शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली,९ अप्रैल .उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को राजनीतिक रूप से कमज़ोर करने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है . राज्य की पिछड़ी जातियों के एक वर्ग को अनुसूचित जातियों की सूची में डालने की योजना पर काम शुरू हो गया है . अगर ऐसा हो गया तो अनुसूचित जातियों के लिए सरकारी नौकरियों, विधायिका और पंचायतों में रिज़र्व सीटों में हिस्सा बंटाने राज्य की अति पिछड़ी जातियों के सदस्य भी पंहुच जायेगें.राज्य सरकार ने अखिलेश यादव के उस वायदे को पूरा करने के लिए तैयारी शुरू कर दी है जिसमें उन्होंने कहा था कि पिछड़ी जातियो में अति पिछड़ी जातियों को दलितों जैसी सुविधाएं दी जायेगीं .योजना के मुताबिक मल्लाह, कहार और कुम्हार जाति को अब अनुसूचित जाति का सदस्य बना दिया जाएगा और इन जातियों के लोगों को अनुसूचित जातियों नके लिए रिज़र्व सीटों के लिए हक़दार माना जायेगा. समाजवादी पार्टी के सासद धर्मेन्द्र यादव का कहना है कि राज्य सरकार अपने चुनाव घोषणा पत्र में किये गए वायदों को बहुत ही गंभीरता से ले रही है . उसी राजनीतिक सोच के अनुसार सरकार बनने के बाद मंत्रिमंडल की पहली बैठक में ही बेरोज़गारी भत्ता देने का फैसला कर लिया गया था . अति पिछड़ों को सरकारी नौकरियों में दलितों के सामान अधिकार देना भी समाजवादी पार्टी के चुनावी वायदों में शामिल है .
राज्य सरकार अपने उस प्रस्ताव को फिर से जिंदा करना चाहती है जिसके तहत मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में राज्य सरकार ने केंद्र सरकार के पास एक प्रस्ताव भेजा था जिसमें मांग की गयी थी कि मल्लाह , कहार और कुम्हार जाति की कुछ उपजातियों को अनुसूचित जाति माना जाए.उन दिनों अमर सिंह का ज़माना था और समाजवादी पार्टी की कांग्रेस से दूरी हुआ करती थी . मुलायम सिंह की सरकार के प्रस्ताव पर केंद्र सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया और मामला लटक गया. २००७ में जब मायावती की सरकार आ गयी तो उत्तर प्रदेश सरकार ने अपना प्रस्ताव वापस ले लिया . मल्लाह जाति के लोगों को अपने साथ लेना समाजवादी पार्टी की करीब १५ साल पुरानी रणनीति का हिस्सा है. जब कांशीराम ने मुलायम सिंह के साथ गठबंधन तोड़कर मायावती को बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बना दिया था ,उसी वक़्त मुलायम सिंह यादव ने तय कर लिया था कि कांशी राम-मायावती के दलित वोट बैंक के बराबर का ही एक और वोट बैंक तैयार कर लेगें. उन्होंने उन दिनों इस संवाददाता को बताया था कि जाटवों की उत्तर प्रदेश में जितनी संख्या है , मल्लाहों की संख्या उसकी ७० प्रतिशत है . अगर मलाह पूरी तरह से समाजवादी पार्टी के साथ हो जायेगें तो दलितों के मायावती के साथ जाने से समाजवादी पार्टी को कोई नुकसान नहीं होगा. इसी सोच की बुनियाद पर उन्होंने मलाहों की अस्मिता की पहचान बन चुकी डाकू फूलन देवी को अपनी पार्टी में शामिल किया था और उन्हें लोकसभा की सदस्य बनवाया था. समाजवादी पार्टी का दावा है कि राज्य में मलाह, कहार और कुम्हार जातियों की संख्या जाटवों की कुल संख्या से ज़्यादा है . इसलिए इन जातियों को अगर अनुसूचित जाति में शामिल कर दिया जाए तो इन्हें राजनीतिक रूप से अपने साथ जोड़ा जा सकता है . इस योजना का दूसरा लाभ यह होगा कि मायवती के कोर समर्थकों को अपने आरक्षण में से उन जातियों को भी हिस्सा देना पड़ेगा जो कि चुनावों में मायावती के खिलाफ वोट कर रहे होगें.
उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियो में अति पिछड़ी जातियों के सहारे राजनीति करने की कोशिश बीजेपी ने भी की थी. जब राजनाथ सिंह मुख्य मंत्री थे तो उन्होने अति पिछड़ों के लिए अलग से रिज़र्वेशन की बात की थी. और उसी हिसाब से नियम कानून भी बना दिया था. लेकिन उनकी राजनीति की धार के निशाने पर मुलायम सिंह यादव और उनकी राजनीति को कमज़ोर करना था. वे ओबीसी के आरक्षण में से काट कर अति पिछड़ी जातियों को सीटें देना चाहते थे . लेकिन समाजवादी पार्टी ने अति पिछड़ों को आरक्षण भी दे दिया है और अपने ओबीसी वर्ग के समर्थन को और मज़बूत कर दिया है . क्योंकि अगर मलाह , कुम्हार और कहार जाति के लोग दलित कोटे से सीटें ले रहे हैं तो ओबीसी के लिए जो २७ प्रतिशत का आरक्षण है उसमें से यादव आदि जातियों को ज़्यादा सीटें मिलेगीं.
इन जातियों को अनुसूचित जाति घोषित करने की प्रक्रिया को सरकार ने शुरू भी कर दिया है . मुख्य सचिव जावेद उस्मानी ने सम्बंधित विभाग से आंकड़े तलब कर लिए हैं और जल्दी ही प्रक्रिया पूरी कर दी जायेगी.
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