने वाली शख्सियतें अमूमन अपने दौर की उपज होती हैं .वे कमोबेश समाज की दबी –छुपी आकांक्षाओं की अभियक्ति होती हैं . बेशक नरेंद्र मोदी की बहुआयामी शख्सियत भाजपा की (2014 में ) सफलता में बड़ी वजह बनी .” यह दोनों ही विद्वान आमतौर पर नरेंद्र मोदी के पक्ष में नहीं लिखते लेकिन इनकी यह बात यह सिद्ध करती है कि नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व की चुनाव जीतने की शक्ति का उनके विरोधी भी सम्मान करते हैं . और उनके साथी उसका लाभ उठाते हैं .यही कारण है कि बिहार के विधानसभा चुनाव में विपरीत परिस्थियों के बावजूद आज नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बन रहे हैं , शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश में अपनी गद्दी बचाने में सफल रहे और तेलंगाना में बीजेपी को उम्मीद की किरण नज़र आ रही है.
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