शेष नारायण सिंह
लोकसभा में सरकार ने लोक पाल बिल पेश कर दिया.सरकारी कोशिश से लागता है कि एक ऐसा कानून बनने वाला है जो बिलकुल दन्त विहीन होगा . भ्रष्टाचार को खत्म करना तो दूर उसे बढ़ावा देगा.इस तरह के अपने मुल्क में बहुत सारे कानून हैं . एक सरकारी विभाग बनेगा,कुछ नौकरशाहों को दिल्ली में पार्किंग स्पेस मिलेगा. लेकिन भ्रष्टाचार का बाल नहीं बांका होगा. देश में आज लगभग हर इंसान भ्रष्टाचार का शिकार है ,त्राहि त्राहि कर रहा है. उसकी भावनाओं को एक दिशा देने की दिशा में अन्ना हजारे ने एक सराहनीय क़दम उठाया था जो तूफ़ान बन सकता था,जन अभियान बन सकता था लेकिन जनता की इन भावनाओं को जनांदोलन बनने से निहित स्वार्थों ने रोक दिया . कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जननायक बन रहे अन्ना हजारे को अपने साथ ले लिया, दिल्ली के सत्ता के गलियारों की सैर करा दी . उनके आगे पीछे कुछ ऐसे लोग घूम रहे थे जिन्होंने कभी जाना ही नहीं कि भ्रष्टाचार आदमी को कितनी गहरी चोट करता है . उनके साथ लगे हुए पुलिस , इनकम टैक्स और न्यायव्यस्था से जुड़े लोग अपनी विभाग में इतने ताक़तवर लोग हैं कि कभी किसी ने उनसे घूस माँगा ही नहीं होगा, उन्हें घूस की मार का अंदाज़ नहीं है . उन्होंने अपने साथ काम करने वाले बड़े अफसरों को घूस लेते देखा ज़रूर होगा लेकिन यह लगभग पक्का है कि कभी भी उनके सामने रिश्वत देने की मजबूरी नहीं पड़ी होगी .घूस के खिलाफ लड़ाई आम आदमी की है. इसलिए जब अन्ना ने नारा दिया तो वह उनके साथ हो गया. देश के लाखों पत्रकारों ने अन्ना की राह पकड़ ली. लगने लगा कि १९२० के महात्मा गांधी या १९७५ के जयप्रकाश नारायण के आन्दोलनों की तरह का कोई आन्दोलन शुरू हो चुका था. देश के कोने कोने में अन्ना हजारे की डुगडुगी बज चुकी थी, जो जहां था वहीं से भ्रष्टाचार के खिलाफ जुझारू राग में नारे लगा रहा था . शासक वर्गों को यह बात जंची नहीं , वे नाराज़ हुए और भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुए तूफ़ान के नायक की ताक़त को ही बेकार करने की योजना पर काम शुरू कर दिया. अन्ना हजारे को सरकारी कमेटी में शामिल होने की दावत दे दी. यह एक जाल था जिसे सत्ता ने फेंका था. उस जाल के साथ नत्थी वायदों को देख कर अन्ना हजारे फंस गए. नतीजा यह हुआ कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जो जन आन्द्दोलन बन रहा था वह आज कहीं नज़र नहीं आता. अब भ्रष्टाचार के लिए कांग्रेस को ज़िम्मेदार ठहराने की बीजेपी की योजना ही चारों तरफ नज़र आ रही है . इस बात में कोई शक़ नहीं है कि कांग्रेस के राज में भ्रष्टाचार की नई ऊंचाइयां तय की गयी हैं लेकिन बीजेपी वाले भी कम भ्रष्ट नहीं हैं .उनके मंत्री और नेता भी भ्रष्टाचार की कथाओं में बहुत ही आदर से उद्धृत किये जाते हैं . इसलिए भ्रष्टाचार को जनांदोलन बनने से रोकने के लिए दोनों ही शासक पार्टियों ने मेहनत की और आम आदमी का दुर्भाग्य है कि समकालीन इतिहास में भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाला सबसे बड़ा नायक सत्ता के गलियारों में भटक गया .आज बीजेपी वाले इस बात पर सबसे ज्यादा जोर दे रहे हैं कि प्रधान मंत्री को लोकपाल के घेरे में लिया जाए लेकिन जन लोकपाल बिल में जो सबसे महत्वपूर्ण बातें हैं वे पता नहीं कहाँ खो गयी हैं. बीजेपी समेत सारे देश को मालूम है कि अगर कांग्रेस ने तय कर लिया है कि वह प्रधान मंत्री को दायरे में नहीं आने देगी तो वही होगा . इसलिए उस बात को राष्ट्रीय बहस के दायरे में नहीं लाना चाहिए था. इसलिए ज़रूरी यह था कि जन लोक पाल बिल में जो अच्छी बातें हैं उसे सरकारी बिल में लाने की कोशिश की जाती. जहां तक इस देश के आम आदमी की बात है उसे भ्रष्टाचार से फौरी राहत चाहिए . प्रधान मंत्री के भ्रष्टाचार की बात को वह बाद में अगले आन्दोलन के बाद देख सकता है . भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान को प्रभावी बनाने के लिए जन लोक पाल बिल में कुछ बहुत अच्छे प्रावधान हैं . मसलन उसकी धारा २० में लिखा है कि जो व्यक्ति भ्रष्टाचार की पोल खोलेगा उसे पूरी सुरक्षा दी जायेगी . लिखा है कि भ्रष्टाचार की जानकारी देने वाले के जीवन को ख़तरा रहता है इसलिए उसकी सुरक्षा की गारंटी के साथ साथ जांच के काम को बहुत तेज़ी से निपटाने की व्यवस्था की जानी चाहिए. उसके बाद धारा २१ महत्वपूर्ण है . इसमें न्याय मिलने में होने वाली देरी को निशाने पर लिया गया है .न्याय मिलने में देरी की परिस्थिति के लिए अधिकारी को ज़िम्मेदार ठहराने का सुझाव है . यह दो बातें भ्रष्टाचार के निजाम पर ज़बरदस्त हमला कर सकती थीं . लेकिन इन पर कहीं कोई बात नहीं हो रही है . नतीजा यह है कि कांग्रेस ने जिन नेताओं को भ्रष्टाचार के खिलाफ बन रहे तूफ़ान को रोकने का ज़िम्मा दिया था वे बहुत ही खुश हैं . अन्ना की ओर से प्रस्तावित जन लोक पाल बिल में धारा २० और २१ ऐसे प्रावधान हैं जो भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे अभियान को ताक़तवर बना सकते थे. अभी देर नहीं हुई है . भ्रष्टाचार के खिलाफ राजनीतिक तेवर दिखाने वाली बीजेपी को चाहिए कि वह लोकपाल बिल की चर्चा के दौरान ऐसी हालत पैदा करे कि जन लोकपाल बिल की वे बातें जो आम आदमी को भ्रष्टाचार से मुक्त कराने की ताक़त रखती है, कानून की शक्ल ले सकें. भ्रष्टाचार के खिलाफ उठे जन ज्वार को शांत करने की शासक पार्टियों की सफलता के बाद भी अगर जन लोक पाल की अहम बातें सरकारी बिल में शामिल करवाई जा सकें तो जनता और देश का बहुत भला होगा.
अपनी कार्यशैली और कारपोरेट घरानों की मदद से आंदोलन चलाने की मुहिम ने अन्ना को लोकतन्त्र -विरोधी सिद्ध कर दिया है।
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