शेष नारायण सिंह
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि पाकिस्तान एक असफल राष्ट्र है . उसकी सारी संस्थाएं तबाह हो चुकी हैं ,नीति निर्धारण का सारा काम फ़ौज की एक शाखा ,आई एस आई के हवाले कर दिया गया है .आई एस आई के पास इतना फ़ौजी साजो-सामान नहीं है कि वह सैनिक तरीके से किसी देश को अर्दब में ले सके . उस कमी को पूरा करने के लिए पाकिस्तानी डीप स्टेट ने धार्मिक तरीकों के सहारे पड़ोसी देश की नीतियों को प्रभावित करने की कोशिश शुरू कर दिया है . आई एस आई ने धर्म के नाम पर आतंक फ़ैलाने वालों के कई गिरोह बना रखे हैं . उनमें से जैशे मुहम्मद और लश्करे तय्यबा प्रमुख हैं . यह दोनों ही संगठन संयुक्त राष्ट्र और स्वयं पाकिस्तान सहित कई देशों की उस सूची में दर्ज हैं जहां वैश्विक आतंकवादी संगठनों का नाम है . लेकिन इन्हीं संगठनों के सहारे वह भारत में अक्सर आतंकवादी हमले करता रहता है . जैश-ए-मुहम्मद का सरगना मसूद अज़हर और लश्करे तय्यबा का करता धरता हाफ़िज़ सईद है .. जब पाकिस्तान मजबूरी वश इनके संगठनों को कागजी तौर पर प्रतिबंधित कर देता है तो अपने आतंक के तामझाम का ए लोग कोई और नाम रख लेते हैं लेकिन धंधा वही चलता रहता है . आतंक के इसी सरंजाम के अगुवा हाफ़िज़ सईद ने २६ नवम्बर २००८ को मुंबई के कई ठिकानों पर आत्मघाती हमले करवाए थे .उसी तारीख को हर साल कुछ न कुछ करने की पाकिस्तानी फौज की कोशिश को भारतीय सुरक्षा तंत्र अच्छी तरह जानता है . इस बार भी ऐसी कोशिश होने वाली थी . उसके लिए उसी तैयारी के साथ आत्मघाती दस्ता भेजा गया था लेकिन चौकन्ना सुरक्षा तंत्र ने उन आत्मघाती आतंकियों को नगरोटा में मार गिराया . हो सकता है कि इस तरह के और भी मोड्यूल कहीं और हों लेकिन यह सच है कि पाकिस्तान के फ़ौजी तंत्र को यह आभास देना होता है कि वह भारत को अपने दबाव में रख रहा है जिसके बाद उसके भारत में सक्रिय लोगों का मनोबल बढ़ा रहे .
पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान के पास ऐसे बहुत सारे तरीके हैं जिससे वह भारत में अशांति का माहौल बनाने की कोशिश करता है . भारत के बेरोजगार अशिक्षित और गरीब मुसलमानों के लड़कों को धार्मिक रूप से खूंखार बनाने की कोशिश भी एक तरीका है . देवबंद और उसके सहयोगी धार्मिक संगठन तबलीगी जमात के लोग ग्रामीण क्षेत्रों में मुसलमानों के घर जाकर उनको याद दिलाते हैं कि मुसलमानों ने ११९२ की तराइन की लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान को तलवार के बल पर हराया था और मुस्लिम सत्ता कायम कर दी थी . १८५७ तक इस देश में मुसलमानों का राज रहा . वे बताते हैं कि जब करीब साढ़े छः सौ साल बाद १८५७ में अंग्रेजों ने दिल्ली के मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फर को गिरफ्तार करके म्यांमार में क़ैद कर लिया तब इस देश से मुस्लिम शासन हटा . वे यह भी बताते हैं कि १९४७ में अंग्रेजों को सत्ता मुसलमानों को ही वापस देनी चाहिए थी क्योंकि उन्होंने जिससे सत्ता छीनी थी उसी को वापस करना चाहिए लेकिन उन्होंने मुसलमानों के संगठन मुस्लिम लीग और उनके नेता जिन्नाह को भारत का पूरा भूभाग न देकर केवल पाकिस्तान देकर टरका दिया . ग्रामीण क्षेत्रों में घूम रहे यह कठमुल्ले उन लड़कों को बताते हैं कि उनके बुजुर्गों ने पूरे भारत को इस्लामी देश बनाने का जो काम अधूरा छोड़ दिया था ,उसको पूरा करने का ज़िम्मा अपने उन बेकार नौजवानों के कन्धों पर है . इस बार की अपने गाँव की यात्रा के दौरान उत्तर प्रदेश में लखनऊ के पूरब के तीन चार जिलों में जाने का अवसर मिला . वहां एक अजीब परिवर्तन देखने को मिला .वहां हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच जो परंपरागत बोलचाल की संस्कृति थी ,वह विलुप्त हो रही है . यह बात मामूली तौर पर गौर करने पर भी दिख जाती है ,. साफ़ देखा जा सकता है कि गाँवों में मुस्लिम आइडेंटिटी को रेखांकित करने के बारे में बड़ा अभियान चल रहा है . गरीब से गरीब मुसलमान के घर पर भी एक झंडा लगा हुआ है जिसको वे लोग इस्लामी झंडा कहते हैं .इस झंडे में अरबी में कुछ लिखा हुआ है . साटन के कपडे पर बने यह झंडे खासे महंगे हैं . जिन मुस्लिम परिवारों से मैंने बात की उनको उन झंडों की कीमत के बारे में कोई पता नहीं है . कुछ परिवारों में तो रोटी पानी का इंतजाम करने के लिए खासी जद्दो जहद करनी पड़ती है लेकिन महँगा झंडा उनकी झोपडी पर लगा हुआ है . कुछ झोपड़ियों पर तो एक से अधिक झंडे लगे हैं .भरोसे में लेने पर उनसे यह पता लगता है कि जान पहचान के किसी आदमी के कहने पर वह झंडा लगा हुआ है ,वह झंडा वही दे गया था . जब थोडा कुरेद कर बातचीत की जाए तो परतें खुलना शुरू हो जाती हैं . उनके गिले शिकवे अजीब हैं . एक ने तो कहा कि इस देश में हमारी ही हुकूमत थी . अंग्रेजों को धोखा देकर गांधी जी ने हमारी हुकूमत को हिन्दुओं को दिलवा दिया . हिन्दुओं ने हिन्दू गरीबों के लिए नौकरी में आरक्षण कर दिया और मुसलमानों को गरीबी में झोंक दिया .इन्हीं भावानाओं की बुनियाद पर बहुत बड़े पैमाने पर मुसलमानों के बीच भारत की सरकार और भारतीय नेताओं के प्रति नफरत के भाव पैदा किये जा रहे हैं.
सरकार को और समाज को समझना चाहिए कि पाकिस्तानी आई एस आई और वहां का कठमुल्ला तंत्र इन्हीं निराश , फटेहाल और गरीब नौजवानों में अपने बन्दे फिट कर रहा होता है . किसी भी सामाजिक संगठन या सरकारी संगठन के राडार पर असंतोष के इस अंडर करेंट को समझने की कोशिश होती नहीं दिख रही है . मुसलमान नौजवानों को भारत के खिलाफ करने का जो धार्मिक प्रोजेक्ट चल रहा है उसमें ही नए जेहादी तलाशे जा रहे हैं लेकिन सरकारें बिलकुल बेखबर हैं . लव जेहाद के नाम पर ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रहे आर एस एस के संगठन भी इस समस्या से अनजान दिखते हैं. सही बात यह है कि अगर समाज के इस बड़े वर्ग की चिंताओं को सरकारी तौर पर ध्यान दिया जाय तो भारत के सभी मुसलमानों को भारत के खिलाफ करने की पाकिस्तान की कोशिश को रोका जा सकता है . अगर इस प्रवृत्ति को न रोका गया तो पाकिस्तानी आई एस आई और उनके आतंक की खेती करने वाले गिरोहों के सरगना मसूद अज़हर और हाफ़िज़ सईद जैसे लोगों को हिन्दुस्तान में वारदात करने के लिए पाकिस्तान से आतंकवादी भेजने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी. भारत में जिन वर्गों को वे भारत के खिलाफ भड़काने की कोशिश कर रहे हैं ,वे ही भारत के खिलाफ खड़े हो जायेंगें . यह स्थिति कश्मीर में धीरे धीरे विकसित हुयी है . जिन कश्मीरियों ने भारत में विलय को कश्मीर की आजादी माना था ,उन्हीं कश्मीरियों की तीसरी पीढी के लोग आज भारत से अलग होने की बात कर रहे हैं. भारत के कश्मीरी नौजवान आज पाकिस्तानी आतंकियों मसूद अज़हर और हाफ़िज़ सईद के संगठनों के कमांडर बन रहे हैं . इसलिए सरकार को चाहिए कि उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में भारतीय राष्ट्र और समाज से अलग थलग पड़े रहे मुस्लिम परिवारों की समस्याओं को समझें और पाकिस्तानी आतंकवादियों के मंसूबों को नाकाम करें .क्योंकि एक देश के रूप में 26/11 के गुनाहगार को हमें कभी नहीं भूलना चाहिए
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