Sunday, May 26, 2013

सामंती समाज के परिवर्तन के संक्रमण के दौर में हुई थी मेरी शादी




शेष नारायण सिंह

३९ साल पहले मेरे पिताजी एक बारात लेकर जौनपुर जिले के टिकरी कलां गाँव के ठाकुर फ़तेह बहादुर सिंह के दरवाज़े गए थे और मेरी शादी हो गयी थी. जब मेरी शादी हुई तो  मैं कादीपुर के डिग्री कालेज में लेक्चरर था. अगले दिन हम अपने गाँव चले आये थे. मेरी माँ ने बताया था कि दुलहिन बहुत खूबसूरत है , बहुत गुनी है इसलिए मुझे उसको मानना जानना चाहिए . और साहेब हमने मानना जानना  शुरू  कर दिया . आज उनतालीस साल बाद लगता है कि माँ ने ठीक कहा था. क्योंकि बाद में गाँव वालों ने भी बताया कि कोटे की दुलहिन सबसे नीक है , या कि इतनी खूबसूरत दुलहिन साढ़े चारौ में कभी नहीं आयी . कोट का मतलब अवध में मामूली ज़मीन्दार का घर होता था यह कोर्ट का बिगड़ा हुआ रूप है . ज़मींदारी के ज़माने में इसी  दरवाज़े पर शायद गाँव या आस पास के गाँवों के लोगों के फैसले होते रहे होंगे . साढ़े चारौ का  मतलब यह है १८५८ में जिन दुनियापति सिंह को मकसूदन की जमीन्दारी अंग्रेजों की कृपा से मिली थी ,उनके चार बेटे थे. उनके जाने के बाद उनके तीन बेटों को ज़मीन में जो हिस्सा मिला होगा उन तीनों के बड़े भाई को हरेक भाई के हिस्से का डेढ़ गुना मिला होगा . इस तरह से साढ़े चार हिस्से  हो गए.
शादी के पहले मेरे गुरु डॉ अरुण कुमार सिंह ने कहा था कि फालिंग इन लव शादी के बाद भी हो सकता है जो जब मैंने अपने पिता जी से शादी के लिए हाँ कहा था तो मैंने फैसला कर लिया था कि शादी के बाद अपनी पत्नी से मुहब्बत तो करना ही है . आज मैं उनसे जो तीन बच्चों की माँ, चार बच्चों की  बड़ी अम्मा, सात बच्चों की मामी,एक बच्चे की नानी और एक बच्चे की दादी हैं , फुल मुहब्बत करता हूँ .
मुराद यह है कि कि सामंती सोच के हर पैमाने पर मेरी शादी सही बैठती है . मैं अपनी पत्नी की शकल देखने में शादी के अगले दिन कामयाब हुआ क्योंकि जब दुलहिन घर आयी तो मेरी छोटी बहिन ने  घूंघट उठा कर दिखा दिया था. मैंने अपनी माँ की आज्ञा मानकर अपनी पत्नी को मानना जानना शुरू कर दिया था .यानी माताजी के हुक्म से प्यार करना शुरू किया था . इस सामंती सोच से निकल कर हम दोनों आज बहुत ही आधुनिक बच्चों के माता पिता कहे जाते हैं . मेरी पत्नी ने बहुत शुरू में मुझे बता दिया था कि हम जो हैं वह तो हैं ही अब हमें अपने सपनों को बच्चों की  बुलंदी में देखना चाहिए . यह बात उन्होंने शादी के दिन नहीं कही थी , जब  हमारा बेटा पैदा हो गया था  तब यह बात  हुई थी. १९८० के बाद से हम दिल्ली में रहने लगे थे , उसके बाद हमें अपनी शादी की सालगिरह याद दिलाई जाती  रही. जहां तक मुझे याद है कि  तब से आज तक शादी की हर वर्ष गाँठ पर मैंने अपनी पत्नी को कोई न कोई उपहार ज़रूर दिया है . किसी साल बड़ी बेटी के लिए उसकी पसंद का फ्राक , किसी साल छोटी बेटी के लिए  उसके पसंद का पेन्सिल बाक्स , और किसी साल इन दोनों लड़कियों के बड़े भाई के लिए साइकिल . किसी साल घर के  लिए कोई बर्तनों का सेट तो किसी साल घर के लिए इन्वर्टर . किसी साल घर के लिए एसी . ज़रूरी नहीं कि यह सारे सामान शादी की सालगिरह के दिन ही  खरीद लिए जाएँ , २७ मई को तो बस वादा किया जाता था . बाद में किसी दिन जब पैसा होता था, सामान खरीद लिया जाता था.
बाद  के वर्षों में बातें आसान  होती गयीं और अब जब सारे बच्चे  अपने घरों में हैं अपनी गृहस्थी चला रहे हैं तो समस्या होने लगी है . अब मुझे २७ मई को अपनी पत्नी के लिए ऐसा गिफ्ट खरीदना है जो केवल उनके इस्तेमाल के लिए हो . हमारे सबसे प्रिय मित्रों ने ऐसी सलाह दी है लेकिन अजीब लग रहा है क्योंकि हमने कभी अपने लिए कुछ किया ही नहीं है . हमारी दुनिया बच्चों की खुशी के बाहर देखी ही नहीं गयी है . इस साल से मैं कोशिश शुरू कर रहा हूँ कि अपनी पत्नी को अपनी प्रेमिका मानना शुरू करूं. लेकिन समझ में नहीं आ रहा है कि गिफ्ट क्या  दूं. एक मित्र ने कहा है कि फूल दे दूं . इंदु को लगता है कि इस गर्मी में फूल खरीदना बेवकूफी की बात है .इसलिए अभी आइडियाज़ पर काम चल रहा है . हो सकता है कि शाम तक फिर कोई घर गृहस्थी के सामान पर ही जाकर रुक जाय क्योंकि  हमारे घर में जितनी भी शहरी जीवन में इस्तेमाल होने वाली चीज़ें हैं वे हमारी शादी की साल गिरह के दिन  ही खरीदी गयी हैं . मेरी बड़ी बेटी ने २७ मई शुरू होते ही रात १२ बजकर एक मिनट पर हमें बधाई दे दी है. हम लोगों की इच्छा है कि जब हमारी शादी के चालीस साल पूरे हों तो हमारे तीनों बच्चे और उनके बच्चे  इकठ्ठा हों और हमें वे ही बताएं कि मेरी माता जी ने १९७४ में मुझे जो बताया था वह कितना सही था यानी  उनकी अम्मा ,दादी या नानी कितनी अच्छी हैं . लेकिन लगता है कि यह सपना पूरा नहीं हो पायेगा क्योंकि कोई मुंबई में है , कोई नार्वे में और कोई दिल्ली में .सब का इकठ्ठा होना बहुत आसान नहीं है .लेकिन सपने देखने में क्या बुराई है . आज हमारे बच्चे जो भी हासिल कर सके हैं उसमें उनकी माँ और मेरी प्रियतमा के वे सपने हैं जो उन्होंने तब देखे थे जब यह भी नहीं पक्का रहता था कि अगले दिन भोजन कहाँ से आएगा.
मेरी माँ की इच्छा थी कि उनकी बड़ी पुत्रवधू उनका सारा चार्ज ले ले . सो उनकी दुलहिन ने चार्ज ले लिया . और मैं पूरी ज़िंदगी के लिए उनकी बहू की खिदमत में तैनात कर दिया गया .उनके चार्ज लेने के बाद से मेरी तबियत हमेशा झन्न रही .मेरी बहनें ,मेरे भाई ,मेरे भांजे , भांजियां सब उनको ही जानते हैं . मेरी भूमिका केवल उस आदमी की है जो कोटे की दुलहिन का पति है  राजन. लालन ,निशा ,प्रतिमा ,डब्बू की मामी का फरमाबरदार है, बिट्टू, राहुल, पिंकी और उज्जवल की बड़ी अम्मा से डरता है , पप्पू, गुड्डी और टीनी की अम्मा का पति है और जिसके ऊपर सूबेदार सिंह अपनी भौजी के मार्फत दबाव डलवाकर कुछ भी करवा सकते हैं . बहरहाल  आज हमारी शादी की साल गिरह है इस अवसर पर अपने खानदान वालों की सामंती सोच पर ज्यादा चर्चा करना ठीक नहीं होगा. बस मैं खुश हूँ कि मेरी पत्नी आज बहुत खुश हैं


7 comments:

  1. शादी की 39वी सालगिरह बहुत-बहुत मुबारक हो। हम उम्मीद करते हैं कि,आप लोगों के सपने सच में ही साकार होंगे।

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  2. शादी की सालगिरह बहुत-बहुत मुबारक हो,sir

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  3. शादी की सालगिरह बहुत-बहुत मुबारक हो,sir

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  4. We salute for taking care to all of us , given environment to stand against toughest situation with back up to succeed.
    i am growing parallel to Mamy's wedding anniversary.
    willing to congratulate through out my life.
    Congratulations
    -Laalan

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  5. we salute for taking care to all of us, given environment to succeed against toughest situation with back up as GODFATHER.
    I am growing parallel to Mamy's wedding anniversary and willing to congratulate her through out life.
    Congratulations.
    -Laalan

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  6. PA , HAPPY ANNIVERSARY, LOTS OF LOVE TO U AND MOM...

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  7. lots of love to u and ma... happy anniversary to u papa

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