शेष नारायण सिंह
अमरीका में एक संगठन है ,यू एस कमीशन फार इंटर्नेशनल रिलिजस फ्रीडम . वह दुनिया भर में उन देशों की लिस्ट जारी करता है जहां धार्मिक स्वतंत्रता की कमी है .उसकी ताज़ा लिस्ट देखने से पता चलता है कि वह मंद बुद्धि लोगों के प्रभाव वाला संगठन है . उसकी नई लिस्ट में भारत का नाम अफगानिस्तान के साथ रखा गया है.इस श्रेणी में कुछ और भी देश हैं लेकिन जब सबसे ज्यादा अजीब अफगानिस्तान से भारत की बराबरी लगती है . भला बताइये जसी अफगानिस्तान में बामियान बुद्ध की मूर्तियों को तहस नहस कर दिया गया हो , जहां ज़रा सी भी धार्मिक विभिन्नता के कारण लोगों को मार डाला जाता हो उसकी तुलना भारत से करके यह संगठन भारत का तो क्या बिगाड़ेगा ,लेकिन अपनी मूर्खता का परिचय ज़रूर दे दिया है. हालांकि इस बात में दो राय नहीं है कि भारत में हर धर्ममें कुछ ऐसे लोग हैं जो दूसरे धर्म को मानने वाले की धार्मिक आज़ादी में दखल देते रहते हैं लेकिन वे हाशिये पर हैं . उनकी हैसियत केवल लुम्पन की है . मसलन कश्मीर में हिन्दू अल्पसंख्यकों को जब पाकिस्तानी भाड़े के आतंकवादियों ने अपना घर बार छोड़ने के लिए मजबूर किया तो पूरे देश की कानून व्यवस्था, सरकार और जनता उनेक साथ खडी हो गयी. धार्मिक कारणों से घर छोड़ने वाले कश्मीरी पंडितों को देश के हर भाग में सम्मान पूर्वक काम करने के अवसर दिए गए. सिख के खिलाफ कांग्रेस के दिल्ली के नेताओं की ओर से आयोजित दंगों में बहुत सारे सिखों की जान माल का नुकसान हुआ था लेकिन धार्मिक कारणों से उनकी हत्या करने वालों के खिलाफ पूरा देश और समाज खड़ा है और जिन कांग्रेसियों ने उनके ऊपर हमले करवाए थे उनको कांग्रेसी सरकारों ने भले ही साथ रखा हो लेकिन दंगों के अपराधी नेताओं को एक समाज के रूप में इस देश ने कभी सम्मान नहीं दिया. देश में हिन्दू मुस्लिम दंगों का सिलसिला १९२७ से ही चल रहा है लेकिन दंगाई को कभी भी समाज ने माफ़ नहीं किया . दंगों में जिन सिरफिरे लोगों ने भी हिस्सा लिया वे समाज की नज़रों में हमेशा ही गिर गए. मुसलमानों को अपमानित करने के उद्देश्य से जब बाबरी मस्जिद को ढहाया गया तो उन अपराध को करने वालों के खिलाफ पूरा देश एक जुट हो गया . यहाँ तक कि देश का पूर्व उप प्रधान मंत्री बाबरी मस्जिद विध्वस केस में अभियुक्त है और उनकी अपनी पार्टी में भी एक बड़ा वर्ग उनके इस काम को गलत मानता है . उनकी पार्टी के ही एक मुख्यमंत्री के ऊपर गुजरात नरसंहार२००२ की साज़िश में शामिल होने का आरोप है . पूरे देश में उनके खिलाफ धरने प्रदर्शन होते रहते हैं , बहुसंख्यक हिन्दू समाज के लोग उनके खिलाफ हर मंच पर अभियान चला रहे हैं . पूरे देश के हिन्दू की नज़र में वे अपराधी हैं .जिला स्तर की अदालतों से लेकर देश की सर्वोच्च अदालत तक उनके खिलाफ मुक़दमा चल रहा है . ऐसी हालत में अगर कोई भी नासमझ व्यक्ति या संगठन भारत को धार्मिक असहिष्णु देश के रूप में प्रस्तुत करता है तो उस भारत की स्थिति में तो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा लेकिन उस संगठन की औकात का पता चल जाता है . ज़ाहिर है कि इस तरह के एगैर ज़िम्मेदार रिपोर्ट को पूरी दुनिया में तिरस्कार की नज़र से देखा जाएगा लेकिन कुछ भारत विरोधी ताक़तें इसको भी भारत के खिलाफ एक तर्क के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश करेंगीं. हालांकि यह भी सच है कि इस रिपोर्ट को तैयार कने में कमीशन के अध्यक्ष की मनमानी की ज्यादा भूमिका है क्योंकि इस रिपोर्ट का कमीशन के दो सदस्यों ने विरोध किया उअर रिपोर्ट में ही अपनी मुखैल्फत को दर्ज कराया . फेलिस गाएर और विलियम शा नाम के सदस्यों ने जोर देकर कहा कि भारत के संविधान में ही धार्मिक स्वतंत्रता का प्रावधान है , वहां की न्याय व्यवस्था पूरे इतरह से संविधान के अनुसार काम करती है और धार्मिक कारणों से विभेद करने वाले लोगों को सख्त सज़ा का प्रावधान है . ऐसे देश को उसी स्तर पर रखना जिस पार अफगानिस्तान को रखा गया है बिलकुल गलत है . उन लोगों ने अपने नोट में लिखा है कि इस से भारत का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन कमीशन की विश्वसनीयता के परखचे उड़ जायेंगें . ऐसा नहीं है कि कमीशन को सारी बातों का पता नहीं था . उनको बाकायदा बताया गया था कि अल्पसंख्यकों को जितनी संवैधानिक गारंटियां भारत में उपलब्ध हैं, उतनी तो अमरीका में भी नहीं हैं . बहरत में धार्मिक सहिष्णुता की परंपरा है . जब अमरीका में काले लोगों को वोट देने तक के बुनियादी अधिकार नहीं थे तो भारत में अल्पसंख्यकों के लिए उनके धार्मिक अधिकारों के अनुसार परिवार के पर्सनल कानून बन चुके थे अल्पसंख्यकों को भारत में हर स्तर पर सब्सिडी की व्यवस्था है .धार्मिक स्थानों पर सरकार का कोई दखल नहीं है .अल्पसंख्यकों के लिए बनी शिक्षा संस्थाओं को विशेष दर्ज़ा दिया गया है . ऐसी हालत में भारत को अफगानिस्तान के बराबर करने की कोशिश परले दर्जे का पागलपन है
भारत में अल्पसंख्यकों के लिए उनके धार्मिक अधिकारों के अनुसार परिवार के पर्सनल कानून बन चुके थे अल्पसंख्यकों को भारत में हर स्तर पर सब्सिडी की व्यवस्था है .धार्मिक स्थानों पर सरकार का कोई दखल नहीं है .अल्पसंख्यकों के लिए बनी शिक्षा संस्थाओं को विशेष दर्ज़ा दिया गया है..
ReplyDeleteयही तो भेदभाव है... अलग अलग नीतियां क्यों जब सब एक जैसे हैं..
अमेरिका अपने हित साधता है और कुछ उसके लिये मायने नहीं रखता..