Friday, May 3, 2013

चीनी घुसपैठ के पीछे कहीं उस इलाके का यूरेनियम तो नहीं है ?



शेष नारायण सिंह
लद्दाख में चीनी सेना भारतीय नियंत्रण वाले कुछ क्षेत्रों में घुस आयी है और भारत में इस मुद्दे पर राजनीतिक तूफ़ान मचा हुआ है . मीडिया में हायतोबा मची हई है जैसे दोनों देशों के बीच युद्ध शुरू हो गया हो . भारत में चीन के सन्दर्भ में बहुत भावनात्मक स्तर पर प्रतिक्रिया होती है क्योंकि पचास साल बीत जाने के बाद भी यहाँ १९६२ का चीन का हमला कोई भी नहीं भूल पाया है . चीन के इस काम को कूटनीतिक हलकों में समझ पाना बहुत मुश्किल हो रहा है क्योंकि चीन के मौजूदा रुख से उसका बहुत नुक्सान होने वाला है . आजकल भारत और चीन के बीच व्यापार बहुत बड़े पैमाने पर हो रहा है . २००१ में दोनों देशों के बीच करीब 150 अरब रूपये का कारोबार होता था आज वह बहुत बड़ा हो गया है .बीते साल भारत और चीन के बीच करीब 3300  अरब रूपये का कारोबार हुआ  . इस कारोबार में चीन मुख्य लाभार्थी हैं क्योंकि चीन भारत को जो कुछ निर्यात करता है उसका एक बहुत ही मामूली हिस्सा वह भारत से आयात करता है यानी भारत-चीन व्यापार का पलड़ा चीन के पक्ष में झुका हुआ है और  चीन के तेज़ी से हो रहे आर्थिक विकास में चीन से होने वाले निर्यात का भी योगदान है . अगर दोनों देशों के बीच रिश्ते खराब होते हैं तो जाहिर है यह व्यापार भी प्रभावित होगा और उसका आर्थिक नुक्सान चीन को ही उठाना होगा. भारत से अच्छे संबंधों का कूटनीतिक लाभ चीन को बाकी दुनिया में भी मिल रहा है . ब्रिक्स देशों की जो राजनीति है उसमें चीन को रूस,ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका की तरह ही भारत के साथ होने का लाभ मिल रहा है भारत की हैसियत अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हमेशा से ही एक प्रभावशाली देश की रही है .यहाँ तक कि जब भारत एक गरीब देश माना जाता था तब भी गुटनिरपेक्ष देशों के नेता के रूप में भारत की पहचान एक ऐसे देश की थी जो अमरीका और रूस की मर्जी के खिलाफ कोल्ड वार में सीधे शामिल होने को तैयार नहीं था. चीन को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि १९६२ में जब उसने भारत पर हमला किया था तो उसकी छवि एक आक्रांता देश के रूप में बन गयी थी . पूरी दुनिया में चीन को एक शान्तिविरोधी देश के रूप में देखा जाता था . वह तो जब अपनी आन्तारिक राजनीतिक मजबूरियों को ठीक करने के लिए अमरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और विदेशमंत्री हेनरी किसिंजर ने चीन के साथ सम्बन्ध ठीक करने की योजना पर काम करना शुरू किया तब जाकर अंतरराष्ट्रीय जगत में चीन को स्वीकार करने का रिवाज़ शुरू हुआ . इसलिए यह पहेली समझ में नहीं आती कि चीन भारत से रिश्ते खराब करने के लिए क्यों कोशिश करता नज़र आ रहा है जबकि उसमें उसका कोई फायदा नहीं होने वाला है बल्कि नुक्सान ही ज्यादा होगा . बाकी दुनिया की तरह चीन को भी मालूम है कि भारत को आसानी से धमकाया नहीं जा सकता क्योंकि चीन की तरह ही भारत भी परमाणु हथियार संपन्न देश है और उसकी सैनिक क्षमता १९६२ की तुलना में बहुत ही अच्छी है.
चीन की आतंरिक और पड़ोसी राजनीति भी उसे किसी और मोर्चे पर दुश्मनी का राग शुरू करने की अनुमति नहीं देती . अपने दो महत्वपूर्ण पड़ोसियों जापान और फिलीपीन से उसके कूटनीतिक सम्बन्ध बहुत खराब हो चुके हैं और  रोज ही बिगड रहे हैं . चीन के अंदर भी कुछ राज्यों में तनाव का माहौल है .कुछ राज्यों में अलग अलग समूहों के बीच हिंसक वारदात हो रही हैं .लद्दाख  के देस्पांग इलाके में चीन के सैनिकों की तरफ से पांच टेंट लगा लेने का जो सन्देश भारत की अवाम के बीच पंहुचा है वह १९६२ में खराब हुए रिश्तों को और खराब कर देने की क्षमता रखता है . भारत में एक ताक़तवर विपक्ष है और उस विपक्ष की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी है जिसको चीन के खिलाफ जनमत बनाने से राजनीतिक फायदा होता है क्योंकि वह  देश में एक सन्देश देने की कोशिश करती है कि वामपंथी राजनीतिक विचारधारा वाला चीन हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है और उसका विरोध किया जाना चाहिए. उसके साथ साथ ही बीजेपी राजनीतिक रूप से ऐसा माहौल बनाने की कोशिश करती है कि भारत में उन राजनीतिक पार्टियों का विरोध किया जाना चाहिए जो कम्युनिस्ट विचारधारा से किसी तरह का वास्ता रखती हों .

इस पृष्ठभूमि भारत से किसी तरह की दुश्मनी चीन के लिए भी घातक हो सकती है इसलिए लद्दाख में उसकी कारस्तानी को समझने के लिए और कुछ और पक्षों पर नज़र डालना होगा .आज की सच्चाई यह है कि लद्दाख क्षेत्र में चीनी सेना भारत के इलाक में घुस गयी है और करीब बीस किलोमीटर अंदर आकर अपने टेंट लगा दिए हैं . गाफिल पड़े भारतीय मिलिटरी इंटेलिजेंस वालों की तरफ से तरह तरह की व्याख्याएं सुनने को मिल रही है लेकिन सच्चाई यह है कि भारतीय सीमा में चीनी सैनिक जम गए हैं और ताज़ा जानकारी के मुताबिक वे वहाँ से हटने को तैयार नहीं हैं .जम्मू-कश्मीर में लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी सेक्टर में घुसे चीनी सैनिकों ने  तंबू लगाकर अस्थायी चौकी बना ली है.चीन के टेंट को हटाने की कूटनीतिक कोशिशें जारी हैं लेकिन चीनी सेना फिलहाल पीछे हटने को तैयार नहीं है। दोनों पक्षों के बीच कई बार फ्लैग मीटिंग होने के बावजूद चीन अपने रुख पर अड़ा हुआ है। इस मसले को बातचीत से सुलझाने की बजाय चीनी सैनिक भारतीय क्षेत्र में और भीतर तक बढ़ने की कोशिश में हैं। सूत्र बताते हैं कि घुसपैठ कर रहे चीनी  सैनिकों के पास आधुनिक हथियार  हैं और वे वापस जाने के लिए नहीं आये हैं .
चीनी सेना ने जिस इलाके में घुसपैठ की है वहाँ कोई आबादी तो नहीं है लेकिन इस बात की भी चर्चा है कि उस क्षेत्र में भूगर्भ वैज्ञानिकों ने यूरेनियम होने के संकेत दिए हैं .अगर ऐसा है तो दोनों ही देशों के  लिए इस क्षेत्र का महत्व बहुत बढ़ जाता है कि क्योंकि परमाणु ऊर्जा और परमाणु हथियारों के  लिए  यूरेनियम की ज़रूरत पड़ती ही रहती है . यह बात अभी पक्के तौर पर नहीं मालूम है लेकिन अगर चर्चा है तो धीरे धीरे सब कुछ साफ़ हो जाएगा. भारत में चीन की इस कारस्तानी की तरह तरह से व्याख्या की जा रही है .जानकार बता रहे हैं कि चीन लदाख में भारतीय इलाके में  घुसकर ऐसा माहौल बनाने के चक्कर में है जिससे वह भारत पर दबाव बढ़ा  सके जिस से भारत अपनी सीमा के अंदर जो सड़कें आदि बना रहा है उसे रोका जा सके .चीन ने अपनी तरफ तो बहुत सारी कांक्रीट वाली सड़कें बना ली हैं रेलवे लाइनें बिछा दी हैं  यहाँ तक कि कश्मीर के उन इलाकों में भी चीनी कब्जा हो चुका है जिसे पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर कहा जाता है .दुनिया जानती है कि पाकिस्तान की हिम्मत चीन के हितों की अनदेखी करने की नहीं है .लेकिन चीन ने भारत में उन लोगों के सामने मुश्किल खड़ी कर दिया है जो दोनों देशों के बीच में  रिश्ते सुधारने के पक्ष में हैं . लद्दाख में चीनी सेना के तम्बुओं ने भारत के उदारमना लोगों की मुश्किल बढ़ा दी है . लेकिन चीन की अपनी रणनीति है .उसने कूटनीतिक चैनलों के ज़रिये यह बात भारत तक पंहुचा दिया है कि दोनों देशों की विवादित सीमा में भारत के कब्जे वाले इलाके में भी अगर भारत कोई स्थायी निर्माण करता है तो वह चीन को स्वीकार नहीं होगा . यह भारत के हित में है कि चीन की इस बात को वह गंभीरता से न ले और तेज़ी से अपना काम करता रहे . अपनी सीमा के अंदर भारत भी चीन की तरह मज़बूत सड़कें वगैरह बनवाता रहे और सीमा पर ऐसी तैयारियां रखे कि अगर चीन किसी तरह के सैनिक एडवेंचर की कोशिश करे तो उसको माकूल जवाब दिया जा सके. कूटनीतिक मोर्चे पर चीन की स्थिति बहुत साफ़ है . वह यह मानने को तैयार नहीं है कि कहीं कोई गडबड है . चीनी नेता तो यह भी मानने को तैयार नहीं है कि उनके हेलीकाप्टरों ने भारतीय  इलाके में कोई घुसपैठ की थी. इस बीच दोनों देशों के बीच बातचीत का सिलसिला भी जारी है . अगले हफ्ते भारत के विदेशमंत्री सलमान खुर्शीद चीन की यात्रा पर जा रहे हैं .हालांकि भारत की कुछ विरोधी पार्टियां इस दौरे का विरोध कर रही हैं. बीजेपी का विरोध तो शुद्ध रूप से राजनीतिक है लेकिन मनमोहन सिंह की सरकार को समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव भी चीन से अच्छे संबंधों की कीमत पर सीमा पर चीन की गतिविधियों के घोर विरोधी हैं . उन्होंने पिछले दिनों संसद में बहुत ही ज़ोरदार शब्दों में भारत की चीन नीति का विरोध किया और मांग की कि जब तक चीन अपनी सेना को भारत के क्षेत्र से वापस नहीं बुला लेता तब  तक विदेशमंत्री को चीन जाने की ज़रूरत नहीं है .
 अमरीका भी भारत और चीन के अच्छे संबंधों का  पक्षधर हो गया है .अमरीकी विदेश विभाग के प्रवक्ता पैट्रिक वेंट्रल ने अपनी नियमित प्रेस वार्ता में बताया कि अमरीका चाहता है कि भारत और चीन अपने सीमा विवाद को आपसी बातचीत से बिना किसी अन्य देश के सहयोग  के खुद  हल कर लें .यह अलग बात है कि भारत और चीन को अब अमरीकी राय की कुछ भी परवाह नहीं है लेकिन हर देश के मामलों में दखल देने की आदत बना चुके अमरीका को कुछ न कुछ कहना होता है सो उसने भी अपना फ़र्ज़ पूरा कर दिया है .
इस बीच संतोष की बात यह है कि चीनी घुसपैठ के बावजूद दोनों देशों के बीच सामान्य संवाद की स्थिति बनी हुई है . चीन की यात्रा पर जा रहे विदेशमंत्री की यात्रा का विरोध बीजेपी वाले कर ही रहे हैं . लेकिन वे जायेगें . समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने अपने लोकसभा वाले भाषण में कह दिया था कि सेना के मुखिया ने सरकार से लद्दाख क्षेत्र में घुस आये चीनियों को खदेड़ने की अनुमति माँगी है . यह गंभीर मामला है क्योंकि सेनाध्यक्ष  को सरकार के हुक्म का पालन करना  होता है उनके पास किसी तरह का कूटनीतिक दखल देने का अधिकार नहीं होता . बहरहाल सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति के सामने बुधवार को सेनाध्यक्ष की पेशी हुई और उनसे स्थिति की सही जानकारी ली गयी . उन्होने  साफ़ किया कि उन्होंने ऐसी कोई बात कहीं नहीं की थी और सेना की तैयारी के बारे में भी सरकार को जानकारी दी. सेना का चीनी सेना के साथ प्रस्तावित अभ्यास भी अभी रद्द नहीं किया गया है . दो देशों की सेनाएं समय समय पर  अभ्यास करती रहती हैं .इसके अलावा मई दिवस के दिन भारतीय सेना का एक प्रतिनधिमंडल चीन की सीमा में जाकर उनके समारोह में शामिल हुआ . दोनों देशों के बीच साल में चार बार इस तरह की औपचारिक मुलाकातें होने की परम्परा है . चीनी सेना के अफसर भारत की सीमा में १५ अगस्त और २६ जनवरी को आते हैं और भारतीय सेना का प्रतिनिधिमंडल चीन की तरफ  मई दिवस  के लिए १ मई को और चीन के राष्ट्रीय दिवस के जश्न के लिए १ अक्टूबर को जाता है . दुनिया के शांतिप्रिय लोगों की नज़र चीनी घुसपैठ पर  लगी हुई है क्योंकि अगर दो बड़े देशों के बीच तनाव बढ़ेगा तो शान्ति को बहुत बड़ा नुक्सान होगा.

2 comments:

  1. अगर दो बड़े देशों के बीच तनाव बढ़ेगा तो शान्ति को बहुत बड़ा नुक्सान होगा...
    ये बात तो आपकी सच है !!

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  2. आगरा/१९८०-८१(भाग १)/एवं कारगिल-प्लेटिनम का मलवा

    यह निष्कर्ष बिलकुल सटीक है कि,'यूरेनियम' की खातिर ही चीन,USA,रूस,सभी की दिलचस्पी 'जम्मू और काश्मीर'मे है और यही इस समस्या का कारण है। काश्मीरी जनता यूरेनियम की हकीकत को अच्छी तरह जानती है और 1981 मे मैंने 'कारगिल'वासियों से ज्ञात इस जानकारी का उल्लेख इस प्रकार किया था--

    तमाम राजनीतिक विरोध के बावजूद इंदिरा जी की इस बात के लिए तो प्रशंसा करनी ही पड़ेगी कि उन्होंने अपार राष्ट्र-भक्ति के कारण कनाडाई,जर्मन या किसी भी विदेशी कं. को वह मलवा देने से इनकार कर दिया क्योंकि उसमें 'प्लेटिनम'की प्रचुरता है.सभी जानते हैं कि प्लेटिनम स्वर्ण से भी मंहगी धातु है और इसका प्रयोग यूरेनियम निर्माण में भी होता है.कश्मीर के केसर से ज्यादा मूल्यवान है यह प्लेटिनम.सम्पूर्ण द्रास क्षेत्र प्लेटिनम का अपार भण्डार है.अगर संविधान में सरदार पटेल और रफ़ी अहमद किदवई ने धारा '३७०' न रखवाई होती तो कब का यह प्लेटिनम विदेशियों के हाथ पड़ चूका होता क्योंकि लालच आदि के वशीभूत होकर लोग भूमि बेच डालते और हमारे देश को अपार क्षति पहुंचाते.धारा ३७० को हटाने का आन्दोलन चलाने वाले भी छः वर्ष सत्ता में रह लिए परन्तु इतना बड़ा देश-द्रोह करने का साहस नहीं कर सके,क्योंकि उनके समर्थक दल सरकार गिरा देते,फिर नेशनल कान्फरेन्स भी उनके साथ थी जिसके नेता शेख अब्दुल्ला साहब ने ही तो महाराजा हरी सिंह के खड़यंत्र का भंडाफोड़ करके काश्मीर को भारत में मिलाने पर मजबूर किया था .तो समझिये जनाब कि धारा ३७० है 'भारतीय एकता व अक्षुणता' को बनाये रखने की गारंटी और इसे हटाने की मांग है-साम्राज्यवादियों की गहरी साजिश.और यही वजह है काश्मीर समस्या की .साम्राज्यवादी शक्तियां नहीं चाहतीं कि भारत अपने इस खनिज भण्डार का खुद प्रयोग कर सके इसी लिए पाकिस्तान के माध्यम से विवाद खड़ा कराया गया है.इसी लिए इसी क्षेत्र में चीन की भी दिलचस्पी है.इसी लिए ब्रिटिश साम्राज्यवाद की रक्षा हेतु गठित आर.एस.एस.उनके स्वर को मुखरित करने हेतु 'धारा ३७०' हटाने का राग अलापता रहता है.इस राग को साम्प्रदायिक रंगत में पेश किया जाता है.साम्प्रदायिकता साम्राज्यवाद की ही सहोदरी है.यह हमारे देश की जनता का परम -पुनीत कर्तव्य है कि भविष्य में कभी भी आर.एस.एस. प्रभावित सरकार न बन सके इसका पूर्ण ख्याल रखें अन्यथा देश से काश्मीर टूट कर अलग हो जाएगाजो भारत का मस्तक है

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