Wednesday, August 8, 2012

२००९ चुनाव के पहले जनेश्वर ने कहा था - बीजेपी एक ज़हरीली जमात है.




शेष नारायण सिंह 
लोक सभा चुनाव २००९ के पहले ३ मई २००९ को मैंने  स्व जनेश्वर मिश्र का एक इंटरव्यू किया था. उस इंटर व्यू के नोट्स तो मेरे पास नहीं हैं लेकिन उस वक़्त के मेरे उर्दू अखबार के अलावा , एक बड़े हिन्दी अखबार ने भी इसे छापा था. आज जब वे नहीं है तो उनकी बातों को एक बार फिर प्रस्तुत करने की कोशिश  कर रहा हूँ . एक पत्रकार के रूप में यह इंटरव्यू मुझे ज़िंदगीभर याद रहेगा. उन्होंने इस इंटरव्यू के खतम होने के बाद मुझे जो बात आफ द रिकार्ड कही थी . वह लोकसभा २००९ के नतीजे आने के  बाद सही साबित हुई थी. और उनकी पार्टी को भारी नुकसान हुआ था.  उन्होंने यह भी साफ़ कहा था कि जिस व्यक्ति के कारण उनकी पार्टी  को राजनीतिक नुकसान पंहुच रहा है उसे मुलायम सिंह यादव जल्दी ही  पार्टी से निकाल देगें . प्रस्तुत है  उस दिन का शब्दशः इंटरव्यू  --------------


जनेशवर मिश्र शुद्घ छात्र नेता हैं। इलाहाबाद विश्व विद्यालय कीछात्र राजनीति में दशकों तक अधिकार रखने वाले श्री मिश्रने डाक्टर राम मनोहर लोहिया के शागिर्द के रूप मेंसमाजवादी युवजन सभा में  काम शुरू किया था। इलाहाबादविश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई तो की लेकिन कभी वकालत नहींकिया। जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ  जब डाक्टर राममनोहर लोहिया, फुलपूर से चुनाव लड़ें थे तो जनेश्वरमिश्र के कंधों पर व्यवस्था के बहुत सारे काम थे। देशमें समाजवादियों की लोहियावादी परंपरा में जनेश्वर मिश्रका महत्वपूर्ण मुकाम है। तमाम राजनीतिक पार्टियों में चलरहे राजनीतिक विमर्श के गिरे हुए स्तर पर जनेश्वर जी बहुतही चिंतित रहते हैं। आजकल समाजवादी पार्टी में हैं, पार्टीके अध्यक्ष मुलायम सिंह उनका बहुत सम्मान करते हैं। समाजवादीपार्टी के चुनाव घोषणा पत्र में अंग्रेजी के बारे में जोबात कही गई है, उस पर ख़ासा विवाद उठ खडा हुआ है।शेष नारायण सिंह ने श्री जनेश्वर मिश्र से नई दिल्ली स्थितउनके आवास पर मुलाकात की तो बातचीत अंगे्रजी से जुड़े विवादपर ही केंद्रित हो गयी। प्रस्तुत है बातचीत के कुछ अंश: सवाल : कहां जा रही है आपकी पार्टी?जनेश्वर मिश्र : हमारी पार्टी अपनी जगह पर है और सहीकाम कर रही है। बिलकुल ठीक चल रही है। सवाल : अंग्रेजी के खिलाफ क्यों हैं?जनेश्वर मिश्र : हमारी पार्टी ने इस चुनाव के दौरान एकबहुत ही महत्वपूर्ण बहस छेड़ी है। हमने  घोषणा पत्र मेंकहा है कि अगर समाजवादी पार्टी की सरकार बनती है तोसरकारी कामकाज की भाषा अंग्रेजी नहीं रहेगी। भाषाके बारे में यह हमारी नीति है। लेकिन इस पर समाज केनिहित स्वार्थ के लोग विरोध करने लगे। पता चला है किकुछ इलाकों में विद्यार्थियों ने आंदोलन की बात भी शुरूकर दी है। नोबेल पुरस्कार विजेता अमार्त्य  सेन ने भी इसकाविरोध शुरू कर दिया। उनका आरोप है कि इस तरहकी बात को लागू करने से भारत  दसवीं शताब्दी में पहुंचजायेगा .अमार्त्य सेन अर्थशास्त्र के विद्वान हैं और उस क्षेत्रमें वे हमारे सम्मान  के पात्र हैं लेकिन भाषा  के सवालपर बंगाली बाबू फिसल गए। ऐसे ही महात्मा गांधी के वक्त भी हुआ था। जब गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन का नारादिया तो रवींदनाथ टैगोर ने उनका विरोध किया औरआंदोलन के खिलाफ  बयान दे दिया। गांधी जी ने उन्हेंसमझाने की कोशिश की, करीब दो हफ्ते  तक शांति निकेतनमें ठहरे लेकिन टैगोर को समझा नहीं पाये। टैगोरबहुत ही काबिल व्यक्ति थे लेकिन उस वक्त महात्मा गांधी की बातउनकी समझ में नहीं आई। सवाल : ऐसा क्यों है? जनेश्वर मिश्र :  भारतीय लोग जो नोबेल पुरस्कार जीततेहैं, उन्हें यह सम्मान  अंग्रेजी की मार्फत मिलता है। उनको यहबोध कराना जरूरी है कि उनको सम्मान उनकी प्रतिभा की वजह से मिला है, उनकी अपनी तपस्या की वजह से मिला है,अंग्रेजी की वजह से नहीं। अमर्त्य सेन के तर्क को अगर विकसित कियाजाय तो जापान, चीन, रूस आदि  पिछड़े देश हो जायेंगे, क्योंकिवहां भी  सरकारी कामकाज की भाषा अंग्रजी नहीं है।लेकिन ऐसा नहीं है। दरअसल अंग्रजी की वजह से भारत  में स्वतंत्ररूप से सोचने की क्षमता का विकास ही नहीं हुआ, भारतीयों के अंदर जो महान  आदमी बनने की क्षमता है उसपर इसका उल्टा असर पड़ताहै। अंग्रेजी भाषा देश को नकलची बना रही है। नकलचीआदमी  स्वाभिमान से नहीं रह सकता। जबकि प्रतिभाशाली  आदमीस्वाभिमानी होता है . प्रतिभा का  विकास जितना अपनीभाषा की वजह से होता है, उतना किसी और की भाषा से नहीं होता। जब तक आदमी उस बोली में जिंदगी नहीं जिएगा,जो उसने गोद में सीखा था तो उसके तरक्की करने कीसंभावना  कम है। नई भाषा का व्याकरण समझने में हीबहुत समय लग जायेगा उसमें शान हासिल करने में तो बहुतटाइम लगेगा। सवाल : चुनाव के दौरान इस तरह का विवाद क्यों खडा करदिया गया?जनेश्वर मिश्र : पिछले कुछ वर्षों से समाजवादी पार्टी की पहचानआम आदमी और उसकी समस्याओं से दूर भागने  वाले संगठनके रूप में होने लगी थी। पूंजीपतियों के आगे पीछे घूमनेवाले कुछ लोगों की वजह से पार्टी के आम कार्यकर्ता मेंअजीब माहौल पैदा हो गया था। हमारी पार्टी को कुछहल्कों में सनीमा वालों की जमात के रूप में भी पहचाना जानेलगा था। अंग्रेजी ख़त्म  करने की बात शुरू करके देशभर के समजवादियों को एक करने की कोशिश की गई है औरहमारे कार्यकर्ता एकजुट हो रहे हैं।सवाल : क्या संभावना है लोकसभा चुनाव की?जनेश्वर मिश्र : हमारी पार्टी उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादासीटों पर जीतेगीसवाल : लगभग कितनी सीटों की उम्मीद है आपको?

जनेश्वर मिश्र : जितनी थीं, उससे ज्यादा रहेंगी। मायावतीकी पार्टी के सांसदों की संख्या बहुत कम हो जायेगी। बाकीबीजेपी और कांग्रेस को तो हर सीट के लिए उम्मीदवार तक नहीं मिले हैं . सवाल : बीजेपी वाले कहते हैं कि उनकी विचारधारा बहुतअच्छी है, जिसकी वजह से पूरा देश उनके साथ आ जायेगा?जनेश्वर मिश्र : बीजेपी एक जहरीले उसूल की जमात है। वहउसी उसूल पर चलकर आदमी को पागल बनाना चाहती है।यह ऐसी जमात है जो राह चलते हिंदू और मुसलमान के बीचदंगा कराने की फिराक में रहती है। छुटपन का आलम यहहै कि अगर किसी मामूली झगड़े में भी  हिंदू-मुसलमान शामिलहो जायें तो बीजेपी उसे सांप्रदायिक रंग दे देगी और हिंदूकी तरफ से हल्ला गुल्ला करके बात का बतंगड़ बना देगी इसजहरीली विचारधारा वाली जमात का हर स्तर पर विनाशकिया जाना चाहिए। सवाल: तो कल्याण सिंह को क्यों गले लगा लिया वह भी  तोइसी ज़हरीली जमात से आऐ हैं?जनेश्वर मिश्र : यह सही है कि बाबरी मस्जिद वाले मामले मेंकल्याण सिंह ज़िम्मेदार  है। अब वह हमारी पार्टी में शामिल हो गए हैं . लेकिन वह हमारी पार्टीमें मुलायम सिंह से बड़े नहीं हैं। देश का मुसलमान मुलायम सिंह यादव पर विश्वास करता है . मुलायम सिंह ने सब कुछदांव पर लगाकर बाबरी मस्जिद की हिफाजत की थी। हमारीमुखालफत बीजेपी की ज़हरीली विचारधारा से है औरहम उसको खत्म करना चाहते हैं। बीजेपी को समाप्त करने कीमुहिम में अब कल्याण सिंह शामिल हो गए हैं, उनका स्वागतकिया जाना चाहिए। हमें तो बीजेपी के जहरीले तत्व को ख़त्म करना है, उसमें तो अगर आडवाणी भी  शामिल हो जायेंतो अच्छा रहेगा। सवाल : अक्टूबर 1990 में मुलायम सिंह ने बाबरी मस्जिद कीहिफाजत की थी, उसके बाद से मुसलमानों के लिए क्या कियाआपने?जनेश्वर मिश्र : बहुत कुछ किया। जब भी  उत्तर प्रदेश मेंसरकार बनी मुसलमानों के रोजगार के अवसर बढ़ाए गए।उर्दू टीचर और अनुवादकों की बड़े पैमाने पर भर्ती की गई। पुलिस में मुसलमानों की संख्या  बढ़ाई गई। हर तरहसे सत्ता में भागीदार बनाया गया। सवाल : तो मुसलमान इस चुनाव में आप से भाग क्यों रहा है?जनेश्वर मिश्र : मुसलमान बहुत जज्बाती होता है। अल्पसंख्यक है तो जज्बात की वजह से अकसरियत से सशंकित रहता है लेकिनयह बात गलत है कि वह हमसे भाग रहा है। उत्तर प्रदेशमें मुसलमान हमारे साथ है और सांप्रदायिक ताकतों को हरानेकी लड़ाई में शामिल हैं। एक और दिलचस्प बात यह है किमुसलमान बीजेपी और मायावती के बीच कोई फर्क नहीं करता।उसे कभी नहीं भूलता  कि मायावती ने ही गुजरात दंगों केबाद अहमदाबाद जाकर मोदी के पक्ष में चुनाव प्रचार किया थाऔर बीजेपी की कृपा से ही मायावती तीन बार उत्तर प्रदेशकी मुख्यमंत्री बनी रहीं। वह मायावती को सांप्रदायिक ताकतोंकी एजेंट मानता है और उन क्षेत्रों में  भी  उनके खिलाफ  है जहांमायावती ने मुसलमान उम्मीदवार  को टिकट दिया है।

सवाल-- आपकी पार्टी में अब तक तो किसी गाँव से आये हुये लोग ही बहुत बड़े नेता बनते  थे लेकिन आजकल मुंबई की फ़िल्मी दुनिया के लोग हावी हैं . ऐसा क्यों है ?

जनेश्वर मिश्र --मैंने आपसे कहा न कि आजकल हमारी पार्टी में कुछ सनीमा वाले आ गए हैं .  आपको वही लोग दीखते हैं तो हम क्या करें. वैसे हमारी पार्टी के जितने भी नेता हैं सब संघर्ष से आये हैं .मुलायम सिंह यादव, मोहन सिंह , राम गोपाल यादव , बृज भूषण तिवारी , आज़म खां  यह सारे लोग आपको फ़िल्मी दुनिया के  नेता लगते हैं . मीडिया वालों को वही लोग दीखते हैं और आप लोग भी उन्हीं सनीमा वालों को लाने वाले अजूबे को बड़ा नेता मानते हैं . आप लोग चश्मा बदलिए .

सवाल -कांग्रेस के एक बड़े  नेता कहते हैं कि आपकी पार्टी को इस लोक सभा चुनाव में बहुत कम सीटें मिलने वाली  हैं आप की क्या टिप्पणी है ?जनेश्वर मिश्र-- उत्तर प्रदेश के बारे में कांग्रेस वालों की बात को गंभीरता से लेने की ज़रूरत नहीं है . उनको उत्तर प्रदेश की जनता बार बार नकार चुकी है . उनके बारे में बात करके चुनाव एक   मौसम में मैं उन्हें महत्व नहीं देना चाहता.

सवाल-- एक आख़िरी सवाल , आपके एक बड़े नेता  ने कहा है कि सिनेमा वालों के आने से आपकी पार्टी का सम्मान बहुत बढ़ा है  .क्या आप इस बात को स्वीकार करते हैं ?जनेश्वर मिश्र--आप कृपया इस इंटरव्यू की गंभीरता को कम मत कीजिये . वे जनाब मेरे नेता कभी नहीं रहे. किसी भी समाजवादी कार्यकर्ता की नेता बनने की उनकी औकात नहीं है.  उन्हें मुलायम  सिंह यादव ने अपने साथ लगा अरखा है . मेरी नज़र में तो वे मुलायम सिंह यादव के निजी स्टाफ के सदस्य भर हैं . इस से ज्यादा कुछ नहीं .

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