शेष नारायण सिंह
पाकिस्तान एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता के घेरे में है . बिना पहले से तय किसी कार्यक्रम के राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी दुबई चले गए हैं . उनके बेटे ,बिलावल भुट्टो ज़रदारी ने प्रधान मंत्री युसूफ रजा गीलानी से मुलाक़ात की है . बिलावल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष भी हैं . सरकारी तौर पर बताया गया है कि ज़रदारी मेडिकल जांच के सिलसिले में दुबई गए हैं लेकिन पाकिस्तान में पहले भी बड़े बड़े फैसले पब्लिक डोमेन में अफवाहों के रास्ते ही आये हैं . पाकिस्तानी सियासत के जानकार बताते है क कुछ बड़ा मामला हो चुका है .पाकिस्तानी फौज ने ज़रदारी को सत्ता से अलग करने की अपनी योजना को अंजाम तक पंहुचा दिया है और अब उसकी औपचारिकता पूरी की जा रही हो .वैसे भी पाकिस्तान में किसी भी सिविलियन सरकार ने कभी भी अपना वक़्त पूरा नहीं किया है ,हो सकता है कि ज़रदारी का भी वही हाल हो .
अंग्रेज़ी सत्ता के ख़त्म होने के बाद जब भारत को आज़ादी मिली तो जुगाड़ करके मुहम्मद अली जिन्नाह ने भारत के कई टुकड़े करवा कर पाकिस्तान नाम का देश बनवा दिया था. पाकिस्तान को एक राष्ट्र के रूप में हासिल करने के लिए पाकिस्तान के संस्थापाक मुहम्मद अली जिन्नाह ने एक दिन की भी जेलयात्रा नहीं की,कोई संघर्ष नहीं किया . बस लिखापढी करके पाकिस्तान ले लिया था . नतीजा यह हुआ कि जब उनके शागिर्द लियाक़त अली प्रधानमंत्री बने तो पाकिस्तान में बहुत से ऐसे लोग थे जो यह मानते थे कि लियाक़त अली को प्रधानमंत्री बनवाकर जिन्नाह ने गलती की है , लियाक़त अली से भी बहुत ज्यादा काबिल लोग पाकिस्तान में मौजूद थे. बाद में उन्हीं बहुत काबिल लोगों ने लियाक़त अली को क़त्ल करवा दिया था. बाद में जनरल अयूब ने सिविलियन सत्ता को धता बताकर फौज की हुकूमत कायम कर दी थी. यही सिलसिला पिछले साठ साल से चल रहा है. हर बार फौज सिविलियन हुकूमत को हटाने के लिए नई नई तरकीबें अपनाती है . कभी भुट्टो को गिरफ्तार करती है तो कभी नवाज़ शरीफ को देश से निकाल देती है .हो सकता है कि इस बार इलाज के लिए दुबई भेजकर राष्ट्रपति की छुट्टी करने की योजना बनायी गयी हो और उसी को अंजाम तक पंहुचाया जा रहा हो. जो भी ,इतना पक्का है कि बार बार फौजी हुकूमत कायम होने की वजह से बाकी दुनिया में पाकिस्तानी राष्ट्र की विश्वसनीयता बहुत ही कम हो गयी है . अब तक पाकिस्तान को अमरीका का पिछलग्गू देश माना जाता था , अब उसे चीन का मुहताज माना जाता है . जो भी हो अपनी स्थापना के साथ से ही राजनीतिक अस्थिरता का शिकार बने एक राष्ट्र की जितनी दुर्दशा होती है , पाकिस्तान की उतनी ही दुर्दशा हो रही है .
हर बार की तरह ,इस बार भी पाकिस्तान के मौजूदा संकट का कारण अमरीका है . अफगानिस्तान में तैनात नैटो के नाम से काम करने वाली अमरीकी फौज़ ने पाकिस्तान की सीमा में तैनात उसके २४ फौजियों मार डाला . इसके बाद पूरे देश में राजनीतिक तूफ़ान आ गया . पाकिस्तानी हुकूमत पर दबाव पड़ने लगा कि वह अमरीका से सख्ती से पेश आये . लेकिन अमरीकी मदद से अपने देश का आर्थिक इंतज़ाम कर रहे पाकिस्तान की यह हैसियत नहीं है कि वह अमरीका से सख्ती का रुख अपनाए .अमरीका के राष्ट्रपति ने भी पाकिस्तान की सिविलियन सरकार को जीत का दावा करने का कोई मौक़ा नहीं दिया . अगर अमरीका माफी मांग लेता तो ज़रदारी समेत बाकी पाकिस्तान परस्त हुक्मरानों को मुह छुपाने का मौका मिल जाता लेकिन अमरीका ने वह मौक़ा भी नहीं दिया . नतीजा सामने है . जानकार बताते हैं कि अमरीका खुद चाहता है कि अब ज़रदारी की छुट्टी कर दी जाए. वैसे भी अमरीका हमेशा से ही पाकिस्तानी फौज के तानाशाहों को अपने लिए मुफीद मानता रहा है . जो भी फौजी जनरल पाकिस्तान का शासक बना है ,वह पक्के तौर पर अमरीका का फरमाबरदार रहा है . जनरल अयूब ने पाकिस्तानी फौज़ को शुरुआती दिनों में अमरीकी साज़ सामान से पाट दिया था. १९६५ में भारत पर जब उन्होंने हमला किया था तो उन्हें मुगालता था कि सुपीरियर अमरीकी असलहों के बल पर वे भारत को हरा देगें लेकिन ऐसा न हुआ . अमरीकी पैटन टैंकों को भारतीय सेना ने दौड़ा दौड़ा कर मारा था और सैकड़ों की तादाद में उन टैंकों को ट्राफी के तौर पर भारत लाये थे . आज भारत की बहुत सारी सैनिक छावनियों में पाकिस्तानी सेना से छीने हुए अमरीका के पैटन टैंक बतौर ट्राफी देखने को मिलते रहते हैं. दूसरे फौजी जनरल याहया खां भी बहुत बड़े अमरीका परस्त थे. उनकी हुकूमत के दौरान ही पूर्वी पाकिस्तान को बंगला देश बना दिया गया था. तीसरे फौजी शासक , जनरल जिया उल हक थे . १९७१ की लड़ाई का दर्द उनको हमेशा सालता रहता था ,इसलिए उन्होंने हमेशा ही भारत को तबाह करने की योजना पर ही काम किया . भारत का सबसे बड़ा दुश्मन हाफ़िज़ सईद जनरल जिया उल हक का चेला है . भारत को तबाह करने में जनरल जिया को अमरीका से भी मदद मिली . पंजाब में आतंकवाद और कश्मीर में आतंकवाद जनरल जिया की कृपा से ही शुरू हुआ. परवेज़ मुशर्रफ भी खासे अमरीका परस्त राष्ट्रपति थे. अमरीका को खुश रखने के लिए उन्होंने पाकिस्तान को अमरीकी फौजों के हवाले कर दिया और अफगानिस्तान के तालिबान शासकों को नष्ट करने के लिए अफगानिस्तान पर होने वाले अमरीकी हमलों के लिए बेस उपलब्ध कराया . अब तक पाकिस्तानी फौज अमरीका की बहुत ही प्रिय फौज रही है लेकिन इस बार मामला गड़बड़ा रहा है . पाकिस्तानी फौज ने ओसामा बिन लादेन को अपनी हिफाज़त में रख छोड़ा था लेकिन अमरीकी खुफिया विभाग ने उसे मार डाला और अब पाकिस्तानी सैनिकों को मार कर अमरीकियों ने पाकिस्तानी फौज के लिए बहुत मुश्किल पैदा कर दिया है . अब किस मुंह से पाकिस्तानी फौज के वर्तमान मुखिया अमरीका परस्त बने रह सकते हैं . लेकिन हालात बहुत तेज़ी से बदल रहे हैं . ताज़ा राजनीतिक हालात ऐसे बन रहे हैं जिसके बाद पाकिस्तानी फौज के सामने अमरीका से मदद लेने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा .
पाकिस्तान में इस बात की बहुत ज़ोरों से चर्चा है कि पाकिस्तान क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और तहरीके इंसाफ़ पार्टी के प्रमुख इमरान खां को पाकिस्तानी फौज इस बार सत्ता सौंपना चाहती है . उसको भरोसा है कि राजनीति के कच्चे खिलाड़ी और अति महत्वाकांक्षी इमरान खां को सामने करके फौज अपनी मनमानी कर सकेगी. इस काम को वह अमरीका की मदद के बिना पूरा नहीं कर सकती. अमरीका को भी इसमें कोई दिक्क़त नहीं है क्योंकि इमरान खां खुद पश्चिमी सभ्यता के रंग में ढले हैं , वे अमरीका की किसी भी बात को मना नहीं कर पायेगें और पाकिस्तानी फौज भी दक्षिण एशिया के इलाके में अमरीकी हितों की झंडाबरदार बनी रहेगी. अमरीका भी पाकिस्तानी फौज को बहुत दबाना नहीं चाहता . उसे डर है कि कहीं जनरल कयानी चीन के शरण में न चले जाएँ . अगर ऐसा हुआ तो दक्षिण एशिया में अमरीकी दबदबे को भारी नुकसान पंहुचेगा. इसलिए लगता है कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी की बीमारी इमरान खां की ताजपोशी के रास्ते में पड़ने वाले हर रोड़े को साफ़ करने की अमरीका की कोशिश का हिस्सा है . ऐसा करके अमरीका पाकिस्तानी फौज को भी खुश रख सकेगा और दुनिया के सामने एक ऐसे इंसान को अमरीका का सिविलियन शासक बना कर पेश कर सकेगा जो पहले से ही एक अंतरराष्ट्रीय व्यक्तित्व का मालिक है .
पाकिस्तानी राजनीति के जानकारों की इस व्याख्या को अगर सच मान लिया जाए तो आसिफ अली ज़रदारी की बीमारी का राजनीतिक मतलब साफ़ हो जाता है . ऐसा लगता है कि ज़रदारी, पाकिस्तानी फौज और अमरीकी विदेश विभाग के बीच इस तरह का समझौता हो गया है . इसीलिये ज़रदारी की बीमारी को अफवाहों की ज़द से बाहर निकालने की गरज से सरकारी प्रवक्ता फरातुल्लाह बाबर से ही कहलवाया गया कि राष्ट्रपति ज़रदारी केवल रूटीन चेक अप के लिए दुबई गए हैं. उन्होंने कहा कि उनको पहले से ही दिल की कोई मामूली बीमारी थी ,जिसकी जांच का समय आ गया था और वे उसी सिलसिले में विदेश गए हैं . अभी यह पता नहीं है कि वे स्वदेश कब तक लौटेगें . उनकी गैर मौजूदगी में प्रधान मंत्री युसूफ रज़ा गीलानी की राय से सेनेट के अध्यक्ष को कार्यवाहक राष्ट्रपति भी बना दिया गया है .
इसके पहले पाकिस्तानी फौज से डरे हुए आसिफ अली ज़रदारी ने अमरीका से अपील की थी कि पाकिस्तानी फौज की उस कोशिश को नाकाम कर दिया जाए जिसके तहत वह उनको बेदखल करना चाह रही थी . लेकिन लगता है कि अब अमरीका भी ज़रदारी से ऊब गया है . शायद इसीलिये उसने इस काम में ज़रदारी की मदद कर रहे अमरीका में पाकिस्तानी राजदूत , हुसैन हक्कानी की कोशिश को बेनकाब कर दिया था और उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा था. जो भी हो ,साफ़ लग रहा है कि पाकिस्तान में सत्ता बदलने वाली है . और अमरीका किसी भी कीमत पर पाकिस्तान की फौज़ की मर्जी के खिलाफ जाने को तैयार नहीं है . इसलिए समझौते के तौर पर इमरान खां की ताजपोशी की तैयारी की जा रही है
फौज से गुप्त समझौते के कारण जरदारी दुबई तो चले गए किन्तु वहाँ जाकर उन्हे ब्रेन स्ट्रोक से 'लकवा'-फ़ालिज लग गया है और अब पाकिस्तान नहीं लौटेंगे। आपका निष्कर्ष सटीक है।
ReplyDeleteऐसा संभव है |
ReplyDelete