Thursday, July 19, 2012

क्या राहुल गांधी को उनकी असफलता के लिए पुरस्कृत किया जा रहा है ?





शेष नारायण सिंह 

नई दिल्ली, १९ जुलाई. राष्ट्रपति चुनाव के मतदान में वोट डालने आये राहुल गाँधी ने आज यह कह कर सत्ता के गलियारों में तूफ़ान खड़ा कर दिया कि वे सरकार या पार्टी में बड़ी ज़िम्मेदारी लेने को तैयार हैं . इस से ज्यादा राहुल गांधी ने कुछ नहीं  कहा है . कांग्रेस पार्टी य यूं कहें के १० जनपथ के सबसे महत्वपूर्ण प्रवक्ता, जनार्दन  द्विवेदी  ने केवल यह कहा है कि हमें बहुत खुशी होगी अगर राहुल गांधी सरकार या पार्टी में और कोई  पद  स्वीकार करते हैं . लेकिन यह उनको तय करना है कि वे  कब और क्या पद स्वीकार करते हैं . आधिकारिक तौर पर इससे ज्यादा कुछ नहीं मालूम है  लेकिन सभी टी वी चैनलों और दिल्ली के राजनीतिक हलकों में तरह तरह के अनुमान लगाए जा  रहे हैं . कुछ चैनलों पर बैठे राजनीतिक विश्लेषक मंत्रिपरिषद में राहुल गांधी के संभावित   विभागों की विवेचना भी कर रहे हैं . कोई उन्हें ग्रामीण विकास दे रहा है तो कोई शिक्षा मंत्रालय का चार्ज दे रहा  है . कांग्रेस पार्टी के महासचिव दिग्विजय सिंह भी अपनी पीठ ठोंक रहे हैं कि उन्होंने तो दो साल पहले ही कह दिया था.  

सही बात यह है कि किसी को नहीं मालूम है  कि अगले दो तीन दिनों में राष्ट्रीय राजनीति, खासकर कांग्रेस के राजनीति क्या शक्ल अख्तियार करेगी  लेकिन इतना पक्का है कि अब सत्ता के समीकरण निश्चित रूप से बदल जायेगें. हालांकि दिल्ली में अभी किसी ने खुलकर नहीं कहा है  लेकिन एक बहुत ही भरोसेमंद सूत्र ने बताया है कि  इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि राहुल गांधी सरकार में बहुत ऊंचे पद पर ही बैठा  दिए जाएँ. लेकिन यह सब केवल राहुल गांधी और उनके  परिवार के अलावा किसी को पता नहीं है . 

अब जब यह पक्का हो गया है कि राहुल गांधी को मौजूदा राजनीतिक जिम्मेदारियों से बड़ा काम मिलें वाला  है . यह देखना दिलचस्प होगा कि उन्होंने  अपने पिछले करीब १० साल के राजनीतिक जीवन में क्या ख़ास हासिल किया है .  उत्तर प्रदेश विधान सभा के  पिछले चुनाव में राहुल गांधी ने बहुत  मेहनत की लेकिन नतीजा सबके सामने है . उनके हवाले पूरी कांग्रेस पार्टी थी , सारे संसाधन थे, हेलीकाप्टर , और  विमान थे  लेकिन अपनी सीटों की संख्या में वे कोई वृद्धि नहीं कर पाए. उनकी  राजनीतिक सूझ बूझ  पर भी सवाल उठे जब उन्होंने बेनी प्रसाद वर्मा जैसे नेता के हवाले पार्टी के विधान सभा के टिकटों का एक बहुत  बड़ा हिस्सा कर दिया . बेनी प्रसाद वर्मा ने जितने लोगों को टिकट दिया था वे सभी हार गए . जबकि उनसे कम संसाधनों के सहारे काम कर रहे समाजवादी पार्टी के   नेता अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी को बहुमत दिला दिया . इसके पहले राहुल गांधी ने बिहार में अपनी  पार्टी के दुर्दशा  का  सुपरविजन  किया था.  हुछ साल पहले  उनकी राजनीति का लाभ नरेंद्र मोदी ने गुजरात में लिया था और कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष के भाषण  लेखक के उस वाक्य का पूरे देश में मजाक उड़ाया गया था जब उनके मुंह से  नरेंद्र  मोदी को मौत का सौदागर कहलवा दिया गया था .  
 इसके अलावा अभी राहुल गांधी और उनके साथियों के खाते में मुंबई सहित महाराष्ट्र  के नगर पालिका चुनावों में कांग्रेस की खस्ता हालत भी दर्ज है . आंध्र प्रदेश में कांग्रेस की मौजूदा हालत के लिए भी राष्ट्रीय नेतृत्व  ही ज़िम्मेदार  है . इस सबसे ऐसा लगता है कि राहुल इतिहास के इकलौते ऐसे नेता हैं जो हर मोर्चे पर फेल होने के बाद भी और बड़ी ज़िम्मेदारी के  हक़दार माने जा रहे हैं . बहर हाल  जो भी हो अब  यह पक्का है कि राहुल गांधी के हाथ में देश का भविष्य सुरक्षित करने की तैयारी कांग्रेस ने पूरी कर ली है .

3 comments:

  1. केवल कांग्रेस के चाहने से तो कुछ नहीं होता। लेकिन जो विपक्षी कहलाते हैं उनके ही कारण ऐसा होगा। यदि सभी गैर कांग्रेसी ।गैर भाजपाई विपक्षी चुनाव पूर्व एक मजबूत और ठोस मोर्चा बना कर चुनाव मे उतरें तो न मोदी का न राहुल का नंबर आ सकता है। अतः जिसे भी इनमे से लाभ होगा वह विपक्षियों की वजह से होगा।

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  2. sir, let him learn by mistakes.

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