Wednesday, June 10, 2020

कोविड-19 से मुकाबले के लिए देश की सभी राजनीतिक पार्टियों को एकजुट करने के लिए प्रधानमंत्री को आगे आना चाहिए .



शेष नारायण सिंह  

कोविड-19 की महामारी आज राष्ट्रीय चिंता का विषय है . जब देश की राजधानी दिल्ली में कोविड-19 के मरीजों की संख्या 32 हज़ार के पार पंहुंच गयी तो देश के गृहमंत्री अमित शाह और दिल्ली राज्य के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के बीच बैठक हुई .बातचीत के बाद मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने बताया कि गृहमंत्री ने उनको हर तरह के सहयोग का  आश्वासन दिया .गृहमंत्री और दिल्ली के मुख्यमंत्री के बीच हुयी बैठक बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि अब तक की जो परंपरा रही है उसके हिसाब से अमित शाह और अरविन्द केजरीवाल एक  दूसरे का विरोध ही करते रहे हैं लेकिन आज देश के एक अंतर्राष्ट्रीय आपदा से गुज़र रहा  है . ज़रूरत इस बात की है कि देश के सभी उपलब्ध संसाधन इस संकट से बचने के लिए लगाये जायं . कोविड-19 के मामले दिल्ली और मुंबई में बढ़ते जा रहे हैं . दिल्ली देश की राजनीतिक राजधानी है जबकि मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है .दोनों ही महानगरों में मरीजों की बढ़ती संख्या  देश भर में चिंता का विषय है .  दिल्ली और मुंबई की सरकारें ऐसी पार्टियां चला रही हैं जो केंद्र सरकार की सत्ताधारी पार्टी की विरोधी हैं .मुंबई महाराष्ट्र की राजधानी है .वहां इस वक़्त जो सरकार है वह  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी की  इच्छा के खिलाफ जाकर   बनाई गयी हैं . महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की पार्टी शिवसेना ने विधानसभा चुनाव  बीजेपी के साथ गठबंधन बनाकर लड़ा था.बाद में उनसे मनमुटाव हो गया और आज  शिवसेना के नेता मुख्यमंत्री है लेकिन उस गद्दी पर पंहुचने के लिए शिवसेना ने बीजेपी के घोर विरोधियों ,कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस का साथ कर लिया .इसके बावजूद भी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री से सहयोग की अपील की और उनको भी ज़रूरी आश्वासन मिला . उम्मीद की जानी चाहिए कि कोविड-19 की आपदा का अब सही तरीके से मुकाबला किया जा सकेगा. यह एक राष्ट्र के रूप में हमारे अस्तित्व को बचाए रखने के लिए ज़रूरी है .महामारी का मुकाबला करने के लिए ज़रूरी  है कि फिलहाल राजनीतिक मतभेद भुलाकर देश पर आये संकट का मुकाबला किया जाए लेकिन ऐसा लगता है कि केंद्र की सत्ताधारी पार्टी ,बीजेपी  देश की राजनीतिक एकता को बनाये रखने में योगदान नहीं दे रही  है. जहां विपक्ष की सरकारें हैं वहां उनको गिराने  में राजनीतिक संसाधनों  को झोंक देना देश की  राजनीतिक एकता की भावना के खिलाफ  है . राजस्थान से खबर आ रही है कि वहां की कांग्रेस सरकार को अस्थिर करने के लिए विधायकों की तोड़फोड़ की कोशिश की जा रही है . राजस्थान में  सरकारी पक्ष के मुख्य सचेतक महेश जोशी ने  दावा किया है कि कांग्रेस के विधायकों को लालच देकर उनको राज्य की लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित सरकार को अस्थिर करने की कोशिश की जा रही है . उन्होंने भ्रष्टाचार निरोधी  ब्यूरो के महानिदेशक को एक पत्र लिखकर बताया  है कि कर्णाटक और मध्यप्रदेश की तर्ज पर राजस्थान में भी कांग्रेस के विधायकों को दल छोड़ने के लिए प्रेरित किया जा रहा  है. कांग्रेस में इस बात को गंभीरता से लिया जा रहा  है   क्योंकि पहले तो कांग्रेसी विधायकों को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के घर बुलाकर समझाया  बुझाया गया  और बाद में उनको राजधानी जयपुर के किसी रिजार्ट में ले जाकर रखा गया है . यानी राजस्थान की सरकार   अस्थिरता के खतरे को सच मान कर काम कर रही है . इसके पहले मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार को भी गिराकर बीजेपी की सरकार बनाई गयी थी. मध्यप्रदेश में  बीजेपी की सरकार बनाने की प्रक्रिया की आलोचना इसलिए भी  हुई थी कि उस चक्कर में कोविड-19  के खिलाफ  अभियान शुरू करने में  देरी की गयी थी . राजनीतिक उठापटक से हटकर हमारे नेताओं को इतने बड़े संकट के मुकाबले के लिए एकजुट होना चाहिए था लेकिन अफ़सोस की बात  है कि मध्यप्रदेश ,राजस्थान और गुजरात में कांग्रेस के विधयाकों को लालच देकर  उनको पार्टी छोड़ने की प्रेरणा दी जा रही है .


 इस बात में दो राय नहीं है कि केंद्र सरकार ने कोविड-19 के खिलाफ अभियान को बिना किसी योजना के शुरू कर दिया था . शुरू में  तो केंद्र सरकार इस  संकट को हलके में ले रही थी . जब अमरीका और  यूरोप के देश कोविड-19 की गिरफ्त में आ  चुके थे और 11 मार्च को ही विश्व स्वास्थ्य संगठन कोविड-19 के संक्रमण को पंडेमिक का नाम दे चुका था तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का 13 मार्च को दावा करना कि भारत में कोई मेडिकल इमरजेंसी नहीं है ,निश्चित रूप से केंद्र सरकार की गंभीरता पर सवालिया निशान लगाता है . उसी दौर में मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार को  बदलने के लिए केंद्र की सत्ताधारी पार्टी के सभी संसाधन लगे हुए थे . उसके बाद भी जो रवैया अपनाया  गया  वह बहुत ही सोच विचार का नतीजा  नहीं  माना जाएगा . 13 मार्च को केंद्र सरकार  दावा कर चुकी थी कि देश में कोई मेडिकल इमरजेंसी नहीं  के हालात नहीं थे  लेकिन उसके  बाद ही प्रधानमंत्री ने एक दिन का जनता कर्फ्यू लगा दिया और सबको अपने घर के सामने ताली बजाने का सुझाव दिया . उन्होंने  19 मार्च 2020 को रात 8 बजे भारत की जनता को  संबोधित किया और आवाहन  किया कि  22 मार्च को सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक जनता कर्फ्यू का पालन करें। जनता कर्फ्यू को उन्होने "जनता के लिए, जनता द्वारा, खुद पर लगाया गया कर्फ्यू कहकर परिभाषित किया। उन्होने देशवाशियों से आग्रह किया कि जनता कर्फ्यू के दौरान जरूरी सेवाओं से सम्बन्धित लोगों के अलावा कोई भी व्यक्ति  घर से बाहर न निकलें . यह बात समझ में नहीं आती कि एक दिन के  जनता कर्फ्यू का क्या औचित्य था . उसके बाद उन्होंने अपने 24 मार्च के देश को दिए गए सन्देश में 21 दिन के लॉक डाउन की घोषणा की  और बताया कि महाभारत का युद्ध अठारह दिन में जीता गया था . उन्होंने दावा किया कि कोरोना पर २१ दिन में विजय पा लेंगें . ऐसा लगता  है कि प्रधानमंत्री ने यह जानकारी  तथ्यों को सत्यापित किये बिना ही दे डाली थी क्योंकि बाद में हुए सरकारी विमर्श में कहीं भी यह बात सामने नहीं आई . यह घोषणा भी आठ बजे शाम को टीवी चैनलों पर की गयी और बिलकुल  नोटबंदी  वाली शैली में की गयी . नोटबंदी की तरह ही  उन्होंने कहा कि करीब चार घंटे बाद देश में सब कुछ बंद हो जाएगा. ट्रेन, बस, बाज़ार , दूकान सिनेमा, माल, कोर्ट ,कचहरी , फैक्टरी सब कुछ बंद हो जाएगा. देश में कोई भी कहीं भी   घरों के बाहर नहीं  निकलेगा . नतीजा यह हुआ कि महानगरों में रोज़ कमाकर खाने वाले घबडा गए अपने गाँव जाने के लिए निकल पड़े.   कोविड-19  के खिलाफ चल रहा अभियान तो पीछे चला गया और मजदूरों का अपने गाँव वापस जाने से  जुडी मुसीबतें केंद्रीय मुद्दा बन गईं  . जिस तरह की तकलीफें लोगों को अपने घर जाने में हुई वह बहुत ही दर्दनाक थी . फ़िल्मी कवि गुलज़ार ने तो मजदूरों के पलायन को 1947 में बँटवारे के समय हुए पलायन से जोड़कर कविता भी लिख दी .मामला इतना बड़ा हो गया कि सुप्रीम  कोर्ट को भी आदेश देना पड़ा कि सरकारें मजदूरों को उनके घरों तक पंहुचाएं . आम तौर पर माना जाता है कि अगर 25 मार्च का लॉक डाउन शुरू करने के पहले केंद्र सरकार ने इस बात पर गौर कर लिया होता कि मजदूरों को बंदी के बाद भारी समस्या पेश आयेगी तो इंसानियत पर जो मुसीबत बरपा हुई , वह न हुयी होती और  उनको राशन आदि देने और उनको घर तक पंहुचाने आदि में जो बहुत बड़ा संसाधन लगा ,वह बच गया  होता . इस मुसीबत के दौर में  उस संसाधन को अस्थाई अस्पताल आदि बनवाने में लगा दिया  गया होता . यह भी संभव है कि आज जो गाँवों में कोविड-19  के मामले हैं वे  बहुत कम होते क्योंकि शुरू में मजदूरों के बीच यह बीमारी गयी ही नहीं थी. आज सरकार और मीडिया संस्थाओं की ओर से बताया जा रहा है कि गाँवों में जो भी संकट है वह बाद में गए मजदूरों के कारण है .समझ में नहीं आता कि इस तरह की तर्क पद्धति का आधार क्या है .



कोविड-19 के मरीजों की  संख्या अब तो बहुत तेज़ी से बढ़ रही है . दिल्ली सरकार के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने तो आशंका  जताई है कि  जुलाई के अंत तक दिल्ली  में कोविड-19 मरीजों की संख्या साढ़े पांच लाख पार कर जायेगी .हालांकि टीवी चैनल और सरकारी पक्ष रखने वाले अखबार दावा कर रहे  हैं कि हालात काबू में हैं लेकिन देश में मंगलवार की शाम तक मरीजों की संख्या दो लाख  पचासी हज़ार के पार  पंहुच गयी थी . यह संख्या उन मरीजों की है जिनकी जांच हुई  , पाजिटिव पाए गए और  अस्पतालों में जिनका इलाज हुआ. उनमें से कुछ ठीक हुए , कुछ का इलाज चल रहा  है और आठ हज़ार से ज्यादा मरीजों की मौत हो चुकी है . रोज़ ही अखबारों में ख़बरें आ रही हैं कि बहुत सारे लोग अस्पतालों में भर्ती ही नहीं हो पा रहे  हैं . सभी  मरीजों की जांच तक नहीं हो पा रही है .अस्पतालों में सुविधाएं नहीं हैं और दिल्ली में तो कोविड-19 से मरे हुए लोगों की लाशों का  अंतिम  संस्कार करने में भारी परेशानी हो रही है .मुंबई की हालत दिल्ली से भी ख़राब है. वहां   कोविड-19 मरीजों की  संख्या पचास हज़ार से भी ज्यादा हो चुकी  है. मुंबई महानगर निगम का दावा  है कि  शहर में 798 कन्टेनमेंट ज़ोन हैं जहां करीब 42 लाख लोग रहते हैं. शहर में करीब साढ़े चार लाख इमारतें सील कर दी गयी हैं जिनमे करीब आठ लाख  लोग रहते  हैं .  यह आठ लाख लोग सबसे ज़्यादा खतरे के बीच रह रहे हैं. इस बीच कोविड-19 के असर और नतीजों को  लेकर तरह तरह के दावे किये जा रहे हैं. देश के अन्य महानगरों से भी इसी तरह के डरावने आंकड़े आ रहे  हैं. विदेशों से जो आंकडे आ रहे   हैं वे भी डरावने हैं .अमरीका में  मरीजों की संख्या बीस लाख के पार चली गयी है और वहां सरकार और वैज्ञानिक दूसरी लहर के खतरे से  देश की जनता को आगाह कर रहे हैं . यूरोप के देशों में भी अभी खतरे की आशंका बहुत बड़े पैमाने पर बनी हुयी है . पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों की रोज़ी रोटी के साधन ख़त्म हो चुके  हैं .
ऐसी हालत में राजनीतिक बिरादरी को चाहिए कि देश के सभी लोगों को एकजुट करें और दूसरे  विश्वयुद्ध से भी ज़्यादा खतरनाक हालात को संभालें. किसी राज्य में  चुनी हुई सरकार को अस्थिर करके बीजेपी की सरकार बनाने की कोशिशों को लगाम देने की ज़रूरत है क्योंकि इस तरह के राजनीतिक आचरण से देश की एकता बाधित होती है .प्रधानमंत्री को आगे आकर देश की एकता के प्रयास को नेतृत्व देना चाहिए और कोविड-19 से देश की अवाम को बचाने की कोशिश  करनी चाहिए




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