शेष नारायण सिंह
बालाकोट में हवाई हमला करके के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष को रक्षात्मक मुद्रा में ला दिया है . ऐसा लगता है कि लोकसभा चुनाव २०१९ में महंगाई, बेरोज़गारी,किसानों की दुर्दशा , लुंजपुंज अर्थव्यवस्था ,राफेल का कथित भ्रष्टाचार के मुद्दे बैकबर्नर पर चले गए हैं . देशप्रेम, राष्ट्रवाद , पाकिस्तान का विरोध और पाकिस्तान को औकात बता देने वाले मुद्दे ही चुनावी मौसम में हर तरफ सुने जायेंगें . असली युद्ध का ख़तरा तो नहीं है लेकिन युद्ध का राग हर राजनीतिक चर्चा में अब स्थाई भाव हो गया है .प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीतिक रणनीति के चलते युद्ध या युद्ध की आशंका अब राजनीतिक आकाश का स्थाई चरित्र बन गया है . इस सब के चलते लोकसभा चुनाव २०१९ बहुत ही दिलचस्प दौर में पंहुच गया है जिस चुनाव को पिछले पांच साल के काम काज पर लड़ा जाना था , वह एकाएक फिर भविष्य की योजनाओं के मुद्दे को केंद्र रख कर लड़ा जाने वाला है . प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को भरोसा दिला दिया है कि वे अब देश को आतंकवाद की राजनीति से मुक्ति दिला देंगें . उसके लिए उन्होंने राजनीति की पिच को बहुत ही ऊंचाई पर लाकर छोड़ दिया है और विपक्षी पार्टियां उनके भाषणों पर प्रतिक्रिया देने की ड्यूटी निभा रही हैं . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने वाली विपक्ष की पार्टियां उन मुद्दों को उठाना भूल गयी हैं जिनको केंद्र में रखकर विपक्ष ने सरकार और बीजेपी को घेरने का मंसूबा बनाया था. प्रधानमंत्री ने २०१४ के लोकसभा चुनाव के पहले जो वायदे किये थे उनका लेखा जोखा इस चुनाव की स्थाई धारा होनी चाहिए थी. प्रधानमंत्री ने पद संभालने के बाद कहा था कि उनको देश की जनता ने जो पांच साल दिए हैं , २०१९ के चुनाव के पहले उसका हिसाब देंगें . शुरू में तो मुख्य विपक्षी पार्टी की समझ में ही कुछ नहीं आ रहा था लेकिन करीब दो साल बाद सरकार की कमियों को रेखांकित करने का काम शुरू किया . राहुल गांधी ने विपक्ष का धर्म निभाया और तीन राज्यों से बीजेपी की सरकार को बेदखल करने में सफलता पाई . वे प्रधानमंत्री द्वारा २०१४ के चुनाव के पहले किये गए वायदों पर ख़ास ध्यान दे रहे थे. चुनाव के पहले प्रधानमंत्री ने प्रतिवर्ष दो करोड़ नौकरियों का वायदा किया था, किसान की आमदनी दुगुनी करने और विदेशों से काला धन लाने का वायदा किया था .इसके अलावा और भी बहुत सारे संकल्प नरेंद्र मोदी ने किया था. कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों ने उन मुद्दों को उठाया और बीजेपी के लिए मुश्किलें पैदा कीं . जिस कांग्रेस से भारत को मुक्त करने की बाद नरेंद्र मोदी ने की थी उसी कांग्रेस ने मध्यप्रदेश, राजस्थान और छतीसगढ़ में सरकार बना कर साबित कर दिया था कि कांग्रेसमुक्त भारत एक असंभव संभावना है . २०१४ में नरेद्र मोदी की जीत और उनकी सरकार के बनने में यू पी ए के राज के भ्रष्टाचार का भारी योगदान था. संकल्प लिया गया था कि मोदी जी के राज में भ्रष्टाचार नहीं होगा . लेकिन लोकपाल की नियुक्ति न करके और राफेल सौदे में कुछ नियमों की अनदेखी करके बीजेपी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को ऐसा अवसर दे दिया जिस के सहारे उन्होंने नरेंद्र मोदी की ईमानदारी वाली छवि पर हथौड़े मारने शुरू कर दिए . उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन के बाद राज्य में जितने भी उपचुनाव हुए सब में बीजेपी के उम्मीदवार हार गए . दोनों पार्टियों ने लोकसभा के लिए भी चुनावी गठबंधन कर लिया . बीजेपी के आशीर्वाद से सपा अध्यक्ष के चाचा शिवपाल यादव ने नई पार्टी भी बना ली लेकिन उनका कोई ख़ास राजनीतिक असर नहीं दिख रहा था. सपा-बसपा गठबंधन के रूप में उत्तर प्रदेश में बीजेपी को ज़बरदस्त प्रतिद्वंदी मिल गया है. सपा-बसपा गठबंधन के बाद बीजेपी को अंदाजा लग गया था कि उत्तर प्रदेश की राह आसान नहीं हैं . कांग्रेस भी २०१४ की दुर्दशा से बाहर आ चुकी है . उसकी मध्यप्रदेश ,राजस्थान और छतीसगढ़ विधानसभा चुनाव में हुई जीत के बाद बीजेपी की कमजोरी रेखांकित हो चुकी है . २०१४ में नरेंद्र मोदी सरकार की स्थापना में इन चार राज्यों में मिली बहुत बड़ी संख्या में सीटों का भारी योगदान था. इन राज्यों में कमज़ोर होने का मतलब यह था कि केंद्र में बीजेपी सरकार बनना नामुमकिन नहीं तो कठिन ज़रूर हो जाता . नरेंद्र मोदी के २०१४ के वायदे विपक्ष की पार्टियां सभी मोर्चों पर उठा रही थीं और सरकार के लिए जवाब देना मुश्किल हो रहा था.
बीजेपी और केंद्र सरकार का सौभाग्य है कि मीडिया का एक बड़ा वर्ग उनको सही मानता है और उनकी तारीफ़ करता है . लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जो कठिन सवालों को भी उठा रहा है . सोशल मीडिया में सरकार की नाकामियों को लिखने बोलने वाले भी बहुत बड़ी संख्या में हैं . जो हालत थे उसमें चुनाव जीतने के उपलब्ध तरीकों से चुनाव जीतना संभव नहीं था. कुछ नया करने की ज़रूरत थी . मौजूदा बीजेपी उसी तरह की स्थिति में पंहुच गयी थी जिसमें १९९० में मंडल कमीशन की सिफारिश लगने के बाद लाल कृष्ण आडवानी की बीजेपी फंस गई थी . १९८६ से बीजेपी के सभी नेता अयोध्या के रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद के सहारे जनमानस में लोकप्रियता अर्जित कर रहे थे .कट्टर हिन्दुओं का एक वर्ग बीजेपी की तरफ आकर्षित भी हो रहा था. मुसलमानों के खिलाफ कुछ सुनने को उत्सुक हिन्दू समाज के लोग बीजेपी के साथ होने लगे थे लेकिन वक़्त तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू कर दीं और देश की ५४ प्रतिशत आबादी को अपनी तरफ खींचने की रणनीति का दांव चल दिया . पिछड़ी जातियों के लोगों को सरकारी नौकरियों में २७ % आरक्षण दे दिया गया . बेरोजगारों के बहुत बड़ी आबादी वाले देश में यह बात ऐसी थी जिसके बाद एक अलग तरह की लामबंदी की शुरुआत हो गयी .लाल कृष्ण आडवानी और विश्व हिन्दू परिषद का सभी हिन्दुओं को साथ लेने का प्रोजेक्ट गड़बड़ा गया .पिछड़ी जातियों के लोगों की वफादारी अपनी जाति के लोगों को मिलने वाली नौकरियों की संभावना पर केन्द्रित हो गयी . लालू यादव, शरद यादव, मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार ,राम विलास पासवान नए नेता के रूप में तेज़ी से उभरने लगे . बीजेपी के नेता सकते में थे .सारे किये कराये पर पानी पड़ने वाला था. लेकिन लाल कृष्ण आडवानी की सोमनाथ से अयोध्या की रथयात्रा ने बीजेपी को एक मौक़ा दे दिया कि जाति और धर्म के ऊपर भगवान राम के मन्दिर की बात शुरू हो गयी .जहां जहां से रथयात्रा गुज़री , वहां बहुत बड़े पैमाने पर ध्रुवीकरण हुआ और समाज फिलहाल हिन्दू बहुमत के साथ एकजुट हो गया . यह आडवानी की राजनीति का जलवा था कि उन्होंने चुनावी राजनीति के पैमाने बदल दिए और जब उनको लगा कि हिन्दू मन भाजपामय हो रहा है तो विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया और उनको झटका देकर पैदल कर दिया . कांग्रेस के सहयोग से चन्द्रशेखर ने सरकार चलाने की कोशिश की लेकिन कांग्रेस ने हस्बे मामूल उनकी सरकार को ठीक उसी तरह गिरा दिया जैसे इंदिरा गांधी ने चुनाव करवाने के लिए १९७९ में चरण सिंह की सरकार गिराई थी. मुद्दा यह है कि १९९० में रथयात्रा के ज़रिये लाल कृष्ण आडवानी ने मंडल कमीशान के असर को ख़त्म कर दिया . चुनाव में ओबीसी जातियां अपनी जाति की सीमा से बाहर आकर हिन्दू बन गयीं और बीजेपी को बड़ी संख्या में सीटें उपलब्ध करवा दीं. नैरेटिव बदल गया था और बीजेपी एक ताक़तवर जमात बन चुकी थी .
चुनाव का नैरेटिव बदलने का काम बीजेपी ने २०१४ में भी किया . उस वक़्त के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने ऐसे वायदे किये जिनके पूरा होने पर देश के नौजवानों और किसानों के अच्छे दिन आ जाते . उन्होंने पूरे देश को भ्रष्टाचार विरोध के नाम पर , दो करोड़ प्रतिवर्ष की नौकरियों की बुनियाद पर किसानों की खुशहाली के सपने पर और मज़बूत सरकार के वायदे के साथ एकजुट कर दिया . जातीय पहचान के ऊपर आर्थिक खुशहाली और रोज़गार के वायदे ने देश को नरेंद्र मोदी के पक्ष में खडा कर दिया .नतीजा सब के सामने है .
अपने इन वायदों को नरेंद्र मोदी पिछले पांच साल में पूरा नहीं कर पाए थे. लेकिन उन्होंने लोकलुभावन बहुत सारी योजनायें चलाईं . उज्ज्वला, गरीबों के लिए घर , ग्रामीण परिवारों के लिए शौचालय , किसानों के बैंक खातों में २००० रूपये आदि ऐसे सरकारी कार्यक्रम हैं जिसका फायदा प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी को चुनावी लाभ के रूप में मिल सकता था लेकिन बेरोजगारी, खेती की दुर्दशा और महंगाई जैसे मुद्दे उनके लिए भारी पड़ रहे थे. इसी के चलते १४ फरवरी के पहले के जो भी विमर्श थे उसमें नरेंद्र मोदी सरकार रक्षात्मक मुद्रा में थी,बैकफुट पर थी लेकिन पुलवामा में सी आर पी एफ के काफिले पर आतंकवादी हमले के बाद सब कुछ बदल गया .पुलवामा के आतंकवादी हमले के बाद कुछ दिन टीवी चैनलों के ज़रिये बदला लेने का माहौल बनाया गया और नरेंद्र मोदी ने वायु सेना को अधिकृत किया .नतीजतन पकिस्तान में घुसकर वायुसेना ने बमबारी की और नतीजा समाने है .इस घटना ने चुनाव को देशप्रेम की पिच पर ला दिया . पूरा देश आज देशप्रेम की बात कर रहा है . कोई भी मंहगाई , किसानों की दुर्दशा ,राम मंदिर और राबर्ट वाड्रा के भ्रष्टाचार की बात नहीं कर रहा है . नरेंद्र मोदी ने राजनीतिक बहस के दायरे को ऐसे मुकाम पर लाका छोड़ दिया है जहां विपक्ष के लोग उनके आरोपों के जवाब ही दे रहे हैं . अब चर्चा यह है देश की रक्षा ,आतंकवाद से मुकाबला और पाकिस्तान को औकात दिखाना ज़रूरी काम हैं .प्रधानमंत्री की कोशिश है कि वे मुद्दे चुनावी विमर्श में न आयें जिनमें उनकी कमजोरी दिखती है . वे भाग्यशाली हैं क्योंकि ममता बनर्जी को छोड़कर पूरा विपक्ष उनके भाषणों पर प्रतिक्रिया दे रहा है .राजनीतिक घेरेबंदी में नई नई बातें हो रही हैं . नरेंद्र मोदी एजेंडा सेट कर रहे हैं और विपक्ष उसी के घेरे में फंसता जा रहा है . ऐसा लगता है कि खुद पहल न करके विपक्ष ने पहल का अधिकार पूरी तरह से नरेंद्र मोदी को सौंप दिया है. हालांकि देश की सुरक्षा और आतंकवाद से देश को बचाना किसी भी सरकार का बुनियादी धर्म है . उसके साथ साथ देश के लोगों को जो चुनावी वायदे किये गए थे उनको भी पूरा किया जाना ज़रूरी है .लेकिन नरेंद्र मोदी ने एजेंडा फिक्स कर दिया है . नया नैरेटिव शुरू कर दिया है . यह देखना दिलचस्प होता है कि उनके एजेंडे को ही विरोधी दल लागू करने में जुटे रहते हैं कि देशप्रेम के अलावा वाले मुद्दे भी उठाने की हिम्मत जुटा पाते हैं .
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