Saturday, January 25, 2014

केजरीवाल से किसी बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं ,यह भी को-आप्ट हो जायेगें

शेष नारायण सिंह 

लखनऊ के रहने वाले आदरणीय पत्रकार ,सिद्धार्थ कलहंस के फेसबुक पेज पर लगा यह नोट बिना उनसे पूछे नक़ल करके यहाँ चिपका रहा हूँ और इसके हर शब्द से अपने आपको सम्बद्ध करता हूँ.

 "भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी के तौर पर पहले लाखों कमाने वाले और बाद को एनजीओ चला करोड़ों कमाने वाले श्री केजरीवाल, मुशायरे में लाखों वसूलने वाले और कालेज में न पढ़ा हजारों लेने वाले विश्लावास, कोई गोपीनाथ कोई महेशव्री, सिहं, बारदालोई, साराभाई और इनफोसिस वाले सब आम आदमी हैं। पुस्तैनी शराब कारोबारी बाद को मीडिया मुगल हो जाने वाले कोई जायसवाल सब आम आदमी हैं। लखनऊ में डंडीमार, पेट्रोल पंप पर घटतौली करने वाले इस दल के संयोजक हैं।"

लेकिन यह भी सच है कि इन लोगों की पार्टी इतिहास के उस मुकाम पर भारत की राजनीति में नमूदार हुई है जब हमारी आज़ादी की विरासत को एक नरेंद्र मोदी और एक अदद राहुल गांधी मिलकर संसदीय लोकतंत्र से मिटाकर राष्ट्रपति प्रणाली की तरफ धकेल रहे हैं . अब तक के राहुल गांधी के आचरण से लग रहा है कि वे २०१४ का चुनाव नरेंद्र मोदी को गिफ्ट करके २०१६ के लिए तैयार होना चाह रहे हैं . जबकि नरेंद्र मोदी वही काम करने पर आमादा नज़र आ रहे हैं जो १९७५-७६ में उनके पूर्ववर्ती संजय गांधी करना चाह रहे थे . ऐसी हालत में या झाडू वाला रंगरूट एक ज़रूरी काम कर रहा है .  हम सभी जानते हैं कि उत्तर प्रदेश , गुजरात ,महाराष्ट्र, कर्नाटक, दिल्ली आदि इलाकों में यह राहुल गांधी और नरेंद्र नरेंद्र मोदी की मंशा पर लगाम लगाएगा . इससे ज़्यादा इससे उम्मीद नहीं की जानी चाहिए . क्योंकि जिस आन्दोलन से यह पैदा हुआ  है , अन्ना हजारे का वह रामलीला वाला शो बेईमानों की नीयत का नतीजा था.
जो लोग अरविन्द केजरीवाल से बहुत ही पवित्र राजनीतिक आचरण की उम्मीद कर रहे हैं ,उनको निराशा होगी क्योंकि अरविन्द केजरीवाल भी उतने ही सामन्ती सोच के मालिक हैं जितने नरेंद्र मोदी या राहुल गांधी . अभी से उनके साथ कांग्रेसी और भाजपाई धंधेबाज़ जुड़ना शुरू हो गए हैं . लोकसभा में कुछ सीटें जीतने के बाद यह भी जयललिता, करुणानिधि, शरद पवार, बाल ठाकरे, मुलायम सिंह यादव  , मायावती , नीतीश कुमार, लालू यादव, राम विलास पासवान जैसे लोगों की तरह ईमानदार हो  जायेगें लेकिन भारत के संसदीय इतिहास में अपनी भूमिका आदा करने के बाद में ही यह नेपथ्य में जाएँ तो अच्छा है .

अरविन्द केजरीवाल से किसी बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं करनी चाहिए क्योंकि जब स्थापित सत्ता को चुनौई देने वाली १९७४-७५ की संघर्ष शील पीढ़ी आज सत्ता प्रतिष्ठान का भ्रष्ट  नमूनों में शुमार हो चुकी है तो यह बेचारे केजरीवाल किस खेत की मूली हैं . याद रखना चाहिए कि जे पी के आन्दोलन के सभी नौजवान आज सिस्टम में शामिल हो चुके हैं ,अरविन्द केजरीवाल की टोली के लोग भी को-आप्ट हो जायेगें 

3 comments:

  1. भारत में आर्थिक मंदी के दिनों-दिन गहराते जाने की परिस्थिति ने जहां एक तरफ मज़दूरों के श्रम की भयंकर लूट को जन्म दिया और निम्नपूंजीवादी व मंझोले तबकों के भारी पैमाने पर सम्पतिहरण व स्वत्वहरण को जन्म दिया, वहीँ दूसरी तरफ इसने भारत के पूंजीपति वर्ग को नरेंद्र मोदी जैसे फासीवादी को भारत के भाग्यविधाता के रूप में पेश करने के लिए बाध्य किया है जो जनता को धर्म और छदम देशभक्ति के आधार पर बांटने का काम करने के साथ-साथ पूंजीपति वर्ग की भारी लूट को भी बदस्तूर जारी रख सके …लेकिन इस choice में क्रांति के फूट पड़ने के अपने भारी खतरें हैं, जिससे पूंजीपति वर्ग वाकिफ है। दरअसल पूंजीपति वर्ग के बीच इस बात को लेकर भारी मतभेद दिखाई दे रहा हैं कि मोदी जैसे फासीवादी नेता को आगे बढ़ाकर किसी भी तरह से श्रम की भारी लूट के आधार पर सुपर मुनाफा को बनाए रखा जाए या फिर किसी moderate व्यक्ति, जिसकी छवि ठीक-ठाक हो, को आगे बढ़ाकर बीच का कोई रास्ता निकाला जाए। लेकिन दूसरे option की कल तक दिक्कत यह थी कि भारत में कल तक ऐसी कोई पार्टी और व्यक्ति नहीं था। कांग्रेस, सपा, बसपा, राजद, जद, टीएमसी … सभी जनता की नज़रों में पहले ही गिर चुकी थीं। इस मोड़ पर पूंजीपति वर्ग की सबसे बड़ी आफियत या सुविधा यह थी कि इस बीच मज़दूर वर्ग की ताकतें अत्यंत कमजोर ही बनी रहीं।

    "आप" पार्टी बड़े पूंजीपति वर्ग की सबसे चहेती पार्टी बनकर उभर रही है.…

    इस घटनाक्रम के ठीक इसी मोड़ पर सुनियोजित या अप्रत्याशित तौर से "आप" पार्टी और क्षमतावान, आदर्शवादी और वैचारिक तौर पर सबसे कम खतरनाक तथा सुघड़ नेता श्री अरविन्द केजरीवाल के उदय ने पूंजीपति वर्ग के लिए दूसरे options को आज़माना आसान बना दिया है। अरविन्द केजरीवाल और मोदी भारत के बड़े पूंजीपति वर्ग के दो खेमों के प्रतिनिधि हैं, जिसमें अरविन्द केजरीवाल के आदर्शवादी चेहरे व कुछ नया प्रयोग करने वाले व्यक्तित्व और दिल्ली में मिली अपार सफलता से निखरी "आप" पार्टी बड़े पूंजीपति वर्ग की सबसे चहेती पार्टी बनकर उभर रही है.…… यह महज़ कोई संयोग नहीं है कि प्रायः सभी कॉर्पोरेट मीडिया घरानों में "आप" और केजरीवाल की धूम मची है और वे खुलकर "आप" को केंद्रीय सत्ता की असली हकदार बता रहे हैं

    इस मोड़ पर मज़दूर वर्ग की ताकतों को सही मूल्यांकन और सही कार्यनीति अपनाने की सख्त जरूरत है...... आप सभी दोस्तों से हार्दिक अपील है कि इस बहस को गम्भीरता के साथ आगे बढ़ाया जाए …… .http://communistvijai.blogspot.in/2014/01/blog-post_3.html

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  2. Well, let's hope for the best. AAP doesn't have a track record of being honest, congress, bjp and other parties do.

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  3. कल 30/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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