Friday, January 8, 2010

अमिताभ बच्चन के नए कद्रदान---- गुजरात के मोदी जी

शेष नारायण सिंह


जिन लोगों ने फिल्म तीसरी क़सम देखी है, उन्हें मालूम है कि ज़ालिम ज़मींदार की फरमाइश के आगे ,फणीश्वर नाथ रेणु की नौटंकी कलाकार क्यों नहीं झुकती.. उसे मालूम है कि ठाकुर तंगनज़र है है , तंगदिल है और जिद्दी है लेकिन महिला कलाकार अपने आत्म-सम्मान से समझौता नहीं करती. उसे यह भी मालूम है कि ठाकुर खतरनाक है लेकिन वह उसे सीमा में रहने को मजबूर कर देती है . शायद ऐसा इसलिए हो सका कि वह अन्दर से मज़बूत थी.और एक अपने अमिताभ बच्चन है ,कलाकार हैं और बा रुतबा कलाकार हैं . पिछले २५ वर्षों में जब भी अमिताभ बच्चन ने अपने आपको कलाकार कहा , हमें लगा कि वे उतने की मज़बूत होंगें जितना वह महिला कलाकार थी लेकिन टेलेविज़न पर उनको नरेंद्र मोदी के सामने झुकते देख कर लगा कि अब तक गलत सोचते रहे. पापी पेट के वास्ते अमिताभ बच्चन कुछ भी कर सकते हैं . वे मुलायम सिंह यादव के दरवाज़े पर भी रेंग सकते हैं और नरेंद्र मोदी की चापलूसी भी कर सकते हैं . अमिताभ बच्चन ने अपनी इस हरकत से क्या खोया ,हम नहीं जानते लेकिन अपनी फिल्म ' पा ' का मनोरंजन कर माफ़ करवाने के लिए वे किस मुकाम तक जा सकते हैं, वह दुनिया ने देख लिया..नरेंद्र मोदी की शान में अमिताभ बच्चन ने जिस तरह से कसीदे पढ़े , उस से साफ़ लग गया कि अब गुजरात में भी वही सब होगा जो उन्होंने कभी उत्तर प्रदेश में किया था . उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्य मंत्री, मुलायम सिंह यादव के लिए उन्होंने अतिशयोक्ति के सुर में बात की . एक बार तो उन्होंने यहाँ तक कह दिया था कि मुलायम सिंह मेरे पिता हैं.. बी जे पी के नेता राजनाथ सिंह उनके इस बयान से बड़े खुश हो गए थे और कहा था कि जीव विज्ञान के विद्वानों यह पता करना चाहिए कि क्या बाप बेटे की उम्र में केवल चार साल फर्क हो सकता है ..बहर हाल अब मुलायम सिंह सत्ता में नहीं हैं और जिस तरह से उनकी पार्टी चल रही हैं, सत्ता में बहुत दिनीं तक आने की उम्मीद भी नहीं है . दुनिया जानती है कि जब १८५७ में दिल्ली उजड़ गयी थी, तो बड़ी संख्या में कलाकारों ने राम पुर, और हैदराबाद को अपना ठिकाना बना लिया था . इस लिए जब मुलायम सिंह की हैसियत किसी कलाकार और उसके परिवार को संरक्षण देने की नहीं है तो वह और दरबारों की तलाश में निकल जाएगा . जहां तक मुलायम सिंह यादव का सवाल है , अमिताभ बच्चन को बहुत अहमियत देकर उन्होंने अपनी पार्टी के जनाधार को ही लगभग समाप्त कर दिया है . समाजवादी पार्टी के अन्य नेताओं ने उस जनाधार को साथ रखने की पूरी कोशिश की लेकिन जनाधार तो हवा के रुख के साथ चलता है और वह खिसकता गया . फिरोजाबाद में समाजवादी पार्टी की हार एक दिन में नहीं हुई थी . मुलायम सिंह यादव के पड़ोस में रहने वालों ने देखा था कि किस तरह उनके नेता को फ़िल्मी दुनिया ने उनसे छीन लिया है और जब चुनाव का मौक़ा आया तो अवाम ने अपना फैसला सुना दिया.. लोक सभा 2००९ के चुनाव में समाजवादी पार्टी के शुभचिंतक नेताओं, जनेश्वर मिश्र, राम गोपाल यादव, ब्रज भूषण तिवारी और मोहन सिंह ने जो घोषणा पत्र बनाया उसमें अंग्रेज़ी और कंप्यूटर के खिलाफ नीति बनाने की बात लिख दी गयी. जब मैंने जनेश्वर मिश्र से पूछा कि इस प्राचीन विचारधारा को घोषणा पत्र में क्यों लिखा गया है तो उन्होंने बताया कि सनीमा वाले आजकल पार्टी में बहुत घुस रहे हैं उनको दूर रखने और आम आदमी को पार्टी में रोके रखने के लिये ऐसा किया गया है . ज़ाहिर है समाजवादी पार्टी के असली और बड़े नेता सिनेमा वालों को दूर रखना चाहते थे क्योंकि उनके हिसाब से सिनेमा वालों को साथ रखने से कोई फायदा नहीं होता ,उलटे नुकसान ही होता है ... मुलायम सिंह यादव ने अमिताभ बच्चन के परिवार के लिए जो किया वह सब को अजीब लगता था. बाराबंकी की ज़मीन का विवाद तो दुनिया जानती है. अमिताभ बच्चन , जया बच्च्चन, ऐश्वर्या राय और अभिषेक बच्चन को उत्तर प्रदेश में वह मुकाम दे दिया गया था जो कि राज्य के सामान्य नागरिकों और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं को सपने में भी हासिल नहीं था. मुलायम सिंह यादव ने अपनी सरकार की पूरी ताक़त लगा दी कि अमिताभ बच्चन के पिता , डॉ. हरिवंश राय बच्चन को महाकवि घोषित करवा दें लेकिन आलोचक उन्हें एक तुकबंदीकार से ज्यादा मानने को तैयार ही नहीं हैं .. मौजूदा राजनीतिक समीकरणों पर नज़र डालें तो ऐसा लगता है कि आने वाले कई वर्षों तक मुलायम सिंह यादव वह सारी सुविधाएं देने की स्थिति में नहीं रहेंगें . ज़ाहिर है कि उन सुविधाओ की तलाश शुरू हो चुकी थी. अमिताभ बच्चन के रिश्ते कांग्रेस के नंबर वन परिवार से बहुत खराब हैं,लिहाज़ा वहां तो प्रवेश संभव नहीं था. मोदी का राज्य अमिताभ बच्चन की कर्मभूमि के क़रीब भी है और मोदी तैयार भी हो गए लगते हैं . उनकी राजनीतिक हैसियत भी ऐसी है कि वे अपनी पार्टी में जो चाहें कर सकते हैं . इस लिए वे अमिताभ बच्चन के परिवार को वह राजनीतिक गिज़ा उपलब्ध करवा सकते हैं जिसकी अब बच्चन परिवार को आदत पड़ चुकी है ..ऐसी हालत में लगता है कि नरेंद्र मोदी की शरण में जाना अमिताभ बच्चन के लिए एक व्यापारिक और राजनीतिक फैसला है . मोदी भी अपने फन के माहिर हैं और अमिताभ बच्चन तो शताब्दी के सबसे बड़े अभिनेता माने जा चुके हैं . ज़ाहिर है आने वाला वक़्त आम आदमी को बहुत सारा मनोरंजन लेकर आने वाला है

1 comment:

  1. सत्य कहा आपने ,
    अमिताभ बच्चन का राज ठाकरे के आगे झुकना भी हम यू० पी० वालों को अच्छा नहीं लगा ,मेरा ख़याल है कि वो घुटनों के बल चल कर ही मेगास्टार बने हैं , अपना ब्लॉग तक हिन्दी में नहीं लिखते हिन्दी और हिंदीभाषियों से उनका कोई लगाव नहीं ,
    अब नरेन्द्र मोदी के आगे घुटने टेके हैं तो कौन सी बड़ी बात हुई ,ये सब तो उनके खून में शामिल है
    निज आन -मान मर्यादा का उनको न कोई ध्यान था न है न रहेगा
    पा फ्लाप तो हो ही गयी

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