शेष नारायण सिंह
जापान में कहर बरपा हुए २ दिन से ज्यादा हो गए हैं .कुदरत ने मुसीबत का इतना बड़ा तूफ़ान खड़ा कर दिया है कि पता नहीं कितने वर्षों में यह दर्द कम होगा . मुसीबत का पैमाना यह है कि अभी तक यह नहीं पता चल पा रहा है कि इस प्रलय में कितने लोगों की जानें गयी हैं . जापान में आये भूकंप और सुनामी ने वहां के लोगों की ज़िंदगी को नरक से भी बदतर बना दिया है . लेकिन इस मुसीबत का जो सबसे बड़ा ख़तरा है उसकी गंभीरता का अंदाज़ लगना अब शुरू हो रहा है . जापान सरकार के एक बड़े अधिकारी ने बताया है कि शुक्रवार को आये भयानक भूकंप में जिन परमाणु बिजली घरों को नुकसान पंहुचा है उनमें से एक में पिघलन शुरू हो गयी है . यह बहुत ही चिंता की बात है . सरकारी प्रवक्ता का यह स्वीकार करना अपने आप में बहुत बड़ी बात है . इसके पहले वाले बिजली घर में भी परमाणु ख़तरा बहुत ही खतरनाक स्तर तक पंहुच चुका है . जापान सरकार के एक प्रवक्ता ने इस बात को स्वीकार भी किया था लेकिन अब अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के डर से वे बात को बदल रहे हैं . अब वे कह रहे हैं कि शुरू में तो ख़तरा बढ़ गया था लेकिन अब कानूनी रूप से स्वीकृत स्तर पर पंहुच गया है . जापान के मुख्य कैबिनेट सेक्रेटरी , युकिओ एडानो ने रविवार को बताया कि अब फुकुशीमा बिजली घर की समस्या का भी हल निकाल लिया गया है .इन परमाणु संयंत्रों की बीस किलोमीटर की सीमा में अब कोई भी आबादी नहीं है . करीब सत्रह लाख लोगों को इस इलाके से हटा लिया गया है . यह परमाणु संस्थान जापान की राजधानी टोक्यो से करीब २७० किलोमीटर दूर उत्तर की तरफ है . जापान की परेशानी पूरी इंसानियत की परेशानी है .करीब ५० मुल्कों ने जापान को हर तरह से मदद देने का प्रस्ताव भी किया है .अमरीका का सातवाँ बेडा उसी इलाके में ही है ,उसका इस्तेमाल भी बचाव और राहत के काम में किया जा रहा है . सच्ची बात यह है कि जापान को किसी तरह की आर्थिक सहायता की ज़रुरत नहीं है लेकिन इतनी बड़ी मुसीबत के बाद हर तरह की सहायता की ज़रुरत रहती है . ज़ाहिर है जापान इस मुसीबत से बाहर आ जाएगा.
लेकिन जापान की इस प्राकृतिक आपदा के बाद परमाणु सुरक्षा के सम्बन्ध में चर्चा के नए अवसर खुल गए हैं . .परमाणु निरस्त्रीकरण और शान्ति गठबंधन के संयोजक अनिल चौधरी ने दिल्ली में एक बयान जारी करके भूकंप और सुनामी से हुई तबाही पर शोक व्यक्त किया है. बयान में फुकुशीमा परमाणु संयंत्र में हुए विस्फोट और उसके बाद की दुर्घटना का ज़िक्र है . इस दुर्घटना के बाद बहुत सारा रेडियो एक्टिव पदार्थ समुद्र में चला गया है . अभी पता नहीं है कि उसकी मात्रा कितनी है . इस हादसे के बाद एक बात बिलकुल साफ़ हो गयी है कि तथाकथित शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल का कोई मतलब नहीं है . इस आपदा के बाद वैज्ञानिकों की वह बात बिलकुल सच साबित हो गयी है जिसमें कहा गया है कि किसी भी किस्म का परमाणु संयंत्र हो ,उस से इंसानियत के लिए भयानक खतरों की आशंका को कम नहीं किया जा सकता . अमरीका में १९७९ हुआ 'थ्री माइल द्वीप ' का परमाणु हादसा , और यूक्रेन में १९८६ में हुआ ' चेर्नोबिल परमाणु हादसा ' इस तरह के खतरों के उदाहरण के रूप में इस्तेमाल होते रहे हैं . लेकिन फुकुशीमा परमाणु संयंत्र के हादसे ने यह बात बिलकुल साबित कर दी है कि इंसानी कोशिश से चाहे जितना सुरक्षित कर दिया जाए लेकिन अगर परमाणु बिजली के उत्पादन में इतने खतरनाक रेडियो एक्टिव सामान का इस्तेमाल किया जा रहा है तो प्राकृतिक आपदा से कैसे बचा जा सकता है .चेर्नोबिल के हादसे में एक लाख से ज्यादा लोगों की जानें गयी थी . आशंका जताई जा रही है कि फुकुशीमा में हुए नुकसान का जब सही आकलन कर लिया जाएगा तो यह उस से भी ज्यादा भयावह होगा .
इस आपदा के बाद एक बात बिलकुल साफ़ हो गयी है भारत को इस दुर्भाग्यपूर्ण हादसे से सबक लेना चाहिए और भारत के सभी परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त किये जाने चाहिए .सबको मालूम है कि भारत में सुरक्षा के वे इंतज़ाम नहीं हैं जो जापानी संयंत्रों में मौजूद हैं , भारत सरकार को चाहिए कि अपने संयंत्रों की सुविधाओं को बहुत की उच्च कोटि का बनाए और दुर्घटना की स्थिति में आपातकालीन हालत को काबू करने का पारदर्शी तंत्र स्थापित करे. परमाणु निरस्त्रीकरण और शान्ति गठबंधन ने मांग की है कि देश के सभी सिविलियन परमाणु योजनाओं पर चल रहा निर्माण कार्य फ़ौरन रोक दे . सरकार को महाराष्ट्र के जैतापुर वाले परमाणु संयंत्र का काम भी तुरंत रोक देना चाहिए . यह काम दुबारा तब तक न शुरू किया जाए जब सरकार और अन्य सम्बंधित पक्ष भारत की परमाणु नीति की बाकायदा समीक्षा न कर लें . जापान जैसा टेक्नालोजी के क्षेत्र में विकसित देश अगर प्राकृतिक आपदा के सामने असहाय खड़ा नज़र आ रहा है तो अभी अपने देश में वैज्ञानिक रूप से बहुत पिछड़ापन है . जापान की आपदा में पूरी मदद करने के साथ साथ हमें अपने देश के परमाणु संयंत्रों को भी सुरक्षित बनाने की पूरी तैयारी कर लेनी चाहिए .
बिलकुल सही कहना है आपका.हमारे यहाँ वैज्ञानिक प्रगति भले ही न कम हो परन्तु भ्रष्टाचार और जिम्मेदारी की भावना की कमी का खात्र तो है ही.
ReplyDeleteवास्तव मे चिंता और सचेत हो जाने का विषय है...
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