Tuesday, August 30, 2011
छोरा गोमती किनारे वाला ,मुंबई में छपाई की दुनिया का दादा है
शेष नारायण सिंह
पिछले हफ्ते एक दिन सुबह जब मैंने अखबार उठाया तो टाइम्स आफ इंडिया देख कर चमत्कृत रह गया . अखबार बहुत ही चमकदार था .लगा कि अलमूनियम की शीट पर छाप कर टाइम्स वालों ने अखबार भेजा है . लेकिन यह कमाल पहले पेज पर ही था.समझ में बात आ गयी कि यह तो विज्ञापन वालों का काम है . पहले और आखरी पेज पर एक कार कंपनी के विज्ञापन भी लगे थे . ज़ाहिर है इस काम के लिए टाइम्स आफ इण्डिया ने कंपनी से भारी रक़म ली होगी. टाइम्स में कुछ लोगों से फ़ोन पर बात हुई तो उन्हें छपाई की दुनिया में यह बुलंदी हासिल करने के लिए बधाई दे डाली. उन्होंने कहा कि यह छपाई उनकी नहीं है. बाहर से छपवाया गया है . लेकिन टाइम्स आफ इण्डिया में कोई भी यह बताने को तैयार था कि कहाँ से छपा है . प्रेस में काम करने वाले एक मेरे जिले के साथी ने बताया कि चीन से छपकर आया था वह विज्ञापन.. बात आई गयी हो गयी लेकिन कल एक दोस्त का मुंबई से फोन आया .इलाहाबाद से पढाई करने के दौरान वह मुंबई भाग गया था .वहां वह किसी बहुत बड़े प्रेस में काम करता था. आजकल अपना कारोबार कर रहा है .बातों बातों में मैंने उसे प्रेरणा दी कि चीन में संपर्क करे और टाइम्स आफ इण्डिया में जिस तरह से अलमूनियम पर छपाई हुई है ,उसे छापने की कोशिश करे . नई टेक्नालोजी है बहुत लाभ होगा. तब उसने बताया कि बेटा वह टाइम्स आफ इण्डिया वाला माल मैंने ही छापा है . कहीं चीन वीन से नहीं छपकर आया है वह . उसे मैंने अपने प्रेस में छाप कर टाइम्स वालों से पैसा लिया है छपाई का . और वह अलमूनियम नहीं है . कागज़ पर छाप कर उसे मैंने एक बहुत ही ख़ास तरीके से लैमिनेट किया है. तब जाकर अलमूनियम का लुक आया है. मैंने उसे हडकाया कि प्रिंट लाइन में अपना नाम क्यों नहीं डाला. उसने कहा कि वह कारोबार की बातें हैं . तुम नहीं समझोगे.
उसकी बात सुनकर मन फिर उसी कादीपुर और सुलतान पुर वापस चला गया. जहां के हम दोनों रहने वाले हैं . गोमती नदी पर स्थित धोपाप महातीर्थ के उत्तर तरफ उसका गाँव है और दक्षिण तरफ मेरा . मेरा यह दोस्त टी पी पांडे बहुत भला आदमी है . पिछले कई वर्षों से मुझे शराब पीना सिखाने की कोशिश कर रहा है . इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पी एच डी कर रहा था . शोध की कुछ सामग्री जुटाने के लिए बम्बई ( मुम्बई ) गया. चमक दमक में रिसर्च तो भूल गया . भाई ने वहां किसी फ़िल्मी पत्रिका में नौकरी कर ली. फ़िल्मी आकाश पर उन दिनों हेमा मालिनी चमक रही थीं . रेखा के जलवे थे .आदरणीय पांडे जी ने उनके दर्शन किये और मेरा दोस्त वहीं मुंबई का होकर रह गया. धीरे धीरे फ़िल्मी दुनिया की रिपोर्टिंग का दादा बन गया . वहा पत्रिका फिल्म लाइन की सबसे बड़ी पत्रिका है . बाद में उस कंपनी ने उसे पूरी छपाई का इंचार्ज बना दिया . लेकिन उसकी तरक्की से कंपनी के कुछ लोग जल गए और उसे बे इज्ज़त करने की कोशिश शुरू कर दी. मेरे इस दोस्त ने जिस बांकपन से उन लोगों से मुकाबला किया ,उस पर कोई भी मोहित हो जाएगा. मामला रफा दफा हो जाने के बाद एक दिन जब मैं मुंबई गया तो उसने मेरा हाल पूछा . मैंने कहा कि यार किस्मत ऐसी है कि ज़िंदगी भर कभी ऐसी नौकरी नहीं मिली जिस से मन संतुष्ट होता . ठोकर खाते बीत गया. अब फिर नौकरी तलाश रहा हूँ .उसने भी नए सिरे से प्रेस लगाने की अपनी कोशिश का ज़िक्र किया और कहा कि गाँव में लोग साठ साल के उम्र में बच्चों के सहारे मौज करते हैं और हम लोग साठ साल की उम्र में फिर से काम तलाश रहे हैं . अपने बचपन की तुलना में अपने आपको रख कर हम दोनों ने देखा तो समझ में आ गया कि पूंजी वादी अर्थ व्यवस्था और उस से पैदा हुई सामाजिक हालत ने हमें ज़िंदगी पर खटने के लिए अभिशप्त कर दिया है .टी पी पाण्डेय के साथ टी डी कालेज जौनपुर के राजपूत हास्टल में बिताये गए दिन याद आये. वे सपने जो अब पता नहीं कहाँ लतमर्द हो गए हैं, बार बार याद आये . लगा कि गरीब आदमी का बेटा कभी चैन से नहीं बैठ सकता लेकिन आज जब टी पी की बुलंदी को सुना-देखा है ,छपाई की टेक्नालोजी में उसके आविष्कार को देखता हूँ तो लगता है कि हम भी किसी से कम नहीं .
अपना टी पी पाण्डेय शिर्डी के फकीर का भक्त है. हर साल वहां के मशहूर कैलेण्डर को छापता है जिसे शिर्डी संस्थान की ओर से पूरी दुनिया में बांटा जाता है . पांडे जो भी करता है उसी फ़कीर के नाम को समर्पित करता है . जो कुछ अपने लिए रखता है उसे साईं बाबा का प्रसाद मानता है . अब वह सफल है . टैको विज़न नाम की अपनी कंपनी का वह प्रबंध निदेशक है . मुंबई के धीरू भाई अम्बानी अस्पताल में एक बहुत बड़ी होर्डिंग भी इसी ने छापी है जिसकी वजह से उसका नाम लिम्का बुक आफ रिकार्ड्स में दर्ज है .उसकी सफलता देख कर लगता है कि अगर मेरे गाँव के लोग भी समर्पण भाव से काम करें तो मुंबई जैसी कम्पटीशन की नगरी में भी सफलता हासिल की जा सकती है .
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हम भी किसी से कम नहीं ......
ReplyDeletejai baba banaras.................
पांडे जी की सफलता के लिए मुबारकवाद।
ReplyDeleteटाइम्स का विज्ञापन देख के आश्चर्य तो हुआ था लेकिन उतना नहीं जितना आपके दोस्त की कहानी सुनकर. वाकई इंसान अगर चाह ले तो क्या नहीं कर सकता? बस कुछ कर दिखाने का जज़्बा और हर मुसीबत को चीर कर रख देने का हौसला होना चाहिए. पांडेजी इसी की एक मिसाल हैं. इस बेमिसाल कामयाबी के लिए उन्हें ढेरों बधाइयां और उम्मीद करता हूं कि आगे भी वो इसी तरह नई इबारतें लिखते रहेंगे.
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