शेष नारायण सिंह
मेरी ज़िंदगी में बहुत सारे गलत फैसले हुए हैं , इसकी वजह से मुझे बार बार पछताना पड़ा है लेकिन बहुत सारे ऐसे फैसले हुए हैं जिन्होंने मेरी ज़िंदगी को एक सार्थकता दी है . देशबंधु के स्टाफ का सदस्य बनना मेरे जीवन का एक ऐसा ही फैसला है . यहाँ आकर मुझे लगता है कि मैंने इस अखबार को १९७८ में क्यों नहीं ज्वाइन कर लिया था जब मेरे ऊपर हर तरह के दबाव थे. देर से ही सही लेकिन फैसला सही लिया क्योंकि बहुत देर से मैं देशबंधु का सदस्य बना . आज इतने वर्षों बाद जब पीछे मुड़कर देखता हूँ तो लगता है कि परिवार में आ गया हूँ . छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में जहां कहीं भी लोगों को पता लगता है कि मैं देशबंधु में काम करता हूँ, मुझे फ़ौरन सम्मान मिलता है . इस अख़बार में काम करने की शर्तें थोड़ी मुश्किल हैं .मुझे इस अखबार से छुट्टी नहीं मिलती , चौबीसों घंटे की नौकरी है . मैं कहीं भी रहूँ ड्यूटी पर ही माना जाता हूँ . मैं यहाँ से इस्तीफा नहीं दे सकता . मेरे सम्पादक ने मुझे चेतावनी दे रखी है कि मेरे पास अखबार छोड़ने का विकल्प नहीं हैं .
पहली बार ऐसा हो रहा है कि किसी संगठन के सदस्य के रूप में लगता है कि जीवन यहीं बिताया जाए. ऐसा शायद इसलिए हो रहा है कि जब भी कुछ अच्छा लिखता हूँ तो संस्था के सबसे बड़े सदस्य ललित सुरजन फोन करके बताते हैं कि शेषजी बहुत अच्छा लिखा है . यह मुझे अच्छा लगता है . लेकिन उससे भी अच्छा तब लगता है जब मैं कोई बेकार आलेख लिखता हूँ तो मुझे किसी भी सम्पादक से यह सन्देश नहीं मिलता कि क्या बकवास लिखी है. ललित सुरजन की तारीफ़ का मतलब क्या होता है यह वही लोग जानते हैं जो ललित जी से वाकिफ हैं . ललित जी की बेटियां विदुषी और विनम्र हैं ,मेरे ग्रुप सम्पादक राजीव रंजन श्रीवास्तव ज़रूरत से ज्यादा भले आदमी हैं. मैं कई बार सोचता हूँ कि बिना सच से समझौता किये , बिना किसी राजनीतिक पार्टी की जयजयकार किये , बिना किसी सेठ साहूकार से मदद लिए यह अखबार कैसे चलता है लेकिन समझ में आ जाता है कि देशबंधु के संस्थापक स्वर्गीय मायाराम सुरजन ने पत्रकारिता के बुलंद मानकों का जो गुम्बद बना दिया है ,उसी की रोशनी में यह आज भी चमक रहा है , आगे भी चमकता रहेगा . मायाराम सुरजन ने कभी भी पत्रकारिता के बुनियादी मूल्यों से समझौता नहीं किया . १९९३ -२००३ के बीच मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह ने कहीं लिखा है कि वे एक बार स्व मायाराम सुरजन को राज्य सभा का सदस्य बनाने का प्रस्ताव लेकर गए थे लेकिन उन्होंने साफ़ मना कर दिया और कहा कि मुझे मेरा काम करने दो , राजनीति में जाना पत्रकार को शोभा नहीं देता. जब आज के बड़े पत्रकारों को दिल्ली के राजाधिराजों के दरबारों में सरकारी सुविधाओं के लिए जुगाड़ करते देखता हूँ तो लगता है कि मेरे अखबार के सम्पादक वास्तव में पत्रकारिता के मानदंड थे. आज देशबंधु की स्थापना के साठ साल पूरे हुए और इस पूरे दौर में यह कभी झुका नहीं .
बहुत बहुत बधाई देशबंधु परिवार के हर सदस्य को जो यहाँ कर्मचारी नहीं ,पार्टनर होता है
बहुत बहुत बधाई देशबंधु परिवार के हर सदस्य को जो यहाँ कर्मचारी नहीं ,पार्टनर होता है
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