Monday, January 7, 2019

आवारा पशुओं से हो रहे खेती के नुकसान के राजनीतिक परिणाम भी होंगें


शेष नारायण सिंह  

छुट्टा सांड उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में बहुत नुक्सान कर रहे हैं. सरकार की पशुओं के प्रति नीति इस दुर्दशा के लिए ज़िम्मेदार है . जहां २०१४ में मोदी लहर थी ,वहां आज इस एक कारण से केंद्र और राज्य सरकार की निंदा हो रही है . दिल्ली में बैठे जो ज्ञाता जातियों के आधार पर हिसाब किताब लगाकर उत्तर प्रदेश के २०१९ के नतीजों का आकलन कर रहे हैं ,उनको कुछ नहीं मालूम. अजीब बात यह है कि ३२५ विधायक और ७० के करीब लोकसभा के सदस्य अपने नेताओं को बता नहीं पा रहे हैं कि उनकी पार्टी की हालत इन आवारा पशुओं के कारण कितनी खराब है इस सम्बन्ध में सरकार का रवैया भी अल्गर्ज़ ही है . उत्तर प्रदेश के पशुपालन मंत्री एस पी सिंह बघेल से जब इसके बारे में बात की गयी तो उन्होंने बहुत ही आत्मविश्वास के साथ बताया कि ट्रैक्टर और अन्य मशीनों से खेती होने के  कारण अब बैलों की ज़रूरत नहीं रह गयी है  .किसान के घर पैदा होने वाले बछड़े किसी इस्तेमाल लायक  नहीं रह गए हैं . रबी और खरीफ मिलाकर केवल पन्द्रह दिन की जुताई के लिए साल भर बैलों को खिलाना वैसे भी आर्थिक रूप से नुक्सान  की बात है . उन्होंने दावा  किया हमारी सरकार ने गौरक्षा क़ानून  को सख्ती से लागू किया है जिसका नतीजा है कि अब गोहत्या के मामले बिलकुल बंद हो  गए हैं .  ग्रामीण इलाकों में सांडों की बढ़ रही  संख्या इस   बात का सबूत है कि पिछली सरकारों में  बहुत बड़ी संख्या में गौवंश की हत्या हो रही थी. सरकार अब ऐसा इंतजाम करने वाली है कि अब बछड़े पैदा ही नहीं होंगे. ९०-९५ प्रतिशत गायें ऐसी होंगी जिनको बछिया ही पैदा   होगी. ऐसा वैज्ञानिक तरीका बाराबंकी, इटावा और लखीमपुर खीरी में अपनाया जा चुका है. है 
राज्य के हर क्षेत्र में हज़ारों की संख्या में ऐसे जानवर घूम रहे हैं जो किसी के नहीं हैं , झुण्ड के झुण्ड के आ जाते हैं और बस कुछ मिनट में फसलों को बेकार करके चले जाते हैं . अब पता चला है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने बड़े तामझाम से कुछ इलाकों में  में सरकारी गौशाला बनवाने का काम शुरू किया है . इस गौशाला में कितने जानवर बंद किये जा सकेंगें यह लखनऊ में बैठे अफसरों को नहीं मालूम है. अगर उनको यह उम्मीद है कि इसके बाद आवारा जानवरों की समस्या ख़त्म हो जायेगी तो वे सच्चाई को शुतुरमुर्गी स्टाइल में समझ रहे हैं . इस खबर में यह भी बताया गया है कि जो लोग अपने जानवर छुट्टा छोड़ रहे हैं उनके खिलाफ सरकार कार्रवाई करेगी यानी बीजेपी के कुछ वोटर और नाराज़ किये जायेंगें और उनको पुलिस के वसूली तंत्र का शिकार बनाया जाएगा . मेरे लिए अभी यह अंदाज़ा लगा पाना असंभव है कि २०१९ में इन छुट्टा जानवरों के कारण ,बीजेपी का कितना नुकसान होगा लेकिन यह तय है कि बड़ी संख्या में किसान बीजेपी के खिलाफ वोट कर सकते हैं और उनकी जाति कुछ भी हो सकती है . २०१४ में बीजेपी के कट्टर समर्थकों से भी बात करके यही समझ में आता है कि नाराज़गी बहुत ज्यादा है . मतदान  शुरू होने में अभी करीब अस्सी दिन  बाकी हैं .क्या इतने दिनों में ऐसा कुछ कर पायेंगे कि वोटों में होने वाले निश्चित नुक्सान को कम किया जा सके .
उत्तर प्रदेश में फसलों पर नील गाय का आतंक  पहले से ही है. ज़्यादातर फसलें नील गाय की बढ़ती संख्या के कारण  बर्बाद होती रही हैं . कई बार लोगों ने जनप्रतिनिधियों से गुहार भी लगाई है कि इनसे मुक्ति का  कोई रास्ता  निकालने में सरकार से मदद दिलवाएं. यह समस्या बरसों से है . मायावती और अखिलेश यादव की सरकारों के समय से कोशिश चल  रही है लेकिन कोई असर नहीं पड़ रहा था . नील गायों के बारे में कहा जाता था कि वे तो जंगली जानवर हैं पता नहीं कहाँ से आ गए हैं . अब  गाय और सांड से फसाल को हो रहा नुक्सान नील गाय से होने वाले नुक्सान से कहीं  ज़्यादा है . सरकारी और राजनीतिक तौर पर  गौरक्षा अभियान शुरू होने के पहले जो पशु किसान के लिए अनुपयोगी  हो जाते थे उनको बेच दिया जाता था और उनको ट्रकों आदि में लादकर लोग ले जाते थे . जब से गौरक्षा वाला कार्यक्रम शुरू हुआ है और उसको राजनीतिक समर्थन मिलने लगा है तब से जानवरों खासकर गाय बैल कीत्रकों पर आवाजाही पर भारी प्रतिबन्ध है . नतीजा यह है कि अनुत्पादक जानवरों को लोग सड़कों पर छोड़ रहे हैं .  किसानों को अगर बचाना है तो सरकार की ड्यूटी  है  कि वह  इन जानवरों की व्यवस्था करे वरना सत्ताधारी पार्टी को  भारी नुकसान हो सकता है .
ग्रामीण इलाकों में तो सांडों को कुछ खाने  को मिल जाता है लेकिन शहरी इलाकों में इनकी बढ़ती संख्या के कारण कानून व्यवस्था और यातायात व्यवस्था में  भारी अड़चन आ रही है . किसी भी अखबार का स्थानीय पन्ना देखने पर पता  लगता है कि  शहरों में सांडों का आतंक कितना गहरा गया है . ऐसे सैकड़ों मामले मीडिया में रिपोर्ट हो रहे हैं जहां सांडों ने रह चलते लोगों पर हमला किया और उनकी जान चली गयी . दिल्ली की सड़कें आम  तौर पर अति व्यस्त रहती  हैं . कई बार ऐसा देखा गया है कि सड़क पर आवारा जानवर बैठे रहते हैं और यातायात पूरी तरह से ठप्प हो जाता  है .  

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