Tuesday, February 3, 2015

महात्मा गांधी के हत्यारे को भगवान बनाने की साज़िश को तबाह करो.



शेष नारायण सिंह

महात्मा गांधी की शहादत को ६७ साल हो गए. महात्मा गांधी की हत्या जिस आदमी ने की थी वह कोई अकेला इंसान नहीं था. उसके साथ साज़िश में भी बहुत सारे लोग शामिल थे और देश में उसका समर्थन करने वाले भी बहुत लोग थे . तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल ने बताया था कि  महात्मा जी की हत्या के दिन  कुछ लोगों ने खुशी से मिठाइयां बांटी थीं. नाथूराम गोडसे और उसके साथियों के पकडे जाने के बाद से अब तक उसके साथ सहानुभूति दिखाने वाले चुपचाप रहते थे ,उनकी हिम्मत नहीं पड़ती थी कि कहीं यह बता सकें कि वे नाथूराम से सहानुभूति रखते हैं  . अब से करीब छः महीने पहले से उसके साथियों ने फिर सिर उठाना शुरू कर दिया है .अब वे नाथूराम को सम्मान देने की कोशिश करने लगे  हैं . आज के अख़बारों में खबर है कि कुछ शहरों में नाथूराम गोडसे के मंदिर बनने वाले हैं . पिछले दिनों जब उत्तर प्रदेश के कुछ शहरों में नाथूराम गोडसे की मूर्ति लगाने की कोशिश की गयी तो भारी विरोध हुआ . लेकिन अब पता चला है कि गोडसे की पार्टी , हिन्दू महासभा के वर्तमान नेताओं ने तय किया है कि कुछ मंदिरों के संचालक साधुओं से बात की जायेगी और मौजूदा मंदिरों में ही गोडसे की मूर्तियाँ रखवा दी जायेगीं . तय यह भी किया गया है कि मीडिया में बात को लीक नहीं होने दिया जाएगा क्यंकि बहुत चर्चा हो जाने से उनको गोडसे के महिमा मंडन के काम में अड़चन आती है . नई रणनीति के हिसाब से पहले मूर्तियाँ लगा दी जायेगीं फिर मीडिया को खबर दी जायेगी .नाथूराम गोडसे की पार्टी के सूत्रों के हवाले से देश के एक बहुत ही सम्मानित अखबार में खबर छपी है कि इलाहाबाद के माघ मेले में पिछले कुछ हफ़्तों में ऐसे बहुत सारे साधुओं से बात हुयी है जो अपने कंट्रोल वाले मंदिरों में मूर्तियाँ रखवा देगे .इन तत्वों का तर्क यह है कि नाथूराम गोडसे मूल रूप से अखंड भारत के पक्षधर थे . उनकी सोच को आगे बढाने के लिए यह सारा  काम किया जा रहा है . अखबार की खबर के अनुसार इन लोगों ऐसे कुछ नौजवानों को इकठ्ठा कर लिया है जो महात्मा गांधी की समाधि , राजघाट पर भी नाथूराम गोडसे की मूर्ति रखने को तैयार हैं लेकिन अभी यह काम रोक दिया गया है . अभी फिलहाल पूरे देश में करीब पांच सौ मूर्तियाँ रखने की योजना है और जयपुर में मूर्ति बनाने वालों को आर्डर भी दे दिया गया है. महात्मा गांधी की हत्या से जुड़े सवालों पर अपनी बात रखने के लिए गोडसे के भक्तों ने बहुत सारा साहित्य बांटने की योजना भी बनाई है.
महात्मा गांधी के हत्यारे को इस तरह से सम्मानित करने के पीछे वही रणनीति और सोच काम कर रही है जो महात्मा गांधी की ह्त्या के पहले थी .गांधी की हत्या के पीछे के तर्कों का बार बार परीक्षण किया गया है लेकिन एक पक्ष जो बहुत ही उपेक्षित रहा है वह है  कि महात्मा गांधी को मारने वाले संवादहीनता की राजनीति के पोषक थे , वे बात को दबा देने और छुपा देने की रणनीति पर काम करते थे जबकि महात्मा गांधी अपने समय के सबसे महान कम्युनिकेटर थे. उन्होंने आज़ादी की लडाई से जुडी हर बात को बहुत ही  साफ़ शब्दों में बार बार समझाया था. पूरे देश के जनमानस में अपनी बात को इस तरह फैला दिया था की हर वह आदमी जो सोच सकता था वह गांधी के साथ था .
महात्मा गांधी की अपनी सोच में नफरत का हर स्तर पर विरोध किया गया था. लेकिन उनके हत्यारे के प्रति नफरत का जो पूरी दुनिया में माहौल है उसको उनकी रचनाएं भी नहीं रोक पायी थीं . इसका कारण यह है कि पूरी दुनिया में महात्मा गांधी का बहुत सम्मान है .  पूरी दुनिया में उनके प्रशंसक और भक्त फैले हुए हैं। महात्मा जी के सम्मान का आलम तो यह है कि वे जाति, धर्म, संप्रदाय, देशकाल सबके परे समग्र विश्व में पूजे जाते हैं। वे किसी जाति विशेष के नेता नहीं हैं। हां यह भी सही है कि भारत में ही एक बड़ा वर्ग उनको सम्मान नहीं करता बल्कि नफरत करता है। इसी वर्ग और राजनीतिक विचारधारा के जिस  व्यक्ति ने 30 जनवरी 1948 के दिन गोली मारकर महात्मा जी की हत्या कर दी थी। उसके वैचारिक साथी अब तक उस हत्यारे को सिरफिरा कहते थे लेकिन यह सबको मालूम है कि महात्मा गांधी की हत्या किसी सिरफिरे का काम नहीं था। वह उस वक्त की एक राजनीतिक विचारधारा के एक प्रमुख व्यक्ति का काम था। उनका हत्यारा कोई सड़क छाप व्यक्ति नहीं था, वह हिंदू महासभा का नेता था और 'अग्रणी' नाम के उनके अखबार का संपादक था। गांधी जी की हत्या के आरोप में उसके बहुत सारे साथी गिरफ्तार भी हुए थे। ज़ाहिर है कि गांधीजी की हत्या करने वाला व्यक्ति भी महात्मा गांधी का सम्मान नहीं करता था और उसके वे साथी भी जो आजादी मिलने में गांधी जी के योगदान को कमतर करके आंकते हैं। अजीब बात है कि गोडसे को महान बताने वाले और महात्मा गांधी  के योगदान को कम करके आंकने वालों के हौसले आज बढे हुए  हैं . लेकिन इसमें गांधी के भक्तों और अहिंसा की राजनीति के  समर्थकों को निराश होने की ज़रुरत नहीं है क्योंकि जिन लोगों ने 1920 से लेकर 1947 तक महात्मा गांधी को जेल की यात्राएं करवाईं, वे भी उनको सम्मान नहीं करते थे। इस तरह से हम देखते हैं कि महात्मा गांधी को सम्मान न देने वालों की एक बड़ी जमात हमेशा से ही मौजूद रही है . आज का दुर्भाग्य  यह है कि वे लोग अब तक छुप कर काम करते थे अब ऐलानियाँ काम करने लगे हैं .
भारत के कम्युनिस्ट नेता भी महात्मा गांधी के खिलाफ थे। उनका आरोप था कि देश में जो राष्ट्रीय आंदोलन चल रहा था, उसे मजदूर और किसान वर्ग के हितों के खिलाफ इस्तेमाल करने में महात्मा गांधी का खास योगदान था। कम्युनिस्ट बिरादरी भी महात्मा गांधी के सम्मान से परहेज करती थी। जमींदारों और देशी राजाओं ने भी गांधी जी को नफरत की नजर से ही देखा था, अपनी ज़मींदारी छिनने के लिए वे उन्हें ही जिम्मेदार मानते थे। इसलिए यह उम्मीद करना कि सभी लोग महात्मा जी की इज्जत करेंगे, बेमानी है। हालांकि इस सारे माहौल में एक बात और भी सच है, वह यह कि महात्मा गांधी से नफरत करने वाली बहुत सारी जमातें बाद में उनकी प्रशंसक बन गईं। जो कम्युनिस्ट हमेशा कहते रहते थे कि महात्मा गांधी ने एक जनांदोलन को पूंजीपतियों के हवाले कर दिया था, वही अब उनकी विचारधारा की तारीफ करने के बहाने ढूंढते पाये जाते हैं। अब उन्हें महात्मा गांधी की सांप्रदायिक सदभाव संबंधी सोच में सदगुण नजर आने लगे है।लेकिन आज भी गोडसे के भक्तों की एक परम्परा है जो महात्मा जी को सम्मान नहीं करती.
आर.एस.एस. के ज्यादातर विचारक महात्मा गांधी के विरोधी रहे थे लेकिन 1980 में बीजेपी ने गांधीवादी समाजवाद के सिद्घांत का प्रतिपादन करके इस बात को ऐलानिया स्वीकार कर लिया कि महात्मा गांधी का सम्मान किया जाना चाहिए। अब देखा गया है कि आर एस एस और उसके मातहत सभी संगठन महात्मा गांधी को कांग्रेस से छीनकर अपना हीरो  बनाने की कोशिश करते पाए जाते हैं . आर एस एस के बहुत सारे समर्थक कहते हैं की महात्मा गांधी कभी भी कांग्रेस के सदस्य नहीं थे. ऐसा इतिहास के अज्ञान के कारण ही कहा जाता है क्योंकि महात्मा गांधी के जीवन के तीन बड़े आन्दोलन  कांग्रेस पार्टी के ही आन्दोलन थे. १९२० के आन्दोलन को कांग्रेस से मंज़ूर करवाने के लिए महात्मा गांधी ने कलकत्ता और नागपुर के अधिवेशनों में बाक़ायदा अभियान चलाया था . देशबंधु चितरंजन दास ने कलकत्ता सम्मलेन में गांधी जी का विरोध किया था लेकिन नागपुर में वे उनके साथ आ गए थे. १९३० का आन्दोलन भी जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता वाली कांग्रेस पार्टी के लाहौर में पास हुए प्रस्ताव का नतीजा था. १९४२ का भारत छोड़ो आन्दोलन भी मुंबई में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में लिया गया था .  महात्मा  गांधी खुद १९२४ में बेलगाम में हुए कांग्रेस के उन्तालीसवें  अधिवेशन के अध्यक्ष थे . लेकिन वर्तमान कांग्रेसियों को इंदिरा गांधी के वंशज  गांधियों के सम्मान की इतनी चिंता  रहती है कि महात्मा गांधी की विरासत को अपने नज़रों के सामने छिनते देख रहे हैं और उनके  सम्मान तक की रक्षा नहीं कर पाते. इसके अलावा जिन अंग्रेजों ने महात्मा जी को उनके जीवनकाल में अपमान की नजर से देखा, उनको जेल में बंद किया, ट्रेन से बाहर फेंका उन्हीं के वंशज अब दक्षिण अफ्रीका और इंगलैंड के हर शहर में उनकी मूर्तियां लगवाते फिर रहे हैं। इसलिए गांधी के हत्यारे को सम्मानित करने की कोशिश में लगे लोगों को समझ लेना चाहिए कि भारत की आज़ादी की लड़ाई के हीरो और दुनिया भर में अहिंसा की राजनीति के संस्थापक को अपमानित करना असंभव है . इनको इन कोशिशों से बाज आना चाहिए.
मौजूदा सरकार को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि महात्मा गांधी के हत्यारे को सम्मानित करने वालों को पूजनीय बनाने की कोशिश उन पर भी भारी पड़ सकती है .महात्मा गांधी की शहादत के दिन को देश में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है . इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने देशवासियों के नाम सन्देश भेजा है जिसमें कहा गया है कि "पूज्य बापू को उनकी पुण्यतिथि पर शत् शत् नमन. "  महात्मा गांधी के प्रति यह सम्मान बना रहे इसलिए ज़रूरी है कि  गांधी के हत्यारों को सम्मानित न किया जाए .प्रधानमंत्री समेत पूरी दुनिया ने देखा है कि अमरीकी राष्ट्रपति ने किस तरह से महात्मा गांधी का सम्मान किया था . राष्ट्रपति बराक ओबामा की यात्रा मोदी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है . बराक ओबामा ने दिल्ली में अपने तीन दिन के कार्यक्रम में बार बार यह बताया कि उनके निजी जीवन और अमरीका के सार्वजनिक जीवन में महात्मा गांधी का कितना महत्व है . ज़ाहिर है महात्मा गांधी का नाम भारत के राजनेताओं के लिए बहुत बड़ी राजनीतिक पूंजी है . अगर उनके हत्यारों को सम्मानित करने वालों को फौरन रोका न गया तो बहुत मुश्किल पेश आ सकती है . प्रधानमंत्री समेत सभी नेताओं को चाहिए कि नाथूराम गोडसे को भगवान बनाने की कोशिश करने वालों की मंशा को सफल न होने दें वरना भारत के पिछली सदी के इतिहास पर भारी कलंक लग जाएगा .

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