Sunday, December 9, 2018

एग्जिट पोल करने वाली कंपनियों को अपनी पेशेवर विश्वसनीयता को बहाल करना चाहिए


शेष नारायण सिंह  


पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव के लिए वोट पड़ चुके हैं. नतीजे ११ दिसंबर को आयेंगे. लेकिन ७ दिसंबर को आखिरी वोट पड़ने के तुरंत बाद टीवी चैनलों पर एग्जिट पोल की बहार  आ गयी .  इन पांच चुनावों में बीजेपी,कांग्रेस मिज़ो नैशनल फ्रंट और तेलंगाना राष्ट्र समिति  मुख्य खिलाड़ी हैं . बसपा,सपातेलुगु देशम ,कम्युनिस्ट पार्टी जैसी कुछ पार्टियाँ साइड रोल में हैं . आख़िरी वोट के बाद एग्जिट पोल के उत्सव के साथ ही नतीजों के इंतज़ार का काम शुरू हो गया. तरह तरह के बुकराती से परिपूर्ण ज्ञान का अजीर्ण  आजकल दिल्ली की सडकों दफ्तरोंरेस्तराओं में  डंके की चोट पर देखा जा सकता है .जो एग्जिट पोल आये हैं उनसे नतीजों के बारे में कोई तस्वीर साफ़ नहीं हो रही है .साफ़ होने की बात तो दूर माहौल और भी पेचीदा हो गया है . राजस्थान में तो सभी चैनलों ने कांग्रेस की जीत का दावा किया है  लेकिन उसके अलावा हर राज्य में तस्वीर  बिलकुल घालमेल हो गयी है . किसी सर्वे में कांग्रेस जीत रही है तो  किसी अन्य में बीजेपी . एक ही राज्य की अलग अलग भविष्यवाणियां कर दी गयी हैं . एक चैनल ने तो बहुत ही मनोरंजक एग्जिट पोल अपने  दर्शकों को दिखाया . उसने दो एजेंसियों से एग्जिट पोल करवाया . एक एग्जिट पोल में बीजेपी की जीत दिखाई जा रही थी तो उसी चैनल पर दिखाए जा रहे दूसरे  एग्जिट पोल में कांग्रेस की जीत का मौसम था . समर्पित पत्रकारिता की दिशा में इस चैनल का यह कारनामा निश्चित रूप से एक नया पैमाना है. नतीजों के दिन इस चैनल के बहुत ही ऊंची आवाज़ वाले सर्वज्ञ एंकर घोषित करेंगे कि उनके चैनल पर दिखाया गया एग्जिट पोल बिलकुल सही है . क्योंकि उनका चैनल तो दोनों ही पार्टियों की जीत का एग्जिट पोल दिखा चुका  है.
लेकिन एग्जिट पोल वाली एजेंसियों की भी बात निराली ही है . किसी  ने बीजेपी की जीत बतायी तो किसी ने कांग्रेस की . पिछले कई चुनावों का तजुर्बा है कि एजेंसी की भविष्यवाणी या डेटा का विश्लेषण सच्चाई से काफी दूर होता है .लेकिन एजेंसी के ज़िम्मेदार लोग हिम्मत नहीं हारते . वे रिज़ल्ट के दिन टीवी पर विराजते हैं और बाकायदा समझाते हैं कि उनकी भविष्यवाणी बिलकुल सही थी ,बस थोडा सा आंकड़ों में छुपे हुए कुछ तथ्य सीटों की भविष्यवाणी करते समय  नज़रंदाज़ हो गए थे . कुछ चैनलों ने तो जो भविष्यवाणी दिखाई उसके लघुत्तम और महत्तम में इतना फर्क था कि कोई भी उस भविष्यवाणी  को कर सकता था. एक चैनल पर दिखाया जा रहा था कि बीजेपी किसी राज्य में १०२-१२२ सीट लायेगी और कांग्रेस १०४-१२४ सीट . अब बताइये इसका क्या मतलब है . इससे भी ज़्यादा दिलचस्प बात यह है कि टीवी चैनलों में जो कुछ ऐसे एंकर हैं जिनकी किसी पार्टी के साथ पक्षधरता उनके गले में मैडल के तरह लटकती रहती है ,वे भी  बहुत दुखी थे और अपने  तरीके से व्याख्या कर रहे थे .एक बानगी देखिये : एक एंकर ने कहा कि बीजेपी ने राजस्थान में भारी उछाल दर्ज की  है . उन्होंने फरमाया कि जब पहला चुनाव पूर्व  सर्वेक्षण आया  था तो राजस्थान में बीजेपी को २०-२५ सीटें बतायी जा रही थीं और आज एग्जिट पोल के दिन वह संख्या ७०-८० तक पंहुच गयी है . इसका श्रेय  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की ज़बरदस्त चुनाव जीतने की रणनीति को  जाता है . उन्होंने दावा किया कि दुनिया जानती है कि जितनी मेहनत अमित शाह चुनाव को जीतने के लिए करते हैं , उतनी मेहनत किसी पार्टी का कोई भी नेता नहीं कर सकता . कांग्रेस के प्रति आस्था रखने वाले एक एंकर ने बताया कि  विधानसभा चुनाव २०१८ का सीधा मतलब यह है कि लोकसभा २०१९ का नतीजा यही होगा .  अब इनसे कोई पूछे कि  इतने तूफानी बयानों का क्या मतलब है . अपनी पूर्वाग्रही कुंठाओं को टीवी पर ऐलानियां व्यक्त नहीं करना चाहिए इससे पत्रकारिता के पेशे का बहुत नुक्सान होता है .
टी वी पर एग्जिट पोल की बहस के दौरान पिछले कई  हफ़्तों से चुनावी प्रचार टाइप टीवी बहसों को झेल रही देश की जनता के लिए मौसम थोडा बदला हुआ था . हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर –मस्जिद, पाकिस्तान आदि  विषयों से पक चुके लोगों ने हालाते हाजेरह पर  तथ्यात्मक टिप्पणी करते हुए नेताओं और पत्रकारों को देखकर निश्चित रूप से राहत की  सांस ली होगी. लेकिन वहां भी विरोधभासी बयानों की कमी नहीं थी. बीजेपी वाले पिछले चार पांच साल से हर चुनाव के बाद टुडेज़ चाणक्य के विश्लेषण की जय जयकार करते रहते थे लेकिन इस बार वे उसको गलत बताते पाए गए , एक प्रवक्ता ने तो उसकी क्षमता पर गंभीर अनियमितता का आरोप भी लगा दिया . लेकिन  मज़ा  दूसरी तरफ था . इस बार वही कांग्रेसी जो एग्जिट पोल के दिन टुडेज़ चाणक्य को बंकम बताते थे, इस बार उसकी शान में कसीदे पढ़ते देखे  गए. शायद  ऐसा इसलिए था कि टुडेज़ चाणक्य ने राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेसी बहुमत का तखमीना पेश कर दिया है.
कुछ मिलाकर  एग्जिट पोल के दिन की व्याख्या यह  है कि  उसके भांति भांति के आंकड़ों ने तस्वीर को बिलकुल धुंधला कर दिया है. चुनाव नतीजों के बारे में सच्चाई की आहट ले  सकने में इंसानी क्षमता को इन आंकड़ों ने  बुरी तरह से झकझोर दिया  है . इस बीच राजनीतिक  गलियारों में तरह तरह  की गपशप चल रही है . राजनेताओं का तो इन नतीजों पर बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है . कई अति उत्साही एंकरों ने प्रचारित कर रखा था कि विधानसभा २०१८  वास्तव में लोकसभा २०१९ का सेमी फाइनल है और अब एग्जिट पोल के बाद उनकी बोली बदल रही है लेकिन सच्चाई यह  है कि यह २०१९ का सेमी फाइनल है इसमें कोई दो राय नहीं है .  ७ दिसम्बर को हुए एग्जिट पोल ने दिल्ली के राजनीतिक दरबारों में होने वाली बातचीत में काफी नरमी का तडका दे दिया है ,इस बात से कोई इनकार नहीं किया जा सकता , लेकिन यह भी अब बहुत ज़रूरी है कि  अपने आपको मजाक का विषय बनाने से रोकने के लिए सर्वे वालों को चाहिए कि अपने काम को और भी पेशेवराना अंदाज़ में करने की कोशिश करें . यूरोप और अमरीका की कम्पनियां भी एग्जिट पोल करती हैं और उनके नतीजे सच से इतने दूर नहीं होते जितने हमारे होते  हैं . इन एजेंसियों की क्षमता पर एक  ज़बरदस्त तमाचा  सट्टा बाज़ार से भी आता  है जो फलोदी और इंदौर की अंधेरी कोठरियों में बैठकर ,गैरकानूनी तरीके से चुनावी बतीजों के बारे में लगभग सही आकलन करते है . दुनिया लागातार छोटी होती जा रही है और अगर प्रतिस्पर्धा में रहना है तो चुनाव का सर्वे करने वाली कंपनियों को अपनी  पेशेवराना काबिलियत को बढ़ाना  होगा . 

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