शेषनारायण सिंह
बाबरी मस्जिद के विध्वंस के १० दिन बाद गठित किये गए लिब्रहान आयोग ने अपनी जांच पूरी करके रिपोर्ट दे दी है . रिपोर्ट के कुछ अंशों को छापने का दावा करने वाले मीडिया संगठनों का कहना है कि उनके हाथ कोई खजाना लग गया है . करीब १७ साल के काम के बाद इस आयोग के हवाले से जो कुछ अखबारों में छपा है ,उसमें कुछ भी नया नहीं है. जिन लोगों ने १९८६ से १९९२ तक के संघी तानाशाही के काम को देखा किया है उन्हें सब कुछ मालूम था. लिब्रहान आयोग से उम्मीद की जा रही थी कि वह उन बातों को सामने लाएगा जिनके बारे में मीडिया वालों को शक तो था लेकन पक्के तौर पर नहीं मालूम था कि किस तरह से आर एस एस ने सारे खेल को अंजाम दिया था .अभी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई है .उम्मीद की जानी चाहिए कि जब संसद के पटल पर रखी जायेगी तो पता लगेगा कि साम्प्रदायिक ताक़तों ने किस तरह से एक पूरे देश को घेर रखा था. एक अख़बार में रिपोर्ट के छपने के हवाले से बी जे पी ने लोकसभा में हंगामा करके , रिपोर्ट को लीक करने पर इतना बड़ा बवाल खड़ा करने की कोशिश की कि जनता का ध्यान , इस बात से हट जाए कि उसके अन्दर क्या है . विपक्ष के नेता, लाल कृष्ण अडवाणी ने खुद मोर्चा संभाला और कहा कि इस रिपोर्ट में पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी दोषी बताया गया है जो कि असंभव है . अडवाणी ने कहा कि वे खुद को दोषी पाए जाने से उतने दुखी नहीं है . लेकिन वाजपेयी को दोषी बता कर लिब्रहान आयोग ने भारी गलती की है .. अडवाणी के इस पैतरे से साफ़ हो गया है कि संघ बिरादरी अभी वाजपेयी को उदारवादी भूमिका में ही रखना चाहती है.उनको अभी कट्टर पंथी काम के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाने वाला है. लोकसभा में अडवाणी ने दावा किया कि वाजपेयी तो बहुत ही सीधे व्यक्ति हैं इस लिए उनको बाबरी मस्जिद के विध्वंस के काम में शामिल नहीं बताया जा सकता.
सच्ची बात यह है कि अडवाणी ,वाजपेयी और बी जे पी के बाकी नेता भी आर एस एस की कठपुतलिया हैं. . सबको आर एस एस के नाटक में रोल दिया गया हैं.. और सबको अपना काम करना है . बी जे पी के सत्ता अभियान की डोर नागपुर के बड़े दरबार के हाथ में रहती है .संघ ही इनके हर काम का नियंता है. देश में सावरकरवादी फासिज्म स्थापित करने के उद्देश्य से हिंदुत्व की राजनीति का सहारा लेने वाली संघ बिरादरी में अटल बिहारी वाजपेयी की भूमिका एक उदार वादी अभिनेता की है. वाजपेयी उसी रोल को निभा रहे हैं . अडवाणी या बी जे पी के अन्य नेता समझाने की कोशिश कर रहे हैं, कि संघी धंध फंद से वाजपेयी का कोई लेना देना नहीं है लेकिन यह सच नहीं है . वाजपेयी संघ के हर कर्म में शामिल रहे हैं . अगर ऐसा न होता तो आर एस एस उनको कभी का दूध की मक्खी की तरह निकाल कर फेंक चुका होता. संघी राजनीति में जो लोग भी नागपुर से असहमत होते हैं उनका वहीं हश्र होता है जो बलराज मधोक का हुआ था या लाल कृष्ण अडवाणी का होने वाला है . लेकिन जब संघी भाइयों ने वाजपेयी के चेहरे से उदारवादी नकाब के हटने की संभावना पर इतनी तीखी प्रतिक्रिया दिखाई है तो उनकी राजनीतिक यात्रा पर एक नज़र डाल लेना सही रहेगा.. हालांकि बी जे पी के छुटभैये नेता टी वी चैनलों पर बार बार यह कहते पाए गए हैं कि वाजपेयी जी बीमार हैं लिहाज़ा उनके खिलाफ कोई टिप्पणी न की जाए. .
अटल बिहारी वाजपेयी के ५ दिसंबर १९९२ के एक भाषण के कुछ अंश एक टी वी चैनल पर दिखाए जा रहे हैं .जिसमें उन्होंने दावा किया है कि कल अयोध्या में पता नहीं क्या होगा. यहाँ एक बार फिर यह जान लेना ज़रूरी है कि ६ दिसंबर को अयोध्या में संघी नेताओं को केवल पूजा पाठ करने की अनुमति मिली थी . उत्तर प्रदेश के उस वक़्त के मुख्य मंत्री ,कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में लिख कर दिया था कि बाबरी मस्जिद को कोई नुक्सान नहीं पंहुचेगा . अपने ५ दिसंबर के भाषण में वाजपेयी उसी पूजा पाठ का हवाला दे रहे हैं . उसमें उन्होंने कहा है कि पूजा के पहले ज़मीन को समतल किया जाएगा ,सफाई की जायेगी और फिर वहां मौजूद करोड़ों लोग जो चाहेंगें करेंगें.. यानी यह कहना गलत होगा कि क वाजपेयी को मालूम नहीं था कि अयोध्या में ६ दिसंबर को क्या होने वाला है.. सारे ड्रामे में उनका रोल दिल्ली में रहकर माहौल दुरुस्त करने के था . उनको बाबरी मस्जिद के ज़मींदोज़ होने के बाद कहना था कि उन्हें बहुत तकलीफ हुई है . सो उन्होंने कहा . लेकिन उनको दोषमुक्त बता कर उदारवाद के संघी मुखौटे को छिन्न भिन्न करने की कोशिश का आर एस एस के सभी मातहत संगठन विरोध करेंगें. सवाल यह है कि क्या वाजपेयी वास्तव में उतने ही पवित्र हैं जितना दावा किया जा रहा है . बी जे पी वाले यह भी कहते पाये जा आरहे हैं कि वाजपेयी बीमार हैं लिहाज़ा उनके बारे में कोई सख्त टिप्पणी न की जाए. लेकिन जो इतिहास पुरुष होते हैं उनको इस तरह की माफी नहीं मिलती. वाजपेयी ६ साल तक भारत के प्रधानमंत्री रह चुके हैं इसलिए उनके काम को इतिहास की कसौटी पर कसा जाएगा. .अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते देश ने जिस तरह का अपमान झेला है उसे देखते हुए तो उन्हें कभी माफ़ नहीं किया जा सकता. कंधार में आतंकवादियों के सामने घुटने टेकना और संसद पर आतंकवादी हमला उनके दो ऐसे कारनामे हैं जिसकी वजह से इतिहास और आने वाले नस्लें उन्हें कभी माफ़ नहीं करेंगीं. . उनके प्रधान मंत्री रहते , घूस के भी सारे रिकॉर्ड टूट गए.. इन घूस के कारनामों को जानने के लिये किसी जासूस की ज़रुरत नहीं है . जो साफ़ नज़र आता है उसी का ज़िक्र किया जाएगा. . उनके ख़ास रह चुके, प्रमोद महाजन ने जुगाड़ करके १२५० करोड़ रूपये में विदेश संचार निगम लिमिटेड को बेच दिया . यानी सरकारी खजाने में केवल यही रक़म जमा हुई. जिन्होंने देखा है वे बता देंगें कि इस कंपनी की दिल्ली स्थित ग्रेटर कैलाश की एक प्रोपर्टी की कीमत इस से बहुत ज्यादा होगी. इस तरह की इस कंपनी के पास पूरे देश में बहुत सारी ज़मीन है . ज़ाहिर है कि इस एक बिक्री से देश को हज़ारों करोड़ का नुकसान हुआ और वाजपेयी के शिष्य प्रमोद महाजन को भारी आर्थिक लाभ हुआ. प्रमोद महाजन के इस काम में उनके साथ अटल बिहारी वाजपेयी की एक घनिष्ठ महिला मित्र के दामाद भी शामिल रहते थे. . हिमाचल प्रदेश में वाजपेयी के लिए पूरी एक पहाड़ी खरीद कर वहां एक महल बनवाया गया है . वाजपेयी को बहुत धर्मात्मा बताने वालों को चाहिए कि इस महल के बनवाये जाने के पीछे की कहानी सार्वजनिक करें. . १९८९ में बोफोर्स के ६५ करोड़ रूपये के कथित घूस को मुद्दा बनाकर सत्ता में आई बी जे पी के ६ साल के राज में १०० करोड़ रूपये तक को तो फुटकर पैसा माना जाता था . वह घूस था ही नहीं . अगर अब भी वाजपेयी को पवित्र मानने की बी जे पी कोशिश करती है तो उसका फैसला इतिहास पर छोड़ना ही ठीक होगा. वैसे वाजपेयी का इतिहास भी ऐसा नहीं है जिस पर गर्व किया जा सके. अटल बिहारी वाजपेयी ने १९४२ में ग्वालियर में दो देशभक्तों के खिलाफ अंग्रेजों की अदालत में गवाही दी थी जिसके बाद आज़ादी के उन दोनों सिपाहियों को फांसी हो गयी थी. . इनकी उम्र इन दिनों १८ साल की ही थी . उन दिनों आर एस एस अंग्रेजों के ख़ास मुखबिर के रूप में काम करता था.इसलिए वाजपयी को बहुत पवित्र बनाकर लिब्रहान आयोग की सिफारिशों को रास्ते से हटाने के एसंघ परिवार की हर कोशिश का विरोध किया जाना चाहिए और देश के सभ्य समाज को आग याना चाहिए ताकि नागपुर किशान्रे पर नाचने वाल एचंद नेट अहमारे देश की धरम निरापेस्ख राजनीति को नुक्सान न पंहुचा सकें
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