शेष नारायण सिंह
१६ दिसंबर १९७१ को दोपहर बाद भारत की तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी ने लोकसभा में घोषणा कर दी कि ढाका अब एक स्वतंत्र देश की राजधानी है और बंगलादेश एक स्वतंत्र देश है . इस ऐलान के साथ ही एक नए राष्ट्र का जन्म हो चुका था . पाकिस्तान को ज़बरदस्त शिकस्त मिली थी और हमेशा के लिए सिद्ध हो चुका था कि भारत की सेना के सामने पाकिस्तान की फौज की कोई औकात नहीं है . इंदिरा गाँधी की उस घोषणा के ठीक पहले ढाका में पाकिस्तानी सेना ने भारत के पूर्वी कमांड के मुख्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल अरोड़ा के सामने समर्पण कर दिया था . उनके साथ करीब एक लाख पाकिस्तानी सैनिक भी युद्ध बंदी के रूप में भारत के कब्जे में आ गए थे .तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में आतंक का राज कायम करने के लिए पाकिस्तानी फौज ने वहां कुछ ऐसे संगठन बना रखे थे जो फौज की मदद करते थे और बंगलादेश में मानवीय अत्याचार के मुख्य खलनायक थे. इस संगठनों में अल बदर ,रजाकार और अल शम्स प्रमुख थे . १४ दिन तक चली लड़ाई के बाद भारत की सेना ने दुनिया के सामने यह साबित कर दिया था कि एक महान राष्ट्र के रूप में भारत ने पहला बहुत बड़ा क़दम उठा लिया है . पूर्वी पाकिस्तान के इलाके में स्थापित हुए बंगलादेश को एक स्वतंत्र देश के रूप में भारत पहले की मान्यता दे चुका था .
बंगलादेश की आज़ादी की लड़ाई तो तब से ही शुरू हो गयी थी जब याह्या खां और ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो की जोड़ी ने स्पष्ट बहुमत से आम चुनाव जीतने वाली शेख मुजीबुर्रहमान की अवामी लीग को सत्ता सौंपने से इनकार कर दिया था . लेकिन युद्ध में भारत उस वक़्त शामिल हो गया जब ३ दिसंबर को पाकिसानी वायु सेना ने भारत के करीब १२ सैनिक हवाई अड्डों को तबाह कर देने के उद्देश्य से उनपर बमबारी की . आजकल की तरह ही संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था. . पाकिस्तानी हमले का जवाब तो तुरंत ही दे दिया गया लेकिन अगले दिन लोकसभा में तत्कालीन रक्षामंत्री , बाबू जगजीवन राम ने पाकिस्तानी हमले की जानकारी दी. उन दिनों राष्ट्र से सम्बंधित किसी भी बड़ी घटना को संसद में सबसे पहले बताने की परंपरा थी. आजकल की तरह नहीं था कि ज़्यादातर अहम फैसले संसद के सत्र में होने के बावजूद भी संसद के बाहर ही किये जाते हैं .
अब तक बंगलादेश के जन्म और भारत की पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तानी फौज के हमलों की चर्चा में ज़्यादातर सेना के बारे में ही उल्लेख होता रहा है . इस बात में दो राय नहीं है कि भारतीय या सेना के लिए १९७१ की लड़ाई एक बहुत बड़ा मील का पत्थर है लेकिन एक बात और भी सच है कि उस दौर के राजनीतिक नेतृत्व का सारी दुनिया ने लोहा माना था. भारत में दिसमबर १९७१ में विपक्ष नाम की कोई चीज़ नहीं थी. . लोकसभा में तत्कालीन जनसंघ के नेता ,अटल बिहारी वाजपेयी ने जब कहा कि अब भारत में एक ही पार्टी है और वह है भारत राष्ट्र और एक ही नेता है और वह है इंदिरा गाँधी तो कमोबेश वे भारत की एक बड़ी आबादी की भावनाओं को अभिव्यक्ति दे रहे थे . भारत में राजनीतिक विकास की एक अहम कड़ी के रूप में भी दिसंबर १९७१ की घटनाओं को देखा जाता है . महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के जाने के बाद पहली बार भारत के राजनीतिक नेताओं की परीक्षा हो रहे एथी. आम तौर पर माना जाता है कि १९७१ की लड़ाई में जीत के बाद भारत सही मायनों में दुनिया के कूटनीतिक मंच पर अपनी हैसियत स्थापित करने में कामयाब हुआ था. वरना कभी तो १९६२ होता था तो कभी रबात से भारतीय प्रतिनिधि मंडल भगाया जाता था. कभी पूरी दुनिया में खाद्य सहायता के लिए भारत के नेता घूमते देखे जाते थे. लेकिन १९७१ ने सब कुछ बदल दिया . आम तौर पर १९७१ का श्रेय लगभग पूरी तरह से इंदिरा गांधी की राजनीतिक नेतृत्व की क्षमता को दिया जाता है लेकिन यह पूरा सच नहीं है . बँगलादेश की मुक्ति के संग्राम में सभी राजनीतिक पार्टियां इंदिरा गाँधी के साथ थीं . इसलिए १९७१ की राजनीतिक बुलंदी में सब का हिस्सा है . कांग्रेस और सरकार के अंदर भी उस दौर के रक्षा मंत्री जगजीवन राम का योगदान अद्भुत है लेकिन अजीब बात है कि जब भी बंगलादेश की आज़ादी का ज़िक्र होता है तो उसमें बाबू जगजीवन राम का वैसा उल्लेख नहीं होता , जैसा होना चाहिए . आज कोशिश करेगें कि लोक सभा में ४ दिसम्बर और १६ दिसंबर १९७१ के बीच हुई चर्चा के माध्यम से तत्कालीन रक्षा मंत्री के राजनीतिक कौशल को रेखांकित किया जाए .क्योंकि मेरा यह विश्वास है कि १९७१ की विजय के असली हीरो बाबू जगजीवनराम ही थे. .
बंगलादेश की आज़ादी की लड़ाई , पाकिस्तान अत्याचार और पाकिस्तानी सेना के गैर ज़िम्मेदार तरीकों का लोक सभा में पहला व्यवस्थित उल्लेख १५ नवम्बर १९७१ के दिन हुआ जब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद , एस एम बनर्जी ने पाकिस्तान की सेना की ओर से भारतीय इलाकों में गोलीबारी और उसकी एयर फ़ोर्स के भारतीय आसमान में अनधिकृत प्रवेश के बारे में नियम १९७ के तहत एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव लाया गया.एस एम बनर्जी के ध्यानाकर्षण प्रस्ताव का जवाब देते हुए रक्षा मंत्री जगजीव राम ने कहा कि पाकिस्तान के साथ हमारी सीमा पर तनाव की स्थिति वहां के सैनिक शासन और बँगलादेश के लोगों के बीच संघर्ष के कारण है . इस जवाब में बाबू जगजीवन राम ने सदन को विस्तार से बताया कि उस वक़्त की दक्षिण एशिया के हालात क्या थे . उसके अन्तर राष्ट्रीय सन्दर्भ क्या थे और पाकिस्तानी फौजी हुक्मरान भारत के लिए कितनी मुसीबत बन चुके थे. भारत के खिलाफ पाकिस्तानी राष्ट्रपति याहया खां बार बार युद्ध की धमकी देते रहते थे.. राजस्थान, गुजरात और पंजाब में हमारी सीमा के बहुत करीब उन्होंने अपने सैनिकों को जमा कर दिया था . रक्षा मंत्री ने साफ़ कहा कि उस वक़्त सीमाओं पर हालात बहुत ही गंभीर थे. लेकिन रक्षा मंत्री ने आश्वासन दिया कि हम अपनी सीमा पर किसी भी हमले का जवाब देने के लिए तैयार हैं. और अगर लाई की नौबत आयी तो लड़ाई का मैदान हमारी ज़मीन पर नहीं होगा . हमारे सैनिक युद्धक्षेत्र को शत्रु की ज़मीन पर ही कायम करने का हौसला रखते हैं . इसी बहस में जनसंघ के सांसद अटल बिहारी वाजपेयी ने कुछ शंका जताई . जवाब में रक्षा मंत्री ने जो कहा उस पर किसी भी भारतीय को गर्व होना चाहिए . उन्होंने कहा कि यह सच है कि पाकिस्तान हमारे इलाके में लगातार अतिक्रमण कर रहा है लेकिन मैंने स्पष्ट आदेश दे रखा है कि अगर कोई पाकिस्तानी विमान हमारी सीमा में दुश्मनी के इरादे से आये तो उसे मार गिराया जाए. बाबू जगजीवन राम ने कहा कि बंगलादेश की मुक्ति का संघर्ष चल रहा है .मुझे इस बात में कोई शक़ नहीं है कि बांग्लादेश के जिन नौजवानों ने अपनी माताओं और अपनी बहनों को अपमानित होते देखा है,जिन्होंने अपने निकट सम्बन्धियों की ह्त्या होते देखा है वे जानते हैं कि बंगलादेश को पूर्ण स्वाधीन करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है.
३ दिसंबर १९७१ को पाकिस्तान ने हमला कर दिया . उसी दिन शाम को इंदिरा गाँधी ने आकाशवाणी से देश को संबोधित किया और कहा कि ," आक्रमण का जवाब देना होगा.भारत के लोग इसका बहुत ही सहनशीलता से जवाब देगें .' अगले दिन ४ दिसंबर को शाम ५ बजकर ४० मिनट पर बाबू जगजीवन राम ने लोकसभा में एक विस्तृत बयान दिया और बताया कि पाकिसान ने हम पर युद्ध थोपा है . हमारे १२ हवाई अड्डों पर हमला किया गया है . उन्होंने सभी हवाई अड्डों के नाम भी बताये. अमृतसर ,पठानकोट, फरीदकोट श्रीनगर ,हलवारा,अम्बाला ,आगरा,उत्तरलाई ,जोधपुर,जामनगर,सिरसा और सरवाला के हवाई अड्डों पर बमबारी हुई थी. कोशिश यह थी कि भारतीय वायुसेना को पंगु बना दिया जाए .लेकिन हमारे सभी हवाई अड्डे बिलकुल सही हैं . भारतीय वायु सेना ने जवाबी कार्रवाई में रात ११.५० बजे पाकिस्तान के चंदेरी , शेरकोट ,सरगोधा,मुरीद,मियांवाली ,मसरूर ( कराची ) रिसालवाला ( रावलपिंडी )और चंगा मंगा ( लाहौर ) के हवाई अड्डों पर बम बरसाए . इसका फायदा ज़मीनी फौज को खूब मिल रहा है .इस बयान में बाबू जगजीवन राम ने पूरी जानकारी दी और राष्ट्र को संसद के ज़रिये आश्वस्त किया.
दिसंबर १९७१ देश के इतिहास में वह समय था जब कि जगजीवन राम के हर बयान को देश सांस रोक कर सुनता था. उन दिनों आज की तरह टेलिविज़न नहीं था और बाबू जी कभी भी संसद के सत्र में रहने पर कोई भी बड़ी बात संसद के बाहर नहीं कहते थे . ७ दिसंबर को उन्होंने फिर लोक सभा को युद्ध में हो रही प्रगति के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने बताया कि , " अब तक हमने ५२ पाकिस्तानी युद्धक विमान नष्ट किया है . ४ पाकिस्तानी पाइलट हमारे कब्जे में हैं . थल सेना ,वायु सेना और नौसेना मिलकर संयुक्त योजना के साथ लड़ाई लड़ रही हैं " १४ दिसंबर को उन्होंने फिर संसद को भरोसे में लिया और बताया कि ," आज हमारे ऊपर पाकिस्तान द्वारा थोपे गए युद्ध का ग्यारहवां दिन है.अपने आक्रमण का उद्देश्य प्राप्त करने में शत्रु पूरी तरह से नाकाम रहा है .पाकिस्तानी सेना को गहरा नुकसान हुआ है ." इसी बयान में जगजीवन राम ने बताया कि चारों दिशाओं से हमारे सैनिक ढाका की तरफ बढ़ रहे हैं .और वहां के कमान्डर फरमान अली को समर्पण करने के लिए सन्देश भेज दिया गया है .
उसके बाद तो बस १६ दिसंबर हुआ . इंदिरा गांधी ने लोकसभा में युद्ध के खात्मे का ऐलान किया और बंगलादेश नाम के स्वतंत्र संप्रभु राष्ट्र की विधिवत स्थापना हो गयी . लेकिन इस युद्ध में राजनीतिक और सैनिक नेतृत्व का श्रेय सबसे ज्यादा बाबू जगजीवन राम को दिया जाना चाहिए .सही मायनों में १९७१ की जीत के हीरो जगजीवन राम ही हैं .
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