शेष नारायण सिंह
अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने लगातार
लोकतन्त्र को शर्मशार किया है . दुनिया के
सबसे मज़बूत लोकतंत्र को उनके समर्थकों ने जो नुकसान पंहुचाया है ,आने वाले बहुत
समय तक इतिहास इसको याद रखेगा . अमरीका में छः जनवरी को जो हुआ है उसको अमरीकी लोग
बहुत दिनों तक तकलीफ का पर्याय बताते रहेंगे. डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति पद का
चुनाव हार चुके हैं . लेकिन अपनी हार को वे स्वीकार नहीं कर रहे हैं . अमरीका में
अलग अलग राज्यों में अलग तरह के चुनाव क़ानून हैं . उन्हीं कानूनों के आधार पर अब तक
अमरीकी लोकतंत्र चल रहा है . ट्रंप ने उन
राज्यों के चुनाव कानूनों को चुनौती दी जहां वे चुनाव हार गए हैं . पहले तो अधिकारियों
को ही हड़का कर अपने पक्ष में फैसला देने
के लिए दबाव बनाया . उनमें से बहुत से अधिकारी उनके अपने लोग थे लेकिन सभी ने नियम क़ानून का हवाला देकर उनकी बात मानने
से इनकार कर दिया . उसके बाद कोर्ट में मुक़दमे किये गए. सभी अदालतों ने ट्रंप के
दावों को गलत बताया . उसके बाद उन्होंने अपने साथ चुनाव लड़ने वाले उपराष्ट्रपति
,माइकेल पेंस को धमकाया कि वे उनके पक्ष
में फैसला सुना दें लेकिन उन्होंने भी
बहुत ही साफ शब्दों में मना कर दिया . अमरीका में भी हमारी तरह से ही देश
के उपराष्ट्रपति ऊपरी सदन के पीठासीन अधिकारी होते हैं . उसी नियम के तहत माइकेल पेंस अमरीकी सेनेट के पीठासीन
अधिकारी हैं लेकिन उन्होंने कुछ भी
गैरकानूनी करने से मना कर दिया . कहीं से भी नियमों के अधीन रहकर हेराफेरी
करने में असफल रहने के बाद ट्रंप ने अमरीकी कांग्रेस के दोनों सदनों की संयुक्त
बैठक में मतों के की गिनती की प्रक्रिया को ही नुक्सान पंहुचने की कोशिश शुरू कर
दी . उनके इस काम से अमरीका सहित पूरी
दुनिया में उनकी थू थू हो रही है .
अमरीकी सेनेट में उनकी रिपब्लिकन पार्टी
के पचास सदस्य हैं जिनमें से 43 ने उनकी इस
कारस्तानी का विरोध किया है . उनकी पत्नी की चीफ आफ स्टाफ ने ट्रंप के
कारनामे से नाराज़ होकर इस्तीफा दे दिया है
. व्हाइट हाउस के प्रेस सेक्रेटरी ने भी इस्तीफा दे दिया है. उनका कहना है कि डोनाल्ड ट्रंप के
गैर्ज़िमीदार फैसलों को सही ठहराना उनके लिए असंभव है. हो सकता है कि अभी और भी इस्तीफे हो जायं .
राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनावों के लिए पड़े
मतदान की पहले तो गिनती राज्यों की राजधानियों में होती है . राज्य की तरह से प्रमाणित वोटों की गिनती अमरीकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र में छः
जनवरी को की जाती है . उसके बाद ही अमरीकी राष्ट्रपति पद के चुनाव की
पुष्टि होती है और 20 जनवरी को नए राष्ट्रपति की पदस्थापना होती है .अमरीका की
संसद को कांग्रेस कहते हैं . जब वोटों को सही
ठहराने की प्रक्रिया चल रही थी और कांग्रेस का संयुक्त अधिवेशन चल रहा था ,उसी दौरान
सदन के अंदर सैकड़ों को गुंडे घुस आये . वे
सभी डोनाल्ड ट्रंप के समर्थक थे .संयुक्त अधिवेशन में प्रत्येक राज्य की सरकार ने सत्यापित
वोटों को सदन की मंजूरी के लिए रखा जाता है .अगर कोई सेनेटर और कुछ प्रतिनिधि
एतराज करते हैं तो उसपर बाकायदा बहस
होती है और वोट पड़ता है. उस वोट के बाद ही राज्य से आये वोटों को
मंजूरी दी जाती है .यही प्रक्रिया चल रही
थी जब सैकड़ों की संख्या में लोग सदन में घुस आये . लाठी डंडों से लैस यह लोग
तोड़फोड़ करने लगे. सेनेटर और प्रतिनिधियों को मारने लगे . संसद की सुरक्षा के लिए
तैनात कैपिटल हिल की पुलिस को भी मारा
पीटा . राष्ट्रपति ने केंद्रीय सुरक्षा
बल को तैनात नहीं किया . ऐसा लगता
है कि वे अपने बदमाशों को खुली छूट देना चाहते थे . उसके बाद उपराष्ट्रपति माइकेल
पेंस ने पड़ोसी राज्य वर्जीनिया से नैशनल गार्ड को बुलाया . सेनेटरों और
प्रतिनिधियों को बचाकर सुरक्षित स्थानों
पर ले जाया गया तब जाकर उनकी जान बची . इस हमले में सदन के अन्दर चार लोगों
की मौत हो गयी . ऐसा अमरीकी सिस्टम में अकल्पनीय है .
अमरीकी सदन की घटनाओं के बाद डोनाल्ड ट्रंप
अपनी पार्टी में भी अकेले पड़ गए हैं . उनकी पत्नी मेलानिया ट्रंप के जो विभिन्न
बयान आये हैं उससे लगता है कि वे भी अपने
पति की हरकतों से नाराज़ हैं . पार्टी में उनकी निंदा करने वालों की संख्या बढ़ रही है . बात को
समझने के लिए सेनेट का उदाहरण ही पर्याप्त
है . जब संयुक्त बैठक में अरिजोना के नतीजों को चुनौती दी गयी तो 15 सेनेटरों ने ट्रंप की बात का समर्थन किया था लेकिन जब संसद
पर हमला हो गया और यह साफ हो गया कि सब ट्रंप ने ही करवाया है तो समर्थकों की
संख्या घटकर छः रह गयी .पेंसिलवानिया के वोट को चुनौती देने पर पूरे सदन में केवल
सात लोग ट्रंप के साथ बचे थे . उनकी पार्टी के ही 43 लोग उनका साथ छोड़ चुके थे .
अमरीकी राजधानी में इस वक़्त जो माहौल है
उसको देखकर लगता है कि बहुत सारे लोग ट्रंप
का साथ छोड़ने वाले हैं . वहां इस बात की चर्चा चल चुकी है कि अमरीकी संविधान के 25
वें संशोधन का इस्तेमाल करके दोनों सदनों
में यह प्रस्ताव पास कर दिया जाए कि डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति के रूप में अब काम करने लायक नहीं हैं.और उनके कार्यकाल
के जो दो हफ्ते बचे हैं उससे भी उनको हटा दिया जाय. जिस तरह से अमरीकी जनमत उनके
खिलाफ हो गया है ,उसके मद्देनज़र इस बात की सम्भावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता
कि उनपर महाभियोग भी चला दिया जायेगा और
उनको हमेशा के लिए चुनाव लड़ने से रोक दिया
जाय. महाभियोग को चलाने के लिए दोनों सदनों के दो तिहाई सदस्यों के बहुमत
की ज़रूरत होती है . शुरू में तो ट्रंप पर किसी महाभियोग की संभावना का कोई सवाल ही नहीं था लेकिन जिस तरह से पिछले
एक महीने में उन्होंने अपनी ही पार्टी के लोगों के विश्वास के साथ धोखा किया है
,उसके बाद सेनेट में केवल सात लोग बचे हैं जो उनकी हर सनक का साथ देने के लिए
तैयार नज़र आ रहे हैं .बाकी उनके अपने ही लोग उनके खिलाफ मैदान ले चुके हैं .
राष्ट्रपति ट्रंप यह तर्क दे रहे हैं कि उनको सात करोड़ अमरीकियों ने
वोट दिया है . और जोसेफ बाइडेन की जीत से
उन सात करोड़ अमरीकियों के हितों का नुक्सान हुआ है . ट्रंपवादी लोग समझ नहीं पा
रहे हैं कि जिन जो बाइडेन ने ट्रंप को
हराया है उनको तो सात करोड़ चालीस लाख से भी ज़्यादा वोट मिले
हैं . ट्रंप नतीजों के दिन से ही प्रलाप कर रहे हैं कि चुनाव उन्होंने जीता था जिसको उनसे चुरा लिया गया है जबकि सच्चाई यह है
कि ट्रंप चुनाव हार चुके हैं और वे उस हारे हुए चुनाव को गुंडई के बल पर फिर जीत
लेना चाहते हैं . उनके समर्थकों में ऐसे बहुत लोग
हैं जो अमरीका में श्वेत लोगों के आधिपत्य के समर्थक हैं . जब अमरीका में
मानवाधिकारों के आन्दोलन ने जोर पकड़ा और ब्राउन का फैसला आने के बाद काले बच्चों
को भी स्कूलों में दाखिला देना अनिवार्य कर दिया गया तो संयुक्त राज्य अमरीका के दक्षिण के राज्यों
में श्वेत अधिनायकवादियों के कई गिरोह बन गए थे . उन हथियारबंद बदमाशों के गिरोह को क्लू
क्लैक्स क्लान के नाम से जाना जाता है . बाद में तो महिलाओं और काले लोगों के
मताधिकार के क़ानून भी बन गए . साठ के दशक
में राष्ट्रपति केनेडी और उनके भाई बॉब
केनेडी ने मानवाधिकारों के लिए बहुत काम किया . उसके बाद क्लू क्लैक्स क्लान वाले
धीरे धीरे तिरोहित हो रहे थे लेकिन जब
रिचर्ड निक्सन राष्ट्रपति चुनाव में
रिपब्लिकन पार्टी की ओर से उम्मीदवार बने तो उन्होंने भी इन क्लू क्लैक्स क्लान
वाले चांडालों को आगे किया और काले लोगों
औकात दिखाने के नाम पर चुनाव जीत लिया .
रिचर्ड निक्सन का जो हश्र हुआ वह दुनिया को मालूम है . महाभियोग की चपेट
में आये और अपमानित होकर उनको गद्दी छोडनी पडी. उसी तरह के श्वेत अधिनायकवाद
का सहारा लेकर डोनाल्ड ट्रंप इस बार का चुनाव जीतना चाहते थे . उन्होंने अपने पूरे
चुनाव में ओबामा के कार्यकाल की निंदा को अपना प्रमुख एजेंडा बनाया और अश्वेत
,अफ्रीकी-भारतीय-अमरीकी कमला हैरिस के खिलाफ लगातार ज़हर उगलते रहे . चुनाव प्रचार
के घटियापन का आलम यह था कि वे लगातार कहते रहे कि जो बाइडेन की उम्र ज़्यादा है और
अगर उनको जीत मिली तो चार साल जिंदा नहीं
रहेंगे और कमला हैरिस राष्ट्रपति बन जायेंगी . इतने अमानवीय तरीके से चुनाव प्रचार
में ट्रंप लगातार हर इलाके के श्वेत गुंडों को बढ़ावा देते रहे. जब मतदान के बाद वोटों की गिनती हो रही थी ,तब भी यह बदमाश लोग वहां भी
तोड़फोड़ कर रहे थे. और अब बाकायदा संसद पर ही हमला कर दिया .
डोनाल्ड ट्रंप के लिए शर्म की बात यह है कि जो बदमाश आये थे वे वहीं व्हाइट हाउस के पास बने
हुए डोनाल्ड ट्रंप के होटल में ही ठिकाना
बनाये हुए थे .इस बात में कोई दो राय नहीं है कि डोनाल्ड ट्रंप ने अपने आपको अमरीका की बहुत बड़ी आबादी
की नज़र में घटिया इंसान साबित कर लिया है
.उनकी इस कारस्तानी का नुक्सान लोकतंत्र को झेलना
पडेगा. दुनिया के बहुत सारे देशों
में कई तानाशाह चुनाव जीतकर सत्ता पर काबिज़ हैं . लेकिन कई बार वे चुनाव हारने के
बाद सत्ता छोड़ देते हैं . डोनाल्ड ट्रंप के इस उदाहरण के बाद इस बात के संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि उनमें
से बहुत सारे तानाशाह अब ट्रंप के तरीकों से ही सत्ता से चिपके रहना चाहेंगे. यह
लोकशाही की अवधारणा का बहुत बड़ा नुक्सान हुआ है .
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