शेष नारायण सिंह
इस बात में दो राय नहीं है कि अन्ना हजारे सर्वोच्च स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार से बहुत चिंतित हैं . उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष में बिताया है . फौज की नौकरी ख़त्म करने के बाद उन्होंने सही गांधीवादी तरीके से अभियान चलाया और अपने गाँव को बाकी गावों से बेहतर बनाया . उनके गाँव में कुछ ऐसे परिवार भी हैं जो ऊब कर बड़े शहरों में चले गए थे लेकिन फिर वापस आ गए हैं. अन्ना को उनके समाज में बहुत ही सम्मान से देखा जाता है . ज़ाहिर है धीरे धीरे ईमानदारी से काम करते हुए वे आज देश में एक आन्दोलन खड़ा करने में सफल रहे हैं .डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने उन्हें सुझाव दिया था जब राष्ट्रीय स्तर पर आन्दोलन चलायें तो कुछ साफ़ छवि वाले राजनेताओं को भी साथ लें लें क्योंकि अंत में तय सब कुछ राजनीति के मैदान में ही होता है और वहां एक से एक घाघ बैठे हैं .उनको संभाल पाना अन्ना हजारे जैसे सीधे आदमी के लिए बहुत मुश्किल होगा. डॉ स्वामी की बात बिलकुल सच निकली. सत्ता पक्ष और विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टियों ने अन्ना हजारे के अभियान को अपना बनाने की कोशिश की . शुरुआती सफलता तो मुख्य विपक्षी पार्टी को मिली लेकिन जब मामला राजनीतिक लाभ लेने का आया तो कांग्रेस की अध्यक्ष ने हस्तक्षेप किया और अन्ना हजारे को विपक्ष के खेल से बाहर करके अपने साथ ले लिया . मुख्य विपक्षी पार्टी को निराशा हुई और उन्होंने अन्ना हजारे के खिलाफ तरह तरह की बातें करना शुरू कर दिया . अब पता चला है कि अपने ख़ास बन्दे बाबा रामदेव का इस्तेमाल करके एक नया अभियान शुरू करने की योजना बन रही है . बाबा का बयान आया है कि अब इंडिया अगेंस्ट करप्शन नाम के संगठन के बैनर तले एक नया आन्दोलन चलाया जाएगा. यानी अन्ना हजारे का अपनी राजनीति में इस्तेमाल करने में नाकाम रहने के बाद मुख्य विपक्षी पार्टी के लोग हताश नहीं हैं . वे कांग्रेस को भ्रष्टाचार का समानार्थक शब्द बनाने की अपनी मुहिम को अन्ना हजारे के बिना भी चलाने की कोशिश करेगें . लेकिन लगता है कि कांग्रेस ने भी अन्ना हजारे को भ्रष्टाचार के खिलाफ हीरो न बनने देने का फैसला कर लिया है .कांग्रेस का लगभग हर महत्वपूर्ण नेता , अन्ना हजारे पर छींटाकशी कर चुका है . जब अन्ना हजारे ने इस पर एतराज़ किया तो कांग्रेसियों ने कहना शुरू कर दिया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाम नहीं लगाई जा सकती.यह भी कहा गया कि जब तक हर पक्ष के बारे में सारी बातें सामने न आ जाएँ तब तक सही बहस नहीं हो सकेगी .अन्ना की टीम के दो महत्वपूर्ण सदस्यों के बारे में कांग्रेस के संकटमोचक अमर सिंह भी सक्रिय हो गए.उन्होंने ऐसा अभियान चलाया कि शान्ति भूषण और प्रशांत भूषण की ईमानदारी की छवि ही सवालों के घेरे में आ गयी .अब अन्ना के आन्दोलन को कांग्रेसी लोग बिलकुल बेचारा बना देने की कोशिश में पूरी ताक़त से जुट गए हैं . बात बहुत अजीब लगती थी लेकिन सोनिया गाँधी ने जब अन्ना हजारे की शिकायती चिट्ठी का जवाब भेजा तो बात समझ में आ गयी . सच्चाई यह है कि सोनिया गाँधी अपने आपको सार्वजनिक जीवन में शुचिता की बहुत बड़ी अलंबरदार मानती हैं और जब अन्ना हजारे ने उनके उस रोल को कमज़ोर करने की कोशिश की तो सोनिया गाँधी को अच्छा नहीं लगा .उन्होंने अन्ना की चिट्ठी का जो जवाब दिया है उस से उनका यह दर्द साफ़ नज़र आता है . उन्होंने अन्ना को भरोसा दिलाया है कि सार्वजनिक जीवन में शुचिता लाने के लिए उनकी प्रतिबद्धता पर अन्ना को विश्वास करना चाहिए .यानी जब मैं भ्रष्टाचार के खिलाफ खुद काम कर रही हूँ तो आप क्यों बीच में कूद पड़े . ज़ाहिर है सोनिया गाँधी ने अन्ना के आन्दोलन से हो रहे नुकसान को तो काबू में कर लिया लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे आन्दोलन की नेता वे खुद ही बनी रहना चाहती हैं . सूचना का अधिकार कानून बनवाकर और अपनी सरकारों के कई मंत्रियों के भ्रष्टाचार उजागर होने के बाद उनको दंडित करके उन्होंने अपनी यह छवि निखारने की पूरी कोशिश की है. अन्ना हजारे को लिखा गया उनका जवाब भी इसी कोशिश की एक कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिए . उस चिट्ठी में उन्होंने लगभग कह दिया है कि सर्वोच्च स्तर के भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रस्तावित लोकपाल बिल पर वे पूरी तल्लीनता से काम कर रही थीं लेकिन अन्ना के अनिश्चित कालीन अनशन से सब गड़बड़ कर दिया . सोनिया गाँधी लिखती हैं कि उनकी अध्यक्षता वाली नेशनल एडवाइज़री काउन्सिल अन्ना हजारे के साथ लोकपाल बिल के ड्राफ्ट पर सलाह मशविरा कर रही थी लेकिन इस बीच अन्ना के समर्थकों ने अनशन शुरू करवा दिया जिस से कि माहौल बदल गया और बात बिगड़ गयी . उसी चिट्ठी में सोनिया गाँधी ने लिखा है कि अरुणा राय की अध्यक्षता में बनायी गयी एन ए सी की एक उप समिति इस मामले पर गौर कर रही थी और उसने सिविल सोसाइटी के बहुत सारे प्रतिनिधियों से बातचीत की थी . जिन लोगों से बात चीत हुई थी उसमें अन्ना हजारे के बहुत करीबी लोगों , शांति भूषण , संतोष हेगड़े , प्रशांत भूषण , स्वामी अग्निवेश और अरविन्द केजरीवाल शामिल हैं . यानी सोनिया गाँधी यह कहना चाहती हैं कि आप और हम तो एक ही रास्ते पर चल रहे थे लेकिन बीच में कुछ लोगों ने कूद कर सब गड़बड़ कर दिया . सोनिया गाँधी ने साफ़ कहा कि कांग्रेस के बुराड़ी अधिवेशन में उनकी पार्टी ने लोकपाल बिल को पास करने का फैसला कर लिया था और एन ए सी की कार्यसूची में भी था और २८ अप्रैल की बैठक में अहम फैसले लिए जाने थे लेकिन आपके अनशन ने सब गड़बड़ कर दिया .
ज़ाहिर है सोनिया गाँधी नाराज़ हैं . उन्हें यह बात नागवार गुज़री है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे बड़ी नेता बनने की उनकी कोशिश को किसी ने ब्रेक लगाने की कोशिश की . शायद इसीलिये उनकी पार्टी के लोग अन्ना हजारे या उनके बाकी साथियों को घेरने में जुट गए हैं . हालांकि यह भी सच है कि अगर अन्ना हजारे ने देशव्यापी हस्तक्षेप न किया होता तो कांग्रेस के बुराड़ी अधिवेशन वाला लोकपाल बिल सब्जी का टोकरा ही साबित होता . जो भी हो उम्मीद की जानी चाहिए निहित स्वार्थों के चौतरफा हमलों से बचकर एक मज़बूत लोकपाल बिल बनाया जाएगा . उसमें अगर शान्ति भूषण ,प्रशांत भूषण या किसी और की पोल खुलती है तो खुले, जनता को इस से कोई मतलाब नहीं है .लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ एक कारगर कानून की जितनी आज ज़रूरत है उतनी कभी नहीं थी.
अन्ना,सोनिया और रामदेव -तीनों या और कोई भी जब तक धार्मिक भ्रष्टाचार पर आघात नहीं करता आर्थिक भ्रष्टाचार भी दूर नहीं कर सकता .
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