शेष नारायण सिंह
अस्सी के दशक में इन्डियन एक्सप्रेस के सम्पादक रहे अर्थशास्त्र के विद्वान् ,अरुण शौरी के प्रति मेरे मन में अथाह सम्मान पैदा हो गया था जब उन्होंने महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री , अब्दुल रहमान अंतुले की उन बेईमानियों का भंडाफोड़ किया था जो अंतुले जी ने इंदिरा गांधी के नाम पर संस्थाएं बना कर की थीं . इन्डियन एक्सप्रेस में बैनर हेडलाइन के रूप में छपी , अरुण शोरी की बाईलाइन खबर , Indira Gandhi as Commerce , मेरे दिमाग में एक ऐसी याद के रूप में संजोई हुयी है जिसको मैं पत्रकारिता के गौरव के रूप में याद करता हूँ . मूल रूप से अर्थशास्त्र के विद्वान् के रूप में पहचान रखने वाले अरुण शौरी ने इमरजेंसी लगने पर इन्डियन एक्सप्रेस में इमरजेंसी के खिलाफ लिखना शुरू किया था . उनकी हिम्मत से सेठ रामनाथ गोयनका जैसा प्रेस की आज़ादी का पक्षधर इतना प्रभावित हुआ कि बाद में उनको इन्डियन एक्सप्रेस का संपादक नियुक्त कर दिया . उनके कार्यकाल में अखबार ने ऐसा काम किया जो बहुत लोगों को अब तक याद है . शौरी को रेमन मगसेसे पुरस्कार भी मिला और भी दुनिया भर के बहुत सारे पुरस्कार मिले , बहुत नाम हुआ .
लेकिन बाद के वर्षों में वे सत्ता की राजनीति के चक्कर में पड़ गए . १९९८ में उनको बीजेपी ने राज्यसभा का सदस्य बनवा दिया . अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वे मंत्री भी रहे . उनके प्रशंसकों को उनके इसी दौर में किये गए काम से बहुत दुःख होता है . उनके कार्यकाल में ही भारत सरकार के सरकारी होटलों की बिक्री हुई . आरोप यह लगते रहे कि उन्होंने सरकारी कंपनी , विदेश संचार निगम लिमिटेड और कुछ सरकारी होटलों की बिक्री में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है . मुंबई में एयर इण्डिया की मिलकियत वाला सरकारी होटल सेंटौर बेचा गया और उस बिक्री में तरह तरह की हेराफेरी के आरोप लगते रहे हैं . आरोप यह भी है की विदेश संचार निगम को बारह सौ करोड़ रूपये में बेचा गया जबकि उसकी दिल्ली की ज़मीन का एक हिस्सा ही उस से बहुत ज़्यादा कीमत का था . जानकार जानते हैं की ग्रेटर कैलाश १ और ग्रेटर कैलाश २ के बीच की बहुत सारी ज़मीन विदेश संचार निगम की है और उसकी कीमत उन दिनों भी हज़ारों करोड़ रही होगी.अब तो खैर वह बहुत कीमती है .
अब मोजूदा सरकार के कार्यकाल में जब यह जानकारी आयी है तो अरुण शौरी के प्रशंसकों में निराशा का भाव है . एक नामी अखबार में आज खबर छपी है कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में विनिवेश सचिव रहे आई ए एस अधिकारी प्रदीप बैजल ने उदयपुर के सरकारी होटल लक्ष्मी विलास पैलेस के विनिवेश में अनियमितता की थी . सी बी आई उसकी जांच कर रही है . एक सी बी आई अफसर ने बताया है कि आरोप था कि २००१-०२ में आई टी डी सी ( भारत सरकार के उपक्रम ) के उदयपुर स्थित लक्ष्मी विलास पैलेस होटल की बिक्री में गड़बड़ी पाई गयी है . जब केंद्र सरकार के विनिवेश मंत्रालय के तत्वावधान में उसका मूल्यांकन किया गया तो कीमत बहुत ज़्यादा घटा दी गयी . वास्तव में जिस होटल की कीमत १५१ करोड़ रूपये होनी चाहिए थी उसको ७ करोड़ ५२ लाख रूपये में बेच दिया गया . इसी तरह के आरोप मुंबई के सेंटौर होटल की बिक्री में भी लगाए गए थे. आरोप यह है कि दिल्ली में बाराखम्बा रोड पर स्थित एक बड़े होटल के मालिक और कभी राजीव गांधी के ख़ास रहे स्व ललित सूरी के परिवार की ज्योत्सना सूरी भी इस गड़बड़ी में शामिल थीं . मुंबई के होटलों की बिक्री की बेईमानी में ताज ग्रुप के एक पूर्व अधिकारी अजित केरकर और सहारा ग्रुप का नाम लिया जाता रहा है .
सरकारी संपत्ति में की गयी इस कथित चोरी का , पिछले १२ वर्षों में ज़िक्र बार बार होता रहा है लेकिन केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार ने इसको कभी पब्लिक डोमेन में नहीं आने दिया . शायद कांग्रेस के टाप नेताओं से संबंधों के कारण अपराधियों ने सब संभाल लिया होगा . अब भ्रष्टाचार ख़त्म करने के जनादेश के साथ सत्ता में आयी नयी सरकार ने पुरानी चोरियों को दुरुस्त करने का फैसला किया है . यह अच्छी बात है लेकिन उसको चाहिए कि १९८० से लेकर अब तक के सारे मामले उठाये जाएँ जिससे सरकारी अफसरों में यह डर पैदा हो कि रिटायर होने के बाद भी चोरी पकड़ी गयी तो मुश्किल हो सकती है . जहां तक अरुण शौरी के प्रशंसकों का सवाल है उनको आज की खबर छपने से बहुत ही गुस्सा है क्योंकि साफ़ लग रहा है कि माननीय शौरी जी जिस ईमानदारी का प्रचार करते हैं उसको निजी जीवन में प्रयोग नहीं करते .
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