शेष नारायण सिंह
रिपोर्ट में लिखा है की १९९३ से २००४ तक के समय में कोल ब्लाक के आवंटन में जो तरीके अपनाए गए वे बिलकुल पारदर्शी नहीं थे. सरकारों ने अधिकार का बेजा इस्तेमाल किया और अपने ख़ास लोगों को राष्ट्र की प्राकृतिक सम्पदा का मनमाने तरीके से बन्दरबाँट की . कमेटी को इस बात पर भारी आश्चर्य हुआ कि १९ ९ ३ और २ ० ० ३ के बीच कोयला मंत्रालय ने किसी तरह का डाटा नहीं रखा हुआ है . केवल स्क्रीनिंग कमेटी के मिनट उपलब्ध हैं जिसके आधार पर मनमाने तरीके से कोल ब्लाक का आवंटन किया गया था. २० ० ५ और २० ० ६ में अख़बारों में विज्ञापन देकर कंपनियों से कोल ब्लाक के लिए दरखास्त आमंत्रित की गयी . मंत्रालय की वेबसाईट पर उसके नियम क़ानून भी डाल दिए गए लेकिन जब कोल ब्लाक के आवन्टन का समय आया तो इन नियमों की पूरी तरह से अनदेखी की गयी . कमेटी का सुझाव है की सारी प्रक्रिया की जांच की जानी चाहिए और जिनको भी ज़िम्मेदार पाया जाए उनके खिलाफ आपराधिक मुक़दमा चलाया जाना चाहिए .
कमेटी की रिपोर्ट में लिखा है कि सप्लाई और डिमांड में भारी अंतर के नाम पर सरकार ने प्राइवेट कंपनियों को कोयले के खनन का काम देने का फैसला किया था. तर्क यह दिया गया था कि इस से विद्युत की कमी में आने वाली स्थिति को सुधारा जाएगा और बिजली की आपूर्ति बढ़ेगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और सरकारी खजाने को भारी नुक्सान भी हुआ. यह भी देखा गया कि निजी कंपनियों ने कोल ब्लाक का आवंटन तो करा लिया लेकिन उसको दबा कर बैठ गयीं और कोयले की कमी का माहौल देश में बना रहा . यह भी देखा गया कि निजी कंपनियों को कोयल कौड़ियों के मोल दे देने से प्राकृति सम्पदा का तो भारी नुक्सान हुआ ही, बिजली के उत्पादन की दिशा में भी कोई फायदा नहीं हुआ. २१ ८ कोल ब्लाक का आवंटन इस कालखंड में हुआ था जबकि कोयले का उत्पादन केवल ३ ब्लाकों में ही शुरू किया जा सका ...बाकी कम्पनियां कोल ब्लाकों की ज़खीरेबाज़ी कर के बैठी हुयी हैं .
कोयल और इस्पात मंत्रालय की जो चार रिपोर्टें आज जारी की गयी हैं वे कोयला मंत्रालय में लूट के साम्राज्य की पूरी तरह से शिनाख्त कर लेती हैं . लेकिन दोनों ही बड़ी राजनीतिक पार्टियां एक दूसरे पर कीचड उछालने के काम में लगी हुयी हैं और राष्ट्र की प्राकृतिक सम्पदा में हुयी लूट से अपने आपको बचाने में सारी ताक़त लगा दे रही हैं जबकि संसद की इस महत्वपूर्ण कमेटी ने सबको कटघरे में खड़ा कर दिया है .
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