शेष नारायण सिंह
नब्बे के दशक के शुरुआती वर्षों में दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद ,मेरठ और बुलंदशहर जिलों में अपराधी से नेता बने एक ऐसे व्यक्ति का आतंक था जो हर तरह की मनमानी करता था. उसके खिलाफ कोई भी आरोप साबित नहीं हो सकता था क्योंकि किसी की हिम्मत गवाही देने की नहीं थी . इस दौर में इन जिलों में एक ही बैच के आई पी एस अधिकारी जिला पुलिस के प्रमुख के रूप में तैनात थे .. तीनों मित्र भी थे . उन्होंने ऐसी नीति का सहारा लिया कि उस नेता की मनमानी पर रोक तो लग ही गयी , वह फरार हो गया और अपनी जान बचाते फिरने लगा . इन अफसरों ने अफवाह फैला दी कि उसका इनकाउंटर हो जाएगा .उन में से एक अधिकारी ने बताया कि इस अपराधी नेता को सज़ा तो नहीं दी जा सकती लेकिन जब इसका दरबार लगना बंद हो जाएगा , और जनता में यह सन्देश चला जाएगा कि यह तो अपनी ही जान बचाने के लिए मारा मारा फिर रहा है ,तो इसकी अपराध करने की क्षमता अपने आप कम हो जायेगी. यानी जब तक यह मशहूर रहता है कि अपराधी बहुत ताक़तवर है और पुलिस भी उस से बच कर रहती है , अपराधी का धंधा पानी चलता रहता है लेकिन जैसे ही यह पता चला कि अपराधी एक मामूली आदमी है ,उसकी दुकान बंद हो जाती है . उसे अदालत से सज़ा मिले चाहे न मिले, अपराध के ज़रिये कमाई कर सकने की ताक़त ख़त्म हो जाती है . महाराष्ट्र में यही हुआ . १९६६ से अब तक की राज्य सरकारें और राजनीतिक पार्टियां शिव सेना को पाल रही थीं और उसके सदस्य और मालिक वसूली के धंधे में लगे हुए थे . यह लोग मुंबई महानगर में हर उस इंसान से वसूली करते थे जो किसी तरह के कारोबार में लगा होता था. जहां मालिक लोग बिल्डरों और फिल्म वालों से उगाही करते थे, वहीं मोहल्ला लेवल के कार्यकर्ता , खोमचे वालों , पाकिटमारों और भिखारियों से रक़म वसूल कर अपना खर्च चलाते थे . इस सारे गोरख धंधे में पुलिस कुछ नहीं बोलती थी क्योंकि लगभग हमेशा ही कांग्रेस, एन सी पी या बी जे पी वाले शिव सेना की मदद करते रहते थे और पुलिस निष्क्रिय रहती थी .इस साल जब शिव सेना ने राहुल गाँधी को धमकी दे दी तो सरकार की अथारिटी का इस्तेमाल किया गया और शिव सेना के कार्यकर्ताओं को उनकी औकात बता दी गयी. . राहुल गाँधी के परिवार के ख़ास दोस्त , शाहरुख खान को भी जब धमकी मिली तो सरकार सक्रिय हो गयी और शिव सेना की दुकान में शटर लगाने के प्रोजेक्ट में पूरा सरकारी अमला जुट गया . शिव सेना के साथ काम करने वाले मुकामी बदमाशों की तबियत से धुनाई हुई और शिव सेना के सभी नेता आजकल ठंडे चल रहे हैं . पिछले दिनों शिव सेना के मालिक के परिवार के एक सदस्य को भी सत्ताधारी पार्टी ने शह देना शुरू किया था.. उसको मदद करके महाराष्ट्र नव निर्माण सेना नाम की पार्टी भी बनवा दी गयी.. शिव सेना को कमज़ोर करने के लिए उसकी पार्टी का इस्तेमाल भी हुआ लेकिन उसने अपनी ताक़त से ज्यादा हल्ला गुल्ला करना शुरू कर दिया . अब खबर आई है कि शिव सेना से अलग हुए इस धड़े के बदमाशों को भी पुलिस ने ठीक करने का काम शुरू कर दिया है . और महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के ११ कार्यकर्ताओं को बाँध कर थाने में बैठा दिया. यह लोग किसी सिनेमा वाले के यहाँ वसूली करने गए थे . इनका कहना था कि उस फिल्म यूनिट में कुछ विदेशी लोग काम कर रहे हैं ,जिनके पास वर्क परमिट नहीं है. लिहाज़ा फिल्म वाले से इन्होने कहा कि अगर बिना परमिट वाले विदेशियों से काम करवाना है तो २७ लाख रूपये इनको दें वरना काम रोक दिया जाएगा. यह सही है कि वर्क परमिट के बिना विदेशी काम नहीं कर सकते लेकिन उसकी चेकिंग का काम पुलिस का है , राज ठाकरे के बदमाशों का नहीं . लिहाज़ा पुलिस को खबर हुई और उसने इन्हें पकड़ किया . थाने में ले जाकर बैठाया और ३-३ हज़ार की ज़मानत पर छोड़ दिया . इसका मतलब यह है कि उनका अपराध ऐसा संगीन नहीं था कि उन्हें हिरासत में लेकर पूछ-ताछ की जाती लेकिन महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के रोज़ ही बढ़ रहे वसूली साम्राज्य पर ब्रेक लगाने के लिए इनके महत्वपूर्ण कार्यकर्ताओं को माफी माँगने पर मजबूर करना एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना है . अब राज ठाकरे का भी वही हाल हो जाएगा , जो उनके चाचा बाल ठाकरे का है या जो नब्बे के दशक में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वसूली का धंधा करने वाल्रे अपराधी-नेता का हुआ था . क्योंकि अगर अवाम के दिमाग में यह बात बैठ गयी कि वसूली का रैकेट चलाने वाला पुलिस से डरता है तो जनता उसकी मामूली सी बात की शिकायत लेकर थाने जाने लगेगी और एक बार अगर थाने की टेढ़ी नज़र पड़ गयी तो कोई भी अपराधी अपना धंधा बदलने के लिए मजबूर हो जाता है . इसलिए जिस तरह से मुंबई में बाल ठाकरे और राज ठाकरे के लोगों के खिलाफ पुलिस सक्रिय हुई है ,उस से लगता हैकि अब इन लोगों की औकात एक मामूली क्रिमिनल की हो जायेगी और मुंबई की जनता राहत की सांस लेगी
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