Thursday, April 11, 2019

अगर अवाम की हिफाज़त नहीं कर सके तो हुकूमत करना मुश्किल हो जाएगा


शेष नारायण सिंह

गुडगाँव जिले के एक गाँव में कुछ गुंडों ने  एक मुस्लिम परिवार के घर में  घुसकर लाठी डंडों से परिवार के लोगों को बेरहमी से मारा और उनको घायल कर दिया . उनका घर लूटा , बच्चों को मारा . इस गुंडागर्दी का शिकार एक चार साल का एक बच्चा भी हुआ, एक दुधमुंही बच्ची को भी उठाकर फेंक दिया गया .आस पड़ोस का कोई भी आदमी उनको बचाने नहीं आया . अभी तीस साल पहले तक अगर कहीं कोई गुंडा गाँव में किसी को मारता पीटता था तो  पूरा गाँव साथ खड़ा हो जाता था.  शहरों में अलग बात थी . लेकिन गाँव में हिन्दू-मुसलमान के बीच आज जैसी नफरत नहीं थी.  बाबरी मस्जिद के खिलाफ अभियान चलाने वाली राजनीति ने हिन्दू और मुसलमान के बीच इतनी गहरी खाईं बना दी है कि अब कोई नहीं आता . हरियाणा का गुडगाँव जिला दिल्ली से सटा हुआ है . जहां यह वारदात हुई है वहां बहुत सारी  कालोनियां  हैं , जिनमें दिल्ली के लोग रहते हैं और बहुत सारे ऐसे लोग भी रहते हैं   जो रोज़ दिल्ली काम करने के लिए जाते हैं . जिस मुहम्मद साजिद को गुंडों ने मारा  पीटा वह  किसी गेटेड सोसाइटी में नहीं , एक गाँव में रहता है . रोज़गार की तलाश में करीब पन्द्रह साल पहले उत्तर प्रदेश के बागपत जिले से वह यहाँ आया था .पुराने फर्नीचर की मरम्मत और गैस के चूल्हों की मरम्मत का काम करता था. अभी तीन साल पहले उसने यहाँ अपना  घर बना लिया था. सारा परिवार मेहनत करता था और अपनी छत के नीचे गुज़र बसर करता था. किसी मामूली विवाद पर पड़ोस के गाँव के दो लड़कों ने उनके भतीजे को झापड़ मार दिया और जब उसने विरोध किया तो दस मिनट बात कुछ गुंडे  हथियारों के साथ आये और घर में घुसकर साजिद को मारा पीटा , बच्चों को मारा , औरतों को मारा और घर में तोड़फोड़ किया . इस  सारे अपराध को करने के बाद वे लोग आराम से चले गए . घर के छत पर छुपे परिवार के लोगों ने अपने फोन के कैमरे से   अपराध  का वीडियो बना लिया. वारदात के बाद कहीं कोई कार्रवाई नहीं की गयी , पुलिस ने कोई  एक्शन नहीं लिया . लेकिन जब हिंसा का वह वीडियो वायरल हो गया , पूरे देश में चर्चा शुरू हो गयी ,राहुल गांधी, अखिलेश यादव और अरविन्द केजरीवाल के बयान आने लगे तो शायद हरियाणा सरकार को लगा  कि कुछ करना चाहिए . नतीजतन पुलिस ने  पड़ोस के गाँव के एक लड़के को पकड़ लिया और बयान दे दिया कि कार्रवाई हो रही है .  हरियाणा के एक बीजेपी प्रवक्ता का बयान आ  गया कि दो पक्षों की मारपीट को कम्युनल रंग दिया जा रहा है . उस प्रवक्ता महोदय को वीडियों में यह नहीं दिख रहा है कि छः सात गुंडे एक आदमी को बुरी तरह से लाठियों से पीट रहे हैं और उसके बचाव में उसके परिवार की जो एक महिला आयी है उसके साथ भी धक्कामुक्की हो रही है . बीजेपी के बड़े नेता जो आम तौर पर हर किसी घटना पर ट्वीट करते रहते हैं ,इस घटना पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं . शायद ऐसा इसलिए हो कि चुनाव के मौसम में अपने हिन्दू कार्यकर्ताओं को नाराज़ नहीं करना चाहते हों .
यह शर्मनाक है , यह हमारी आज़ादी के बुनियादी उसूलों पर हमला है और इसकी निंदा की जानी चाहिए . पुलिस को सरकार के सर्वोच्च स्तर से याद दिलाया जाना चाहिए कि  कानून व्यवस्था को लागू करना उनका प्राथमिक कर्तव्य है. उनको अपना काम करना चाहिए .लेकिन .आज हम देखते हैं कि दंगे भड़काने के लिए सत्ताधारी पार्टी के लोग तरह तरह की कोशिश करते पाये जा रहे  हैं . आम तौर पर माना जाता  है कि जब दंगे होते हैं तो सामाजिक और धार्मिक ध्रुवीकरण होता है और बीजेपी को चुनाव में लाभ होता है . यह ट्रेंड १९८९ के आम चुनाव के बाद से देखा जा रहा है . इस बात में दो राय नहीं है कि साम्प्रदायिक हिंसा का उद्देश्य चुनाव में लाभ लेना होता है .  राजनीति चमकाने के लिए दंगों का आविष्कार  तब शुरू हुआ जब १९२० के असहयोग आन्दोलन के दौरान महात्मा  गांधी ने पूरी दुनिया को दिखा दिया कि भारत में हिन्दू और मुसलमान एक हैं . अंग्रेजों के खिलाफ पूरा देश एकजुट खड़ा हो गया तब अँगरेज़ ने दंगों की योजना पर काम शुरू किया . उसके बाद से ही अंग्रेजों ने दंगों के बारे में एक विस्तृत रणनीति बनाई और संगठित तरीके से देश में दंगों का आयोजन होने लगा .प्रायोजित साम्प्रदायिक हिंसा तो १९२७ में शुरू हो गयी थी लेकिन स्वार्थी राजनेताओं ने 1940 के दशक में धर्म आधारित खूनी संघर्ष की बुनियाद रख दी । जब अंग्रेजों की समझ में आ गया कि अब इस देश में उनकी हुकूमत के अंतिम दिन आ गए हैं तो उन्होंने मुल्क को तोड़ देने की अपनी प्लान बी पर काम शुरू कर दिया। नतीजा यह हुआ कि अगस्त 1947 में जब आजादी मिली तो एक नहीं दो आजादियां मिलींभारत के दो टुकड़े हो चुके थेसाम्राज्यवादी ताकतों के मंसूबे पूरे हो चुके थे लेकिन सीमा के दोनों तरफ ऐसे लाखों परिवार थे जिनका सब कुछ लुट चुका था.  जो हिंसक अभियान शुरू हुआ उसको अब बाकायदा  संस्थागत रूप दिया  जा चुका है। भारत की आजादी के पहले हिंसा का जो दौर शुरू हुआ उसने हिन्दू और मुसलमान के बीच अविश्वास का ऐसा बीज बो दिया था जो आज बड़ा पेड़ बन चुका है और अब उसके जहर से समाज के कई स्तरों पर नासूर विकसित हो रहा है। भारत की राजनीतिकसामाजिक और सांस्कृतिक जिंदगी में अब दंगे स्थायी भाव बन चुके हैं।
अब भारत में दंगे नहीं होते. पहले के समय में जब  केंद्र में सेकुलर पार्टी की सरकारें होती थीं तो मुसलमान भी मारपीट का जवाब मारपीट से देता था जिसके कारण दंगे होते थे . अब मुसलमान दहशत में है , चुप रहता  है . इसलिए अब राजनीतिक संरक्षण प्राप्त  गुंडे छिटपुट मुसलमानों को  उनके घर में घुसकर मारते हैं और घटना का वीडियो बनाकर पूरे देश में वायरल करते हैं . जिसके बाद मुसलमानों में दहशत फ़ैलाने में सफलता पाते हैं . जब दंगे होते थे तो अधिकतर दंगों के आयोजकों का उद्देश्य राजनीतिक सत्ता हासिल करने के लिए सम्प्रदायों का ध्रुवीकरण होता था .  देखा यह गया है कि भारत में अधिकतर दंगे चुनावों के कुछ पहले सत्ता को ध्यान में रख कर करवाए जाते हैं। विख्यात भारतविद् प्रोफेसर पॉल ब्रास ने अपनी महत्वपूर्ण किताब ''द प्रोडक्शन ऑफ हिन्दू-मुस्लिम वायलेंस इन कंटेम्परेरी इण्डिया" में दंगों का बहुत ही विद्वत्तापूर्ण विवेचन किया है। उन्होंने साफ कहा है कि हर दंगे में जो मुकामी नेता सक्रिय होता हैदोनों ही समुदायों में उसकी इच्छा राजनीतिक शक्ति हासिल करने की होती है लेकिन उसको जो ताकत मिलती है वह स्थानीय स्तर पर ही होती है।  उसके ऊपर भी राजनेता होते हैं जो साफ नज़र नहीं आते लेकिन वे बड़ा खेल कर रहे होते हैं। अपनी किताब में पॉल ब्रास ने यह बात बार-बार साबित करने की कोशिश की है कि भारत में दंगे राजनीतिक कारणों से होते हैंहालांकि उसका असर आर्थिक भी होता है लेकिन हर दंगे में मूलरूप से राजनेताओं का हाथ होता है।  अब दंगों की जगह मुसलमानों में दहशत फैलाकर राजनीतिक  मकसद हासिल किया जाता  है .इसकी शुरुआत दादरी में अखलाक के घर में गोश्त पकडकर की गयी थी . तब तक मुसलमानों को मुगालता था कि  हुकूमत उनकी मदद करेगी .इसलिए थोडा हल्ला गुल्ला भी हुआ था लेकिन उसके बाद से पहलू खान समेत ऐसे तमाम वारदात हुयी हैं जिसमें सरकारें अपराधियों के साथ ही देखी गयी हैं . गुडगाँव की घटना उसी सिलसिले की सबसे ताज़ा कड़ी है .  लेकिन सरकार को खबरदार रहना पडेगा क्योंकि अगर अवाम की  हिफाज़त की  गारंटी नहीं दे सके तो हुकूमत का अधिकार ही नहीं रहेगा .

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