शेष नारायण सिंह
महात्मा गांधी की शहादत को सत्तर साल हो गए. महात्मा गांधी की हत्या जिस आदमी ने की थी वह कोई अकेला इंसान नहीं था. उसके साथ साज़िश में भी बहुत सारे लोग शामिल थे और देश में उसका समर्थन करने वाले भी बहुत लोग थे . वह एक विचारधारा का नेता था जिसकी बुनियाद में नफरत कूट कूट कर भरी हुयी है .तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल ने एक पत्र में लिखा था कि महात्मा जी की हत्या के दिन कुछ लोगों ने खुशी से मिठाइयां बांटी थीं. नाथूराम गोडसे और उसके साथियों के पकडे जाने के बाद से अब तक उसके साथ सहानुभूति दिखाने वाले चुपचाप रहते थे ,उनकी हिम्मत नहीं पड़ती थी कि कहीं यह बता सकें कि वे नाथूराम से सहानुभूति रखते हैं . लेकिन अब बात बदल गयी है .अब उसके साथियों ने फिर सिर उठाना शुरू कर दिया है . देश के हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व करने का दावा करें वाले एक नेता ने एक दिन एक टीवी डिबेट में बिना पलक झपके कह दिया था कि नाथूराम गोडसे आदरणीय है और गांधी की हत्या किसी और हत्या जैसी ही एक घटना है. उसके समर्थक अब नाथूराम को सम्मान देने की कोशिश करने लगे हैं . कुछ शहरों में नाथूराम गोडसे के मंदिर भी बन गए हैं.
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महात्मा गांधी के हत्यारे को इस तरह से सम्मानित करने के पीछे वही रणनीति और सोच काम कर रही है जो महात्मा गांधी की ह्त्या के पहले थी .गांधी की हत्या के पीछे के तर्कों का बार बार परीक्षण किया गया है लेकिन एक पक्ष जो बहुत ही उपेक्षित रहा है वह है कि महात्मा गांधी को मारने वाले संवादहीनता की राजनीति के पोषक थे , वे बात को दबा देने और छुपा देने की रणनीति पर काम करते थे जबकि महात्मा गांधी अपने समय के सबसे महान कम्युनिकेटर थे. उन्होंने आज़ादी की लडाई से जुडी हर बात को बहुत ही साफ़ शब्दों में बार बार समझाया था. पूरे देश के जनमानस में अपनी बात को इस तरह फैला दिया था की हर वह आदमी जो सोच सकता था ,जिसके पास ऐसा दिमाग था जो काम कर सकता था, वह गांधी के साथ था .
महात्मा गांधी की अपनी सोच में नफरत का हर स्तर पर विरोध किया गया था. पूरी दुनिया में महात्मा गांधी का बहुत सम्मान है . पूरी दुनिया में उनके प्रशंसक और भक्त फैले हुए हैं। महात्मा जी के सम्मान का आलम तो यह है कि वे जाति, धर्म, संप्रदाय, देशकाल सबके परे समग्र विश्व में पूजे जाते हैं। वे किसी जाति विशेष के नेता नहीं हैं। हां यह भी सही है कि भारत में ही एक बड़ा वर्ग उनको सम्मान नहीं करता बल्कि नफरत करता है। इसी वर्ग और राजनीतिक विचारधारा के चलते ही 30 जनवरी 1948 के दिन गोली मारकर महात्मा जी की हत्या कर दी गयी थी उनके हत्यारे के वैचारिक साथी अब तक उस हत्यारे को सिरफिरा कहते थे लेकिन यह सबको मालूम है कि महात्मा गांधी की हत्या किसी सिरफिरे का काम नहीं था। वह उस वक्त की एक राजनीतिक विचारधारा के एक प्रमुख व्यक्ति का काम था। उनका हत्यारा ,नाथूराम गोडसे कोई सड़क छाप आदमी नहीं था, वह हिंदू महासभा का नेता था और अपनी पार्टी के 'अग्रणी' नाम के अखबार का संपादक था। गांधी जी की हत्या के आरोप में उसके बहुत सारे साथी गिरफ्तार भी हुए थे। ज़ाहिर है कि गांधीजी की हत्या करने वाला व्यक्ति भी महात्मा गांधी का सम्मान नहीं करता था और उसके वे साथी भी जो आजादी मिलने में गांधी जी के योगदान को कमतर करके आंकते हैं। अजीब बात है कि गोडसे को महान बताने वाले और महात्मा गांधी के योगदान को कम करके आंकने वालों के हौसले आजकल बढे हुए हैं .
हालांकि इस सारे माहौल में एक बात और भी सच है, वह यह कि महात्मा गांधी से नफरत करने वाली बहुत सारी जमातें बाद में उनकी प्रशंसक बन गईं। जो कम्युनिस्ट हमेशा कहते रहते थे कि महात्मा गांधी ने एक जनांदोलन को पूंजीपतियों के हवाले कर दिया था, वही अब उनकी विचारधारा की तारीफ करने के बहाने ढूंढते पाये जाते हैं। अब उन्हें महात्मा गांधी की सांप्रदायिक सदभाव संबंधी सोच में सदगुण नजर आने लगे है।लेकिन आज भी गोडसे के भक्तों की एक जमात है जो महात्मा गांधी को आज भी उतनी ही नफरत करती है ,जितना आजादी के समय करती थी.
आर.एस.एस. के ज्यादातर विचारक महात्मा गांधी के विरोधी रहे थे लेकिन 1980 में आर एस एस के अधीन काम करने वाली राजनीतिक पार्टी,बीजेपी ने गांधीवादी समाजवाद के सिद्घांत का प्रतिपादन करके इस बात को ऐलानिया स्वीकार कर लिया कि महात्मा गांधी का अनुसरण किये बिना भारत में राजनीतिक सत्ता तक पंहुचना नामुमकिन है और उनका सम्मान किया जाना चाहिए। अब देखा गया है कि आर एस एस और उसके मातहत सभी संगठन महात्मा गांधी को अपना हीरो बनाने की कोशिश करते पाए जाते हैं . आर एस एस के बहुत सारे समर्थक कहते हैं की महात्मा गांधी कभी भी कांग्रेस के सदस्य नहीं थे. ऐसा इतिहास के अज्ञान के कारण ही कहा जाता है क्योंकि महात्मा गांधी के जीवन के तीन बड़े आन्दोलन कांग्रेस पार्टी के ही आन्दोलन थे. १९२० के आन्दोलन को कांग्रेस से मंज़ूर करवाने के लिए महात्मा गांधी ने कलकत्ता और नागपुर के अधिवेशनों में बाक़ायदा अभियान चलाया था . देशबंधु चितरंजन दास ने कलकत्ता सम्मलेन में गांधी जी का विरोध किया था लेकिन महात्मा गांधी के व्यक्तित्व में वह ताकता थी कि नागपुर में देशबंधु चितरंजन दास खुद महात्मा गांधी के समर्थक बन गए . १९३० का आन्दोलन भी जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता वाली कांग्रेस पार्टी के लाहौर में पास हुए प्रस्ताव का नतीजा था. १९४२ का भारत छोड़ो आन्दोलन भी मुंबई में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में लिया गया था . महात्मा गांधी खुद १९२४ में बेलगाम में हुए कांग्रेस के उन्तालीसवें अधिवेशन के अध्यक्ष थे . लेकिन वर्तमान कांग्रेसियों को इंदिरा गांधी के वंशज गांधियों के सम्मान की इतनी चिंता रहती है कि महात्मा गांधी की विरासत को अपने नज़रों के सामने छिनते देख रहे हैं और उनके सम्मान तक की रक्षा नहीं कर पाते. इसके अलावा जिन अंग्रेजों ने महात्मा जी को उनके जीवनकाल में अपमान की नजर से देखा, उनको जेल में बंद किया, ट्रेन से बाहर फेंका उन्हीं के वंशज अब दक्षिण अफ्रीका और इंगलैंड के हर शहर में उनकी मूर्तियां लगवाते फिर रहे हैं। इसलिए गांधी के हत्यारे को सम्मानित करने की कोशिश में लगे लोगों को समझ लेना चाहिए कि भारत की आज़ादी की लड़ाई के हीरो और दुनिया भर में अहिंसा की राजनीति के संस्थापक को अपमानित करना असंभव है . इनको इन कोशिशों से बाज आना चाहिए.
मौजूदा सरकार को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि महात्मा गांधी के हत्यारे को सम्मानित करने वालों को शाह देने की कोशिश उन पर भी भारी पड़ सकती है .महात्मा गांधी की शहादत के दिन को देश में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है . लेकिन आजकल बीजेपी के कई नेता "पूज्य बापू को उनकी पुण्यतिथि पर शत् शत् नमन. " करते देखे जा रहे हैं. तीस जनवरी को शहीद दिवस मानने से संकोच देखा जा सकता है . सरकार को इस बात को सुनिश्चित करना चाहिए कि गांधी के हत्यारों को सम्मानित करने वालों को सज़ा दिलवाएं .प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने ही समकालीन अमरीकी इतिहास के सबसे यशस्वी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने दिल्ली में अपनी सरकारी यात्रा के दौरान बार बार यह बताया था कि उनके निजी जीवन और अमरीका के सार्वजनिक जीवन में महात्मा गांधी का कितना महत्व है . ज़ाहिर है महात्मा गांधी का नाम भारत के राजनेताओं के लिए बहुत बड़ी राजनीतिक पूंजी है . अगर उनके हत्यारों को सम्मानित करने वालों पर लगाम न लगाई गयी तो बहुत मुश्किल पेश आ सकती है . प्रधानमंत्री समेत सभी नेताओं को चाहिए कि नाथूराम गोडसे को भगवान बनाने की कोशिश करने वालों की मंशा को सफल न होने दें वरना भारत के पिछली सदी के इतिहास पर भारी कलंक लग जाएगा .
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