शेष नारायण सिंह
कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने आज उद्योगपतियों के संगठन सी आई आई के सम्मलेन में आज भाषण दिया . अपने लगभग एक दशक के राजनीतिक जीवन में उनका यह भाषण अब तक के उनके भाषणों में सबसे महत्वपूर्ण माना जायेगा. हालांकि केन्द्र में सत्ता में आने की कोशिश कर रही पार्टी के प्रवक्ताओं की फौज ने उनके भाषण को संकीर्ण करने की कोशिश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है लेकिन इस बात में कोई दो राय नहीं है कि आज उन्होंने अपनी पार्टी के प्रातिनिधि के रूप में कम, एक विद्वान राजनेता के रूप में ज़्यादा बात की . बीजेपी लगातार कोशिश कर रही है कि अपने प्रधानमंत्री के दावेदार नरेंद्र मोदी के मुकाबिल उन्हें खड़े करके उनकी धुनाई की जाए लेकिन राहुल गांधी ऐसा कोई मौक़ा नहीं दे रहे हैं , आज भी उन्होने ऐसा कोई मौक़ा नहीं दिया . दर असल आज उन्होने जो बातें कहीं हैं वे देश के हर राजनेता की बात हो सकती है और होनी भी चाहिए लेकिन अपने देश में राजनीतिक विमर्श का माहौल इतना नीचे गिर चुका है .राजनीतिक पार्टियों का स्वरूप सत्ता हथियाने की मशीन के रूप में विकसित हो चुका है कि राजनीतिक पार्टियां उसके बाहर जाने को तैयार ही नहीं होतीं. राहुल गांधी के आज के भाषण की जो आलोचना राजनीतिक पार्टियों की ओर से शुरू हो गयी है वह उसी का उदाहरण है . लेकिन राहुल गांधी की बातों को अगर देश में राजनीतिक विमर्श के स्तर को ऊपर उठाने के लिए किया जाए तो ज्यादा उचित रहेगा.
राहुल गांधी ने समावेशी विकास के नए व्याकरण को बहस का मुद्दा बनाया और कहा कि अगर एक आदमी को सारी राजनीतिक ताक़त दे दी जाए और उस से सभी समस्याओं का हल निकालने को कह दिया जाए तो वह नहीं कर पाएगा लेकिन अगर देश की पूरी आबादी को उसके हक दे दिए जाएँ और सब को विकास के काम में भागीदार होने का अवसर मिले तो देश की किस्मत बदल सकती है क्योंकि हर आदमी अपने विकास के साथ साथ देश का विकास भी अपने एजेंडा में रखेगा
राहुल गांधी ने कहा कि हमारी राजनीतिक पार्टियों का डिजाइन ऐसा है कि उसमें देश के हर व्यक्ति के शामिल होने के अवसर ही नहीं हैं . उन्होंने कहा कि राजनीतिक पार्टियां एम पी और एम एल ए को जनप्रतिनिधि मानकर अपनी जिम्मेदारी को पूरा मान लेती हैं लेकिन सही बात यह है कि हर गाँव में एक प्रधान होता है , उसका एक तंत्र होता है , वह मुकामी समस्याओं से अच्छी तरह से वाकिफ होता है और वह मुकामी स्तर पर समस्याओं का समाधान तलाश सकता है लेकिन किसी भी राजनीतिक पार्टी में उसको महत्व देने का प्रावधान नहीं है . संविधान के ७३ वें और ७४वे संशोधन के ज़रिये पंचायती राज संस्थाओं को राष्ट्र के विकास में प्रमुख भूमिका देने की पहल की गयी थी , महिलाओं के लिए पंचायतों में आरक्षण करके समावेशी विकास के एक नए मानदंड को स्थापित करने की कोशिश की गयी थी लेकिन ग्रामीण भारत में स्थानीय नेतृत्व को मान्यता देने का प्रावधान कुछ कम्युनिस्ट पार्टियों और तमिल पार्टियों के अलावा कहीं नहीं है . राहुल गांधी ने जोर देकर कहा कि एक अरब लोगों को विकास में भागीदार बनाने के लिए देश की राजनीतिक व्यवस्था को अपने आप को दुरुस्त करना होगा और हर इंसान को फैसला लेने की ताक़त देनी होगी .उन्होंने कहा कि यह उम्मीद करना बुल्कुल गलत है कि एक आदमी को सारी ताक़त दे दो और वह घोड़े पर सवार होकर आएगा और सब ठीक कर देगा . ऐसा नहीं होने वाला है . उन्होने प्रधान मंत्री पद के लिए मुख्य विपक्षी पार्टी और मीडिया की तरफ चल रही इस कोशिश को भी खारिज कर दिया कि एक आदमी का नाम लेकर इतने बड़े देश की समस्याओं का हल निकाला जा सकता है.उन्होंने कहा कि जब तक ज़मीन से जुड़े आदमी का सशक्तीकरण नहीं होगा तब तक कुछ भी बदलने वाला नहीं है .
राहुल गांधी आग्रह किया कि इस बात को भी नकार देने की ज़रूरत है जहां कुछ राजनीतिक पार्टियां किसी खास जाति को शामिल करने या किसी अन्य धर्म को मानने वालों को विकास प्रक्रिया से बाहर रखने की बात करते हैं. उन्होने साफ़ कहा कि जब तक सब को साथ लेकर नहीं चला जायेगा देश का भला नहीं होने वाला है .उन्होंने भारत और चीन के विकास माडल की तुलना की और कहा कि चीन का विकास केंद्रीकृत माडल पर आधारित है जबकि भारत का विकास शुद्ध रूप से सब के विकास का एक सामूहिक स्वरूप होगा.यहाँ हर आदमी अपना विकास करेगा लेकिन अगर सभी लोग किसी के अधिकार क्षेत्र में दखल दिए बगैर अपना विकास करते रहेगें तो देश का समग्र आर्थिक विकास होगा.
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