शेष नारायण सिंह
समाजवादी पार्टी में राजनीतिक घटनाक्रम बहुत तेज़ी से घूम रहा है . एक बार जिन अमर सिंह को मुलायम सिंह यादव ने पार्टी ने निकाल दिया था वही अमर सिंह लोकसभा चुनाव में पिटाई के बाद बदले बदले नज़र आ रहे हैं . चुनाव में हुयी हार के बाद संपन्न हुए मुलायम सिंह यादव की पार्टी के सबसे अहम् कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में अमर सिंह विराजमान थे . उत्तर प्रदेश सरकार ने लखनऊ में समाजवादी पार्टी के पूर्व उपाध्यक्ष जनेश्वर मिश्र के नाम पर जिस पार्क की स्थापना की है उसके लोकार्पण के अवसर पर मुलायम सिंह यादव खुद मौजूद थे , अखिलेश यादव थे ,शिवपाल यादव थे और अमर सिंह को सम्मानपूर्वक मुख्य अतिथि बनाया गया था . उत्तर प्रदेश की राजनीति के हर जानकार को मालूम है कि मुलायम सिंह यादव की राजनीति में अमर सिंह की धमाकेदार वापसी हुयी है . लोकसभा चुनाव के बाद राज्य की राजनीति में जो बीजेपी का जलवा नज़र आ रहा था लगता है कि मुलायम सिंह यादव ने उसपर लगाम लगाने की मज़बूत योजना बना ली है . समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने पहलवानी का ऐसा दांव मारा है कि अभी लोगों को पता ही नहीं चल रहा है कि हमला किस पर है. मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह के संबंधों की राजनीति के जानकार बड़े बड़े सूरमा एक दूसरे से पूछते पाए जा रहे हैं कि भाई हुआ क्या. दुनिया जानती है कि मुलायम सिंह यादव अमर सिंह को पार्टी से निकालना नहीं चाहते थे लेकिन माहौल ऐसा बना कि उनके लिए अमर सिंह को पार्टी में रख पाना मुश्किल हो गया . इस रिपोर्टर को अमर सिंह के निष्कासन के दौरान दिल्ली में हो रहे घटनाक्रम को बहुत करीब से देखने का अवसर मिला था . समाजवादी पार्टी के महासचिव प्रो राम गोपाल यादव ने तय कर रखा था कि अमर सिंह को पार्टी से निकालना है लेकिन उनके बड़े भाई और पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने भी तय कर रखा था कि किसी कीमत पर अमर सिंह को पार्टी से नहीं निकालेगें .जिन लोगों के ज़रिये राम गोपाल यादव दबाव डलवा रहे थे उनसे मुलायम सिंह यादव ने साफ़ कह दिया था कि अपना वक़्त देख कर चलना चाहिए और राम गोपाल को समझा दो कि जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहिए . लेकिन जब जनेश्वर मिश्र से कहलवा दिया गया तो मुलायम सिंह यादव के सामने कोई रास्ता नहीं बचा और अमर सिंह समाजवादी पार्टी से निकाल दिए गए . सावधानी इतनी बरती गयी थी कि मीडिया को भी भनक नहीं लगी थी . केवल एक पत्रकार को विश्वास के लायक माना गया और देश एक सबसे बड़े हिंदी अखबार के समाजवादी पार्टी बीट के संवाददाता को उस दिन अमर सिंह के निष्कासन की जानकारी दी गयी. डर यह था कि मीडिया में रसूख के चलते खबर के प्रकाशित होने के पहले ही अमर सिंह को पता चल जाएगा और वे मुलायम सिंह से बात करके बाज़ी पलट सकते थे .
अमर सिंह समाजवादी पार्टी से कभी न निकाले जाते क्योंकि वे मुलायम सिंह यादव के बहुत ही करीबी हैं लेकिन उनसे बहुत सारी रणनीतिक गलतियाँ हो गयीं . हुआ यह था कि अमर सिंह ने भी अपनी हैसियत को बहुत बढ़ा कर आंक रखा था . यह उनकी गलती थी . दिल्ली की राजनीति में कोई भी बहुत ताक़तवर नहीं होता . इसी दिल्ली में मुग़ल सम्राट शाहजहाँ को उसके बेटे औरंगजेब ने जेल की हवा खिलाई थी . बाद के युग में इंदिरा गाँधी के दरबार के बहुत करीबी लोग ऐसे मुहल्लों में खो गए थे जहां कोई भी ताक़तवर आदमी जाना नहीं चाहेगा. दिनेश सिंह एक बार जवाहरलाल नेहरू के करीबी हुआ करते थे, इंदिरा जी के ख़ास सलाहकार थे और बाद में राज नारायण समेत बहुत सारे लोगों के दरवाजों पर दस्तक देते देखे गए थे. वामपंथी रुझान के नेता चन्द्रजीत यादव की हनक का अंदाज़ वह इंसान लगा ही नहीं सकता जिसने सत्तर के दशक के शुरुआती वर्षों में उनका जलवा नहीं देखा . चंद्रजीत यादव इंदिरा गांधी के दरबार में जो चाहते थे वही होता था , बाद में राजनीतिक शून्य में कहीं बिला गयी थे . कभी बाबू जगजीवन राम की मर्जी को इंदिरा जी अंतिम सत्य के रूप में स्वीकार करती थीं , बाद में वे ही उनके सबसे बड़े दुश्मन हुए . इसलिए दिल्ली की राजनीति एक ऐसा अखाड़ा है जहां सामने से तो हमला होता ही है , मुकम्मल हार अपने साथियों के ज़बर्दस्त हमलों से होती है . अमर सिंह के साथ भी वही हुआ . उनको बाद में पता चला कि उनका सबसे ख़ास राजदार बाद में राम गोपाल यादव के सबसे करीबी सहायक बना गया .बहरहाल अमर सिंह दिल्ली की राजनीति की इस बारीकी को समझने में गाफिल रहे और उनकी ज़िंदगी तल्खियों से भर गयी है .करीब चार साल तक अपने सबसे करीबी दोस्त से दूर रहने के बाद फिर उसकी सियासत में वापस हो रहे हैं . अमर सिंह की वापसी का अंदाज़ करीब छः महीने पहले पक्के तौर पर लग गया था जब भारत पाक दोस्ती के लिए दोनों ही देशों के रिटायर्ड जनरलों का एक सम्मलेन अमर सिंह के घर पर हुआ था और उसमें शिवपाल यादव घंटों मौजूद रहे . लोगों से मिलते जुलते रहे .जब अमर सिंह से पूछा गया कि शिवपाल यहाँ क्या कर रहे हैं तो उन्होने शिवपाल यादव का हाथ पकड़कर कहा था कि शिवपाल मेरा भाई है .
अमर सिंह की वापसी का विरोध आज़म खां की तरफ से तो होना ही है . वे अपनी ही सरकार के कार्यक्रमों में नहीं जा रहे हैं . जनेश्वर मिश्र की याद में बनाए गए पार्क के समारोह में तो नहीं ही गए ,अमर सिंह को बुलाये जाने के फैसले के विरोध में वे अपने विभाग के एक कार्यक्रम में भी नहीं गए जहां वे खुद मेज़बान थे . सरकारी उर्दू के एक कार्यक्रम में भी आज़म खां नहीं गए और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने करीब ढाई घंटे इंतज़ार के बाद कार्यक्रम को चलाया जिसके बाद माहौल में एक बार फिर तल्खी फैल गई . समाजवादी पार्टी में अमर सिंह के सबसे बड़े विरोधी प्रोफ़ेसर राम गोपाल यादव ने दिल्ली में आयोजित हुए जनेश्वर मिश्र के जन्मदिन के वाले कार्यक्रम में अमर सिंह का नाम लिए बिना एक तीखी टिप्पणी की . लेकिन सबको मालूम है कि जब मुलायम सिंह यादव कुछ तय कर लेते हैं तो उसमें किसी की सलाह का कोई मतलब नहीं होता . पिछली बार भी अगर जनेश्वर मिश्र ने ज़ोरदार तरीके से न कहा होता तो अमर सिंह पार्टी से न निकाले जाते . लोकसभा चुनाव २०१४ के नतीजों के बाद मुलायम सिंह यादव ने किसी करीबी से कहा था कि उनके दर्द को केवल अमर सिंह समझते थे और अब तो वे पार्टी में अकेले पड़ गए हैं . जो भी हो अब समाजवादी पार्टी की राजनीति में अमर सिंह एक सच्चाई हैं और अखिलेश यादव की राजनीति के जानकारों की मानें तो पार्टी में अब आज़म खां की ताकत निश्चित रूप से कम होने वाली है .
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के समर्थकों की तरफ से अमर सिंह के पक्ष में माहौल बनाने का काम लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही शुरू हो गया था . एक सवाल पूछा जा रहा है कि जब अमर सिंह बहुत बेकार इंसान थे तो उनके हटने के बाद क्यों पार्टी की हालत बद से बदतर होती गयी ? क्यों नहीं बड़े नेताओं ने राजनीति को सम्भाला .जब अमर सिंह थे तो पार्टी की सीटें उत्तराखंड में भी थीं, मध्य प्रदेश में भी थीं ,पार्टी की मौजूदगी महाराष्ट्र में भी थी,कर्णाटक में भी थी और मुलायम सिंह यादव की राजनीति राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा का विषय रहती थी लेकिन उनके जाने के बाद पार्टी क्यों केवल मुलायम सिंह यादव के आसपास सिमट कर रह गयी है . यह सवाल बहुत ही कठिन है और इसका जवाब उन लोगों के पास नहीं है जो अमर सिंह की वापसी का विरोध कर रहे हैं . अमर सिंह को जब १९९४ में मुलायम सिंह यादव ने महत्त्व देना शुरू किया था तो माना जाता था कि एक गैर राजनीतिक इंसान को साथ लिया है लेकिन अब ऐसा नहीं है. दिल्ली की राजनीति के जानकार जानते हैं कि अमर सिंह राष्ट्रीय राजनीति में खासी पैठ रखने वाले नेता हैं . मुलायम सिंह के लिए जो सबसे बड़ी बात हो सकती है वह यह कि इस बार अमर सिंह के कारण उनको अजीत सिंह का साथ मिल सकता है . चौधरी चरण सिंह के मानसपुत्र के रूप में किसी वक़्त पहचान बना चुके मुलायम सिंह को एक ज़बरदस्त झटका लगा था जब अजीत सिंह चौधरी साहेब की मृत्यु के बाद अमरीका से वापस आकर उनके वारिस बन गए थे .पिछले पचीस वर्षों से मुलायम और अजीत एक दूसरे की जड़ों में मट्ठा डाल रहे हैं . इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि अमर सिंह की इस बार की वापसी के बाद अजीत और मुलायम सिंह एक ही जगह नज़र आयेगें . दिल्ली में जुगाड़ कर सकने की अमर सिंह की ताक़त का अंदाज़ जिसको लग चुका है वे तो यह भी कह रहे हैं कि इस एकता में कांग्रेस को खासी भूमिका मिलेगी और अगर बिहार में लालू-नीतीश समागम को सन्दर्भ के रूप में लिया जाए तो उत्तर प्रदेश में भी मायावती-मुलायम संवाद कायम हो सकता है . अमर सिंह के अलावा इस संवाद को कोई भी नहीं कायम करवा सकता. क्योंकि बड़े बड़े दुश्मनों को भी बुरा वक़्त एकता के सूत्र में पिरो देता है . और अगर अमर सिंह की जुगाड़ शक्ति इस तरह जलवा दिखाने में कामयाब रही तो उत्तर प्रदेश में बीजेपी वालों को ध्रुवीकरण के नए तरीके आजमाने पड़ सकते हैं क्योंकि जब मायावती, मुलायम सिंह यादव , अजीत सिंह और कांग्रेस की राजनीतिक एकता के संकेत मिलने लगेगें तो राज्य में राजनीतिक समीकरण निश्चित रूप से एक नया आयाम ले चुके होगें
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