शेष नारायण सिंह
मध्यप्रदेश में खंडवा के गवर्नमेंट कालेज के एक प्रोफेसर को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के सदस्यों ने दौड़ा दौड़ा कर पीटा. उसका चेहरा काला किया और उसे लात घूंसों और जूतों से मारा . जान बचाने के लिए जब वह अध्यापक भाग कर प्रिंसिपल के आफिस में छुप गया तो वहां से भी घसीट कर बाहर लाये और उसको अधमरा कर दिया . संतोष की बात यह है कि वह अभी जिंदा है वरना इसी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् यानी ए बी वी पी के सदस्यों ने कुछ वर्ष पहले इंदौर में एक प्रोफ़ेसर को पीट पीट कर मार डाला था. इस में कुछ भी नया नहीं है . ए बी वी पी की मालिक संस्था आर एस एस है और वहां मतवैभिन्य के लिए कोई स्पेस नहीं होता . उज्जैन के एक कालेज में २००६ में छात्रसंघ चुनावों के विवाद में ए बी वी पी वालों ने अपने ही कालेज के शिक्षकों को घेर कर मारा जिसमें राजनीति शास्त्र के प्रोफ़ेसर , सभरवाल की मृत्यु हो गयी.उज्जैन में उस वक़्त तैनात जिलाधिकारी, नीरज मंगलोई ने कहा था कि पुलिस और प्रशासन उस मामले की छानबीन कर रहा है . बाद में पुलिस ने अदालत में इतना कमज़ोर केस प्रस्तुत किया कि सभी अभियुक्त बरी हो गए . मौजूदा केस में भी खंडवा के पुलिस अधीक्षक , आर के शिवहरे ने कहा है कि बुधवार को प्रो. चौधरी ने एक शिकायत की जिसमें उन्होंने कहा कि ए बी वी पी के सदस्यों ने उन्हें मारा पीटा . उन्होंने कहा कि मामला दर्ज हो गया है और जांच के बाद ज्यादा जानकारी दी जा सकेगी. इस पुलिस वाले के बयान और २००६ में उज्जैन के कलेक्टर के बयान में भारी समानता है . इसी तरह के बयान गुजरात में भी लगभग हर जिलाधिकारी और पुलिस कप्तान ने फरवरी २००२ में दिया था जहां मोदी के गिरोह के लोगों ने मुसलमानों को घेर घेर कर मारा था .मध्य प्रदेश से लगातार इस तरह की शिकायतें मिल रही हैं . ज़्यादातर मामले तो पुलिस तक पंहुचते ही नहीं लेकिन जो थोड़े बहुत पंहुचते हैं उन्हें देखकर लगता है वहां भी हालात गुजरात जैसे ही हो गए हैं . गुजरात में तो नरेंद्र मोदी के गैंग के लोग दावा करने लगे हैं कि राज्य का मुसलमान मोदी जी को अपना असली नेता मानने लगा है . ज़ाहिर है कि वहां इतनी दहशत है कि किसी की हिम्मत नहीं है कि वह मुख्यमंत्री के खिलाफ अपने लोकतांत्रिक विरोध को व्यक्त कर सके . गुजरात की तरह ही मध्य प्रदेश में भी में ए बी वी पी के लोग बहुत ही मनबढ़ हो गए हैं . उनका अपना बंदा राज्य का मुख्यमंत्री है , ज़ाहिर है वह भी ए बी वी पी वालों के साथ वैसा ही आचरण करता है जैसा गुजरात में आर एस एस के प्रमुख संगठनों के कार्यकर्ताओं के साथ नरेंद्र मोदी करते हैं . खंडवा की घटना में भी ए बी वी पी के छात्रों ने लगभग वैसा ही आचरण किया जैसा गुजरात में वी एच पी और बजरंग दल वालों ने फरवरी २००२ में किया था जब गोधरा के ट्रेन हादसे के बाद उन लोगों ने पूरे राज्य में मुसलमानों को अपमानित किया था और उनकी सामूहिक हत्या की थी.
मध्य प्रदेश की यह घटना भी किसी योजना का हिस्सा लगती है .पिछले कुछ वर्षों में मध्य प्रदेश में कई प्रोफेसरों पर हमले किये गए. शिक्षा संस्थाओं पर भी खूब हमले हो रहे हैं .उजैन के प्रोफ़ेसर सभरवाल की हत्या का मामला बहुत ज्यादा चर्चा में आ गया था . यहाँ तक कि ऊपरी अदालतों के आदेश के बाद मामला मध्य प्रदेश के बाहर नागपुर ले जाया गया था लेकिन शुरुआत इंदौर में ही राज्य सरकार के दबाव में पुलिस ने केस को इतना कमज़ोर कर दिया था कि सभी अभियुक्त बरी हो गए थे.. जुलाई २००९ में ए बी वी पी वालों ने जबलपुर के एक निजी संस्थान पर हमला किया और जान माल को नुकसान पंहुचाया . आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर हो रहे हमलों के खिलाफ आन्दोलन कर रहे ए बी वी पी के भाई लोग इस संस्थान में पंहुच गए और अपना गुस्सा उतारा. मतभेद को मारपीट से हल करने का जो तरीका है उसको ही राजनीतिशास्त्र में तानाशाही कहते हैं . दुनिया जानती है कि आर एस एस की राजनीति मूल रूप से तानाशाही की राजनीति है जो नीत्शे और माज़िनी के दर्शनशास्त्र पर आधारित है . हिटलर ने इसी सिद्धांत को अपनाया था . आर एस एस ने हमेशा ही हिटलर को सम्मान की नज़र से देखा है . आर एस एस के तत्कालीन सर संघचालक , माधव सदाशिव गोलवलकर की नागपुर के भारत पब्लिकेशन्स से प्रकाशित किताब, " वी ,आर अवर नेशनहुड डिफाइंड " के 1939 संस्करण के पृष्ठ 37 पर श्री गोलवलकर ने लिखा है कि हिटलर एक महान व्यक्ति है और उसके काम से हिन्दुस्तान को बहुत कुछ सीखना चाहिए और उसका अनुसरण करना चाहिए . दुनिया के किसी भी सभ्य समाज में हिटलर को अपना पूर्वज बताकर कोई भी गर्व नहीं कर सकता . लेकिन आर एस एस के लिए हिटलर आदर्श पुरुष हैं . इसलिए मध्य प्रदेश में छात्रों की असहिष्णुता आर एस एस की मूल राजनीतिक सोच पर ही आधारित मानी जायेगी. इसी विचार धारा को १९३० के दशक में मुसोलिनी ने इटली में लागू किया था. माज़िनी ने वी डी सावरकर बहुत प्रभावित हुए थे और उसकी किताब न्यू इटली को ही उन्होंने अपनी किताब " हिन्दुत्व " का आदर्श बनाया . उनकी किताब हिंदुत्व को लागू करने के लिए जिन पांच लोगों ने १९२५ में नागपुर में आर एस एस की स्थापना की वे सभी सावरकर से बहुत प्रभावित थे और उनके विचारों को लागू करने के लिए ही आर एस एस की स्थापना की गयी. ऐसी तानाशाही बुनियाद वाले संगठनों से और कोई उम्मीद नहीं की जानी चाहिए . इनका केवल एक ही इलाज है कि संघी विचारधारा का वैचारिक स्तर पर हर जगह विरोध किया जाए . अगर इस काम को फ़ौरन शुरू न कर दिया गया तो देश धीरे धीरे हिटलरशाही सत्ता की तरफ बढ़ जाये़या .सभी जानते हैं कि एक बार हिटलरशाही के कायम हो जाने के बाद उसे हटा पाना बहुत मुश्किल होता है
आपके लेख में प्रोफ़ेसर साहब के ऊपर हमले की जो रिपोर्ट है और उसमे जो तथ्य आपने दिए हैं वे काफी चिंताजनक हैं लेकिन दुर्भाग्य यह है कि हमारे देश में पढ़े लिखे लोग भी बुद्धि से काम नहीं कर रहे हैं इसी कारण तानाशाही प्रवृत्ति के लोगों को बल मिल जाता है.उस हमले की हम निंदा करते हैं.
ReplyDeleteजो हुआ और ऐसा जहाँ भी हो रहा है , दुर्भाग्यपूर्ण है| छात्र संगठन, चाहें किसी भी पार्टी से सम्बंधित हों, अपनी सीमाओं को नहीं लांघ सकते| विरोध करने का तरीका होता है, गुंडागर्दी को आंदोलन नहीं कहा जा सकता| इसकी कड़े शब्दों में भर्त्सना होनी चाहिए| ए बी वी पी छात्र राजनीति से छात्रों को दूर रखने की कोशिश कर रहा है|
ReplyDeleteअब आप पर आते हैं, आपके शीर्षक से मुझे आपत्ति है| यह शीर्षक ए बी वी पी के कृत्यों का समर्थन कर रहा है| ये पंक्ति महान कवि दुष्यंत कुमार की कविता की हैं, वो एक क्रांतिकारी कवि थे| और क्रांतिकारियों की इज्ज़त हममे से सभी करते हैं|माफ करेंगे यह मेरी व्यक्तिगत सोच है लेकिन मैं यह कहना चाहूँगा कि ऐसे कृत्य पर ऐसा शीर्षक ना लगाएं जो लोगों के अंदर क्रन्तिकारी भावनाएँ भरता हो|धन्यवाद