Friday, April 10, 2015

भ्रष्टाचार को समर्पित एक साल और राजनीति की उतरती आबरू

यह मेरा २०१० का एक लेख है . पता नहीं कैसे फेसबुक पर अब फिर  प्रकट हो गया . इसको इसलिए दोबारा पोस्ट कर रहा हूँ क्योंकि मित्र लोग इसे ताज़ा लेख समझ रहे हैं . यह लेख डॉ मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान साल २०१० की समीक्षा करता है , मौजूदा सरकार की नहीं . इसे मेरे ब्लॉग पर ३१ दिसंबर २०१० को पोस्ट किया गया था..



शेष नारायण सिंह 

देश की राजनीति स्थिति बहुत ही  गड़बड़झाले से गुज़र रही है.कांग्रेस की ढिलाई और हालात पर पकड़ के कमज़ोर होने की वजह से अगर आज चुनाव हो जाएँ तो उनकी हार लगभग पक्की मानी जा रही है .यह बात बहुत सारे कांग्रेसियों को भी पता है . बीजेपी वालों को यह बात सबसे ज्यादा मालूम है . शायद इसी वजह से जेपीसी के नाम पर वे सरकार को घेरे में लेना चाहते हैं . वैसे इस बात में दो राय नहीं है कि 2010  मेंअपने देश में भ्रष्टाचार के सारे रिकार्ड तोड़े गए हैं . भ्रष्टाचार और घूस की रक़म को इनकम मानने का रिवाज़ तो बहुत पहले से शुरू हो चुका है लेकिन घूसखोर थोडा संभलकर रहता था, भले आदमियों की नज़र बचाकर रहता था . लेकिन जब से संजय गाँधी ने अपराधियों को राजनीति में इज्ज़त देना शुरू किया, घूस को गाली मानने वालों की संख्या में भारी कमी आई थी . लेकिन भ्रष्टाचार को सम्मान का दर्ज़ा कभी नहीं मिला. पिछले बीस वर्षों में जब से केंद्र में गठबंधन सरकार की परंपरा शुरू हुई है , भ्रष्टाचार और घूस को इज्ज़त हासिल होने लगी है . घूसखोर आदमी अपने आप को सम्मान का हक़दार मानने लगा है. राजनीति में शामिल लोगों की आमदनी कई गुना बढ़ गयी है और भ्रष्ट होना अपमानजनक नहीं रह गया है . जब तक बीजेपी वाले विपक्ष में थे , माना जाता था कि यह ईमानदार लोगों की जमात है . लेकिन कई राज्यों में और केंद्र में 6 साल तक सरकार में रह चुकी  बीजेपी भी अब बाकायदा भ्रष्ट मानी जाने लगी है. बीजेपी में फैले भ्रष्टाचार को उनके बड़े नेता कांग्रेसीकरण कहते हैं और उपदेश देते हैं कि पार्टी को कांग्रेसीकरण की बीमारी से बचायें .यह अलग बात है कि बीजेपी को भ्रष्टाचार की आदत से बचा पाने की हैसियत अब किसी की नहीं है . वह अब विधिवत भ्रष्ट हो चुकी है और वह जब भी सत्ता में होगी भ्रष्टाचार में लिप्त पायी जायेगी . लेकिन भ्रष्टाचार की इस भूलभुलैया में भी सन 2010 का मुकाम बहुत ऊंचा है . इस  साल देश में आर्थिक भ्रष्टाचार के सारे पुराने रिकार्ड टूट गए हैं . कामनवेल्थ खेलों में  सुरेश कलमाड़ी के नेतृत्व में जमकर लूट मची है . शुरू में बीजेपी ने जांच के लिए बहुत जोर भी मारा लेकिन जब जांच के शुरुआती दौर में ही बीजेपी के कुछ नेताओं का गला फंसने लगा तो मामला ढीला पड़ गया . अब तो  लगता है कि कांग्रेस ही कामनवेल्थ के घूस को उघाड़ने में ज्यादा रूचि ले रही है .ऐसा शायद इसलिए कि उनका तो केवल एक मोहरा ,सुरेश कलमाड़ी मारा जाएगा जबकि बीजेपी के कई बड़े नेता कामनवेल्थ के घूस की ज़द में आ जायेगें. सुरेश कलमाड़ी को राजनीतिक रूप से ख़त्म करके देश के सत्ताधारी वंश का कुछ नहीं बिगड़ेगा . २जी स्पेक्ट्रम के घोटाले की जांच में अब बीजेपी और कांग्रेस के शामिल होने की जांच का काम शुरू हो गया है . ज़ाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो रही इस जांच से जो भी दोषी होगा ,दुनिया के सामने आ जाएगा. शायद इसीलिये मध्यवाधि चुनाव को लक्ष्य बनाकर बीजेपी वाले जेपीसी जांच की बात को आगे बढ़ा रहे हैं .उन्हें उम्मीद है कि जेपीसी जांच के दौरान रोज़ ही मीडिया में अपने लोगों की मदद से कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाया जा सकेगा .और उसका असर सीधे चुनाव प्रचार पर पड़ेगा. कुल मिलाकर हालात ऐसे बन रहे हैं कि देश की सत्ता की राजनीति रसातल की तरफ बढ़ रही है. दोनों ही मुख्य पार्टियां बुरी तरह से भ्रष्टाचार में डूबी हुई हैं . 
कांग्रेस पार्टी की राजनीति में सारी  ताक़त राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री बनाने के अभियान में झोंकी जा रही है . महात्मा गाँधी और सरदार पटेल की कांग्रेस के परखचे उड़ रहे हैं . समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के बुनियादी सिद्धांत पता नहीं कहाँ दफन हो गए हैं . आलाकमान कल्चर हावी है और सुप्रीम नेता से असहमत होने का रिवाज़ ही ख़त्म हो गया है . राजनीतिक जागरूकता के बुनियादी ढाँचे में कहीं कुछ भी निवेश नहीं हो रहा है . ठोस बातों की कहीं भी कोई बात नहीं हो रही है . पार्टी के बड़े नेता  चापलूसी के सारे रिकार्ड तोड़ रहे हैं और आजादी के बुनियादी सिद्धातों की कोई परवाह न करते हुए अमरीकी पूंजीवाद के कारिंदे के रूप में देश की छवि बन रही है . बीजेपी में भी हालात बहुत खराब हैं . कई गुटों में बंटी हुई पार्टी में किसी तरह का अनुशासन नहीं है . नागपुर की ताक़त से पार्टी के अध्यक्ष बने एक मामूली नेता को कोई भी इज्ज़त देने को तैयार नहीं है . वह नेता भी अपने अधिकार को बढाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहा है . एक न्यूज़ चैनल को इंटरव्यू देकर पार्टी अध्यक्ष ने अपनी ताक़त को दिखाने की कोशिश की है . उन्होंने साफ कह दिया है कि लाल कृष्ण आडवाणी अब उनकी पार्टी की तरफ से प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार नहीं रहेगें . भला बताइये ,2009 के लोकसभा चुनावों में पूरे देश में भावी प्रधानमंत्री का अभिनय करते हुए व्यक्ति को एक इंटरव्यू देकर खारिज  कर देना कहाँ का राजनीतिक इंसाफ़ है .  दिलचस्प बात यह है कि अपने आपको  प्रधान मंत्री पद की दावेदारी से दूर रख कर अध्यक्ष ने आडवाणी गुट के की कई नेताओं का नाम आगे कर दिया है. ज़ाहिर है उनके दिमाग में भी  आडवानी  गुट में फूट डालकर उनकी ताक़त को कमज़ोर  करने की रणनीति काम कर रही है .ऐसी हालात में देश की राजनीति में तिकड़मबाजों और जुगाड़बाजों का बोलबाला चारों तरफ बढ़ चुका है . अब तक बीजेपी वाले नीरा राडिया के हवाले से कांग्रेस को खींचने की कोशिश कर रहे थे लेकिन अब लगता है कि नीरा राडिया के बीजेपी के बड़े नेताओं से  ज्यादा करीबी संबंध रह चुके हैं . कुल मिलाकर हालात ऐसे बन गए हैं कि अब कोई चमत्कार ही देश की राजनीति की आबरू बचा सकता है . 

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