शेष नारायण सिंह
छुट्टा घूम रहे जानवरों से खेती को हुए नुक्सान पर एयरस्ट्राइक ने पर्दा डाल दिया है . जो लोग खेती के नुक्सान के कारण बीजेपी से नाराज़ थे ,वे अब प्रधानमंत्री के पुलवामा के जवाब से संतुष्ट हैं . इन लोगों ने २०१४ में भी मोदी लहर में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट दिया था. कई बड़े किसान यह भी साबित करने की कोशिश करते हैं कि सांडों से खेती का कोई नुक्सान हुआ ही नहीं .लिहाज़ा यह वर्ग भी अब मजबूती से नरेंद्र मोदी के समर्थक खेमे में वापस पंहुच चुका है .मोदी के पक्ष में वे दो हज़ार रूपये भी काम कर रहे हैं जो किसानों के लिए दिए गए थे . शौचालय भी नरेंद्र मोदी के पक्ष में हैं लेकिन शौचालय से दलितों में मोदी को लाभ नहीं हो रहा है . .कुछ लोग नरेंद्र मोदी के समर्थक में बहुत ही मुखर हैं . कुछ तो उन प्रवक्ताओं से भी ज़्यादा उत्साहित रहते हैं जिनका काम ही टीवी पर प्रधानमन्त्री की सकारात्मक छवि बनाना है . प्रतिवर्ष दो करोड़ नौकरियों का मामला भी कहीं नहीं सुनाई पड़ रहा है . ऊपरी तौर पर साफ़ लग जाता है कि माहौल नरेंद्र मोदी के पक्ष में है. यह सारा माहौल ठाकुर, ब्राहमण . लाला, बनिया और कुर्मी बिरादरी के लोगों से बात करके समझ में आता है . इनकी राय बनाने में टीवी चैनलों और दैनिक जागरण अखबार का है बहुत ही अधिक है . यही लोग चौराहों पर भी देखे जाते हैं . ठाकुर ब्राहमणों के बेरोजगार लड़के चौराहों पर लगभग दिन भर जमे रहते हैं और नरेंद्र मोदी की तारीफ करते रहते हैं . इसका यह मतलब बिलकुल नहीं कि चुनाव मोदीमय हो गया है .नरेंद्र मोदी के खिलाफ लोगों की संख्या वहां मिलती है जहाँ दलित जातियों के लोग रहते हैं . वहां मायावती-अखिलेश यादव के प्रति वफादारी दलितों के अलावा यादव और मल्लाह जातियों के लोगों में है . यह बड़ी संख्या वाली जातियां हैं . अन्य ओबीसी में गडरिया,कुम्हार, मौर्या,लोहार ,कहार आदि आते हैं . इनकी संख्या ज्यादा नहीं है . इनकी जातियों के घोषित नेता भी नहीं हैं . ऐसा लगता है कि इन जातियों के लोग किसी भी तरफ चले जायेंगें . प्रतापगढ़ और सुल्तानपुर का उदाहरण दिया जाए तो इन दो जिलों में ठाकुर और ब्राह्मण बड़ी संख्या में हैं और अक्सर निर्णायक साबित होते हैं . लेकिन यादव और दलित एकता इनको बैलेंस कर देती है . बनिया और कायस्थ बड़ी संख्या में नहीं है लेकिन कुर्मी बड़ी संख्या में हैं और वे आम तौर पर बीजेपी के साथ हैं .
लुब्बो लुबाब यह है कि पुलवामा के बाद की एयर स्ट्राइक के बाद बीजेपी से नाराज़ हुए उनके समर्थक वापस उनकी शरण में जा चुके हैं लेकिन दलितों , यादवों , मल्लाहों और मुसलमानों की एकता भी अपना काम कर रही है . लहर कोई नहीं है ,खेल जातीय हिसाब किताब के आस पास ही मंडराता दिख रहा है .सुलतानपुर में तो बहुजन समाज पार्टी का ठाकुर प्रभारी दो दिन पहले ही घोषित हुआ है और ठाकुरों के लड़के उनकी तरफ मुड़ रहे हैं .एक यादव कर्मचारी की कुछ वर्ष पहले हत्या हो गयी थी . लोकसभा के वर्तमान बसपा उम्मीदवार के खिलाफ उन कर्मचारी की पत्नी अभियान चला रही हैं. बीजेपी के समर्थकों को उम्मीद है कि वे यादवों को बसपा-सपा के संयुक्त उम्मीदवार से अलग कर देंगीं लेकिन कई यादव नेताओं से बात के बाद पता चला कि ऐसी बात नहीं है.
फिर वही बात ठीक लगती है कि जातीय वफादारी बड़े पैमाने पर काम कर रही है .
फिर वही बात ठीक लगती है कि जातीय वफादारी बड़े पैमाने पर काम कर रही है .
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