हिमालय को तबाही बचाने को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाया जाना चाहिए
शेष नारायण सिंह
हिमालय की छाती पर एक बार और मूंग दला गया . चमोली जिले में ग्लैसियर फटने से तबाही आयी. सबसे बड़ी तबाही का कारण एक बिजली परियोजना और उसके तथाकथित विकास के कारण आई है . हिमालय को उजाड़ने का सारा काम विकास के लिए और विकास के नाम पर किया जा रहा है लेकिन उसके चक्कर में प्रकृति की सबसे बड़ी धरोहर, हिमालय को ही तबाह किया जा रहा है . हिमालय में आज विकास के नाम पर अजीबोगरीब कारनामे हो रहे हैं . दुर्भाग्य यह है कि सत्तर के दशक में शासक वर्गों ने यह समझना शुरू कर दिया था कि हिमालय के क्षेत्र में भी विकास उसी तरह का किया जाना चाहिए जैसा कि मैदानी क्षेत्रों में सड़क बिजली पानी की व्यवस्था करके किया जाता है . आज य्तक वही सोच जारी है . सत्ता पर बैठे लोगों को समझना चाहिए कि हिमालय हमारे विकास का प्रहरी है , रक्षक है . वह जीवंत बना रहे ,यही बहुत बड़ी बात है . पूरे देश को चाहिए कि हिमालय में वैसा विकास न होने दें जैसा कि मैदानी इलाकों में होता है . हिमालय प्रेमी लोगों की एक बड़ी जमात यह मानती है कि हिमालय के कारण ही भारत के उत्तरी भाग में विकास होता है . हिमालय से ही देश में नदियों की कई बड़ी श्रृंखलाएं चलती हैं. गंगा और यमुना नदी का भारत के आर्थिक , सांस्कृतिक ,राजनीतिक, सामरिक ,धार्मिक और साहित्यिक विकास में योगदान अद्वितीय है . ज़रूरत इस बात की है कि हिमालय को उसकी अपनी गति से , अपनी लय से भारत के रक्षक के रूप में बने रहने दिया जाए . लेकिन अजीब बात यह है कि जो भी शासक होता है वह विकास के वही पैमाने अख्तियार करने लगता है जिसका विरोध लगातार करता रहा होता है .
हिमालय अपनी मौजूदगी से ही देश के बहुत बड़े भूभाग पर विकास की धारा बहा रहा है लेकिन उसके अस्तित्व को ही खतरे में डालकर विकास की इबारत रखना बहुत बड़ी गलती होगी . अपने कालजयी महाकाव्य , कुमारसंभव में महान कवि कालिदास ने पहला ही श्लोक हिमालय की महिमा में लिखा है . लिखते हैं कि
अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा ,हिमालयो नाम नगाधिराजः ।
पूर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य, स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः॥
दुर्भाग्य की बात यह है कि आज इस देवतात्मा ,नगाधिराज और पृथ्वी के मानदंड को हम वह सम्मान नहीं दे पा रहे हैं जो उसे वास्तव में मिलना चाहिए .हिमालय को पृथ्वी की बहुत नई पर्वत श्रृंखला माना जाता है . भारत के लिए तो हिमालय जीवनदायी है . गंगा और यमुना समेत बहुत सारी नदियाँ हिमालय से निकलती हैं . प्रगति के नाम पर में समय समय पर सरकारें हिमालय को नुक्सान पंहुचाती रहती हैं . केदारनाथ में प्रकृति के क्रोध और तज्जनित विनाशलीला को दुनिया ने देखा है . उसके पहले उत्तरकाशी में एक भूकम्प के चलते पहाड़ के दुर्गम इलाक़ों से किसी तरह का संपर्क महीनों के लिए रुक गया था. समय समय पर हिमालय से प्रेम करने वाले और दुनिया भर के पर्यावरणविद चिंता जताते रहते हैं लेकिन कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता . गंगा और हिमालय की रक्षा के लिए बहुत सारे महामना संतों ने अपने जीवन का बलिदान भी किया है . लेकिन आजादी के बाद से ही हिमालय के दोहन की प्रक्रिया शुरू हो गयी है जो अभी तक जारी है . इस कड़ी में एक ‘ विकास का प्रोजेक्ट ‘ चारधाम परियोजना है .कुछ वर्ष पूर्व सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में आया था कि सड़क यातयात और हाईवे मंत्रालय की चार धाम परियोजना के कारण हिमालय के जंगलों और वन्यजीवन को भारी नुकसान हो रहा है . सुप्रीम कोर्ट ने सही जानकारी के लिए रवि चोपड़ा की अगुवाई में एक हाई पावर कमेटी नियुक्त की थी ..उसकी कुछ रिपोर्टें आ चुकी हैं .कमेटी की राय में उत्तराखंड में चल रही चार धाम परियोजना के कारण हिमालय के पर्यावरण को भारी नुक्सान हो रहा है .जिसके दूरगामी परिणाम बहुत ही भयानक होंगे. इस कमेटी ने पर्यावरण मंत्रालय से तुरंत कार्रवाई करने की मांग की है .. कमेटी की रिपोर्ट किसी भी पर्यावरण प्रेमी को चिंता में डाल देगी . रवि चोपड़ा ने पर्यावरण मंत्रालय को लिखा है कि वहां अंधाधुंध पेड़ काटे जा रहे हैं ,पहाड़ को तोड़ा जा रहा है . बिना किसी सरकारी मंजूरी के जगह जगह खुदाई की जा रही है और कहीं भी मलबा फेंका जा रहा है .
चारधाम परियोजना के तहत उत्तराखंड राज्य के प्रमुख धार्मिक केन्द्रों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए कई सौ किलोमीटर की सड़क तैयार करने की योजना है . हिमालय के पर्यावरण को बिना कोई नुक्सान पंहुचाये इस महत्वाकांक्षी योजना को पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन वहां खूब मनमानी हुई . उच्च अधिकार प्राप्त कमेटी ने आगाह किया था कि इस मनमानी को फौरन रोकना पडेगा . 2017 से ही बिना अनुमति लिए पेड़ों की कटाई का सिलसिला जारी है .जब यह बात वहां के अखबारों में छप गयी तो 2018 में तत्कालीन राज्य सरकार से बैक डेट में अनुमति ली गयी . रिपोर्ट में लिखा है कि चारधाम प्रोजेक्ट प्रधानमंत्री की एक महत्वाकांक्षी और महत्वपूर्ण योजना को लागू करने के लिए शुरू किया गया है . परियोजना के ड्राफ्ट में बहुत साफ़ बता दिया गया है कि हिमालय के पर्यावरण को कोई नुक्सान नहीं पंहुचाया जाएगा .लेकिन वहां फारेस्ट एक्ट और एन जी टी एक्ट का सरासर उन्ल्लंघन करके अंधाधुंध विकास का तांडव जमकर हुआ . क़ानून और सरकारी आदेशों को तोडा मरोड़ा भी खूब गया . रक्षा मंत्रालय के सीमा सड़क संगठन ने 2002 और 2012 के बीच कोई आदेश दिया था . उसी के सहारे बड़े पैमाने पर पहाड़ों को तबाह किया जा रहा है जबकि उस आदेश में इस तरह की कोई बात नहीं थी . राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड के दिशानिर्देशों की भी कोई परवाह नहीं की गयी . केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य , राजाजी नैशनल पार्क और फूलों के घाटी नैशनल पार्क के इलाके में हिमालय को भारी नुक्सान पंहुचाया जा रहा है . सबको मालूम है कि हिमालय के पर्यावरण की रक्षा देश की सबसे बड़ी अदालत की हमेशा से ही प्राथमिकता रही है . लेकिन यह भी देखा गया है और चारधाम परियोजना में भी देखा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट की मंशा को तोड़ मरोड़कर अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने वाले बिल्डर-ठेकेदार-नौकरशाह-नेता माफिया कोई न कोई रास्ता निकाल लेते हैं . ऐसी हालत में उत्तराखंड के आज के प्रभावशाली नेताओं को राजनीतिक पार्टियों की सीमा के बाहर जाकर काम करना होगा. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत, सांसद अनिल बलूनी ,पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत जैसे नेताओं की अगुवाई में पहाड़ की राजनीतिक बिरादरी को आगे आना चाहिए और अपने संरक्षक हिमालय की रक्षा के लिए लेकिन ज़रूरी राजनीतिक प्रयास करना चाहिए .
अगर राजनेता तय कर ले तो उनकी मर्जी के खिलाफ जाने की किसी भी माफिया की हिम्मत नहीं पड़ती है . हरीश रावत के कार्यकाल में हिमालय को कई बार नुक्सान हुआ है लेकिन अब पानी सर के ऊपर जा रहा है . सत्ता और राजनीतिक पार्टी तो आती जाती रहेगी लेकिन अगर हिमालय को नुक्सान पंहुचाने का सिलसिला जारी रहा तो आने वाली पीढ़ियां इन नेताओं को माफ़ नहीं करेंगी.
हिमालय के चमोली जिले में आया मौजूदा संकट भी हिमालय को सम्मान न देने के कारण ही आया है .लेकिन लगातार चल रही हिमालय के असम्मान की दिशा में वः एक कड़ी मात्र है . वहां भी अगर वह बिजली उत्पादन केंद्र न होता तो इतना ज्यादा नुक्सान न होता , जितना हुआ है . इसलिए ज़रूरी है कि हिमालय से छेड़छाड़ फ़ौरन बंद की जाय. हिमालय को उसके मूल स्वरूप में रहने दिया जाय. अपनी नदियों, पेड़ पौधों ,पशुपक्षियों के साथ हिमालय एक देवतात्मा की तरह खड़ा रहे और देश की निगहबानी करता रहे. हिमलाय के विकास के लिए ,वहां रहने वालों के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को अतिरिक्त धन की व्यवस्था करनी चाहिए , ज़रूरत पड़े तो हिमालय के नाम पर अतितिक्त टैक्स लगाया जा सकता है और हिमलाय के गाँवों में रहने वालों को मैदानी विकास के लालच से मुक्त किया जा सकता है . पर्यावरण प्रबंधन के बहुत सारी संस्थान बनाये जा सकते हैं और पूरी दुनिया में पर्यावरण संरक्षण के हिमालयी विशेषज्ञ भेजे जा सकते हैं . हमारे आई आई एम और आई आई टी के स्नातकों ने दुनिया भर में इंजीनियरिंग और प्रबंधन के क्षेत्र में जो मुकाम बनाया है वह काम हिमालय के संस्थाओं से निकले पर्यावरणविद कर सकते हैं . नरेंद्र मोदी सख्त फैसले लेने के लिए विख्यात हैं इसलिए मौजूदा दौर में यह संभव है कि हिमालय की रक्षा के लिए ऐसे फैसले लिए जाएँ जिससे हिमालय की रक्षा की गारंटी हो सके. पूरे देश को इस बात के लिए तैयार होना पड़ेगा कि हिमालय की इंसानी आबादी को सब्सिडी देने की किसी भी सरकारी स्कीम का पूरी तरह से स्वागत किया जाय. उत्तराखंड की सरकार की ड्यूटी यह बना दी जाय कि वह हिमालय में इंसानी लालच से पैदा हुयी किसी प्रगति को घुसने न दें. वह केवल हिमालय की रक्षा करें. सरकार चलाने एक लिए केंद्र और गंगा नदी के क्षेत्र में आने वाले राज्य उनको आर्थिक योगदान करें . केंद्र सरकार में हिमालय के संरक्षण के लिए अलग मंत्रालय बनाया जाना चाहिए . पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है कि उत्तराखंड के सांसद अनिल बलूनी हिमालय के विकास के लिए समय समय पर पहल करते रहते हैं . उनको मेरे इन सुझावों को तार्किक परिणति तक ले जाने के लिए सक्रिय होना चाहिए . हिमालय की रक्षा आज हमारे अस्तित्व से जुड़ गया है . किसी भी इंसानी गलती को उसकी तबाही में शामिल होने से रोकना एक राष्ट्रीय प्राथमिकता होनी चाहिए .