शेष नारायण सिंह
कारगिल में हुए संघर्ष में इंटेलिजेंस की नाकामी के बाद केंद्र सरकार ने एक ग्रुप आफ मिनिस्टर्स का गठन किया था जिसने तय किया कि एक ऐसे संगठन की स्थापना की जानी चाहिए जो आतंरिक और वाह्य सुरक्षा के मामलों की पूरी तरह से ज़िम्मेदारी ले सके.मंत्रियों के ग्रुप ने कहा था कि एक स्थायी संयुक्त टास्क फ़ोर्स बनायी जानी चाहिए जिसके पास एक ऐसा संगठन भी हो जो अंतरराज्यीय इंटेलिजेंस इकट्ठा करने का काम भी करे. इसका काम राज्यों से स्वतंत्र रखने का प्रस्ताव था .इस सन्दर्भ में ६ दिसंबर २००१ को एक आदेश जारी कर दिया गया था .मुंबई में २६ नवम्बर २००८ में हुए आतंकवादी हमलों के बाद इस संगठन की ज़रुरत बहुत ही शिद्दत से महसूस की गयी और ३१ दिसम्बर २००८ के दिन केंद्र सरकार ने एक पत्र जारी करके इस मल्टी एजेंसी सेंटर के काम के बारे में विधिवत आदेश जारी कर दिया था.इस तरह का एक सेंटर बनाने के बारे में प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी सुझाव दिया था.
देश की आतंरिक सुरक्षा को चाक चौबंद करने के लिए इस तरह के संगठन की ज़रुरत चारों तरफ से महसूस की जा रही थी.अटल बिहारी वाजपेयी और डॉ मनमोहन सिंह की सरकारें इस के बारे में विचार करती रही थीं .लगता है कि केंद्र सरकार से गलती वहीं हो गयी जब एन सी टी सी को इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधीन रख दिया गया . इसका मुखिया इंटेलिजेंस ब्यूरो के अतिरिक्त निदेशक रैंक का एक अधिकारी बनाना तय किया गया था.
एन सी टी सी के गठन का नोटिफिकेशन ३ फरवरी को जारी किया गया था . उसके बाद से ही विरोध शुरू हो गया. सरकार को इस पर पुनर्विचार के लिए ५ मई को मुख्य मंत्रियों की एक बैठक बुलानी पड़ी. बैठक के बाद जो बात सबसे ज्यादा बार चर्चा में आई वह एन सी टी सी को इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधीन रखने को लेकर थी. लगता है कि एन सी टी सी को केंद्र सरकार को इंटेलिजेंस ब्यूरो से अलग करना ही पडेगा .एकाध को छोड़कर सभी मुख्य मंत्रियों ने इस बात पर सहमति जताई कि आतंकवाद से लड़ना बहुत ज़रूरी है और मौजूदा तैयारी के आगे जाकर उस के बारे में कुछ किया जाना चाहिए .पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री, ममता बनर्जी , तमिल नाडू की मुख्य मानती जयललिता और गुजरात के मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी ने एन सी टी सी के गठन का ही विरोध किया केंद्र सरकार ने इस बात पर जोर दिया कि आतंकवाद को रोकने के लिए सामान्य पुलिस की ज़रूरत नहीं होती . उसके लिए बहुत की कुशल संगठन की ज़रुरत होती है और एन सी टी सी वही संगठन है
मुख्यमंत्रियों के दबाव के बाद केंद्र सरकार को एन से टी सी के स्वरूप में कुछ परिवर्तन करने पड़ेगें .उसकी कंट्रोल की व्यवस्था में तो कुछ ढील देने को तैयार है .गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि आतंकवाद कोई सीमा नहीं मानता इसलिए उसको किसी एक राज्य की सीमा में बांधने का कोई मतलब नहीं है .आतंकवाद अब कई रास्तों से आता है . समुद्र , आसमान, ज़मीन और आर्थिक आतंकवाद के बारे में तो सबको मालूम है लेकिन अब साइबर स्पेस में भी आतंकवाद है . उसको रोकना किसी भी देश की सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए . . इसलिए अब तो हर तरह की टेक्नालोजी का इस्तेमाल करके हमें अपने सरकारी दस्तावेजों, और बैंकिंग क्षेत्र की सुरक्षा का बंदोबस्त करना चाहिये . उन्होंने कहा कि हमारे देश की समुद्री सीमा साढ़े सात हज़ार किलोमीटर है जबकि १५ हज़ार किलोमीटर से भी ज्यादा अन्तर राष्ट्रीय बार्डर है . आतंक का मुख्य श्रोत वही है .. उसको कंट्रोल करने में केंद्र सरकार की ही सबसे कारगर भूमिका हो सकती है उन्होंने कहा कि इस बात की चिंता करने के ज़रुरत नहीं कि केंद्र सरकार राज्यों के अधिकार छीन लेगी. बल्कि ज्यों ज्यों राज्यों के आतंक से लड़ने का तंत्र मज़बूत होता जायेगा . केंद्र सरकार अपने आपको धीरे धीरे उस से अलग कर लेगी.
ज़ाहिर है कि मौजूदा पुलिस व्यवस्था से आतंक को कंट्रोल करना नामुमकिन होगा , अब तक ज़्यादातर मामलों में वारदात के बाद ही कार्रवाई होती रही है . लेकिन यह सच्चाई कि अगर अपनी पुलिस को वारदात के पहले इंटेलिजेंस की सही जानकारी मिल जाए , पुलिस की सही लीडरशिप हो और राजनीतिक सपोर्ट हो तो आतंकवाद पर हर हाल में काबू पाया जा सकता है. सीधी पुलिस कार्रवाई में कई बार एक्शन में सफलता के बाद पुलिस को पापड़ बेलने पड़ते हैं और मानवाधिकार आयोग वगैरह के चक्कर लगाने पड़ते हैं . पंजाब में आतंकवाद के खात्मे में सीधी पुलिस कार्रवाई का बड़ा योगदान है. लेकिन अब सुनने में आ रहा है कि राजनीतिक कारणों से उस दौर के आतंकवादी लोग हीरो के रूप में समानित किये जा रहे हैं जबकि पुलिस वाले मानवाधिकार के चक्कर काट रहे हैं . इसी तरह की एक घटना उत्तर प्रदेश की भी है. बिहार में पाँव जमा लेने के बाद माओवादियों और अन्य नक्सलवादी संगठनों ने उत्तर प्रदेश को निशाना बनाया तो मिर्ज़ापुर से काम शुरू किया .. लेकिन वहां उन दिनों एक ऐसा पुलिस अफसर था जिसने अपने मातहतों को प्रेरित किया और नक्सलवाद को शुरू होने से पहले ही दफ़न करने की योजना बनायी . बताते हैं कि राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री राज नाथ सिंह से जब आतंकवाद की दस्तक के बारे में बताया गया तो उन्होंने वाराणसी के आई जी से कहा कि आप संविधान के अनुसार अपना काम कीजिये , मैं आपको पूरी राजनीतिक बैकिंग दूंगा. नक्सल्वादियों के किसी ठिकाने का जब पुलिस को पता लगा तो उसने इलाके के लोगों को भरोसे में लेकर खुले आम हमला बोल दिया . दिन भर इनकाउंटर चला ,कुछ लोग मारे गए .इलाके के लोग सब कुछ देखते रहे लेकिन आतंकवादियों को सरकार की मंशा का पता चल गया और उतर प्रदेश में नक्सली आतंकवाद की शुरुआत ही नहीं हो पायी. हाँ यह भी सच है कि बाद में मिर्जापुर के मडिहान में हुई इस वारदात की हर तरह से जांच कराई गयी. आठ साल तक चली जांच के बाद एक्शन में शामिल पुलिस वालों को जाँच से निजात मिली लेकिन यह भी तय है कि सही राजनीतिक और पुलिस लीडरशिप के कारण दिग्भ्रमित नक्सली आतंकवादी काबू में किये जा सके.
लेकिनं इस तरह की मिसालें बहुत कम हैं. कारगिल की घुसपैठ और संसद पर आतंकवादी हमले के बाद यह तय है कि सामान्य पुलिस की व्यवस्था के रास्ते आतंकवाद काक मुकाबला नहीं किया जा सकता . अगर राज्यों के मुख्य मंत्रियों को आई बी की दखलंदाजी नहीं मंज़ूर है तो सरकार को कोई और तरीका निकालना ही पडेगा लेकिन यह ज़रूरी है कि एक विशेषज्ञ पुलिस फ़ोर्स के बिना आधुनिकतम टेक्नालोजी और हथियारों से लैस आतंकवादियों को निष्क्रिय नहीं किया जा सकता .
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