- शेष नारायण सिंह
अमरीकी राष्ट्रपति, बराक हुसैन ओबामा ने दक्षिण एशिया में गलतियाँ करना शुरू कर दिया है..उन्होंने पाकिस्तान को अमरीका से मिलने वाली आर्थिक सहायता के एक हिस्से की निगरानी का काम रोबिन राफेल को दे दिया है . यह हिस्सा गैर सैनिक सहायता का है. जब अमरीका ने केरी-लुगर एक्ट के तहत पाकिस्तान को करीब डेढ़ अरब डालर प्रति वर्ष की आर्थिक सहायता देने की बात की थी और उसमें बड़ी बड़ी शर्तें लगाई थीं जिसके मुताबिक अमरीका की मदद के एक एक पैसे का हिसाब रखा जाना था और पाकिस्तानी फौजियों पर सिविलियन सरकार की निगरानी रखी जानी थी तो लोगों ने उम्मीद बांधी थी कि अब अमरीका सुधर रहा है. अमरीकी टैक्सपेयर का पैसा पाकिस्तान की मनमानी के हवाले न करके , ऐसा इन्तेजाम कर दिया है कि उसका इस्तेमाल पाकिस्तानी अवाम के लिए होगा . लेकिन इन उम्मीदों पर हमेशा के लिए पानी फेर दिया गया है. अमरीकी गैर सैनिक सहायता की निगरानी का काम अमरीकी सरकार की रिटायर अफसर , रोबिन राफेल के जिम्मे कर दिया गया है. यह तेज़ तर्रार महिला अफसर काबिल तो बहुत हैं लेकिन यह पाकिस्तानी फौज, शासक वर्ग और उनकी खुफिया एजेंसियों से बहुत ही घुली मिली हैं. इनकी तैनाती का मतलब यह है कि पाकिस्तानी फौज जिस तरह से भी चाहे अमरीकी आर्थिक सहायता का इस्तेमाल कर सकती है. रोबिन राफेल को किसी भी कागज़ पर दस्तखत कर देने में कोई दिक्क़त नहीं होगी. लगता है के केरी-लुगर के आर्थिक सहायता वाले कानून के असर को पाकिस्तानी फौज के लिए बहुत उपयोगी बनाने की गरज से यह नियुक्ति की गयी है. यह वास्तव में अमरीकी फौज को दी गयी एक रियायत है.. जो लोग अमरीकी अफसर रोबिन राफेल को नहीं जानते , उनके लिए इस पहली को समझना थोडा मुश्किल होगा लेकिन दक्षिण एशिया के कूटनीतिक हलकों में इनका इतना नाम है कि कूटनीति का मामूली जानकार भी सारी बात को बहुत आसानी से समझ सकता है . आप ९० के दशक के शुरुआती वर्षों में अमरीकी प्रशासन में दक्षिण एशिया से सम्बंधित मामलों की सहायक सचिव थीं और हर मामले में अमरीकी रुख को भारत के खिलाफ करती रहती थीं. इन्होने ने कश्मीर को अमरीकी विदेशनीति की किताबों में "विवादित क्षेत्र" घोषित करवाया था. जब ये सहायक सचिव के रूप में तैनात थीं, तो पूरे दक्षिण एशिया क्षेत्र में अमरीकी विदेश नीति को सही दिशा में चलाने में मदद देना इनका मुख्य काम था लेकिन इन्होने अपने को पाकिस्तान के दोस्त के रूप में पेश करना ही ठीक समझा . इनके पक्षपात पूर्ण रुख का फायदा , बेनजीर भुट्टो और नवाज़ शरीफ ने उठाया. उस दौर में भारत और अमरीका के आपसी रिश्तों में जो ज़हर इन्होने घोला था, बाद के अमरीकी राष्ट्रपतियों ने उसको साफ़ करने में बहुत मेहनत की .इस पृष्ठभूमि में यह समझ में नहीं आ रहा है कि बराक ओबामा जैसे सुलझे हुए राष्ट्रपति ने पाकिस्तान और अमरीका के बीच ऐसे किसी इंसान को क्यों आने दिया जिसका पाकिस्तान प्रेम इस हद तक जाता है कि वह भारत की दुश्मनी की भी परवाह नहीं करता.
रोबिन राफेल के पाकिस्तान प्रेम के कुछ भावात्मक कारण भी हैं . सबसे महत्वपूर्ण तो शायद यह है कि इनके पति आर्नाल्ड राफेल , पूर्व पाकिस्तानी तानाशाह , जनरल जिया उल हक के करीबी दोस्त थे . १७ अगस्त १९८८ को जिस विमान हादसे में जिया की मौत हुई, उसी विमान में रोबिन राफेल के पति आर्नाल्ड राफेल भी सवार थे. ज़ाहिर है वह दौर अमरीका और पाकिस्तान की दोस्ती का सबसे बेहतरीन दौर है. उसी दौर में अमरीका ने पाकिस्तान के लिए थैलियाँ खोल दी थीं क्योंकि पाकिस्तानी फौज आज के अपने दुश्मन ,,इन्हीं तालिबान और ओसामा बिल लादेन के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चल रही थी और अफगानिस्तान से सोवियत सेनाओं को भगाने का काम चल रहा था. भारत उन दिनों अमरीका का दुश्मन माना जाता था क्योंकि उसकी दोस्ती सोवियत रूस से थी और पाकिस्तानी हुक्मरान अमरीका की मदद से भारत को तबाह करने पर आमादा थे. भारतीय पंजाब में पाकिस्तान की खुफिया एजेन्सी , आई एस आई के आर्शीवाद से आतंकवाद पूरी बुलंदी पर था और कश्मीर में आतंकवाद की तैयारियों में पाकिस्तानी खाद पड़ रही थी. ज़ाहिर है पाकिस्तान से कूटनीतिक सम्बन्ध बनांये रखने के लिए अमरीका अपने बहुत ही अधिक भरोसे के अफसर को वहां राजदूत बनाएगा. और पाकिस्तानी राष्ट्रपति का निजी विश्वास भी उस अफसर पर था , इसीलिए , अपने सबसे ज्यादा भरोसे के अफसरों के साथ किसी सैनिक विमान में यात्रा करते वक़्त , जिया उल हक ने एक विदेशी को साथ ले जाने का फैसला किया . और वह राजदूत इन रोबिन राफेल साहिबा का पति था. पाकिस्तान के मामलों में इनकी दिलचस्पी की यही व्याख्या बताते हैं . पाकिस्तान में बहुत सारे परिवारों में रोबिन राफेल के घरेलू ताल्लुकात भी हैं . पाकिस्तानी राजनयिक, शफ़क़त काकाखेल का परिवार भी ऐसा ही एक परिवार है. शफ़क़त काकाखेल ९० के दशक में दिल्ली के पाकिस्तानी दूतावास में एक बड़े पद पर तैनात थे. उन दिनों के कूटनीतिक हलकों के जानकारों को मालूम है कि श्री काकाखेल जिस तरह से चाहें , अमरीकी नीति को मोड़ सकते थे. वैसे यह बात बिलकुल सच है कि रोबिन राफेल और शफ़क़त काकाखेल की जोड़ी ने भारत के खिलाफ अमरीका का खूब जमकर इस्तेमाल किया और आज भी उन दिनों हुए नुक्सान को संभालने की कोशिश की अमरीकी राजनयिक करते रहते हैं ..
अमरीकी सरकार की सेवा से रिटायर होने के बाद भी रोबिन राफेल साहिबा अमरीका में पाकिस्तान के लिए लाबी करने का काम करती रही हैं ..उनके कुछ ताज़ा काम ऐसे हैं जो कि उनकी निष्पक्षता पर सवाल पैदा कर देते हैं. पिछले कुछ महीनों में उन्होंने अमरीका के लिए जमकर लाबीइंग की है. और पाकिस्तान से रक़म भी बतौर फीस वसूल पायी है . . पाकिस्तान में अमरीकी खैरात का हिसाब रखने के लिए की गयी उनकी तैनाती ऐसी ही है जैसे कहीं किसी खदान से हो रही चोरी को रोकने के लिए मधु कोडा को तैनात कर दिया जाए ..अमरीकी प्रशासन, ख़ास कर राष्ट्रपति ओबामा को चाहिए कि रोबिन राफेल की नियुक्ति को फ़ौरन रद्द कर दें वरना पूरी दुनिया जान जायेगी कि अमरीका पाकिस्तानी फौज के अफसरों के सामने घुटने टेक चुका है
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