शेष नारायण सिंह
देश की राजनीति में ज़बरदस्त गतिविधियाँ चल रही हैं , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सत्ता के तीन साल पूरे होने पर उनकी पार्टी पूरे देश में मोदी फेस्ट नाम से त्यौहार मना रही है . मीडिया में प्रधानमंत्री को समर्थन खूब मिल रहा है , सभी सरकारी विभाग भी मोदी फेस्ट में अपना योगदान कर रहे हैं . जिन राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं वहां भी मोदी जी का त्यौहार मनाया जा रहा है. इसी बीच राष्ट्रपति का कार्यकाल ख़त्म होने वाला है सो नए राष्ट्रपति के चुनाव के लिए नई दिल्ली में राजनीतिक सरगर्मियां तेज़ हो गयीं हैं . राष्ट्रपति के चुनाव के लिए जो एलेक्टोरल कालेज है उसमें सत्ताधारी गठबंधन का बहुमत है इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिसको चाहेंगे , वह आराम से राष्ट्रपति पद की कुर्सी पर २५ जुलाई को बैठ जाएगा लेकिन विपक्षी पार्टियों से सहमति बनाने के लिए बीजेपी अध्यक्ष ने तीन केन्द्रीय मंत्रियों की एक समिति बना दी है जो विपक्षी दलों से बातचीत करके राष्ट्रपति का चुनाव निर्विरोध कराने की कोशिश में जुट गई है .तीन साल पूरे होने पर नरेंद्र मोदी के पक्ष में ख़ासा माहौल है . बीजेपी का दावा है कि यह नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के कारण है , पार्टी के समर्थक और कुछ मीडिया संस्थान भी यही मानते हैं . आमतौर पर माना जा रहा है कि जिन लोगों ने २०१४ में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनवाने के लिए वोट दिया था , वे अभी भी उनके समर्थन में हैं . उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में उनकी पार्टी को जो सफलता मिली है वह भी इसी तरफ संकेत करती है . थोक महंगाई की दर भी बहुत कम हो गयी है और टेलिविज़न चैनलों पर बीजेपी प्रवक्ता इसको बहुत ही करीने से देश दुनिया को समझा रहे हैं . लेकिन जानकार बता रहे हैं कि थोक बाज़ार में सब्जियों के दाम बहुत ही नीचे आ गए हैं और किसानों को औने पौने दामों पर बेचना पड़ रहा है . इसलिए थोक दाम बहुत ही नीचे आ गए हैं .
दर असल बीजेपी के त्योहारी माहौल को किसानों के आन्दोलन वाली की मुसीबतें बहुत ही मुश्किल में डाल रही हैं .चुनाव के दौरान किसानों की भलाई के लिए नरेंद्र मोदी ने बहुत ही आकर्षक वायदे किये थे . यह वायदे २०१३-१४ के लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान भी किये गए थे और उसके बाद हुए राज्यों के चुनावों में भी किये गये . उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने तो क़र्ज़ माफी वाला मोदी जी का वायदा पूरा करने की दिशा में बहुत ही महत्वपूर्ण क़दम भी उठा लिया है . मंत्रिमंडल की बैठक में फैसला ले लिया गया है कि किसानों का क़र्ज़ माफ़ कर दिया जाएगा. प्रधानमंत्री के वायदों का लुब्बो लुबाब यह था कि किसानों की आमदनी डेढ़ गुना कर दी जायेगी और उनके क़र्ज़ माफ़ कर दिए जायेगें . तीन साल तक तो इस मुद्दे पर कोई ख़ास चर्चा नहीं हुयी लेकिन जब उत्तर प्रदेश में किसानों की क़र्ज़ माफी की घोषणा हो गयी तो कई राज्यों में किसानों का आन्दोलन शुरू हो गया . तमिलनाडु में तो आन्दोलन पत्तर प्रदेश की क़र्ज़ माफी की घोषणा के पहले ही से चल रहा था और उस को पूरी दुनिया का मीडिया कवर भी कर रहा था. उत्तर प्रदेश के फैसले के बाद तो महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में ज़बरदस्त आन्दोलन शुरू हो गया . महाराष्ट्र में करीब दो हफ्ते तक चले आन्दोलन के बाद जब राज्य सरकार को समझ में आ गया कि इस बार किसान कुछ लेकर ही जायेगें तो वहां भी आंशिक क़र्ज़ माफी की दिशा में एक कमेटी बना कर पहला क़दम उठा लिया गया . हालांकि कई जानकार मानते हैं कि महाराष्ट्र सरकार ने मामले को थोडा टालने के लिए यह क़दम उठाया है . यह ऐसा मुद्दा है जिसपर आने वाले समय में तय होगा कि सरकार की नीयत क्या थी. जब वक़्त आयेगा तो उसकी भी व्याख्या कर ली जायेगी . बहरहाल अभी समस्या यह है कि प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी को जिस सबसे बड़े वर्ग ने उनके वायदों पर विश्वास करके वोट दिया था वह अभी नाराज़ है और आन्दोलन के रास्ते पर है . किसानों का आन्दोलन समकालीन भारत के राजनीतिक इतिहास की बहुत बड़ी घटना बन गया है क्योंकि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंदसौर के आन्दोलन को बहुत बिगाड़ दिया . शुरू में उनके गृहमंत्री ने बयान दे दिया कि जिन किसानों की मंदसौर में मौत हुयी है , उनको पुलिस ने गोली नहीं मारी . बाद में गृहमंत्री महोदय ने बयान बदला और यह कहा कि पुलिस ने ही किसानों की हत्या की लेकिन साथ ही यह भी प्रचार होने लगा कि जो लोग मरे हैं वे ठीक आदमी नहीं थे . उनकी इस बात को भी बेमतलब सरकार ने ही साबित कर दिया जब सरकार ने मरे हुए किसानों के परिवार के लिए एक-एक करोड़ रूपये की सहायता की घोषणा कर दी . बाद में मुख्यमंत्री जी अनशन पर भी बैठ गए .वहीं अनशन स्थल पर ही किसानों ने भी धरना दे दिया लेकिन शिवराज सिंह चौहान की वीरता की तारीफ़ करनी होगी इस माहौल में ही उसी उपवास वाले महंगे और भारी पंडाल में अपनी पत्नी का जन्मदिन भी मनाया . कुल मिलाकर मध्यप्रदेश में किसानों के आन्दोलन की समस्या को शिवराज सिंह चौहान ने इतना खराब कर दिया कि केंद्रीय नेतृत्व उनसे खासा नाराज़ बताया जा रहा है . मध्य प्रदेश के किसान आन्दोलन से होने वाले नुक्सान को शिवराज सिंह ने काबू में करना तो दूर , उसको बढ़ने के लिए बहुत सारे अवसर उपलब्ध कराये . यह तो उनकी क़िस्मत अच्छी थी कि जितना नुक्सान होना था वह नहीं हुआ क्योंकि मध्य प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने किसानों के आन्दोलन से मिलने वाली पूंजी को तितर बितर कर दिया . पार्टी के आला नेता राहुल गांधी के सबसे करीबी दोस्त और मध्य प्रदेश में उनके आघोषित प्रतिनिधि , ज्योतिरादित्य सिंधिया उसी दिन अमरीका चले गए . जब राज्य कांग्रेस की चिंता करने वाले उनके कुछ करीबी लोगों ने कहा कि आपको इस वक़्त मंदसौर में होना चाहिए क्योंकि वहां जनता मुसीबत में है तो बताते हैं कि उन्होंने कहा कि उनका अमरीका जाना बहुत ज़रूरी है . उसके बाद राहुल गांधी मंदसौर गए लेकिन वहां से जल्दी जल्दी वापस आ गए . उनके करीबी सचिन पाइलट ने उनको समझा दिया कि मंदसौर में रुकना ठीक नहीं है जबकि जे डी ( यू ) के बड़े नेता शरद यादव भी साथ गए थे और वे आन्दोलन में शामिल होने के मूड में थे .वहां से आकर राहुल गांधी विदेश यात्रा पर चले गए जिसको कुछ मीडिया संगठन बड़ा मुद्दा बना रहे हैं . जो भी हो राहुल गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया की निष्क्रियता के कारण बीजेपी की वह दुर्दशा होने से बच गयी जो कि इतने बड़े आन्दोलन के बाद हो सकती थी.
किसान आन्दोलन के राजनीतिक परिणाम अभी नहीं आये हैं , अभी समय लगेगा . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों को जो वायदे किये थे उनकी लिस्ट बड़ी है लेकिन जो मुख्य मुद्दे हैं वे खेती करने वालों की आमदनी को डेढ़ गुना करना और क़र्ज़ माफी मुख्य हैं . जहां तक क़र्ज़ माफी का सवाल है उसपर तो सरकार के लिए खासी मुश्किल आने वाली है . पूरे देश में किसानों पर बारह लाख साठ हज़ार करोड़ रूपये का क़र्ज़ है जिसमें से अभी उत्तर प्रदेश सरकार ने ३६ हज़ार करोड़ की कर्जमाफी की दिशा में पहल शुरू कर दी है. यह अलग बात है कि उसके लिए केंद्र से कोई सहायता नहीं मिलने वाली है . राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दिल्ली आये थे . उनको वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बता दिया कि क़र्ज़ माफी के लिए उनको केंद्र सरकार से कोई मदद नहीं मिलने वाली है . उत्तर प्रदेश सरकार ने बांड जारी करके धन का इंतज़ाम करने की कोशिश की जिसके लिए रिज़र्व बैंक ने अनुमति ही नहीं दिया . इसका मतलब यह है कि उत्तर प्रदेश में भी किसानों की क़र्ज़ माफी को विपक्षी राजनीतिक मुद्दा बना सकते हैं . यहाँ का विपक्ष मध्यप्रदेश जैसी हालत में नहीं है. यहाँ अखिलेश यादव विपक्ष के मुख्य नेता हैं और वे मौके की तलाश में बैठे हैं . उन्होंने एक प्रेस वार्ता में भी कहा था कि जब सरकार गलती करेगी तो जनता का पक्ष वे राजनीतिक बहस के दायरे में लाने में संकोच नहीं करगें . अखिलेश यादव ने अपने परिवार की मुख्य विरोधी , बसपा नेता मायावती की तरफ भी समझौते का हाथ बढ़ा दिया है . उनके चाचा और पार्टी के बड़े नेता शिवपाल सिंह यादव भी अब समाजवादी पार्टी में हाशिये पर हैं . दर असल मायावती को अपमानित करने के लिए शिवपाल यादव की अगुवाई में ही करीब २२ साल पहले गेस्ट हाउस काण्ड हुआ था . लगता है कि अखिलेश यादव मायावती को गेस्ट हाउस काण्ड की यादों की तकलीफ से बाहर लाने की कोशिश कर रहे हैं . अगर इन दोनों की एकता हो जाती है और किसानों की क़र्ज़ माफी के मुद्दे पर योगी सरकार की परेशानियां कम नहीं होतीं तो बीजेपी के लिए उत्तर प्रदेश में राजनीतिक रूप से मुश्किलें पेश आना शुरू हो जायेंगीं.
बीजेपी को मंडल कमीशन से लाभ पाने वाली जातियों की एकता हमेशा परेशान करती रही है. पिछले लोकसभा चुनाव में अपने तब के प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को बीजेपी ने सफलता पूर्वक ओबीसी के रूप में पेश कर दिया था जिसका राजनीतिक लाभ उनको मिला . अगर किसी राजनीतिक परिस्थिति में ओबीसी जातियों की एकता हो जाती है तो बीजेपी का मोदी फेस्ट वह राजनीतिक फायदा नहीं ला पायेगा जिसकी उम्मीद में इतना बड़ा आयोजन किया गया है. ओबीसी एकता के राजनीतिक नुक्सान से बीजेपी का आला नेतृव वाकिफ है . सबको मालूम है कि इस राजनीतिक एकता के सबसे बड़े शिल्पी लालू प्रसाद यादव ही हैं . हालांकि आजकल उनके परिवार के ऊपर कई तरह की जांच चल रही है , मीडिया में भी उनकी बहुत सारी कमियों को हाईलाईट किया जा रहा है लेकिन जो लालू यादव को जानते हैं , उनको मालूम है कि राजनीतिक पार्टियों की एकता के सबसे बड़े अलमबरदार लालू यादव ही हैं .
ऐसे माहौल में जब बहुत सारी राजनीति माहौल में विद्यमान है तो आने वाले दो साल बहुत ही दिलचस्प होने वाले हैं .ऐसा लगता है कि राष्ट्रपति चुनाव के हवाले अगले एक महीने में ही आने वाले दो वर्षों की राजनीति की रूप रेखा तय हो जायेगी . किसान आन्दोलन और विपक्षी पार्टियों की एकता देश की दो साल की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाली है .
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