Sunday, December 18, 2011

अदम गोंडवी की एक कविता

काजू भुने प्लेट में विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में

पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत
इतना असर है खादी के उजले लिबास में

आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में

पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नखास में

जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में

3 comments:

  1. हिन्दूम या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए
    अपनी कुरसी के लिए जज्बाित को मत छेड़िए

    हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
    दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए

    ग़र ग़लतियाँ बाबर की थी; जुम्ममन का घर फिर क्यों जले
    ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए

    हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
    मिट गये सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िए

    छेड़िए इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के खिलाफ़
    दोस्त मेरे मजहबी नग़मात को मत छेड़िए

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  2. कल 20/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में
    bahut khub

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