शेष नारायण सिंह
छत्तीसगढ़ में रायपुर की एक अदालत ने मानवाधिकार नेता , डॉ. बिनायक सेन को आजीवन कारावास की सज़ा सुना दी. पुलिस ने डॉ सेन पर कुछ मनगढ़ंत आरोप लगाए हैं लेकिन उनपर असली मामला यह है कि उन्होंने छत्तीसगढ़ रियासत के शासकों की भैंस खोल ली है . बिनायक सेन बहुत बड़े डाक्टर हैं, बच्चों की बीमारियों के इलाज़ के जानकार हैं . किसी भी बड़े शहर में क्लिनिक खोल लेते तो करोड़ों कमाते और मौज करते . शासक वर्गों को कोई एतराज़ न होता .छतीसगढ़ का ठाकुर भी बुरा न मानता लेकिन उन्हें पता नहीं क्या भूत सवार हुआ कि वे पढ़ाई लिखाई पूरी करके छत्तीसगढ़ पंहुच गए और गरीब आदमियों की मदद करने लगे. अगर उन्हें गरीब आदमियों की मदद करनी थी तो छत्तीसगढ़ के बाबू साहेब से मिलते और सलवा जुडूम टाइप किसी सामजिक संगठन में भर्ती हो जाते. गरीब आदमी की मदद भी होती और शासक वर्ग के लोग खुश भी होते . लेकिन उन्होंने राजा के खिलाफ जाने का रास्ता चुना और असली गरीब आदमियों के पक्षधर बन गए . केसरिया रंग के झंडे के नीचे काम करने वाले छत्तीसगढ़ के राजा को यह बात पसंद नहीं आई और जब उनकी चाकर पुलिस ने फर्जी आरोप पत्र दाखिल करके उन्हें जेल में भर्ती करवा दिया है तो देश भर में लोकतंत्र और नागरिक आज़ादी की बात करने वाले आग बबूला हो गए हैं और अनाप शनाप बक रहे हैं . दिल्ली हाई कोर्ट में पूर्व मुख्य न्यायाधीश , राजेन्द्र सच्चर कहते हैं कि न्याय नहीं हुआ . मुझे ताज्जुब है कि जस्टिस सच्चर इस तरह की गैर ज़िम्मेदार बात क्यों कर रहे हैं . उनके स्वर्गीय पिता जी , स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ,भीमसेन सच्चर ने तो सत्ता के मद में पागल लोगों की कारस्तानियों को बहुत करीब से देखा है . वे आज़ादी के बाद भारतीय पंजाब के मुख्य मंत्री थे . आज का दिल्ली , हरियाणा , हिमाचल प्रदेश और भारतीय पंजाब तब एक सूबा था . स्व भीमसेन सच्चर उसी राज्य के मुख्य मंत्री थे और जब उनको 1975 में लोकतंत्र की रक्षा की बीमारी लगी तो जेल में ठूंस दिए गए . उनपर इमरजेंसी की मार पड़ गयी थी . जब वे जेल के अन्दर बंद करने के लिए ले जाए जा रहे थे तो उन्होंने जेल के गेट पर लगी शिलापट्टिका को पढ़ा . लिखा था " इस जेल का शिलान्यास पंजाब के मुख्य मंत्री ,श्री भीमसेन सच्चर के कर कमलों से संपन्न हुआ. " मुस्कराए और आगे बढ़ गए . तो जब उन आज़ादी के दीवानों को जिनकी वजह से इमरजेंसी की देवी प्रधान मंत्री बनी थीं ,भी जेल में ठूंसा जा सकता है तो डॉ बिनायक सेन की क्या औकात है . उनका तो छत्तीस गढ़ के बाबू या उनके दिल्ली वाले आकाओं पर कोई एहसान नहीं है , उनको जेल में बंद करने में कितना वक़्त लगेगा . यहाँ यह भी समझने की गलती नहीं करनी चाहिए कि बिनायक सेन को जेल में ठूंसने वाली सरकार और स्व भीमसेन सच्चर को जेल में बंद करने वाली सरकार की विचारधारा अलग थी . ऐसा कुछ नहीं था . दोनों ही शासक वर्गों के हित साधक हैं और दोनों ही गरीब आदमी को केवल मजदूरी करने का हक देने के पक्ष धर हैं . ऐसी मजदूरी जिसमें मेहनत की असली कीमत न मिले . डॉ बिनायक सेन की गलती यह है कि उन्होंने अपने आपको उन गरीब आदमियों के साथ खड़ा कर दिया जिनका शोषण शासक वर्गों के लोग कर रहे थे और डॉ सेन ने उनको जागरूक बनाने की कोशिश की . इसके पहले इसी गलती में जयप्रकाश नारायण को जेल की हवा खानी पड़ी थी.महात्मा गाँधी और उनके सभी साथियों को 1920 से 1945 तक बार बार जेल जाना पड़ा था .उनका भी जुर्म वही था जो बिनायक सेन का है यानी गरीब आदमी को उसके हक की बात बताना.. शासकवर्ग शोषित पीड़ित जनता के जागरण को कभी बर्दाश्त नहीं करता . जो भी उन्हें जागरूक बनाने की कोशिश करेगा , वह मारा जायेगा. वह महात्मा गाँधी भी हो सकता है , जयप्रकाश नारायण हो सकता है , या बिनायक सेन हो सकता है . एक बात और. अगर महात्मा गाँधी के साथ पूरा देश न खड़ा हुआ , तो आज उनकी कहानी का कोई नामलेवा न होता . जेपी के साथ भी देश का नौजवान खड़ा हो गया तो सत्ता के मद में पागल लोग हार गए . अगर हुजूम न बना होता तो सब को मालूम है कि इमरजेंसी की देवी ने हर उस आदमी को जेल में बंद कर दिया था जो जयप्रकाश नारायण को सही मानता था . अगर सब उनके साथ न आ गए होते तो जेपी के साथ साथ हर उस आदमी की मौत की खबर जेल से ही आती जो लोकतंत्र और नागरिक आज़ादी को सही मानते थे. डॉ बिनायक सेन के केस में भी यही होने वाला है. अगर लोकशाही की पक्षधर जमातें ऐलानियाँ उनके साथ न खडी हो गयीं तो सब का वही हाल होगा जो बिनायक सेन का हुआ है .बिनायक सेन के दुश्मन छत्तीस गढ़ के राजा हैं लेकिन उनके साथी हर राज्य में हैं , कहीं वे कांग्रेस पार्टी में हैं तो कहीं बीजेपी में लेकिन हैं सभी लोकतंत्र की मान्यताओं के दुश्मन . इसलिए ज़रुरत इस बात की है कि देश भर में वे लोग मैदान ले लें जो नागरिक आज़ादी और जनवाद को सही मानते हैं . वरना आज जो लोग बिनायक सेन का घर जलाने पंहुचे हैं वे कल मेरे और आपके दरवाज़े भी आयेगें और हमारे साथ खड़ा होने के लिए कोई नहीं होगा .
आप ने सही कहा...
ReplyDeleteदेखना है जोर कितना बाजू-ए-क़ातिल में है...