शेष नारायण सिंह
भारत के गृहमंत्री पी चिदंबरम ने २००९ में नई दिल्ली में तैनात अमरीकी राजदूत को बताया कि अगर पूर्व और उत्तर भारत के लोग भारत का हिस्सा न होते तो भारत एक बहुत ज्यादा विकसित देश होता. भारत के गृहमंत्री का यह बयान हर तरह से निंदा करने लायक है . वैसे भी वे बहुत वर्षों से दिल्ली की काकटेल सर्किट के सदस्य हैं जिसमें अभी तक बिहारी शब्द को गाली की तरह इस्तेमाल किया जाता है . वे दक्षिण से चुनकर ज़रूर आते हैं लेकिन उन्हें दक्षिण भारतीय नहीं कहा जा सकता . वे दरअसल दिल्ली में रहने वाली उस जाति के सदस्य हैं जिनके पूर्वज या तो अंग्रेजों के चाकर थे, उनके जी हुज़ूर थे या अंग्रेजों के राज में दिल्ली में दलाली वगैरह किया करते थे. पिछले साठ वर्षों में बाकी भारत से जो लोग भी दिल्ली आये उनकी एक बड़ी संख्या के लोग इसी बिरादरी की सदस्यता लेने के लिए व्याकुल रहते रहे हैं . इस वर्ग के लोगों को किसी भी प्रदेश या किसी भी वर्ग का कहना उस वर्ग का अपमान होगा. इनकी बिरादरी बहुत ही छोटी है . इसमें आम तौर पर नई भर्ती नहीं होती. कुछ ऐसे लड़के जो बिहार ,ओडिशा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के मूल निवासी होते हैं और आई ए एस या इनकम टैक्स जैसी नौकरियों में सिविल सर्विस परीक्षा पास करके चुन लिए जाते हैं , उनको शादी व्याह के चक्कर में फंसाकर इस काकटेल सर्किट वाले अपने साथ मिला अलेते हैं . बाद में उनके बाल बच्चे भी इसी तरह की ज़िंदगी के आदी हो जाते हैं और वे भी बिहारी शंब्द को बतौर गाली इस्तेमाल करने लगते हैं . दिल्ली शहर में आई ए एस या और नौकरियों में बहुत सारे ऐसे अफसर मिल जायेगें जिनकी शादी बचपन में ही हो गयी थी लेकिन बाद में बड़ी नौकरी में चुन लिए जाने के बाद काकटेल सर्किट वालों ने उन्हें फंसाया और दुबारा शादी करवा दी. उत्तर प्रदेश और बिहार का होने के बावजूद भी इन लोगों की जो औलादें है वे भी इसी दिल्ली की काकटेलजीवी बिरादरी के तरह बात करते पाए जाती हैं .. करीब तीस साल पहले तो यह बीमारी बहुत ही भयानक थी . उस दौर में चिदंबरम की उम्र के लोग यही कोई तीस पैंतीस साल के थे . चिदंबरम का अमरीकी आका को दिया गया बयान उनकी उसी मानसिकता की खुरचन है . इस तरह की बात करने वाले लोग आम तौर पर बिना किसी सोच समझ के ही यह बयान दे देते हैं .उन्हें मालूम नहीं रहता कि दुनिया कितनी बदल गयी है . ऐसे लोग जब पकडे जाते हैं तो कहते हैं कि वह बात तो मैंने निश्चिन्त भाव से की गई किसी बातचीत के दौरान कही थी. इनसे सवाल पूछा जाना चाहिए कि आप जब औपचारिक नहीं होते तो क्या गाली गलौज की भाषा में बात करते हैं . बहरहाल जो बात सबसे ज्यादा संभव लगती है वह यह है कि इस तरह की बातचीत करने वाले किसी बीमारी का शिकार होते हैं और उन्हें मानसिक रोगी मानकर उनकी बात का विश्लेषण किया जाना चाहिए . चिदंबरम के इस गैरज़िम्मेदार बयान पर उन्हें आज संसद के दोनों ही सदनों में लथेरा गया और सरकार को उनकी वजह से खिसियाहट झेलना पड़ा.
उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों को घटिया बताने के पहले इन लोगों को सोचना चाहिए कि इन दो राज्यों का योगदान भारत के राजनीतिक विकास में सबसे ज्यादा है . महात्मा गाँधी भी अंतर राष्ट्रीय स्तर पर सर्वमान्य नेता बनने के पहले चंपारण गए थे .वे राष्ट्रीय स्तर के नेता तभी बने जब उन्हें इस इलाके ने स्वीकार किया . जवाहलाल नेहरू का योगदान भारत की राजनीति में किसी से कम नहीं है. आज देश की सभी बड़ी संस्थाओं में इस इलाके से आये लोगों की भूमिका कम नहीं है. पी चिदंबरम को यह भी याद रखना चाहिए कि वे जिस सामंती मानसिकता में रहते हैं वह कब की ख़त्म हो चुकी है आज जिन लोगों के समर्थन से कांग्रेस सत्ता में हैं उनके पूर्वज दलाल नहीं थे.अंग्रेजों के जी हुजूर नहीं थे और किसी की दी हुई रोटी को तिरस्कार की नज़र से देखते थे , जिन लालू प्रसाद , मायावती, मुलायम सिंह यादव की पार्टियों के कृपा से आज पी चिदंबरम गृह मंत्री हैं , उन लोगों के पूर्वज अपनी मेहनत की कमाई खाते थे और दिल्ली के दलालों के पूर्वज उनके पूर्वजों का शोषण करते थे . इसलिए किसी तरह की गैरजिम्मेदार बात करने के पहले उन्हें अपने इन नए अन्न दाताओं के गुस्से का ध्यान कर लेना चाहिए . अगर चिदंबरम जैसे लोगों को यह औकात बोध रहे तो आने वाले वक़्त में कांग्रेस भी आराम से रहेगी और पी चिदंबरम की बर्खास्तगी की मांग भी नहीं होगी.
दरअसल १८५७ की प्रथम क्रांति का गढ़ यूं .पी.और बिहार ही थे.इसलिए अंग्रेजों ने इन इलाकों को पिछड़ा रहने दिया .अब चिंदम्बरम जैसे उनके एजेंट वही कर रहे हैं.
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