शेष नारायण सिंह
कुछ महीने पहले किसी पोर्टल पर चल रही किसी बहस में मैंने एक टिप्पणी की थी . आज किसी शुभचिंतक ने उसे भेजा तो मुझे बहुत अच्छा लगा. मन कहता है कि इस टिप्पणी को अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर दूं जिससे मुझे भी याद रहे कि प्रभाष जी के अंत के पहले चल रही उस बहस में मेरी क्या पोजीशन थी, .यह है वह टिप्पणी.-----------
"मैं जो कहना चाहता हूँ, वह तो मुझे मालूम है और पिछले चालीस साल से मालूम है.. आप समझना क्या चाहते हैं , वह आप तय कीजिये.और श्रीमान जी ," यह आपके प्रभाष जोशी "जैसा जुमला इस्तेमाल करके इतनी गंभीर बहस को क्यों हल्का करना चाहते हैं. प्रभाष जोशी मेरे रिश्तेदार नहीं हैं.. जहां तक जाति के विनाश की बात है , उस पर मेरी एक निश्चित राय है..मैं नहीं जानता कि प्रभाष जोशी या आप क्या सोचते हैं इस बारे में. अगर आप लोग जाति को जिंदा रखना चाहते हैं तो मेरी राय सुन लें. जाति को एक संस्था के रूप में जिंदा रखने वालों को मैं वोट याचक मानता हूँ.यह आप को और प्रभाष जोशी को तय करना है कि आप लोग जाति के विनाश वालों की जमात में हैं या मायावती, मुलायम सिंह यादव,लालू प्रसाद, सोनिया गाँधी, राजनाथ सिंह, जयललिता, शरद पवार जैसे लोगों की जमात में हैं जो जाति की कृपा से रोटी खाते हैं. और ध्यान रखियेगा , जाति की कृपा से रोटी खाने वाले साहित्य में भी हैं और पत्रकारिता में भी. आप शायद मुझे जानते नहीं वर्ना मेरे लिए "आपके प्रभाष जोशी" जैसी बात न करते. मैं सब की इज्ज़त करता हूँ और यह इज्ज़त उसकी अच्छाइयों के लिए करता हूँ अच्छाइयां प्रभाष जी में निश्चित रूप से हैं और आप में भी होंगीं . जहां तक आपके और उनके हल्केपन का सवाल है , उसे आप लोग खुद संभालिये. मैं किसी के भी छिछोरपन से व्यथित होता हूँ . वह चाहे आप में हो या प्रभाष जी में."
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