Sunday, April 8, 2018

नर्मदा परिक्रमा के बाद की राजनीति--दिग्विजय सिंह हिन्दू भी हैं और धर्म निरपेक्ष भी



शेष नारायण सिंह
देश की राजनीति को  हिंदू केन्द्रित  करने की आर एस एस की कोशिश बाबरी मस्स्जिद-रामजन्मभूमि विवाद के साथ शुरू हो गयी थी. धीरे धीरे ही सही उनको सफलता मिल रही थी. दो सीट वाली बीजेपी १९८९ में वी पी सिंह की सरकार बनवाने में सफल हो गयी और आज २२ राज्यों में बीजेपी या उनके साथियों की सरकार है . केंद्र में भी पूर्ण बहुमत वाली  सरकार बन चुकी है .  बीजेपी की इस उन्नति में उनकी हिंदूवादी राजनीति का भारी योगदान है . जब बाबरी मस्जिद- रामजन्मभूमि विवाद शुरू हुआ तो हिन्दू धर्म के सबसे बड़े प्रतीक, भगवान राम को अपना बनाकर कांग्रेस को राम विरोधी पार्टी के रूप में पेश करने में बीजेपी और विश्व हिन्दू परिषद् ने   बड़ी सफलता पाई . उस वक़्त के कांग्रेस के नेताओं में ने बीजेपी/आर एस एस को  उनकी इस मंशा में  कामयाब होने की पूरी छूट दे रखी थी. यह अलग बात है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने  बाबरी मस्जिद का ताला भी खुलवाया और वहां शिलान्यास भी करवाया  लेकिन इसका श्रेय वी एच पी और आर एस एस ने  झटक लिया . दावा किया गया कि आर एस एस के दबाव में राजीव  गांधी ने काम किया है. इस बीच लगातार कांग्रेस को हिन्दू विरोधी पार्टी के रूप में प्रस्तुत किया जाता रहा. जब से चौबीस घन्टों के टीवी  समाचार शुरू हुआ  तब  से एक नया खेल शुरू हो गया है . हर डिबेट में  दो तीन दाढी वाले मौलाना बैठाकर उनके हवाले से मुसलमानों को ही हिन्दू विरोधी  बताने की साज़िश चल रही है . अब तक कांग्रेस की लीडरशिप ने  इसको रोकने की कोशिश नहीं की . यह सब चलता रहा और कांग्रेस हिन्दू विरोधी पार्टी के रूप में रंगी जाती रही . एक ऐसा मुकाम भी आया जब बीजेपी,आर एस एस और कुछ वफादार पत्रकारों की कोशिश से ऐसा माहौल बना दिया गया कि जो बीजेपी के विरोध में होगा वह देशद्रोही  भी होगा और हिन्दू विरोधी भी . नतीजा सामने  है . हिन्दू पार्टी के रूप में बीजेपी दबादब चुनाव जीतती जा रही है और कांग्रेस के नेताओं ने यह बताने की कोशिश भी नहीं की कि  जो बीजेपी विरोधी है वह हिन्दू  भी हो सकता है और  सेकुलर भी होता है . कांग्रेस में जिस एकाध नेता ने यह बात स्थापित करने की  कोशिश की कि धर्म निरापेक्ष होने के साथ साथ  साम्प्रदायिकता विरोधी और सनातनी  हिन्दू भी हुआ जा सकता है ,आर एस एस का विरोद्ध हिन्दू विरोध   नहीं है ,उसको कांगेस अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के आसपास जमे लोगों ने हूट कर लिया और कहा कि यह उस नेता के निजी विचार हैं . बात बदलना तब शुरू  हुई जब  कांग्रेस के बड़े नेता, ए के अंटनी ने एक रिपोर्ट दी जिसमें कहा   गया  कि कांग्रेस के बारे में यह मशहूर हो  चुका  है कि वह अल्पसंख्यकों की पार्टी है और हिन्दू विरोधी है .लेकिन इस रिपोर्ट के आने तक बहुत  नुक्सान हो चुका था. कांगेस के अन्दर मौजूद धर्मनिरपेक्ष नेताओं को २४ अकबर रोड में विराजने वाली चौकड़ी हाशिये पर पंहुचा चुकी थी और यहाँ मौजूद नेता लोग जिन राज्यों  में कांग्रेस की सरकारें बच गयी थीं ,वहां के मुख्यमंत्रियों का आर्थिक शोषण कर रहे थे. धर्म निरपेक्षता की बात करने वालों को उनके निजी विचार वाले खांचे में फिट किया जा चुका था. कांग्रेस के महासचिव् दिग्विजय सिंह को हाशिये पर लाने की कोशिश को इस कसौटी पर कसा जा सकता है . ऐसे  और भी लोग थे .
जब उत्तर प्रदेश के २०१७ के विधानसभा चुनावों में  कांग्रेस पार्टी का सफाया हो गया तो  सोनिया गांधी ने दखल दिया  और कहा कि उनकी पार्टी को मुसलमानों की पार्टी के रूप में चित्रित कर दिया  गया है . उसके बाद की कांग्रेसी रणनीति में बदलाव नज़र आने लगा. गुजरात चुनाव में राहुल गांधी मंदिरों में जाने लगे. बीजेपी/आर एस एस वालों ने खूब हल्ला मचाया कि राहुल  गांधी कभी मंदिरों में नहीं जाते आज वोट के लिए जा रहे हैं . टीवी डिबेट  में मौजूद इन नेताओं  की चिंताओं को करीब से देखने का मौक़ा मिला तो दर्द समझ में आया लेकिन कांग्रेस अपने आपको हिन्दू विरोधी पार्टी के  सांचे ने निकालने की कोशिश करती रही.  कांग्रेस  के नेतृत्व ने एक बार फिर साबित कर दिया हिन्दू होने की साथ साथ सेकुलर भी हुआ जा सकता है . गुजरात चुनाव में बीजेपी के प्रवक्ता और उनके पत्रकार  कांग्रेस को हिन्दू  विरोधी पार्टी नहीं साबित कर सके. नतीजा यह हुआ कि अन्य मुद्दे चुनाव में   बहस में आये और गुजरात  चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा . कर्नाटक के चुनाव में भी राहुल गांधी मंदिरों के फेरे लगा रहे हैं और बीजेपी वाले उनको हिन्दू विरोधी साबित करने में अब तक नाकाम रहे  हैं. कांग्रेस की  किस्मत में अच्छी बात यह है कि  बीजेपी प्रवक्ताओं की तरफ से राहुल गांधी को मुस्लिम विरोधी साबित करने की  कोशिश भी अब तक सफल नहीं हुई . मुसलमानों ने स्वीकार कर लिया है कि उनके धार्मिक मसाइल से नेता दूर ही रहें तो अच्छा है . उनको चैन से रहने दें और धर्म निरपेक्ष राजनीति को  महत्व देते रहें ,यही काफी है . क्योंकि यह सबको मालूम है कि धर्मनिरपेक्ष राजनीति से  देश और समाज की तरक्की होती है और साम्प्रदायिक राजनीति से देश को नुक्सान होता है . महात्मा गांधी और नेहरू की कांग्रेस की यही सीख  है और जब जब कांग्रेस इस सीख से विचलित हुई है ,पार्टी चुनाव हार गयी है.   देश के सत्तर साल के इतिहास में जो भी नेता मुसलमानों का   शुभचिंतक हुआ  है , वह  हिन्दू भी था और  साम्प्रदायिकता विरोधी भी रहा है . इस सन्दर्भ में जवाहार लाल नेहरू,हेमवती नंदन बहुगुणा और मुलायम सिंह का नाम लिया जा सकता है .
देश के मौजूदा नेताओं में इस श्रेणी में  दिग्विजय सिंह का नाम लिया जा सकता  है .उनको  आर एस एस ने हिन्दू विरोधी सिद्ध करने के लिए  कोई कसर नहीं छोडी है लेकिन उन्होंने सारा खेल पलट दिया है . ३३०० किलोमीटर की नर्मदा  परिक्रमा करके उन्होंने सिद्ध कर दिया  है वे आर एस  एस के हर नेता से ज्यादा हिन्दू हैं और धर्मनिरपेक्ष तो हैं ही.  अपनी नर्मदा परिक्रमा के दौरान दिग्विजय सिंह ने किसी भी राजनीतिक विषय पर बात करने से परहेज किया  है लेकिन धर्म के दर्शन पर बेझिझक बात कर रहे थे. उनका कहना है कि हिंदू धर्म भारत का प्राचीन धर्म है जबकि हिंदुत्व एक राजनीतिक विचारधारा है जिसका प्रतिपादन 1924 में वीडी सावरकर ने अपनी किताब 'हिंदुत्व में किया था। सावरकर ने  हिंदुत्व को  राजनीतिक अभियान का मंच बनाने की कोशिश की थी।सावरकर ने हिंदुत्व की परिभाषा भी दी। उनके अनुसार -''हिंदू वह है जो सिंधु नदी से समुद्र तक के भारतवर्ष को अपनी पितृभूमि और पुण्यभूमि माने। इस विचारधारा को ही हिंदुत्व नाम दिया गया है। ज़ाहिर है हिंदुत्व को हिंदू धर्म से कोई लेना देना नहीं है। लेकिन हिंदू धर्म और हिंदुत्व में शाब्दिक समानता के चलते पर्यायवाची होने का बोध होता है। इसी भ्रम के चलते कई बार सांप्रदायिकता के खतरे भी पैदा हो जाते हैं। धर्म को सम्प्रदाय मानने की गलती से ही संघर्ष और दंगे फसाद के हालात पैदा होते हैं और अगर हमारी आजादी की लड़ाई के असली मकसद को हासिल करना है तो उदारवादी राजनीति के नेताओं को चाहिए वे आम आदमी को धर्म के असली अर्थ के बारे में जानकारी देने का अभियान चलाएं और लोगों को जागरूक करें। ऐसा करने से आजादी की लड़ाई का एक अहम लक्ष्य हासिल किया जा सकेगा .
दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा को जो लोग करीब से देख रहे हैं उनका  दावा  है कि वे राजनीति और धर्म को घालमेल करने की कोशिशों को सफल नहीं होने देंगे . यात्रा आज खतम हो रही है लेकिन मध्यप्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री दहशत में हैं क्योंकि दिग्विजय सिंह ने कह दिया है कि अब वे राजनीतिक यात्रा शुरू करेंगे.अपनी नर्मदा परिक्रमा यात्रा शुरू करने के पहले सितम्बर २०१७ में दिग्विजय सिंह ने इस रिपोर्टर से एक बातचीत में बताया था कि उनकी यात्रा पूरी तरह से आध्यात्मिक है ,और उन्होंने अपनी पार्टी  को लिखकर दे दिया है कि अप्रैल २०१८ तक उनको कांग्रेस के किसी भी  कार्य की ज़िम्मेदारी से  मुक्त रखा जाए. उन्होंने बताया था कि वर्षों पहले  उनके  आध्यात्मिक गुरु ने उनसे कहा था कि समय निकालकर माँ नर्मदा की परिक्रमा करोइसलिए उन्होने अपनी पत्नी के साथ इस यात्रा पर जाने का निर्णय लिया है.
दिग्विजय सिंह अब अपने आपको एक बड़े हिन्दू के रूप में स्थापित कर   चुके हैं .अगर अपनी राजनीतिक यात्रा के दौरान वे पहले जैसे ही धर्मनिरपेक्ष बने रहते हैं तो उनको हिन्दू विरोधी साबित कार पाना बीजेपी के लिए बहुत मुश्किल होगा. और यह देश की धर्मनिरपेक्ष राजनीति को ताकत देगा 

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